पिछले ८ महीनों से २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम (पोस्ट-२०१५ डेवलपमेंट एजेंडा) किसी ना किसी रूप में हर किसी के दिमाग में रहा होगा| हम में से कुछ इसके साथ खेलते रहे हैं, कुछ ने इसे नज़रंदाज़ कर दिया, कुछ इस पर काम करने में जुटे हैं और कुछ इसके साथ ही सोते जागते हैं| इस प्रक्रम की शुरुआत एक ऐसे रूपांतरित कर देने वाले कार्यक्रम के वादे के साथ हुई थी जिसमें हर व्यक्ति के सम्मिलित होने की बात कही गई थी| मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी), जोकि यू एन सेक्रेट्री जनरल कोफ़ी अनान और यूएनडीपी के प्रमुख मार्क ब्राउन की अगुआई में कुछ लोगों द्वारा बंद दरवाज़ों के पीछे सृजित किया गया था, और फिर सरकारों और गैर सरकारी संस्थानों पर समान रूप से थोप दिया गया था, इसके विपरीत, पोस्ट-२०१५ ने कार्यक्रम की स्थापना में सभी पक्ष्धारकों – सदस्य राष्ट्र, गैर सरकारी संस्थान, निजी सेक्टर, यू एन प्रतिनिधित्व – की पूर्ण सहभागिता का वादा किया|
अब तक की कहानी –
इस प्रक्रम की शुरुआत तब हुई जब २०१० में एमडीजी की उच्च स्तरीय समग्र बैठक (प्लेनेरी मीटिंग) में महासभा (जनरल असेम्बली) के सेक्रेटरी जनरल ने एक ऐसे विकासात्मक कार्यक्रम की नींव रखने का निवेदन किया जो २०१५ के बाद एमडीजी का स्थान ले सके| २०१२ में रिओ सम्मलेन के बाद, सदस्य राष्ट्रों ने धारणीय विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल – एसडीजी) को निर्धारित करने की प्रक्रिया शुरू की, जो मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स पर आधारित होंगे और २०१५ के पश्चात् उसी में मिल जाएँगे| एक सार्वलौकिक कार्य-दल (ओपन वर्किंग ग्रुप – ओडब्लूजी) का गठन हुआ जिसका चुनाव पांच संयुक्त राष्ट्र संघ मंडलीय दलों ने और ३० सदस्य राष्ट्रों (मेम्बर स्टेट्स) ने मिल कर किया था| इस कार्य-दल ने मार्च २०१३ से लेकर जुलाई २०१४ के बीच, करीब १७ महीनों में, १३ सत्रों का संचालन किया और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल का प्रस्ताव विकसित किया| १७ उद्देश्य (गोल) और १६९ लक्ष्यों (टार्गेट) को विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत किया गया| सभी समालोचनाओ को एक रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत किया गया जो २०१५ के शिखर सम्मलेन के लिए होने वाली अंतर-राष्ट्रिय वार्ता में मदद करती|
यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों से जुड़े आन्दोलन के लिए इस ओडब्लूजी की कुछ आरंभिक सफलताओं में मातृ मृत्यु-दर में कमी लाने से जुड़े टार्गेट का शामिल होना, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी सुविधाओं तक व्यापक पहुँच का आश्वाशन, बाल/ जल्दी/ बलात विवाह, हिंसा एवं हानिकारक प्रथाओं का अंत और प्रजनन अधिकारों का आश्वाशन शामिल है|
निश्चित रूप से, हम जैसे अति संवेदनशील यौन एवं प्रजनन अधिकार के कार्यकर्ताओं के लिए, ये लक्ष्य किसी दिमागी कसरत का नतीजा नहीं लगते थे| लेकिन अंतर-राष्ट्रिय वार्ता में, जहाँ यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों और महिलाओं के अधिकारों से जुड़ी भाषा का उपयोग केवल आर्थिक एवं राजनैतिक भाषा से जुड़े लेन-देन के रूप में किया जाता है, इन सफलताओं को महत्वपूर्ण प्राप्ति के रूप में देखा जा सकता है| मूल एमडीजी में तो मातृ मृत्यु-दर में कमी के आलावा और कुछ भी नहीं था|
ओडब्लूजी के सत्र एवं रिपोर्ट के बाद, जनरल असेंबली के अध्यक्ष ने जनवरी से जुलाई २०१५ में होने वाले अनौपचारिक परामर्श और अंतर-राष्ट्रिय वार्ता के नेतृत्व के लिए दो सह-समन्वयकों, एक केन्या से और एक आयरलैंड से, की नियुनक्ति की| ठीक इसी समय, विकास विचार-विमर्श के लिए वित्त पोषण (फाइनेंसिंग फॉर डेवलपमेंट कंसल्टेशन) का संचालन भी हुआ जोकि मोंट्रे एवं दोहा सम्मेलन की आगे की कार्यवाही थी| हालाँकि ये मौलिक रूप से २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम प्रक्रिया का हिस्सा नहीं था, पर जाने-अनजाने ये दोनों प्रक्रियाएं एक दूसरे से जुड़ गई और एक दूसरे के भाग्य को प्रभावित करने लगीं|
२०१५-पश्चात् प्रक्रिया ने एसडीजी के कार्यान्वन के लिए एक जवाबदेही पथ की ज़रुरत को भी पहचाना, और धारणीय विकास पर एक उच्च स्तरीय राजनैतिक मंच (पोलिटिकल फोरम) का गठन किया जो धारणीय विकास प्रतिबद्धता, २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल की समालोचना एवं आगे की कार्यवाही के लिए सलाह दे सके|
इसके आलावा, इस प्रक्रिया ने संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय आयोग (यूनाइटेड नेशनस स्टैटिस्टिकल कमीशन – यूएनएससी) की आवश्यकता को भी शामिल किया जो २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम के विस्तार में सांख्यिकीय सहायता प्रदान कर सके| इस आयोग ने एसडीजी सूचकों के लिए अंतर-संस्था एवं विशेषज्ञ समूह (इंटर-एजेंसी एंड एक्सपर्ट ग्रुप ऑन एसडीजी इंडीकेटर्स – आईएइजी-एसडीजी) का गठन किया जिसमें राष्ट्रीय सांख्यिकी अधिकारी (एनएसओ) और पर्यवेक्षक के रूप में मंडलीय, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एवं एजेंसी शामिल थीं जिनको सूचकों की रूपरेखा पर काम करना होगा| सूचकों की इस रूपरेखा को संभवतः २०१६ के सांख्यिकीय आयोग के ४७वें सत्र में अनुमोदित किया जायेगा|
इसमें हमारे लिए क्या है?
कुल मिलाकर, नए उद्देश्य और लक्ष्य हमें शारीरिक अधिकार, शारीरिक अखंडता, शारीरिक स्वायत्तता के विषयों पर प्रवेश बिंदु प्रदान करते हैं, जो हमारे आन्दोलन की महत्वपूर्ण संकल्पनाएँ हैं और जिनके बारे में हमें अपनी सरकार को प्रशिक्षित करना है|
हालाँकि हमें यह भी ज्ञात रहना चाहिए कि १९९४ और १९९५ की तुलना में हमारी दुनिया अब कहीं ज़्यादा जटिल हो गई है| आज मंच पर उपस्थित लोगों में केवल सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ और गैर सरकारी संस्थाएं ही नहीं शामिल हैं, इनके साथ निजी सेक्टर और सुनियोजित धार्मिक अधिकारों की भी मज़बूत उपस्थिति है, क्योंकि ये दोनों ही समूह अच्छी तरह समझते हैं कि अंतर-राष्ट्रीय निर्णयों को प्रभावित करने से इन निकायों को प्रचुर लाभ मिलेगा और पुराने धार्मिक अवधारणाओं को मुद्रा की प्राप्ति होगी| सदस्य राष्ट्रों की व्यापार एवं वाणिज्य में दिलचस्पी विकास की परिचर्चा को आच्छादित कर लेती है जो सामाजिक विकास के लिए हानिकारक है| राष्ट्रीय हितों के कई मुद्दों पर द्विपक्षीय समझौतों ने अंतर-राष्ट्रीय तंत्र के कृतित्व को और संयुक्त राष्ट्र से आने वाले प्रस्तावों और समझौतों की संगठित करने की प्रकृति को कम कर दिया है।
विश्वव्यापी संकट – राष्ट्रों और लोगों के बीच टकराव या मतभिन्नता, त्रासदी, वित्तीय एवं आर्थिक अनियंत्रित नियमों के कारण उत्पन्न असमंजस – जैसी स्थितियां अभी तक सुलझ नहीं सकी हैं| और इन संकटों का सामना करने और यथायोग्य एवं समयानुकूल उपाय सुझाने को लेकर हमेशा से ही राजनैतिक नेतृत्व की प्रत्यक्ष कमी रही है – राष्ट्रीय स्तर पर और विश्व स्तर पर|
और निश्चित ही, हमें खुद से ये आलोचनात्मक सवाल पूछना ही होगा – क्या यह २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम उस बदलाव के लिए एक उत्प्रेरक का काम करेगा जिसे हम अपने देश और समुदाय में देखना चाहते हैं? यदि हम अपनी अपेक्षाओं को काट छांट कर न्यूनतम कर दें, तब भी, क्या ये विकासात्मक कार्यक्रम हमारी सरकारों को उन मुद्दों के बारे में हमारे द्वारा चाहे सिद्धांतो और दृष्टिकोण के साथ सोचने और उन पर कार्य करने में समर्थ बना सकेगा? क्या समानता, मानवाधिकार, गैर-पक्षपात, मौलिक स्वतंत्रता और अधिकारों को इस तरह से समर्थित किया जायेगा जिससे सरकारें उन्हें अनदेखा न कर सकें और विकास के नाम पर इन्हें टालें ना?
२०१५-पश्चात् कार्यक्रम ढांचे और ऊपर समझाई गई जाँच कार्यवाही में हम शामिल हो सकते हैं और हमें होना चाहिए, लेकिन इस बात की स्पष्ट समझ होने पर कि एसडीजी का इस्तेमाल हम किस चीज़ के लिए कर सकते हैं और किसके लिए नहीं कर सकते हैं, हम अपने पक्षसमर्थन उद्यम को अधिक कूटनीतिक और सृजनात्मक तरीके से तैयार कर सकते हैं|
इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमें इस बात का एहसास हो कि कोई भी विश्व स्तरीय कार्यक्रम जो जेंडर, सत्ता के असंतुलन (जोकि सामजिक पार्श्विकरण का मूल कारण है) जैसे विषयों को संबोधित नहीं करता है, उससे हमें सीमित परिणाम ही मिल सकते हैं| प्रवसन, धार्मिक रूढ़िवादिता और पुरातन प्रेम, युवा लोग और जातीय संघर्ष जैसे जटिल राजनैतिक विषयों के आलावा जेंडर एवं यौनिकता के आधार पर लोगों को हाशिये पर रखने के मुद्दे पर सरकार की चुप्पी और इसको संबोधित करने में सुस्ती या तो संयुक्त राष्ट्र और उनके सदस्य राष्ट्रों की असमर्थता को दर्शाती है या संसार में दिखने वाले इस पक्षपात को ख़त्म करने का साधन खोजने में उनकी अरुचि दर्शाती है|
हम सभी जो जेंडर, महिलाओं के अधिकार, यौन एवं प्रजनन अधिकार, के परस्पर जुड़े हुए विषयों पर काम कर रहे हैं, उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक सिद्धांतों एवं मानकों को परिभाषित करना और उन्हें बनाए रखना मौलिक हैं| ये वो मानक हैं जो उन संधिपत्रों पर आधारित हैं जिनपर हमारी सरकारों ने दस्तखत किये हैं, जैसे सीइडीएडब्लू, सीआरसी, आईसीईएसआर, और आईसीसीपीआर और अन्य मुख्य संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन जैसे आईसीपीडी और बीपीऍफ़ए| असमानता और सामाजिक पर्श्विकरण के अंतर्निहित कारकों को कम करने के लिए सरकारों को इन मानकों के लिए ज़िम्मेदार ठहराना एक मुख्य रणनीति रही है| मानवाधिकार तंत्र एवं मानकों का उपयोग सभी राष्ट्रों की सत्ता पर नज़र रखने के लिए भी कारगर रणनीति रही है| २०१५-पश्चात् कार्यक्रम के लिए राष्ट्रों की ज़वाबदेही बने रखने के क्रम में, इन मानकों को बनाए रखना आवश्यक है, और उच्च स्तर की राजनीतिक फोरम के फैसले और निगरानी के काम में इनका शामिल किया जाना महत्वपूर्ण है। मानव अधिकारों से जुड़े स्थानों में हमारी निरंतर उपस्थिति और भागीदारी भी हमारे एजेंडा की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
अतः अगले १५ सालों के लिए हमारा काम निश्चित हो गया है| हमें और अधिक प्रभावी ढंग से और कुशलता से सत्ता की जाँच करने के क्रम में, सभी क्षेत्रों में, जनआंदोलनों के साथ व्यापक गठबंधन बनाने में सक्षम होने की ज़रुरत है; और हमारे समाज में सत्ता का पुनर्वितरण सुनिश्चित करने की कोशिश करने की आवश्यकता है| हमें सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के एक गठबंधन बनाने में सक्षम होने की ज़रुरत है जो विकास और अधिकारों के लिए सार्वभौमिक, उच्च मानकों और बेंचमार्क को निर्धारित कर सके और उनका समर्थन जारी रख सके| हालाँकि २०१५-पश्चात् विकास कार्यक्रम का इस्तेमाल चर्चा का नेतृत्व करने के लिए और सरकार की उपलब्धियों और कार्यान्वयन में कमी दिखने के लिए किया जा सकता है, यह स्पष्ट है कि जो दुनिया हम चाहते हैं, उसका निर्माण करना तो हमें ही करना होगा|