नोटिस: यह अंजोरा सारंगी के माया शर्मा के साथ साक्षात्कार का दूसरा भाग है, इस साक्षात्कार का पहला भाग यहाँ पढ़ें।
माया शर्मा एक नारीवादी एक्टिविस्ट हैं जो भारत के महिला आन्दोलन में पूरे जोश के साथ जुड़ी रही हैं। उन्होंने महिला मजदूर अधिकार एवं एकल महिलाओं पर किताबों का सह-लेखन किया है। वे वीमेन्स लेबर राइट्स की सह लेखक हैं जो एकल महिलाओं के जीवन के बारे में है। वे विकल्प महिला समूह के साथ काम करती हैं, जो ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली बड़ोदरा, गुजरात की एक संस्था जो जनजातीय महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों के साथ काम करती है।
तारशी की वालंटियर अंजोरा सारंगी ने भारत के जन आन्दोलनों पर उनके अनुभवों के बारे में माया के साथ बातचीत की।
अंजोरा: क्या मानसिकता में बदलाव लाने के लिए एडवोकेसी और प्रचार महत्वपूर्ण हैं, विशेषकर तब जब पित्रसत्ता से जुड़ी ऐसी मानसिकता को ऐतिहासिक रूप से समर्थन और मान्यता प्राप्त हो?
माया: मुझे लगता है कि एडवोकेसी और प्रचार मानव अधिकार के स्तर पर महत्वपूर्ण हैं पर व्यक्तिगत मानसिकता में बदलाव लाने के लिए हमें ज़्यादा नज़्दीकी से काम करने की ज़रुरत है – घर घर जाकर, योजना बनाकर, प्रशिक्षण द्वारा और लोगों के साथ रह कर। उदहारण के लिए, विकल्प में हम परिवारों को कार्यक्रमों में सम्मिलित करने की पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि सरकार से हमें वृद्धावस्था से जुड़े लाभ, घर, और नौकरी से जुड़े कोई लाभ नहीं मिलते हैं, ऐसे में परिवार ही एक सहारा होता है। रिश्ते बनाना लम्बे समय में महत्वपूर्ण है। हमारे लिए सामने वाले व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझना भी आवश्यक है। इस प्रक्रम में कई ऐसी बातें भी निकल कर आएँगी जो ‘सही’ नहीं मानी जाएँगी पर लोगों के साथ वो ताल्लुक/संपर्क बनाना ज़रूरी है। एडवोकेसी और प्रचार अक्सर व्यक्तिगत जीवन पर असर नहीं डालते हैं। विकल्प लोगों को जोड़ने का और ज़मीनी स्तर पर समूह बनाने का प्रयास करता है। जब लोग एक दूसरे से बात करेंगे तो एक दूसरे से सीखेंगे भी। तभी एडवोकेसी और प्रचार भी अंतर पैदा कर सकेंगे – जब स्थानीय समुदाय के लोग अपने मुद्दों को स्वयं उठाएंगे।
अंजोरा: विकल्प ने हाश्यकृत महिलाओं पर हुए अन्याय को संबोधित करने के लिए न्यायिक तंत्र के रूप में वैकल्पिक अदालतों की स्थापना की है – नारी अदालत और महिला पञ्च। इन अदालतों में कौन से मुख्य मुद्दे आते हैं और केस के समाधान में कितना समय लगता है?
माया: हम अपनी क्षमता की सीमा और केस के प्रकार का आकलन करने के बाद ही कोई मामला लेते हैं। जैसे, हमारे पास जायदाद से जुड़े केस आते हैं जिसमें कई कानून शामिल हो सकते हैं, तो हम उन्हें तभी लेते हैं जब उन्हें सँभालने के लिए हमारे पास संसाधन हों। वरना हम ऐसे केस को वकीलों के पास भेज देते हैं जो उन्हें बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं। नारी अदालत अब ज़्यादातर दलित महिलाओं और समुदाय द्वारा स्वयं ही चलाए जाते हैं।
हमारे पास ज़्यादातर घरेलु मारपीट, बच्चे के संरक्षण/अभिवावकता और दहेज़ से जुड़े केस आते हैं। हत्या से जुड़े केस भी आते हैं। उन स्तिथियों में जब महिला यह निर्णय नहीं कर पाती हैं कि वे क्या चाहती हैं – जैसे अपने पति से अलग होने के मामले में – तब हम भी सहयोग करते हैं। नारी अदालत का तरीका ऐसा है कि महिला को विचार करने में मदद की जाती है। इन मामलों का समाधान होने में समय लगता है।
महिलाएँ केस सुनने के लिए सप्ताह में एक बार मिलती हैं और लम्बे केस में ६-७ सुनवाई लग जाती है। जब महिला यह साफ़-साफ़ बता पाती हैं कि वो क्या चाहती हैं तो केस का समाधान जल्दी हो जाता है। सुनवाई में कई लोग सम्मिलित होते हैं जिसमें पंचायत के सदस्य और परिवार भी शामिल होते हैं।
अंजोरा: क्या अपने काम की प्रकृति के कारण आपको लोगों या जिस समुदाय में आप काम करती हैं, उनसे प्रतिरोध या धमकी मिली है? क्या आपको अपने उद्यम में कानूनी या पुलिस द्वारा परेशानी का सामना करना पड़ता है?
माया: बिलकुल, हम पर हर उस क्षेत्र में हमले हुए हैं जहाँ हमने काम किया है; जहाँ महिलाओं का अपने चुनाव/विकल्पों को स्पष्ट रूप से बोलना ही निषिद्ध है, यह बात कई लोगों को नाराज़ कर देती है। उनके लिए हमसे बदला लेने का सबसे अच्छा तरीका है हम पर हमला करना या हमारी निंदा करना। हमने समुदाय और पुलिस दोनों की तरफ़ से परेशानियाँ झेली हैं। ये एक मानी हुई सच्चाई है कि पुलिस रिपोर्ट या ऍफ़आईआर नहीं लिखेगी चाहे आप जितना ज़ोर लगा लें। पुलिस के साथ प्रशिक्षण के दौरान हमने महसूस किया कि पुलिस पर काम का बोझ बहुत अधिक है। उनमें से कई स्वच्छंद विचार वाले हैं क्योंकि वे ज़मीनी स्तर के संपर्क में रहते हैं। वे सच्चाई से अवगत हैं पर पुलिस का सामाजिक/न्यायिक तंत्र ही ऐसा है जो उन्हें अत्यन्त असंवेदनशील बना देता है। अक्सर पुलिस को ही पता नहीं होता है कि कौन से कानून लागू होंगे और कैसे – विशेषकर धारा ३७७ (जो भारत में समलैंगिकता को आपराधिक करार देती है) के साथ यही होता है।
अंजोरा: आपके मुताबिक विकल्प के साथ आपके काम में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? आपको क्या लगता है आपने क्या बदलाव लाए हैं?
माया: बदलाव का मूल्यांकन करना आसान नहीं है पर अगर आप नारी अदालत आयेंगे तो आप देखेंगे कि महिलाएँ महिला-केन्द्रित मुद्दों पर बहुत ऊपर निकल गई हैं और ये बहुत सुखद है। चूंकि वे समुदाय से ही हैं अतः वे अपनी समझ को दूसरों तक पहुंचाती हैं। बहुत सी ऐसी महिलाएँ हैं जो अब परिवार की अन्य महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं करती हैं। वे अपनी सहेलियों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, तब भी जब स्कूल गाँव से दूर हैं। वे इस बात की पहचान कर सकती हैं कि यौन शोषण, बलात्कार और उत्पीड़न महिला के शरीर के अधिकार के खिलाफ़ हैं।
विकल्प इन अदालतों के ज़रिए एक साल में लगभग १०० केस का समाधान करता है जो एक बड़ी उपलब्धि है। चूंकि नारी अदालत सार्वजनिक होती है, देखने वाले कई लोग होते हैं – पुलिस, समुदाय के बुजुर्ग आदि, अतः कई लोगों की मानसिकता में बदलाव आता है। ये जो लोग देख रहे होते हैं और जिनके घरों में समस्या हो, वे भी अपने घर की समस्याएँ नारी अदालत में ले आते हैं। यह तथ्य संतुष्टि प्रदान करता है कि हमने ग्रामीण जनजातीय क्षेत्रों में लोगों को संगठित किया जिसमें यौन कर्मी और एलजीबीटी (लेस्बियन, बाईसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स) समुदाय शामिल हैं और यह कि हम में से इतने लोग वहाँ उनकी मदद के लिए उपस्थित हैं।
अंजोरा: क्या आपको लगता है कि आंदोलनों के बीच परस्पर संवाद में लाभ है? जिन विभिन्न आन्दोलनों के साथ आप जुडी रही हैं, आपके अनुसार वे एक दूसरे से क्या सीख सकते हैं या एक दूसरे की कैसे मदद कर सकते हैं?
माया: जी, वे ज़रूर एक दूसरे से लाभान्वित हो सकते हैं। आंदोलनों के बीच परस्पर संवाद चल रहे हैं और हम पूरी कोशिश करते हैं कि हम उनके साथ संपर्क बना सकें, नियमित बैठक कर सकें। पर मैं ये नहीं जानती कि हमारी जैसी संस्थाएं जो ज़मीनी स्तर पर काम करती हैं, उनके पास कितना समय है ये करने के लिए, हालाँकि मैं मानती हूँ कि यह ज़रूरी है। काश क्विअर आन्दोलन अन्य आंदोलनों के साथ और अधिक शामिल हो पाता।
अंजोरा: क्या आपको लगता है कि जिन लोगों के साथ जुड़कर आप काम करती हैं, उनकी संगत से आपके व्यक्तित्व या आपके विचारों में कोई बदलाव हुआ है?
माया: जी, एक व्यक्ति के रूप में मेरे अन्दर बदलाव आए हैं। जब हम एकल महिला कार्यक्रम पर काम कर रहे थे, मैं इस विचार को मानती थी कि विषमलैंगिक परिवार पित्रसत्ता की चरम सीमा है, पर जब मैंने ज़मीनी स्तर पर काम किया तो मैंने देखा कि लोगों के अन्दर परिवार के साथ होने की प्रबल इच्छा है, मैंने इसे स्वीकार करना सीखा और परिवार होने के फ़ायदे देखे। मैं सोचती हूँ कि जब सरकार के पास कमज़ोर वर्ग के लोगों को देने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं होता है, तब परिवार को अपराधी ठहराना कितना कठिन होता होगा। मैंने उन लोगों से सीख ली है जिन्होंने दिल देहला देने वाली/कठिन परिस्थितियों को झेला है।
रूपांतरण तब होता है जब आप उन लोगों की विचारधारा को समझते हैं जिनके साथ आप तथाकथित रूप से ‘काम करते’ हैं; आपमें बदलाव इसलिए आते हैं क्योंकि आप इन सबमें उनके साथ होते हैं।