शुरुआत में ही स्वीकार लेता हूँ की मुझे शादियों का बहुत शौक़ है।
जब अपनी राजनैतिक सोच और व्यक्तिगत शौक़ में उत्तर-दक्षिण का अंतर हो तो आख़िर क्या किया जाए? पर सोच और आनंद देने वाले शौक़ का अंतर कभी-कभी इतना स्पष्ट नहीं होता। विवाह आयोजनों के दौरान नृत्य कोरियोग्राफी करने (जी हाँ, यह भी एक करियर है) और वीडियोग्राफी करने के करियर चुनने के बारे में बहुत ही गंभीरता से विचार करने के बाद, आज भीमैं बाहर-बाहर से विवाह आयोजनों का आनंद उठाता हूँ।
मेरी पीढ़ी के सिनेमा दर्शकों के समय में सिनेमा जगत ने विवाह को फिर एक बार संयुक्त परिवार और मित्रों को साथ लेकर चलने वाले नाट्य-मंचन के रूप में पहचाना था।सन् 1994 में आई फिल्म, हम आपके हैं कौन ने मानोउत्तरी भारत के संभ्रांत वर्ग में होने वाले सभी विवाह उत्सवों को कभी न समाप्त होने वाले और कभी-कभी असहनीय से लगने वाले ‘पारिवारिक नाच-गाने’ का उत्सव ही बना दिया था। अब आपको अपने मन की एक और बात बताता हूँ, जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तो मुझे बहुत ही पसंद आई और मैं चाहता था कि काश सभी विवाह ऐसे ही हों। जल्दी ही उत्तर भारत में होने वाला हर विवाह इसी फिल्म की तर्ज़ पर आयोजित होने लगा, और मुझे समझ आया कि चाहतों में भी सावधानी बरतनी चाहिए।
शादियों में मेरी दिलचस्पी सात जनम के साथ की क़समों में नहीं, बल्कि नोक झोंक भरी कामुक रस्मों में है। हम आपके हैं कौन में रोमांस राम जी जैसे पवित्र, आदर्श और कामुकता से कोसों दूर खड़े वर-वधु के बीच नहीं है। फिल्म की पूरी कहानी तो दीदी के देवर और दुल्हे की साली के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें कई सारे रिश्तेदारों (चाचा-चाची, मौसा-मौसी, बुआ-फूफा) के बीच आपसी नोंक-झोंक, दोनों पक्षों के नौकरों के बीच होने वाली स्पर्धा (इस तरह के कथानकों में जाति और वर्ग के अंतर को बहुत सावधानी से बनाए रखना होता है) और सम्धी व् समधन के बीच प्यार-मनुहार को दर्शाया गया है। सम्धी व् समधन के बीच का यह रिश्ता बहुत ही दिलचस्प संकेत देता प्रतीत होता है। एक ओर खुल कर स्थापित प्रेम-संबंधों का उत्सव मनाया जाना और दूसरी ओर बिना स्पष्ट रूप से कहे यौनिकता को स्वीकृति देना केवल विवाह का हिस्सा न होकर एक सामुदायिक आयोजन भी है। फिल्म के अंत में क्लाइमेक्स सीन के दौरान टफी द्वारा सही समय पर राम जी की बजाए कृष्ण* को चुनकर सबको बचा लेने से पहले भी विवाह में रस, रास और खतरे और अप्पत्तियाँ शामिल रही हैं। उत्सवों के दौरान, विशेषकर विवाह उत्सवों में, महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीतों में जितना आनंद, कामेच्छा और यौनिकता का प्रदर्शन होता है, वैसा कहीं और देखने को नहीं मिलता।
मुन्नी केतकीवाली ऐसी ही एक प्रतिभाशाली गायिका हैं जिनके पास इसी तरह के गीतों का खजाना है। इनके बारे में जानकारी मुझे घंटों तक यू-ट्यूब चैनल देखने और तारशी के अपने मित्रों के कारण मिल पायी। यू-ट्यूब पर उनके कुछ गानों के बाद दी गयी थोड़ी जानकारी के अलावा इन्टरनेट पर मुन्नी केतकीवाली के जीवन और काम के बारे में विशेष कुछ जानकारी नहीं है। उनके गाए गीतों के एल्बम 70, 80 और फिर 90 के दशक में बाज़ार में आए जिनमें उन्होंने 60 के दशक की संगीत शैली में भोजपुरी गीत गाए हैं। उनके गानों में लोकगीत, फिल्म संगीत और पाश्चात्य पॉप संगीत का अच्छा मिश्रण देखने को मिलता है। यू-ट्यूब पर मुन्नी के गानों के एल्बम के कवर पर छपे उनके चित्र, उनके तीखे नयन, आत्मविश्वास से भरी निगाह सीधे श्रोताओं से आँख मिलाती प्रतीत होती है। वे अपने गानों में अपनी समधन की हरकतों और करतूतों का बयान करते हुए छींटाकशी करती हैं और बहुत जोश और जलन के साथ इनका वर्णन करती हैं। निरर्थक, सांसारिक और अक्सर चंचल गीतों के सुरों में मजाकिया और देहाती हास्य साफ़ दिखाई पड़ता है। केतकीवाली के गानों में वह सब दिखाई और सुनाई पड़ता है जिसे ‘हम आपके हैं कौन’ फिल्म में लुक-छिप कर और झाड़-पोंछ कर प्रस्तुत करना पड़ा था। अब जब मुझे मेरी राजनैतिक सोच और शादी का शौक़ एक ही स्थान पर मिल गए हैं, तो मैं यौनिकता के सामुदायिक उत्सव के रूप में विवाह को दर्शाने के लिए मुन्नी के संगीत को अधिक लोकप्रिय बनाने पर ज़ोर देना चाहूँगा। एक ऐसा उत्सव, जहाँ लोग खुलकर अपनी यौनिकता को स्वीकार करें और ज़ोर शोर से बाहर आकर इसका प्रदर्शन करें । कुछ ऐसा, जैसे कोई जग्राता, या कोई प्राइड परेड… कुछ कुछ।
कर्तव्य की बजाय अपनी चाहतों के गीत गाने वाली महिला गायिका पर तो संभवत: सेंसर बोर्ड रोक लगा ही देगा। ऐसा न केवल सेन्सर्शिप के वर्तमान चलन से साफ़ दिखाई पड़ता है बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी ऐसा होता रहा है चाहे महिला चोली के पीछे अपने दिल को दर्शाए या फिर सेक्सी** बुलाया जाना पसंद करें। जैसा कि शोहिनी घोष ने खलनायक फिल्म के गाने ‘चोली के पीछे’ के बारे में अपने लेख में कहा है, कि, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की बजाय महिला द्वारा अपनी यौनिकता को प्रकट करने पर ही परम्परा और संस्कृति के तथाकथित रखवालों का रोष ओर असहमति देखने को मिलती है। मुन्नी केतकीवाली के विवाह गीतों में ऐसे बोल भरे पड़े हैं जिनमे महिलाएँ कामुक अंदाज़ में एक दुसरे से बात करती हैं और अपनी इच्छाओं और विचारों को इस तरह प्रकट करती हैं जो हमेशा ही पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध और खतरनाक माना जाता रहा है। हालांकि सांस्कृतिक निर्माण से जुड़े पितृसत्तात्मक परिप्रेक्ष्य के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन इन गीतों में विषय-वस्तु के बारे में बहुत कम जानकारी होने के कारण केवल आशा और फंतासी का दामन ही थामना पड़ता है। तो यहाँ सेक्सी समधन गानों की एल्बम प्रस्तुत है जिसमें सामुदायिक प्रथाओं, प्रचलित सांस्कृतिक प्रक्रिया ओर हमारे जीवन में रोज़मर्रा की इच्छाओं और यौनिकता का समावेश है…सिर्फ अगर हम इसे देखना पसंद करें तो ! #शादीमुबारक
- अलग अलग वर्गों में विवाह उत्सवों की तुलना कर विश्लेषण करने से पता चल सकता है कि क्या सभी वर्गों, जातियों या स्वर्ण प्रथा के बाहर भी महिलाओं को इसी तरह खुल कर अपनी इच्छा ज़ाहिर करने की आज़ादीहै।
‘हम आपके हैं कौन’ फिल्म बहुत ही अलग और कहीं अधिक अचम्भित करती अगर इस फिल्म के गाने लता मंगेशकर की बजाय मुन्नी केतकीवाली ने गाए होते।संभव है तब शादी का जश्न कुछ ऐसा लगता :चना जोर गरम:
2. हम आपके हैं कौन में गीत गाते समय आलोकनाथ कुछ इस तरह अपने मन की असमंजस ही दिखा पाए थे
“आज हमारे दिल में अजब यह उलझन है,
गाने बैठे गाना, सामने समधन है।”
मुन्नी को अपनी समधन की तारीफ़ के पुल बाँधने मेंऐसा कोई संकोच नहीं होता।
बैठे हुए को:
3. अपनी समधन के लिए मुन्नी के सवाल सीधे, निसंकोच और व्यंग से भरे हैं। मेरी कल्पना की हम आपके हैं कौन में शादी के पकवान और मेन्यू पर बातचीत कुछ इस तरह होती।
केला कैसे खाओगी:
4. इस सबका सम्बन्ध सहमति से भी है। इसलिए जब सहमति मिल जाए तो उसका धन्यवाद और जश्न भी होना चाहिए, क्योंकि
“ये शादी की हैं फुलझड़ियाँ, लगती नहीं हैं इसमें हथकड़ियां,
तू भंवरा बन के रस ले ले, तेरे ही लिए हैं पंखुड़ियां”
5. समधन के लिए गाने न केवल इच्छाओं को दर्शाते हैं बल्कि जोश और छेड़छाड़ भी इनमेंरहती है क्यूंकि बहन, ‘शादी का है ज़माना’ लदी-फंदी आंटियाँतब और भी अच्छी और मजाकिया लगेंगी जब वे इस गाने पर नाचेंगी जिसमें मुन्नी ने प्रेम और विरह को वासना से बदल दिया है।
शादी का है ज़माना:
6. मुन्नी के गीतों में बॉलीवुड के कई गीतों की झलक दिखाई पड़ती है, उनके यह गीत तो बॉलीवुड के एक गीत से मिलता जुलता दिखाई पड़ता है जिसमे वे समधन की तुलना तवायफ़ से करती हैं। हालांकि यह ‘मौसम है आशिकाना’ गीत से नहीं मिलता लेकिन इस जाने माने मुजरे में शुरू से ही आनंद आता है।
समधन के डाकखाने को:
7. मैं इस सूची में मुन्नी के वे लोकगीत शामिल किये बिना नहीं रह सकताजो पूरी तरह से विवाह गीत तो नहीं हैं लेकिन उनके सभी गीतों के बारे में जानकारी देने के उद्देश्य से मैं ऐसा कर रहा हूँ। विवाह से जुड़े रूपक उनके दुसरे गानों में भी दिखाई पड़ते हैं, जैसे कि यह गाना जिसमे एक खटमल नायिका की अंगिया से ऐसे झाँक रहा रहा है जैसे विदा होती हुई दुल्हन पिया के घर जाते समय डोली से झांकती है।
बीच बजरिया खटमल काटे:
8. इस सूची को समाप्त करने के लिए इससे अच्छा गीत कौन सा हो सकता है जो बॉलीवुड की ही एक मशहूर धुन पर आधारित है। इसमें विवाह के दौरान समधन की करतूतों का उल्लेख है। ध्यान रहे कि अभी तो यह केवल जानकारी की शुरूआत है। हालांकि उनके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन मुन्नी केतकीवाली के संगीत को खोजने वाले यू-ट्यूब रसिकों को संगीत का अथाह खजाना मिलेगा।
यह संगीतमय यात्रा बहुत ही रसभरी, मुक्त करने वाली होगी।
गाल तेरा चूम के:
***
*फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में दिखाया गया है कि किस तरह घर का पालतू कुत्ता ‘टफी’, फिल्म की हिरोइन द्वारा अपने प्रेमी अर्थात हीरो को लिखे गए पत्र को हीरो के बड़े भाई को सौंप देता है। बड़े भाई से ब्याही अपनी बहन की मृत्यु के बाद पारिवारिक दायित्व के चलते हिरोइन अपने जीजा से विवाह के लिए राज़ी हो जाती है। उस समय यह कुत्ता, टफी, एक बार मंदिर में रखी भगवन कृष्ण की मूर्ती की ओर देखता है और फिर हिरोइन का वह पत्र उसके अब होने वाले पति को दे देता है जिसे हिरोइन और अपने भाई के प्रेम और त्याग के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है। सब कुछ जानने के बाद बड़ा भाई रास्ते से हट जाता है और हीरो-हिरोइन का विवाह करवा देता है। पारिवारिक प्रेम और एकजुटता दिखाते हुए फिल्म का सुखान्त होता है।
**खलनायक फिल्म का गाना, ‘चोली के पीछे’ और खुद्दार फिल्म से ‘सेक्सी, सेक्सी, सेक्सी’ दो ऐसे गाने हैं जिस पर रोक लगाए जाने की मांग सेंसर बोर्ड और जनता, दोनों की तरफ से उठी थी। ‘चोली के पीछे’ पर लिखे अपने लेख में शोहिनी घोष बताती हैं कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की बजाय अमूमन महिलाओं द्वारा अपनी यौनिकता के प्रदर्शन पर ही लोगों का ध्यान आकर्शित होता है और उन पर सेंसरशिप या रोक लगती है। खुद्दार फिल्म में ‘सेक्सी सेक्सी सेक्सी’ गाने को बाद में बदल कर सभी टेलीविज़न प्रसारणों में ‘बेबी,बेबी,बेबी’ कर दिया गया था।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
To read this article in English, please click here.