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प्यार, दोस्ती, सेक्स और BDSM

राइडिंग क्रॉप

किसी दोस्त से भले ही फ्लागर (flogger) (https://www.lovetreats.in/collections/accessories/products/faux-leather-flogger ) खरीद कर लाने को कह दो, मगर गलती से भी कहीं बॉयफ्रेंड से मत कह देना।उसकी मर्दानगी पर सवाल उठ खड़ा होगा।

फ्लागर (flogger)
फ्लागर (flogger)

अपनी दोस्त से भले कह दो कि बीडीएसएम (BDSM) में दिलचस्पी है, लेकिन यही बातटिंडर डेटसे कहने पर कहीं जो उसने सोच लिया कि सबमिसिव लड़की का तो रेप करना जायज़ है, तब क्या होगा? आखिर एक सब्मिसिव अपने निजीसंबंधों में, बीडीएसएम (BDSM) दृष्टिकोण से, अधीन होती है। उसे अपने साथी के साथ निजी क्षणों में यदि आप देखें तो लगेगा शायद कोई ग़ुलाम है।जबकि उसी साथी के साथ निजी संबंधों के बाहर एक व्यावसायिक मीटिंग में बैठे होने पर कोई उस का निजी व्यक्तित्त्व नहीं पहचान सकता।पर उसकी बीडीएसएम से जुड़ी पहचान के आधार पर यह मान लिया जाता है कि उसकी ना का तो कोई मायने ही नहीं होगा।

ये भूलना कितना सहज है कि अधीन होने का मतलब येनहीं कि उसकी सहमति के बिना उस पर थोपे जाने वाले शारीरिक संबंध बलात्कार नहीं हैं।और या फिर किसी से कुछ बोलो मत, और चलने दो ज़िन्दगी वैसे ही, जैसे आम तौर पर चलती है, झूठ की बुनियाद पे! मगर सामाजिक रीति रिवाज़ों के अनुसार शादी कर के खुद को और अपने साथी को धोखा दे पाने की हिम्मत है?

मैं सच में बता नहीं सकती कि ‘यौन अल्पसंख्यक’ की श्रेणी में आने वाले लोग कैसा महसूस करते हैं जब वे अन्य लोगों की तरह अपने पलंगतोड़ सेक्स, अपने समलैंगिक आकर्षण, अपनी अलैंगिकता की बात भी खुल कर नहीं कर पाते।

क्या कहा आपने? थेरेपिस्ट के पास तो जा ही सकते हैं? हुज़ूर, एक बार कोशिश कर के जाईये न थेरेपिस्ट के पास।पर इस मामले में मेरा अपना तज़ुर्बा कुछ ऐसा रहा है कि ये सलाह मज़ाक ज़्यादा लगती है।जैसे सवाल पूछे जायेंगे, उससे अपनी खुद की उलझनें बेहतर लगने लगेंगी।

ये तो शुक्र है कि कम से कम दोस्त तो हैं।मगर मैं तो भूल ही गयी।हिंदुस्तानी सिनेमा भी तो है।जी, जी, वही जय-वीरू की दोस्ती वाला, शादी, लहँगा-चोली वाला, बॉबी डार्लिंग बोल कर एलजीबीटी (LGBT) समुदाय का मज़ाक उड़ाने वाला, ‘ना’ को मर्दानगी पर आघात बताने वाला।वही माचो टाइप सिनेमा जी।

हिंदुस्तानी सिनेमा ने प्यार और दोस्ती को जितने स्तरों पर एक दुसरे से दूर कर रखा है,उस लिहाजसे मेरे जैसी,बीडीएसएममें दिलचस्पी रखने वाली अलैंगिक लड़की के तो न दोस्त ही हो सकते हैं, न प्रेमी ही।मगर इच्छाओं का क्या किया जाए? अपने सवाल कहाँ ले जाऊं? दोस्तों के पास?

खुशकिस्मती मेरी कि अच्छे दोस्त भी मिल गए और अच्छी सहेलियां भी।सब मेरे जैसे सिरफिरे भी।मगर उलझन तब शुरू हुईजब शारीरिक प्रयोग करने की ज़रुरत महसूस हुई।फ्लागर के किनारे या राइडिंग क्रॉप {https://www.lovetreats.in/collections/accessories/products/feather-crop-black} जब त्वचा को चूमते हैं, तो शरीर और मन को कैसा लगता है, ये कैसे जानूं?दर्द और पीड़ा की संवेदना जब अपनी सहमति से समझना चाहूँ, तो किसका साथ माँगू?

राइडिंग क्रॉप
राइडिंग क्रॉप

मैंने दोस्त तो बना लिए,मगर दोस्तों से ये कह पाना बहुत मुश्किल था कि तुम्हारे साथ मुझे कुछ प्रयोग करने हैं, वो भी बीडीएसएम सम्बन्धी, और हाँ, बिना सेक्स के।ये कहना तो आसान था कि काश मेरा कोई साथी होता,मगर ये कह पाना बहुत मुश्किल था कि मैंने टिंडर पे अकाउंट बनाया है।आखिर अच्छे दोस्त इतनी बातें कहाँ बाँटते हैं? ख़ास तौर पर लड़कियाँ?

मगर, बहुत हिम्मत कर के, धीरे-धीरे, मैंने बांटे -मेरे राज़ भी,मेरे प्रयोग भी,मेरी मुस्कराहट भी औरस्लट-शेमिंग (slut-shaming) या मेरी वर्जिनिटी (virginity) के लिए मेरा मज़ाक उड़ाए जाने पर आंसू भी।जब पहली किताब लिखी, तो वो भी उनके साथ साझा की।जब एक बहुत पुराने, शादीशुदा मित्र ने,मेरे कई बार उसे प्यार से, दृढ़ता से, दोस्तों के ज़रिए समझाने के बावजूद, मेरे साथ बीडीएसएम की लालसा नहीं छोड़ी तब उससे दोस्ती तोड़ने का दुःख भी मैंने दोस्तों ही के साथ बांटा।मुझे उसके शादीशुदा होने से समस्या कम थी और मेरी ‘ना’ और ७ साल पुरानी दोस्ती के असम्मान से ज़्यादा।

अब मेरे लिए दोस्ती, बीडीएसएम और सेक्स के परिदृश्य को समझना, संभालना, पहले की बनिस्बत आसान तो है मगर फिर भी कहीं धुंधली लकीरें हैं।कभी-कभी पुरुष मित्रों की आँखों में थोड़ी सी ज़बरदस्ती दिखती है, उनकी साथियों की आँखों में थोड़ा सा शक, या महिला-मित्रों की आँखों में मेरी यौनिक पहचान के बारे में वही अनचाही अटकलें भी।

मगर, फिर लगता है, कि अगर दोस्ती न होती, तो न ये प्रयोग होते, न ये परिपक्वता, और न ही शायद अपनी यौनिकता, अपनी खोज, अपनी संतुष्टि की ये यात्रा।उम्मीद करती हूँ, कि हम सबको, जीवन में दोस्त, दोस्ती के सबक, और दोस्तों का साथ मिलता रहे – सेक्स, यौन संबंधों, और यौन विमर्श के लिए भी उतना ही, जितना बाकी जीवन में।

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