इनोसेंते नामक 40 वर्षीय नेत्रहीन पुरुष ने ज़ाम्बिया में ‘ह्यूमन राइट्स वाच’ संगठन के अनुसंधानकर्ता को बताया, ‘“लोग कहते हैं कि विकलांगता के साथ रह रहे व्यक्ति को सेक्स नहीं करना चाहिए’। विकलांग लोगों की यौनिकता को कलंक की नज़र से देखने वाले उस देश में ज़्यादातर लोगों का भी यही विचार है।
यह नज़रिया बहुत ही परेशान करने वाला है। यह विचार कि विकलांगता के साथ रह रहे लोगों को सेक्स नहीं करना चाहिए, वास्तव में जनसँख्या के इस भाग अर्थात विकलांग लोगों को मनुष्य नहीं मानता और उन्हें शिशु समान मानता है। इससे भी अधिक विचलित करने वाली एक अन्य धारणा यह है कि विकलांगता के साथ रह रहे लोग सेक्स-विहीन होते हैं। इस विचार के विपरीत वास्तविकता यह है कि विकलांग लोग भी दुसरे लोगों की तरह ही यौन सम्बन्ध बनाते हैं, उन्हें भी अन्य लोगों की तरह ही पारिवारिक जीवन व्यतीत करने, संतान पैदा करने और यौन एवं प्रजनन स्वस्थ्य देखभाल सेवाएं पाने के सामान अधिकार हैं।
लेकिन कलंक के भाव के कारण और विकलांगता के साथ रह रहे लोगों को सम्मिलित करने वाले कार्यक्रमों के अभाव में ज़ाम्बिया में विकलांग लोग अक्सर यौनिकता शिक्षा, प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल और एचआईवी देखभाल सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
अब सूज़न का उदाहरण लें जो शारीरिक विकलांगता के साथ रह रही एकल माँ हैं। उन्होंने हमें बताया, ‘लोग सोचते हैं कि विकलांग लोगों के बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड नहीं हो सकते…..वे सेक्स करने का मज़ा नहीं ले सकते….वो तो बस विकलांग व्यक्ति के रूप में घर पर ही पड़े रहते हैं’।
ह्यूमन राइट्स वाच द्वारा जुलाई 2014 में जारी रिपोर्ट, ‘We Are Also Dying of AIDS’: Barriers to HIV Services and Treatment for Persons with Disabilities in Zambia’ (‘ज़ाम्बिया में विकलांग लोगों को एचआईवी सेवाएं मिलने और उनके उपचार में आने वाली बाधाएं – हम भी एड्स के कारण मर रहे हैं,’) में हमने ज़ाम्बिया में विकलांगता के साथ रह रहे लोगों को एचआईवी सेवाएं पाने में आने वाली दिक्कतों का उल्लेख किया है। इनमें एचआईवी के रोकथाम से जुडी जानकारी न मिल पाना, जांच और उपचार में आने वाली कठिनाईयां शामिल हैं। ज़ाम्बिया में विकलांगता के साथ रह रहे लोगों की संख्या लगभग 20 लाख है और देश के किसी भी अन्य नागरिक की तरह उनमें भी एचआईवी संक्रमण होने का खतरा है। पिछले एक दशक के दौरान ज़ाम्बिया में एचआईवी की रोकथाम और इसके उपचार करने के प्रयासों में बहुत प्रगति हुई है लेकिन एचआईवी के विरुद्ध इस लड़ाई में विकलांग लोग अभी भी सम्मिलित नहीं किए गए हैं।
विकलांगता के साथ रह रही गर्भवती महिलाओं ने भी ह्यूमन राइट्स वाच को यह जानकारी दी कि जब वे अस्पताल में स्वास्थय सेवाएं लेने जाती हैं तो उन्हें भी वहां लोगों के प्रतिकूल रवैये का सामना करना पड़ता है। शारीरिक विकलांगता के साथ रह रही इवोन नाम की महिला जो विकलांग महिलाओं के बीच काम करती हैं ने बताया कि जब आप प्रसव-पूर्व देखभाल के लिए अस्पताल जाती हैं तो वहाँ स्वास्थय कार्यकर्ता आपको ऐसे सलाह देते हैं जैसे कि गर्भधारण करके आपने कोई गलती कर दी हो और हर कोई अपनी राय देने से नहीं चूकता,…..‘तुम्हें गर्भवती होने की क्या ज़रुरत थी?’ हर कोई ऐसी प्रतिक्रिया करता है जैसे एक विकलांग महिला को गर्भवती देखकर उन्हें सदमा लगा हो’।
एक अन्य महिला ने हमें बताया, ‘जब विकलांग महिलाएं VCT (Voluntary Counselling and Testing centre) एचआईवी सम्बंधित स्वैच्छिक परामर्श और जांच के लिए जाती हैं तो उन्हें तिरस्कार की निगाह से देखा जाता है और लोग पूछ ही लेते हैं कि तुम्हें एचआईवी कैसे हो सकता है, मानो उनके विचार से विकलांग महिलाएं यौन रूप से सक्रिय नहीं हो सकतीं’।
इन सभी धारणाओं में बदलाव लाने की ज़रुरत है।
ज़ाम्बिया जैसे देशों की सरकारों को चाहिए कि वे स्वास्थय कार्यकर्ताओं की मानसिकता को बदलने के प्रयासों में तेज़ी लाएँ, विकलांगता के साथ रह रहे लोगों को भी यौनिकता शिक्षण कार्यक्रमों में शामिल कर उस कलंक के भाव को दूर करने की कोशिश करें जिसका सामना इनोसेंते, इवोन और दुसरे लोगों को हमेशा करना पड़ता है। इस काम के लिए डोनर (धन प्रदान करने वाले) संगठनो का भी यह दायित्व बनता है कि वे सुनिश्चित करें कि यौन एवं प्रजनन स्वास्थय देखभाल सेवाएं विकलांग लोगों सहित सभी तक पहुंचें। विकलांगता के बारे में इस मिथक को दूर करने और वास्तविकता को स्वीकार कर पाने के लिए यह बहुत ही ज़रूरी है।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
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