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पोक्सो (POCSO) कानून, 2012 के समय में प्रेम और सेक्स

a woman dressed in red bridal wear, sitting with her face downwards

सम्पादकीय चूँकि इस लेख में कानून का उल्लेख है, अतः कोशिश की गई है कि जहाँ संभव हो कानून में इस्तेमाल किए गए शब्दों का प्रयोग किया जाए। इस लेख में बच्चा/बच्चेशब्द का उपयोग चाइल्डशब्द के अर्थ के लिए किया गया है जहाँ अर्थ १८ वर्ष के कम उम्र के किसी भी जेंडर के बच्चे से है।

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण कानून 2012 (POCSO Act) में ‘18 वर्ष की आयु से कम किसी भी व्यक्तिको बच्चामाना गया है। इस कानून के तहत भारतीय दंड विधान के अंतर्गत सहमति देने की उम्र को 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष भी किया गया है। इस कानून में अनेक तरह के यौन अपराधों की व्याख्या की गयी है जिनमें प्रवेशित सेक्स (लिंग, शरीर के किसी और अंग, या वस्तु का योनी, मुख या गुदा द्वार में प्रवेश), अप्रवेशित सेक्स (जैसे चूमना और सहलाना) जैसे यौन अपराध शामिल हैं। इस कानून में शारीरिक रूप से छुए बगैर भी यौन उत्पीड़न करने को अपराध माना गया है। भारतीय दंड विधान में किसी व्यक्ति द्वारा अपनी 15 वर्ष से ज़्यादा उम्र की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध बनाने को बलात्कार की परिभाषा से बाहर रखा जाता है लेकिन पोक्सो कानून में इस तरह के किसी अपवाद या छूट का कोई प्रावधान नहीं है। पोक्सो कानून के अंतर्गत, विवाह की रीत से बने संबंधों में भी यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ यौन सम्बन्ध बनाता है या बिना यौन सम्बन्ध बनाए हुए भी अगर उनका यौन उत्पीड़न करता है तो इस कानून के अंतर्गत इसे और भी अधिक गंभीर अपराध माना जाता है।  

इस कानून को पढ़ने से पता चलता है कि:

  • किसी बच्चे के साथ यौन व्यवहार करने के लिए किसी भी व्यक्ति ( चाहे उत्पीड़न करने वाला स्वयं ही बच्चा क्यों न हो) के खिलाफ़ अपराध का मामला दर्ज़ कर मुकद्दमा चलाया  जाएगा, भले ही इसके लिए पीड़ित बच्चे ने अपनी सहमति व्यक्त क्यों न की हो।
  • 18 वर्ष से कम आयु के पति/पत्नी के साथ यौन व्यवहार करने पर  विवाहित साथी के खिलाफ़ भी मुकद्दमा दायर किया जा सकता है।
  • इस कानून के अंतर्गत दो बच्चों के बीच या किसी बच्चे और व्यस्क व्यक्ति के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंधों को स्वीकार नहीं किया जाता।

इस कानून के बनने से पहले, अनेक चर्चाएँ हुई जिनमें यह कहा गया कि 12 से 18 वर्ष की उम्र के किशोरों के बीच यौन व्यवहार को अपराध न समझा जाए[1]। लेकिन इस कानून में सुरक्षात्मक रवैया अपनाया गया और यह माना गया कि सहमति देने की उम्र बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की 1989 की संधि के अनुरूप सबके लिए एकसमान ही होनी चाहिए। बच्चों की स्वायत्तता और उनकी बढ़ती क्षमताओं को स्वीकार किए जाने और यौन व्यवहार करने वाले बच्चों/ किशोरों को कानून के अंतर्गत बाल-अपराधी न मानने के विचार को नकार दिया गया। एक तरह से यह कानून शारीरिक अखंडता और गरिमा, विचार प्रकट करने कि स्वतंत्रता, जीवन जीने के अधिकारों की अवहेलना करता है और साथ ही साथ यौन-व्यवहार करने वाले किशोरों के निजिता के अधिकार का भी हनन करता है।

पोक्सो कानून बनने और इसके लागू होने के बाद के 19 महीनों में ही[2], इस कानून के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए बनाई गयी विशेष अदालतों के सामने अनेक प्रेम प्रकरणआए हैं। इस तरह के अपराध करने वाले बच्चों के मामले जो कि बाल न्याय बोर्डद्वारा सुने जाते हैं, के आंकड़े आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।

सरकार बनाम सुमन दास [3] के मामले में, 15 वर्ष की एक लड़की ने अपने घर को छोड़, 22 वर्ष के एक व्यक्ति से विवाह कर लिया। लड़की की माँ ने शिकायत दर्ज की कि उनकी बेटी को इस व्यक्ति ने अगवा किया है और बेटी साथ यौन-उत्पीड़न किया है। अदालत में लड़की ने बयान दिया कि वह अपनी मर्ज़ी से उस व्यक्ति के साथ गयी थीं और उन्होंने यौन सम्बन्ध बनाए जाने की बात भी स्वीकार की। इस मामले में न्यायाधीश, धर्मेश शर्मा का विचार था कि अगर पोक्सो कानून की व्याख्या की जाए तो इस मामले में इसका अर्थ यह निकलेगा कि ‘18 वर्ष से कम उम्र के प्रत्येक व्यक्ति का शरीर राज्य की संपत्ति है और 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर से जुड़े किसी भी तरह के आनंद की अनुभूति करने की अनुमति नहीं दी जा सकती ।

उन्होंने तर्क दिया किपोक्सो कानून की धारा 3 में प्रयुक्त शब्द समूह, ‘प्रवेशित यौन शोषणके प्रयोग से ऐसा आभास होता है कि जिन मामलों में शारीरिक सम्बन्ध या यौन सम्बन्ध, लड़की को डराए-धमकाए बिना उनकी मर्ज़ी से बने हों, जिनमें किसी तरह के बल प्रयोग न हुआ हो या जो किसी तरह के शोषण की श्रेणी में न रखा जा सके और जिस मामले में लड़की की सहमति किसी कानून-विरोधी प्रयोजन से न ली गयी हो, तब ऐसा मामले में इस कानून की धारा 3 के अंतर्गत किसी तरह का कोई आपराधिक मामला बनता नहीं दिखाई पड़ता

अभियुक्त को बरी करते हुए उन्होंने कहा कि लड़की की माँ ने उस विवाह को स्वीकार कर लिया था और यह कि इस व्यक्ति को जेल भेज देना उस लड़की के मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्यके लिए अच्छा नहीं होगा। हालांकि, इस मामले में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या उस लड़की और उस व्यक्ति के बीच सम्बन्ध स्वेच्छा से बने थे या नहीं। एक दुसरे मामले में जहाँ 14 से 16 वर्ष के बीच की आयु की एक लड़की ने अपनी सहमतिसे एक अधेढ़ उम्र के व्यक्ति के साथ शादी[4] कर ली थी, न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने फैसला देते हुए कहा कि, ’16 से 18 साल की उम्र वाले मामलों में पोक्सो कानून की धारा 4 की व्याख्या करते हुए यह ध्यान रखा जाना ज़रूरी है कि अभियुक्त द्वारा मामले में लड़की की सहमति डरा-धमका कर, लालच देकर या फुसलाकर ली गयी थी, इसलिए यह अपराध है या फिर अभियुक्त द्वारा बिना किसी द्वेश या बुरे इरादे के कोई ऐसा काम कर दिया गया है जो कानून की नज़र में अन्यथा अपराध है। इस मामले में, हालांकि, न्यायाधीश का दृष्टिकोण खरा दिखता है, लेकिन वे इस मामले में अभियुक्त और लड़की की उम्र के बीच के बड़े फासले और दोनों के बीच के सत्ता-असंतुलन को नज़रंदाज़ करने की चूक कर गए। उम्र के इस अंतर और सत्ता-असंतुलन के कारण ही यह सम्बन्ध स्वेच्छा से बना सम्बन्ध नहीं रह जाता लगता है। जज द्वारा दिए गए तर्क से ऐसा भी लगता है कि बच्चों के यौन उत्पीड़न के बारे में समझ अधूरी है। अक्सर उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति, ’ग्रूमिंगतकनीक का इस्तेमाल करके सिखाने-समझाने के बहाने से बच्चे के करीब आते हैं, उनका विश्वास प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को मनोवैज्ञानिक तरीके से मना और राज़ी भी कर लेते हैं। इसलिए, हर मामले में यह ज़रूरी नहीं होता यौन शोषण में बल, डर या शारीरिक हिंसा का प्रयोग किया गया हो।    

सरकार बनाम आस मोहम्मद [5], के मामले में 14 साल की एक लड़की के अपने मकान मालिक के साथ शारीरिक सम्बन्ध थे। लड़की की माँ को जब लड़की के 6 माह के गर्भ का पता चला तो उन्होंने इस बारे में शिकायत दर्ज़ की। अदालत में लड़की ने स्वीकार किया कि मकान मालिक द्वारा उनके साथ विवाह करने से मना कर दिए जाने के बाद ही शिकायत दर्ज की गयी थी। सुनवाई के दौरान अभियुक्त ने इस लड़की के साथ विवाह करने, उनके नाम पर 30,000 रूपये जमा करवाने और उनकी माँ को आसरा देने का प्रस्ताव रखा। अभियुक्त को जमानत मिलने पर इन दोनों ने शादी कर ली। प्रकरण के जज ने अभियुक्त द्वारा अपने प्रस्ताव पर अटल रहना सुनिश्चित किया और लड़की और उनकी माँ द्वारा अपने बयान वापिस लेने के बाद अभियुक्त को बरी कर दिया।

क्या ऊपर बताये गए मामलों में अभियुक्तों को केवल इसलिए बरी कर दिया गया क्योंकि मामले में दोनों पक्ष ने विवाह कर लिया था।

सरकार बनाम इस्खार अहमद [6] के मामले में न्यायाधीश शालिनी नागपाल, चंडीगढ़ ने निर्णय दिया कि, केवल वादी के साथ प्रेम होने और उसके साथ बातचीत करते रहने से अभियुक्त को उनका बलात्कार करने या उनकी रजामंदी के साथ भी उनके साथ यौन सम्बन्ध बना लेने का कोई लाइसेंस नहीं मिल जाता क्योंकि प्रवेशित सेक्स के लिए किसी बच्चे की रजामंदी कोई मायने नहीं रखती। इस मामले में अभियुक्त और लड़की का विवाह नहीं हुआ था और उनके सम्बन्ध उनके माता-पिता की मर्ज़ी के खिलाफ़ बने थे।

इन सभी फैसलों से कई विवादास्पद और परस्पर विरोधी प्रश्न उठ खड़े होते हैं क्या किसी किशोरी के शारीरिक अखंडता, गोपनीयता और जीवन जीने के अधिकारों की अवहेलना, उनके विवाहित न होने की स्थिति पर निर्भर होकर की जा सकती है? क्या विवाह हो जाने के बाद कोई लड़की यौन व् लैंगिक अपराधों से सुरक्षा पाने की हक़दार नहीं रह जाती? क्या पोक्सो कानून के अंतर्गत अपराधों में न्यायाधीश, वैवाहिक संबंधों में बलात्कार के अपवाद के नियम का खुलकर प्रयोग कर रहे हैं? क्या न्यायाधीश, मामले में अभियुक्त द्वारा पीड़ित के साथ विवाह करने के प्रस्ताव को मानकर उन्हें दंड से बचने का मौका नहीं दे रहे हैं? क्या ऐसे मामलों में उम्र के अंतर, संबंधों के स्वेच्छा से बने होने या न होने और बच्चे पर इस सम्बन्ध के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव पर ध्यान नहीं देना चाहिए? ऐसे मामलों में बच्चे के लिए सबसे बेहतरक्या होगा?

एक अन्य पेचीदा विषय जिसकी ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है वह यह है कि क्या 18 वर्ष से कम आयु के विवाहित दम्पति को भी कानून विरोधी व् बाल-अपराधी समझा जाना चाहिए? नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने सिफारिश की थी कि किशोरों के बीच परस्पर सहमति से यौन छेड़छाड़ को अपराध मुक्त कर दिया जाना चाहिए अगर यह  

  • 12 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के बीच हो और उनकी आयु का अंतर 2 वर्ष से कम हो; तथा
  • 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के बीच हो और उनकी आयु कर अंतर 3 वर्ष से कम हो।

इस सिफारिश को न मानकर, पोक्सो कानून के अंतर्गत बच्चों की यौनिकता और बाल यौन उत्पीड़न को एक कर दिया है। कानून में आयु, आयु के अंतर और बाल-विकास की पेचीदगियों को अनदेखा किया गया है। दक्षिण अफ्रीका के न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने शोषित बच्चों के लिए टेडी बियर क्लिनिक बनाम न्याय और संवैधानिक विकास मंत्री [7] के मामले में निर्णय दिया कि आपराधिक कानून (यौन अपराध और सम्बंधित प्रकरण) संशोधन कानून, 2007 के प्रावधान संविधान विरोधी थे; इस कानून के तहत 12 वर्ष से अधिक और 16 वर्ष से कम उम्र के किशोरों के बीच आपसी सहमती से यौन संबंधों को आपराधिक माना जाता था। आपसी सहमति से यौन सम्बन्ध बनाने वाले किशोरों को अपराधी समझा जाना उनके गरिमा, निजिता के अधिकार का विरोधी था और बेहतर-विकल्प के सिद्धान्त के भी खिलाफ़ था। इस पीठ ने कहा कि, ‘ये प्रावधान बच्चों के बीच अनेक तरह के यौन संपर्क को आपराधिक मानते हैं; अपराध की श्रेणी में आने वाली गतिविधियों का विस्तार इतना अधिक है कि उसमें किसी किशोर के सामान्य विकास के दौरान किए जाने वाले कार्य-कलाप भी शामिल कर लिए गए हैं … प्राकृतिक विकास के दौरान होने वाली यौन अभिव्यक्ति को दण्डित करने वाले ये वैधानिक प्रावधान किशोर जीवन को कलंकित करने में सक्षम हैं

क्या हमें पोक्सो कानून के इन प्रावधानों को चुनौती नहीं देनी चाहिए क्योंकि इस कानून के अंतर्गत बच्चों की स्वायत्तता और उनके मौलिक अधिकारों को नज़रंदाज़ करते हुए प्रभावी रूप से उनके बीच आपसी सहमति से हर तरह के यौन संपर्क और व्यवहार को अपराध मान लिया गया है? क्या आयु-अंतर को ध्यान में रखने के लिए कानून में फेर-बदल होना ज़रूरी नहीं है? इसी तरह यौन अपराधियों और उनके अपराध के शिकार बच्चों के बीच विवाह हो जाने पर न्यायालय द्वारा इन अपराधियों को बरी कर दिए जाने से न केवल वैवाहिक संबंधों में हिंसा को बल्कि बाल-विवाह को भी स्वीकृति मिलती है। कानूनन वैवाहिक संबंधों में हिंसा और बाल-विवाह, दोनों ही गैर-कानूनी हैं और इन पर रोक लगनी चाहिए।

इस लेख को तैयार करने में आर्लीन मनोहरन और अधिवक्ता गीता सज्जनाशेट्टी का सहयोग रहा है।

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित

To read this article in English, please click here.

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[1] नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) द्वारा तैयार लैंगिक अपराधों से बालकों की सुरक्षा बिल, 2010 की धारा 3A अपवाद 1 में कहा गया था – “(i) अध्याय के भाग 23, 25, 27 और 31 के अलावा इस अध्याय में अपराध समझे जाने वाला किसी भी तरह का यौन वयवहार, जिसमें प्रवेशित सेक्स शामिल न हो और जिसमे आपसी सहमति रही हो, अपराध नहीं होगा अगर ऐसा व्यवहार 12 वर्ष से अधिक आयु के 2 बच्चों के बीच हुआ हो जिसमे दोनों कि आयु सामान हो या फिर उनमें 2 वर्ष से अधिक का आयु का अंतर न हो।

[2] 14 नवम्बर, 2012

[3] प्रकरण क्रमांक SC 66/13 में श्री धर्मेश शर्मा, अतिरिक्त सेशन जज, नयी दिल्ली डिस्ट्रिक्ट, पटियाला हाउस कोर्ट्स द्वारा 17.08.2013 को दिया गया निर्णय  

[4] सरकार बनाम शिवा नन्द राय के प्रकरण क्रमांक SC 56/13 में श्री धर्मेश शर्मा, अतिरिक्त सेशन जज, नयी दिल्ली डिस्ट्रिक्ट, पटियाला हाउस कोर्ट्स द्वारा 9.10.2013 को दिया गया निर्णय

[5] प्रकरण SC 78/2013 में जज श्री टी एस कश्यप द्वारा 13.8.2013 को दिया गया निर्णय

[6] प्रकरण क्रमांक SC 0300064 में सुश्री शालिनी सिंह नागपाल, जज, विशेष न्यायालय, चंडीगढ़ द्वारा 3.12.2013 को दिया गया निर्णय

[7] दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालय द्वारा 03.10.2013 को दिया गया निर्णय, http://www.saflii.org/za/cases/ZACC/2013/35.pdf [2013]

Cover Image: Creative Commons

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