सेट पर बॉलीवुड फ़िल्म के गाने का संगीत बज रहा है, स्मोक मशीन से धुआँ निकल रहा है, जूनियर कलाकार क्लब में बजने वाले तेज़ संगीत पर ताल से ताल मिला कर नाच रहे हैं, उनमें से कई व्हील चेयर पर हैं
…हिरोइन, जिनका एक पैर नहीं है और जिन्होंने हाईड्रौलिक पैर और टखने वाली कृत्रिम टांग लगाई हुई है, अपनी बाजू को उठा कर अपने साथी के कंधे तक ले आती हैं……
…संगीत लहरी तेज़, और तेज़ हो जाती है….
….जूनियर कलाकार थम से जाते हैं…..
…..अब स्पॉट लाइट हिरोइन पर रुक जाती है क्योंकि हीरो ने हिरोइन को अपनी बाहों में भर लिया है, वह उन्हें उठाते हैं और अपने सर से ऊपर ले जाकर पकड़े रखते हैं, सबकी साँसे रुक सी गयी हैं … यह दृश्य 6 हसीन सेकंड तक ऐसे ही रहता है … फिर नृत्य निर्देशक की आवाज़ आती है, “कट’’!
इन कलाकारों की देखभाल करने वाले और परिजन एक साथ अपने-अपने प्रियजन की तरफ़ तेज़ी से बढ़ते हैं।
कुछ कलाकारों के साथ उनकी सहायता के लिए प्रशिक्षित सहायक कुत्ते हैं जो उनके बैग उठाने, डायपर या सैनीटरी नैपकिन पकड़ाने में मदद करते हैं।
व्हील चेयर प्रयोग करने वाले कुछ कलाकारों को उनके देखभाल प्रदाता शौचालय की ओर ले जाते हैं, ऐसे शौचालय जो विकलांगों द्वारा प्रयोग के लिए बने हैं, और जिन्हें अनेक तरह की विकलांगता वाले लोग आसानी से प्रयोग कर सकते हैं।
अचानक हीरो को लगता है कि उन्हें घुटन या क्लॉस्ट्रोफोबिया महसूस हो रही है और वह तेज़ी से दौड़ कर बाहर की ओर भागते हैं ताकि शरीर में जकड़न शुरू होने और सुइयाँ चुभने जैसा एहसास आरंभ होने से पहले ही वह बाहर पहुँच कर अकेले खड़े हो सकें। ऐसा होने पर उनका शरीर जड़ हो जाता है और उनकी सांस तेज़ चलने लगती है (उन्हें शारीरिक जकड़न के इन क्षणों में उनके स्तब्ध हो चुके शरीर की अन्य प्रतिक्रियाओं का भी भय है)।
यह एक प्रेम कहानी पर आधारित फ़िल्म के सेट पर चल रही शूटिंग के परदे के पीछे का वृतांत है जो आगे चलकर बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्म साबित होने वाली है।
इस फिल्म से प्रभावित होकर (जिसे बनाने की कोशिश होना अभी बाकी है), एक युवा प्रेमी युगल, जो एक साथी के घर की बैठक में डेट के लिए मिले हैं, कुछ ‘शरारत’ करने के मूड में हैं।
वे दोनों अपने-अपने सेवा प्रदाताओं से आग्रह करते हैं कि वे उन्हें कुछ घंटों के लिए अकेला छोड़ दें।
इस युगल में जो पुरुष हैं, उनका शरीर गर्दन के नीचे निष्क्रिय है, अतः वे कई चीज़ों के लिए अपनी महिला प्रेमी के हाथों का प्रयोग चाहेंगे।
महिला पुरुष से कुछ देर रुकने के लिए कहती हैं क्योंकि उन्हें शौचालय जाना है। महिला मूत्राशय असंयतता से पीड़ित हैं और यौन उत्तेजना शुरू होने से पहले ही उन्हें शौचालय जाना चाहिए। पिछली बार ऐसे ही एक मौके पर गलती से उनका पेशाब निकल गया था, और वह इतनी शर्मिंदा हुई थीं कि रोने लगीं। पुरुष उन्हें इस तरह से रोते हुए देखकर परेशान हो गए थे और खुद भी रोने लगे थे। पुरुष को रोते देखकर लड़की ने दोनों के आँसू पोंछे थे, और फिर पूरी शाम वे एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले बैठे रहे और कॉमेडी चैनल देखते रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि आज का दिन कुछ अलग होगा।
यह दो लोगों, दो अलग-अलग स्तर की क्षमताओं वाले लोगों के प्रेम-प्रसंग का पर्दे के पीछे का वृतांत है। दोनों के दिल आने वाले हसीन पलों की आशा, उत्तेजना और उत्साह के कारण तेज़ी से धड़क रहे हैं और ऐसे में वे दोनों यौनिक अंतरंगता में डूब जाते हैं। उनके साथ के ये क्षण बहुत ही खुशनुमा, हसीन हैं और निजी हैं।
यह सब लिखते समय, मेरे खुद का दिल भी ज़ोरों का धड़कने लगता है। मेरे लिए, और शायद दूसरे और अनेक लोगों के लिए मानवीय संबंध, अंतरंगता और यौनिकता आदि कठिन विषय हो सकते हैं और इस कठिनाई के लिए सबके अपने-अपने कारण होंगे। बहुत से लोगों के लिए, हो सकता है, गतिशीलता से जुड़े मुद्दे भी बड़ा कारण हों। यहाँ गतिशीलता के अनेक आयाम हैं; किसी शारीरिक विकलांगता के कारण गतिशीलता का अभाव होना या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने या प्रवास के संदर्भ में होने वाली गतिशीलता। पर फ़िर, क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से, जो कृत्रिम टांग का प्रयोग करते हैं, कभी यह सवाल पूछेंगे कि क्या उन्हें नृत्य करना पसंद है? अब नृत्य हो या इच्छाएँ, इन पर अमल कर पाना, इन दोनों के लिए ज़रूरी है और ऐसा लगता है कि गतिशीलता के अभाव के साथ रह रहे किसी भी व्यक्ति के बारे में आमतौर पर यही मान लिया जाता है कि उसमें इसे ‘कर पाने’ की क्षमता न केवल कम है बल्कि उनकी इस क्षमता को बिलकुल ही नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। इसके बावज़ूद, विभिन्न विकलांगताओं वाले व्यक्ति इन मिथकों को लगातार, हर जगह ध्वस्त कर रहे हैं, फिर वह चाहे किसी स्टेज पर किया जाए या फिर इसके बाहर। भारत में सबसे पहले मिस व्हील चेयर प्रतियोगिता का आरंभ करने वाले सौनक बैनर्जी कहते हैं, “विकलांग लोग भी मनोरंजन उद्योग के उपभोक्ता हैं लेकिन इस उद्योग में उनका प्रतिनिधित्व कभी नहीं किया जाता।“” इस प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी नीनु केवलानी, खुद एक सक्रियतावादी हैं, निडर होकर यात्राओं पर जाती हैं और उन्होंने गतिशीलता के अभाव के मुद्दे को चुनौती देने के लिए एक जीप में बैठकर भारत भर का दौरा किया है। उनका कहना है, “इस प्रतियोगिता को जीतना यह सिद्ध करने का भी एक तरीका था कि कोई भी विकलांगता आपको सुंदर दिखने और सुंदर महसूस करने में आड़े नहीं आ सकती।”
अगर हम एक क्षण के लिए गतिशीलता को एक ओर रख दें और सेक्स या सेक्सी जैसे शब्दों पर ध्यान दें – तो सवाल उठता है कि हम इससे जुड़े विचार किस तरह से प्रकट करते हैं? और इसके लिए किस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं? इस एक जटिल शब्द या भाव को प्रकट करने या इसे समझने के लिए कितने ही शब्द और दृष्टिकोण या सिद्धान्त हैं। अधिकार, जेंडर, हिंसा, सुरक्षित सेक्स, हस्तमैथुन, माहवारी, बच्चे, गर्भनिरोधन, यौन संचारित संक्रमण, आकार और नाप, प्लास्टिक सर्जरी, शारीरिक छवि, जी-स्ट्रिंग, जी-स्पॉट, ओ, एलजीबीटी … या फिर जैसा कि तारशी की ब्लू बुक में कहा गया है, यह ‘वर्णमाला के सूप’ की तरह है।
इन सब विषयों पर बात करना कितना मुश्किल होता है, और इसके कारण कितने लोग मन ही मन दुखी होते हैं, सार्वजनिक मंचों पर कितनी बहस छिड़ती है और मूल्यों और प्रथाओं के नाम पर कितनी राजनीति होती है और कीचड़ उछाला जाता है। अब इन सभी विषयों में अगर विकलांगता के कारण गतिशीलता की कमी को भी मिलाना हो तो, ऊपर बड़ी ही उम्मीद से चित्रित किए गए फ़िल्म शूटिंग के सीन के साथ-साथ उस युवा जोड़े के डेटिंग का दृश्य कितना असंभव सा काम लगेगा। अगर किसी भी तरह की विकलांगता या गतिशीलता के कमी के बिना रहने वाले एक व्यक्ति के लिए यौनिकता एक कठिन विषय है तो इसकी कल्पना कठिन नहीं कि विकलांगता की परिस्थितियों में रह रहे किसी व्यक्ति के लिए यह कितना दुष्कर और असहज होगा। अन्य बातों के अलावा यौनिकता, बहुत हद तक व्यक्ति के स्वयं के बारे में मन में बनी छवि पर और इस छवि के बारे में दूसरे लोगों के दृष्टिकोण पर निर्भर करती है।
किसी भी तरह की शारीरिक विकलांगता के साथ रह रहे किसी व्यक्ति में गतिशीलता की कमी कई अलग तरह की हो सकती है और भिन्न-भिन्न लोगों में इस गतिशीलता की कमी का स्तर भी अलग-अलग हो सकता है।
मानसिक रोगों और विकारों से अलग ही तरह की चुनौतियाँ उठ खड़ी होती हैं। मानसिक-सामाजिक विकलांगता वाले लोगों को बंद करके रखा जाता है, उनके कहीं आने-जाने पर पाबंदी होती है, यहाँ तक कि उन्हें परिवार और समाज के साथ मेलजोल करने भी नहीं दिया जाता। मानसिक रोग के साथ रह रहे लोगों के बारे में अन्य लोगों के मन में बनी छवि और दृष्टिकोण भी नकारात्मक बन जाते हैं।
मैंने कुछ वर्ष पहले सेवा प्रदाता और देखभाल करने वाले लोगों के एक ई-ग्रुप का समन्वयन किया था। उस समूह में एक अभिभावक ने यौनिकता और विकलांगता के विषय को चर्चा के दौरान उठाया था। संभव है कि बौद्धिक विकलांगता वाले किसी व्यक्ति के यौनिकता के अनुभव सामाजिक रूप से मान्य ‘निजी’ और ‘गोपनियता’ वाले अनुशासन के अनुरूप न हों, और हो सकता है कि इससे नाराज़ होकर या डरकर उन विकलांग व्यक्ति की देखभाल करने वाले उनके परिवार के लोग भागे-भागे किसी डॉक्टर के पास जाकर विवाह, हस्तमैथुन या माहवारी जैसी विषयों पर सलाह मांगे। यह भी संभव है कि उनके फॅमिली डॉक्टर इस बारे में किसी तरह की मदद करने या सलाह देने में असमर्थ हों। बौद्धिक विकलांगता या विकास संबंधी विकलांगता वाली कई लड़कियों के माता-पिता कई बार ऐसे मामलों में अपनी बेटी के गर्भाशय को निकालने के लिए ऑपरेशन करवाने पर भी विचार करते हैं या ऑपरेशन करवा देते हैं। देखभाल सेवाएँ देने वाली संस्थाओं में और घर पर देखभाल करने वाले कुछ ऐसे भी देखभाल प्रदाता होते हैं जो किसी विकलांग लड़की या महिला की, उनकी माहवारी के समय पर देखभाल करने या स्वच्छता का ध्यान रखने से इंकार कर देते हैं (या फिर इस दौरान वे लड़की या महिला के साथ दुर्व्यवहार करते हैं)।
वास्तविकता तो यह है कि, गतिशीलता की कमी होने के कारण व्यक्ति की यौनिक भावनाएँ और इच्छाएँ स्वत: ही समाप्त नहीं हो जाती हैं। ऐसे अनेक तरीके हैं जिनके माध्यम से गतिशीलता की विकलांगता के साथ रह रहे व्यक्ति भी अपनी यौनिकता को जान तथा व्यक्त कर सकते हैं। इस बारे में जानकारी भी उपलब्ध है लेकिन संभवत: यह जानकारी सभी को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती।
यौनिकता के बारे में प्रचलित विचारों और सिद्धांतों के कारण यह विषय एक संकुचित दायरे में बंध कर रह गया है जिसमें प्रत्येक परिभाषा की अपनी सीमाएँ हैं, मानो किसी कारखाने में बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए माप दिए गए हों।
इसका परिणाम यह होता है कि गतिशीलता की बंदिश के साथ रह रहे लाखों लोग इन परिभाषाओं के दायरे में नहीं आ पाते। गतिशीलता में कमी अनेक कारणों से हो सकती है। व्हीलचेयर, कृत्रिम अंग और चलने-फिरने के सहायक उपकरणों का प्रयोग किए जाने के कारण कुछ मामलों में गतिशीलता की कमी तो आसानी से नज़र आ जाती है लेकिन प्रचलित आम दृष्टिकोण में उस उपकरण को इस्तेमाल करने वाले उन जीवंत व्यक्ति, उन यौनिक जीवंत व्यक्ति को सबसे पहले मनुष्य होने की श्रेणी से निकाल बाहर कर दिया जाता है, मानो गतिशीलता की कमी वाले व्यक्ति मनुष्य हैं ही नहीं! दूसरे लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी गतिशीलता को बढ़ाने की कोशिश करने वाले व्यक्ति का जीवन, स्वतन्त्रता और विकल्प चुन पाने के अवसर, सभी समाप्त ही हो गए हों।
एलेन स्टोल की उम्र 18 वर्ष की थी जब एक मोटर दुर्घटना के कारण उन्हें लकवा मार गया। फिजीओथेरेपी करवाने के बाद वे अपने हाथों, बाजुओं, बदन को फिर से प्रयोग कर पाने में सक्षम हो गईं लेकिन उनकी टांगें बिलकुल बेकार हो गईं। दुर्घटना के बाद हुए डिप्रेशन और अपने प्रति लोगों के नज़रिए से जूझते हुए उन्होंने प्लेबॉय मैगज़ीन के ह्यू हेफ़्नर को लिखा … और आज तक रीढ़ की हड्डी में आघात के साथ वे अकेली महिला हैं जिन पर प्लेबॉय मैगज़ीन ने 1987 में एक विशेष फोटोशूट किया और उनके चित्र छापे। प्लेबॉय मैगज़ीन को लिखे अपने पत्र के बारे में बात करते हुए वे कहती हैं … “मैं लोगों को यह बताना चाहती थी कि मेरी तरफ़ देखिए! मैं एक व्हीलचेयर से कहीं अधिक हूँ, मैं एक महिला हूँ, और मेरी ओर देखते हुए आपको यही दिखना चाहिए”।
केवल एक तरह से जीवन जीने, या अपनी यौनिकता को अनुभव करने से अधिक और भी बहुत कुछ होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि पहले तो हम अपने मन में इसे स्वीकार करें और इसके लिए तैयार हों। फिर इसके बाद, हमें इसके बारे में लगातार चर्चा भी करते रहनी चाहिए। और अंत में, हम अपने इर्द-गिर्द एक ऐसी दुनिया निर्मित करें जिसमें हमसे जुड़ी प्रत्येक जानकारी और लोगों के रुझान, उनके दृष्टिकोण, हमारे आने-जाने के सार्वजनिक और हमारे रहने के निजी स्थान, सभी कुछ हर तरह से समावेशी हों जिसमें मानव जाति के हर तरह के, छोटे से छोटे अंतर और भेदों को एक आकार देकर सम्मिलित किया जा सके, अर्थात किसी भी व्यक्ति में, किसी प्रकार का कोई अंतर न रहे।
चित्र स्रोत : BBC
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
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