मेट्रो ट्रेन, दिल्ली शहर और यहाँ के जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी हैं। आज मेट्रो के बिना दिल्ली की कल्पना कर पाना भी असंभव सा लगता है; मेट्रो के बिना दिल्ली बिलकुल किसी बेजान शरीर जैसी ही लगेगी। मेट्रो नेटवर्क में लगतार बढ़ोतरी से शहर में यहाँ वहाँ आना-जाना और आसानी से कहीं पहुँच पाना बहुत सरल और सुलभ हो गया है। इस बड़े शहर में एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने को आसान बनाने का यह साधन, हमारी इच्छाओं को बलवती होने का मौका भी देता है। ऐसे में, यातायात का यह सार्वजनिक माध्यम बन जाता है जहाँ लोगों की इच्छाएँ मिलती, बढ़ती और प्रकट होती हैं, यह एक ऐसी जगह है जहाँ हमारे साथ-साथ हमारी इच्छाएँ भी शहर में इधर-उधर सफ़र करती हैं।
शहर में लोग अपने घरों से काम पर निकलते हैं और फिर अपने घरों को लौटते हैं। शहर में हर-रोज़ इस आने-जाने की कवायद में लोग सफ़र के दौरान अनुभव की जाने वाली विभिन्न यौनिक इच्छाओं और व्यवहारों के भी आदि हो जाते हैं। शाम के भीड़-भाड़ के समय पर, मेट्रो में लोगों के शरीर एक दूसरे से सटे रहते हैं, क्योंकि भीड़ के कारण हिलने-डुलने की इंच भर जगह भी नहीं मिल पाती। ऐसे में बदन अक्सर आपस में छू जाते हैं, धक्के भी लगते हैं. मेट्रो के चलने में लगने वाले हिचकोलों के कारण भी ऐसा होता है। मेट्रो का यह भीड़ भरा माहौल बहुत ही साहसिक प्रयासों से भरा और रोमांचित करने वाला भी होता है। सार्वजनिक यातायात के इस साधन में यात्रा के दौरान लोगों के मन में अनेक तरह के भाव और इच्छाओं की सम्भावना होती है। यह भाव और इच्छाएँ केवल कुछ ही लोग प्रकट करते, समझते और महसूस करते हैं।
किसी क्विअर व्यक्ति को, शहर में यात्रा करते समय, लोगों की भेदती नज़रों का सामना करने की आदत सी हो जाती है। शहर में क्विअर व्यक्ति के कहीं आने जाने या मेट्रो में सफ़र करते समय, लोगों का ध्यान अनायास ही उसकी ओर खिंच जाता है। कई बार आप हिम्मत कर आपको घूर रहे व्यक्ति से आँखें मिला वापस उन्हें घूरने का साहस भी कर लेते हैं और ऐसा करने से हो सकता है कि वह व्यक्ति अचकचाकर अपनी नज़र हटा लें और दूसरी ओर देखने लगें। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि आप दोनों की नज़रें मिलें और दोनों ही मुस्कुरा दें। तब आपको यह समझ में आ जाता है कि सामने वाले व्यक्ति की भी आप में रुचि है, और अक्सर उनकी यह रुचि यौनिक ही होती है। ऐसे में एक टक उन्हें देखते रहने से आप यह जता देते हैं कि आपकी भी उनमें रुचि है। मेट्रो ट्रेन में आपका सामना ऐसे कई अंजान लोगों से होता है, जो आपको जानने को इच्छुक होते हैं, आपसे मेलजोल बढ़ाकर अपनी इच्छाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन यहाँ किसी तरह की की कोई बातचीत नहीं होती, सब आँखों ही आँखों में घटता है। मेट्रो ट्रेन के अंदर इस छोटी से जगह में केवल कुछ देर के लिए इस तरह की इच्छाएँ जागृत होती हैं। हो सकता है कि यह इच्छाएँ, आप दोनों में से किसी एक के गंतव्य स्टेशन आने तक ही रहें। इन इच्छाओं का इस तरह क्षणभंगुर होना ही इस पूरे अनुभव को क्विअर बना देता है!
मेट्रो ट्रेन के साथ-साथ, आजकल ग्राइंडर जैसी डेटिंग ऐप भी आ गयी हैं जिनके कारण इन इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश कर पाना आसान हो चला है। मेट्रो और इन डेटिंग ऐप का लचीलापन ही इच्छाओं को प्रकट करने और पूरा करने की इस प्रक्रिया को और अधिक सरल बना देता है। ग्राइंडर जैसे ऐप पर लोग अक्सर अपने प्रोफ़ाइल नाम उस स्थान के नाम पर रख लेते है जहाँ वे उस समय होते हैं – कभी कभार यह किसी मेट्रो स्टेशन का नाम होता है या केवल ‘मेट्रो’ ही लिख देते हैं, जिससे कि इस ग्राइंडर एप को इस्तेमाल करने वाले दूसरे यूज़र को पता चल जाए कि इस समय आप कहीं जा रहे हैं। इस तरह मेट्रो का नेटवर्क इन लोगों के लिए उनकी इच्छाओं का नक्शा बन जाता है। मेट्रो में या मेट्रो नेटवर्क में होने का मतलब यह होगा कि वह यूज़र उस समय मेट्रो नेटवर्क में किसी भी स्थान पर पहुँच सकता है। आप जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकते हैं। चूंकि इस एप से आपको लगातार यह जानकारी मिलती रहती है कि कौन से यूज़र उस समय आपके सबसे नजदीक हैं, और मेट्रो के हर बदलते स्टेशन के साथ-साथ नए-नए यूज़र आपके संपर्क में आते रहते हैं और नयी संभावनाएँ बनती रहती हैं।
लेकिन ऐसे में कोई यह भी पूछ सकता है कि मेट्रो जैसा सार्वजनिक यातायात का माध्यम आखिर इच्छाओं के इस तरह मिलने की जगह क्यों बन जाता है। मेट्रो में किसी से पहचान कर, उसे अपना ‘मेट्रो दोस्त’ बना लेने से लेकर आगे चलकर सेक्स करने की संभावना बन पाना, मेट्रो की इस छोटी सी भीड़ भरी जगह, इस तरह की अथाह संभावनाओं के बनने का स्थान और मौका देती है। बहुत से लोगों को, हो सकता है कि अपने घर में प्राइवेसी या निजता न मिल पाती हो। बहुत से लोगों को, हो सकता है कि परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहने के कारण, यौनिक खुशी पाने का अवसर न मिल पाता हो। इस तरह, यौनिक खुशी की खोज करना भी एक अलग संभावना बन जाती है। मेट्रो में बिताया गया वह छोटा सा समय उन लोगों के लिए जीवन की सच्चाई से दूर भागने का अवसर होता है – यह वो समय होता है जब वे अपने उस वास्तविक जीवन की सच्चाई से दूर हो पाते हैं जहाँ बाद में तो उन्हें जाना ही होता है। इस तरह के मौकों की तलाश में रहने वाले या इसका लाभ उठाने वाले लोगों में विवाहित पुरुष भी होते हैं, (जो मेट्रो में भीड़भाड़ के समय लोगों की धक्कापेल में दूसरे आदमियों के बदन को छूने और सहलाने का मज़ा लेते हैं) जिन्होने कहीं न कहीं अपने मन में अपनी समलैंगिक इच्छाओं को दबा कर रखा होता है।
मेट्रो में, इच्छाओं को व्यक्त करने और उन्हें पूरा करने की कोशिश आपकी यौनिक पहचान पर भी निर्भर करती है। अगर आप एक सामान्य सिस पुरुष है, तब आपको अपनी इच्छाओं के अनुसार व्यवहार कर उन्हें पूरा कर पाने की कोशिश करने में ज़्यादा कठिनाई नहीं होगी लेकिन, वे दूसरे लोग, जो इस सामान्य होने की परिभाषा पर खरे नहीं उतरते, उन्हें ज़रूर हिंसा होने का डर रहता है। ऐसे लोगों की इच्छाएँ पूरा हो पाना इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस तरह से खुद को दिखाते हैं, या अपने जेंडर को कपड़े पहन कर और किस तरह का व्यवहार कर लोगों के सामने रखते हैं। सिस पुरुष की पहचान वाला कोई भी आदमी इस वातवरण में खुद को बहुत सामान्य पाता है लेकिन किसी भी क्विअर पुरुष या महिला के लिए मेट्रो में इस तरह की भीड़ भरी जगह में इच्छाओं को पूरा कर पाने की कोशिश कभी-कभी बहुत दुख:दायी और परेशान करने वाली हो सकती है। इसलिए, इनको अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की एक कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसलिए कहा जा सकता है कि, सिस पुरुषों को इन यौनिक इच्छाओं में मिलने वाला आनंद और खुशी, उन दूसरे अनेक लोगों द्वारा अनुभव किए जाने वाले डर और हिंसा के अनुभवों की कब्र पर ही बना है’।
लेकिन फिर भी, यातायात का यह सार्वजनिक साधन, यह मेट्रो ऐसा अवसर और संभावनाएँ उपलब्ध कराता है जो शायद अन्यत्र कहीं और संभव नहीं हो सकता। यह निजी और सार्वजनिक स्थानों के बीच के अंतर को समाप्त कर, क्विअर व्यवहार को व्यक्त करने अवसर उपलब्ध कराता है।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
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Cover Image:(CC BY 2.0)