जब कभी भी यौनिकता के संदर्भ में जोखिम की बात होती है, तो प्राय: लोग ऐसे लोगों के बारे में ही सोचते हैं जिनके एक से ज़्यादा यौन साथी हो। यौनिकता के ही संदर्भ में, अगर थोड़ा और अधिक खुले मन से विचार किया जाये तो शायद जोखिम को सेक्स के लिए सहमति के अभाव के साथ या सुरक्षित सेक्स न अपनाए जाने के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ होगा की सिस जेंडर (वे व्यक्ति जिनकी व्यक्तिगत जेंडर पहचान उनके जन्म के समय दिए गए जेंडर के से मेल खाती है।) विषमलैंगिक लोगों के वैवाहिक जीवन के संबंध को भी जोखिम के रूप में देखा गया हो। मेरे मित्र और साथी थेरेपिस्ट आर्यन नें LGBTQIA+ समुदाय के लोगों के संदर्भ में विवाह को नुकसानदायक बताया है। इन लोगों को अक्सर सामाजिक दबाब के चलते विषमलैंगिक विवाह करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। दुख की बात तो यह है कि न चाहते हुए भी अनेक तरह की कानूनी बाध्यताओं, सामाजिक और पारिवारिक दबाब या/तथा संसाधनों की कमी के कारण वे इन वैवाहिक सम्बन्धों में बंधे रहते हैं।
इस विचार को सुनने के बाद मुझे ऐसा लगा कि न केवल LGBTQIA+ लोगों, बल्कि सामान्य सिस जेंडर विषमलैंगिक लोगों के लिए भी विवाह वास्तव में एक तरह का जोखिम है। अपनी निजी प्रैक्टिस में, पारिवारिक न्यायालयों में काम करते हुए और एक थेरेपिस्ट या सलाहकार के रूप में लोगों को कानूनी सलाह देने के दौरान मैंने अनेक बार सिस जेंडर महिलाओं और पुरुषों के साथ काम किया है। अदालतों में पहुंचे दंपति अक्सर वहाँ तलाक लेने या संबंध विच्छेद करने के विचार से वहाँ आते हैं। अपनी निजी प्रैक्टिस में मेरा सामना अनेक ऐसे लोगों से होता है जो अपने विवाह में अनेक तरह की परेशानियों का सामना कर रहे होते हैं लेकिन अभी तक उन्होने तलाक लेने का मन नहीं बनाया होता। इन दोनों तरह की परिस्थितियों में मैं देख पाती हूँ कि मेरे पास आये ये लोग किस तरह की घुटन का एहसास कर रहे होते हैं। आज भी समाज में तलाक शुदा लोगों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता, तलाक लेने
जिन लोगो का तलाक हुआ है, उनको को सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि लोग अपने वैवाहिक सम्बन्धों में किसी तरह की समस्या होने को स्वीकार करने, इसका हल ढूंढने के लिए मदद लेने या फिर तलाक लेने का फैसला करने में बहुत समय लगाते हैं। और अंतत: तलाक लेने का फैसला करने तक ये लोग सामाजिक कलंक के भय, आपस में अनबन, परिवार के कारण हो रही समस्याओं, दूसरों के हित को ध्यान में रख विवाह को बरकरार रखने की विवशता और अनेक तरह की भावनात्मक उलझनों और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करने को मजबूर रहते हैं। और सबसे ज़्यादा तकलीफ और चिंता उन्हें इस बात की सताती है कि बच्चों की भलाई सबसे ज़्यादा किसमें होगी? यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर उन्हें कभी नहीं मिल पाता। लंबी चलने वाली तलाक की कानूनी प्रक्रिया और इस दौरान एक दूसरे पर अनेक तरह के आरोप और लांछन लगाए जाने से भी उनकी अघात बढ़ जाती हैं।
तो आखिर विवाह के साथ कौन से जोखिम जुड़े होते हैं? विवाह करने में सबसे पहला जोखिम तो यही होता है कि आप नहीं जानते कि जिस व्यक्ति को आप ने विवाह के लिए चुना है या जिसे आपके साथ विवाह के लिए चुना गया है, उसके साथ विवाह करके आप खुश रह भी पाएंगे या नहीं। भारत में तो अगर आप खुद अपने लिए चुने गए साथी के प्रति आश्वस्त भी हों, तो हो सकता है कि आपके परिवार के लोग इस संबंध को लेकर बहुत ज़्यादा खुश न हों। दूसरे, विवाह के साथ इतने सारे लोगों की इतनी अधिक अपेक्षाएँ जुड़ी हुई होती हैं कि किसी एक, अकेले व्यक्ति के लिए, खासकर एक सिस महिला के लिए अकेले उन सभी अपेक्षाओं पर खरा उतर पाना आसान नहीं होता। अगर विवाह के बाद बच्चे न हों तो समस्या होती है, अगर बहुत सारे बच्चे हो जाएँ तो भी समस्या होती है। घर में खाना बनाने को लेकर, घर की देखभाल को लेकर, बच्चों के लालन–पालन के तरीके को लेकर भी समस्याएँ हो सकती हैं। कई बात धार्मिक तरीके, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी झगड़ों का कारण बनती है। परिवार में अधिकारों के प्रयोग को लेकर या परिवार की ज़रूरतों को पूरा करते–करते पति–पत्नी के पास एक दूसरे को देने के लिए समय ही नहीं बचता और वे एक दूसरे से जुड़े रहने के बजाए घर को चलाने पर ही अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। फिर इसके अलावा विवाह सम्बन्धों में अधिकारों और सत्ता को लेकर भी कई तरह से समस्याएँ होती हैं। महिलाएं अक्सर आर्थिक कारणों से, भावनाओं के चलते या फिर सामाजिक कारणों से विवाह में बंधी रहने को मजबूर होती हैं। आमतौर पर, वैवाहिक सम्बन्धों में सेक्स के लिए उनकी सहमति नहीं ली जाती और गर्भनिरोधक उपायों के प्रयोग का निर्णय तो पुरुष ही करते हैं।
इसके अलावा विवाह करने में एक दूसरा जोखिम यह रहता है कि, लोगों द्वारा विवाह कर लिए जाने के पक्ष में दिये जाने वाले अधिकांश तर्क – जैसे कि बुढ़ापे में एकाकीपन नहीं होगा, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी या फिर विवाह कर लेने से सामाजिक स्वीकार्यता मिल जाएगी – कभी भी पूरी तरह से सही नहीं होते। हो सकता है कि विवाह न करने या अकेले रहने पर किसी व्यक्ति को इतने सामाजिक कलंक न झेलने पड़ें लेकिन विवाह करने का फैसला कर लेने पर अनेक तरह की परेशानियाँ हो सकती हैं। अकेले रहने पर जितनी परेशानियाँ होती हैं, विवाह कर लेने पर उससे अधिक नहीं तो उतनी ही परेशानियों का सामना लोगों को करना ही पड़ता है। एक ही छत के नीचे दो अंजान लोगों की तरह से रहने वाले अनगिनत विवाहित लोग आपको यह बता सकते हैं कि सिर्फ विवाह कर लेने से ही एकाकीपन की समस्या सुलझ नहीं जाती। ऐसा बिलकुल नहीं है कि सिर्फ विवाह कर लेने से ही आपके जीवन में प्रेम और किसी का साथ अपने आप आ जाएगा। फिर जैसा कि अनेक लोगों का कहना है, विवाह से आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलना भी एक छलावा ही है क्योंकि परिवारों में सत्ता और शक्ति का संतुलन अक्सर घर के पुरुषों या बड़े–बुजुर्गों के हाथ में होता है। ऐसे में संतान को अक्सर रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पूंजी के रूप में लोग देखते हैं, जो संभवत: बुढ़ापे में आपका ध्यान रखेंगे। ऐसे में भी बच्चे भले ही बड़े होकर अपने बुजुर्ग माँ–बाप का ध्यान रख लें, लेकिन सत्ता फिर भी घर के पुरुषों या बेटों के हाथ में ही रहती है और, विधवा माँ या अविवाहित अथवा तलाक़शुदा लकड़ियों को फिर भी तकलीफ़ों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसे में, संतान को न केवल पीढ़ियों के बीच की सोच के कभी न समाप्त होने वाले अंतर और पारिवारिक समस्याओं का बोझ ढोना होता है, बल्कि अपने माता–पिता की अपूर्ण इच्छाओं और संतान के बुढ़ापे का सहारा होने के विचार भी उनके मन पर बोझ बना रहता है। यह सब उस संतान के प्रति बड़ा अन्याय है जिसे, सही मायनों में, कम से कम अपने जीवन और कैरियर के बारे में निर्णय ले पाने की आज़ादी मिलनी चाहिए और बिना किसी अपराध बोध के अपने यौन साथी का चुनाव कर पाने की स्वतन्त्रता मिलनी ही चाहिए।
विवाह करने में तीसरा सबसे बड़ा जोखिम तब पैदा होता है जब भगवान द्वारा पहले से निर्धारित और स्वर्ग में बने इस तथाकथित संबंध से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते (जो कि बहुत बार होता है)। भले ही लोग अपनी वैवाहिक समस्याओं को सुलझाने के लिए परिवार के लोगों का सहारा लें, उनके साथ बैठ कर विचार करें, या फिर पुलिस का सहारा लें (अगर जीवन साथी द्वारा हिंसा की जा रही हो) या फिर कानून की शरण में जाएँ, अधिकांशत: उनके हाथ इस समस्या का कोई हल नहीं लगता। किसी भी निश्चित परिणाम तक पहुँचने के लिए उन्हें वर्षों तक इंतज़ार करना पड़ता है, और किसी निश्चित परिणाम तक पहुँचने की उम्मीद भी बहुत कम ही होती है। और हमारी सामाजिक व्यवस्था इस तरह से बनी है कि परेशानी होने पर भी महिलाएं उन्हें तंग करने वाले परिवार को और उस घर को अक्सर छोड़ कर कहीं जा नहीं पातीं। उन्हें अपने माता–पिता के घर पर भी सहारा नहीं मिलता । घर पर हिंसा का सामना कर रही महिलाओं के पास घर के अलावा कोई दूसरी जगह भी नहीं होती जहां वे आश्रय ले सकें। घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को आसरा देने के लिए बने अधिकांश आश्रय स्थलों में पहले ही बहुत भीड़ होती है और अक्सर यहाँ की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं होती। इसलिए विवाह करने का फैसला करना और विवाह से अपनी उम्मीदें लगा लेना जोखिम से भरा है क्योंकि अगर सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो आपके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता।
जैसा कि मैंने पहले कहा है, विवाह करने का फैसला लेने के पीछे मुख्य रूप से यही कारण होते हैं कि विवाह कर लेने से आप अकेले होने के सामाजिक कलंक से बच सकते हैं, महिलाएं अविवाहित रहकर अपने माता–पिता पर बोझ बने रहने से बच सकती हैं, संतान पैदा करने की इच्छा को पूरा करने के लिए विवाह करना होता है या फिर बुढ़ापे में अकेलेपन से बचने और आर्थिक असुरक्षा से बचने के लिए – लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि विवाह कर लेने पर आपको सफलता मिल ही जाएगी। इसलिए, इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, मुझे लगता है कि विवाह को एक पवित्र बंधन कहने या फिर इसे दो लोगों के बीच खुशी से भरे दांपत्य जीवन के बजाय अब हमें यह कहना शुरू कर देना होगा कि अपने यौन या रूमानी जीवन में किसी व्यक्ति द्वारा लिए जा सकने वाले जोखिमों में से विवाह का स्थान सबसे पहले और शीर्ष पर होता है।
सोमेद्र कुमार द्वारा अनुवादित
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