कभी दोस्त रहे एक व्यक्ति के नाम खत
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15, जून 2020
(सावधानी से पढिए। इस लेख में यौन हिंसा से जुड़ी बातें लिखी है)
प्रिय A,
मुझे नहीं पता कि मैं यह सब क्यों लिख रही हूँ। शायद इससे मेरे दिल का बोझ कुछ कम हो सके।
***
2013 में हमारा मिलना भी एक संयोग ही था, जब पहली बार तुम्हारे यूनिवर्सिटी के कैंपस में हमारी मुलाकात हुई थी। पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो सोचती हूँ कि तुम्हारे बारे में पहली राय आज से कितनी अलग थी। तब मुझे लगा था तुम बहुत सही हो, लोगों में मशहूर हो, विनोदी हो और सभी तुम्हें पसंद करते हैं। तब हर कोई तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकता था।
लेकिन अब मैं अच्छी तरह से समझ गयी हूँ कि वो सब एक दिखावा था। तुम हमेशा से ही दूसरों को खुश करने वाले रहे हो और दूसरे तुम्हें पसंद करें, इसके लिए तुम कुछ भी कर सकते हो। तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की इतनी कमी थी और तुम्हें हिम्मत दोस्त ही दिलाते थे जो हर बार तुम्हारे किसी “पगली” लड़की के बारे में कोई मज़ाक वाली बात करने पर तुम्हारा हौसला अफजाई करते नहीं थकते थे। मुझे लगता है कि इसकी वजह से ही तुम्हारी पूरी शक्सीयत ऐसी बन गयी कि तुम वही दिखने लगे जो लोग तुम्हारे बारे में बोलते थे न कि जो तुम असल में थे।
मुझे लगता है कि तुमने मुझसे दोस्ती भी इसी वजह से की होगी: क्योंकि तुम्हारी ज़िंदगी में मैं ही वो थी जिसने तुम्हें मजबूर किया कि तुम सोचो कि तुम असल में क्या हो। और मैं? मैं तो हमेशा से राह से भटके लोगों को सही रास्ता दिखाने वाली रही, और बड़ी ही आसानी से तुम्हारी बातों में आ गयी और फंस गयी।
***
मैं झूठ नहीं बोलुंगी: तुम्हारे साथ शहर में बिताया समय मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन समय था। मुझे याद नहीं पड़ता कि कितनी ही बार तुम, एम. जे और मैं रात भर बेसुध होकर नाचते रहते थे। उस समय जवान, बेपरवाह, और उन्मुक्त होने का एहसास बहुत दिलकश था। उस समय हमारी बातचीत कभी भी बीते हुए या आने वाले समय के बारे में नहीं, सिर्फ और सिर्फ वर्तमान के बारे में ही होती थी।
A, जैसा कि तुमने कई बार कहा, नशे में भी और वैसे भी, कि मैं ही तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त और एकमात्र विश्वासपात्र थी। तब मुझे कभी भी यह शक नहीं हुआ कि तुम मुझे दुखी भी कर सकते हो या नुकसान पहुंचा सकते हो; तुमने ऐसा सोचने का मुझे कभी मौका जो नहीं दिया। तुम हमेशा मेरे इर्द गिर्द बने रहे और हर माहौल में मुझे सुरक्षित रखते थे। तुम्हें याद है, जब भी मुझे माहवारी के समय पेट दर्द होता था तो तुम मेरे लिए मैगनम आइसक्रीम लेकर आते थे? या फिर कैसे वो देर रात या दोपहर के समय की हमारी लंबी बातें जब तुम महिलाओं के बारे में, अपने परिवार, काम की तकलीफ़ों, अपनी शंकाओं के बारे में मेरी सलाह लेने मेरे पास आते थे और हम दुनिया के लगभग हर मसले पर बात करते थे।
यह सोच कर ही मेरा मन खुशी से झूम उठता था कि तुम्हारे जैसे मेरे पास एक दोस्त था जो मुझे प्यार करता था और खुश रखता था।
तुम्हें पता होना चाहिए कि आज मुझे मैगनम आइसक्रीम खाये हुए पूरे दो साल और छ: महीने हो गए हैं। मुझे आज भी आइसक्रीम की नरम मुलायम चाकलेट में दाँत गड़ाने का बहुत दिल करता है; लेकिन तुम्हारी यादों से जुड़ी वो ख़्वाहिश अब जैसे बुझ सी गयी है।
***
एक सवाल आज भी मेरे मन में बार–बार कौंधता है और मेरे पास उसका कोई जवाब नहीं है। मैं आज भी सोचती हूँ कि क्या किसी व्यक्ति को उसकी एक गलती की सजा उसे उसकी सारी जिंदगी मिलनी चाहिए। दुनिया उन लोगों को भी बार–बार मौका देती है जिन्होने तुमसे भी बड़ी गलतियाँ की हैं , लेकिन मुझे नहीं लगता कि मुझमे इतनी हिम्मत और क्षमता है कि मैं तुम्हें माफ कर पाऊँ – या फिर मैं और लोगों की तरह ऐसी बातों को अनदेखा भी नहीं कर सकती। मैं आज तक खुद को यह समझाने में नाकामयाब रही हूँ कि सारी ज़िंदगी बिलकुल नैतिकता भरा जीवन जीने के बाद कैसे तुम, क्या कहूँ, ‘फिसल’ गए ।
मैंने बहुत से मनोचिकित्सकों, दार्शनिकों और धर्म गुरुओं के लिखे लेख पढ़े हैं कि माफ कर देना बहुत बड़ा गुण होता है; लेकिन फिर भी मुझे अपने सवाल का कोई जवाब सुझाई नहीं देता। मुझे नहीं लगता कि मैं कभी भी, जो तुमने मेरे साथ किया, उसके लिए तुम्हें माफ कर पाऊँगी।
तुम्हें याद तो होगा कि उस रात हमारे बीच क्या हुआ था। हो सकता है तुम्हें सब कुछ उतना साफ–साफ याद न हो जितना मुझे है। मुझे नहीं लगता कि उस रात के बारे में सोच कर तुम अपने आम दिनों में कभी भी इतना परेशान हुए होगे, या फिर उसका ख्याल मन में आते हुए तुम्हारे हर रिश्ते पर उसकी परछाईं पड़ने लगती होगी और तुम सोचने लगते होगे कि क्या आगे कभी तुम किसी को अपने इतना पास आने भी दोगे या नहीं।
मैं बार–बार तुम्हारे बताए गए बहाने के बारे में सोचती हूँ; तुमने भी बिलकुल वही वजह बताई जो आमतौर पर आदमी लोग बताते हैं कि शराब या नशे की हालत में वे सही और गलत का फैसला नहीं कर पाते। मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, कि तुम्हें पता था कि उस वक़्त तुम क्या कर रहे थे। चाहे तुमने कितनी भी शराब पी रखी थी, लेकिन तुम जो कर रहे थे वो तुम्हें अच्छी तरह से मालूम था और तुम यह भी जानते थे कि तुमने जो किया वो गलत था।
तुम्हें पता है कि मैं इस फैसले पर कैसे पहुंची हूँ? शायद तुम्हें एक औरत के नज़रिये से यह जानना चाहिए कि उस दिन क्या हुआ था? मुझे अच्छी तरह से पता है कि यह तुम्हारी उस कहानी से बिलकुल अलग होगा जो तुमने अपने दिमाग में बना रखी है।
तुमने मुझसे एक झूठ कहा था, एक ऐसा झूठ जिसे तुम अच्छी तरह जानते थे कि मैं सुनकर भावुक हो जाऊँगी। मैं ही पागल थी जो तुम्हारी बातों को सच समझ बैठी। उसके बाद एक के बाद एक कुछ न कुछ होता चला गया: पहले तुमने एक झूठ बोला, सुनकर मैं रोने लगी, रोते–रोते मैं गठरी की तरह सिमट गयी और सिसकियाँ भरने लगी। उस समय मैं बहुत संवेदनशील कमजोर थी, एक हफ्ते पहले ही मेरी दादी की मृत्यु हुई थी और मेरा अपने एक साथी से संबंध भी टूट गया था; उस समय मेरी मानसिक स्थिति ऐसी थी जैसे एक हफ्ता पुराने बासी बचे हुए खाने का भरा कटोरा हो।
यह घटना भले ही नवम्बर 2017 में थी, लेकिन आज भी मुझे याद है कि इसके बाद क्या हुआ था, मानों अभी कल की ही बात हो। A, तुम मेरे बगल में आकर लेट गए थे, शायद मुझे सांत्वना देने के लिए। फिर अचानक मुझे सांत्वना देते–देते तुम्हारे मन में कब वासना घर कर गयी, मुझे नहीं मालूम।
उस वक़्त मैं आधी नींद में थी, पूरी तरह से टूटी हुई, जब मुझे अपने शरीर पर तुम्हारे हाथों की छुहन महसूस हुई। शुरू–शुरू में तुमने हल्के से छुआ, मानों जांच कर देख रहे थे, क्यों याद है? मेरी कमर से होते हुए तुम्हारे हाथ मेरे पेट तक आ पहुंचे, और कुछ देर के लिए तुम रुके। फिर वो मेरे स्तनों पर आकार रुख गए। कुछ देर तक तुम मेरी ब्रा के कारण उठी रुकावट से जूझते रहे और फिर मेरे निप्पल्स पर तुमने अपने हाथ फिराये। फिर अचानक से तुमने अपने हाथ पीछे खींच लिए। तुम्हें लगा था की शायद तुम गलत कर रहे थे और मुझसे ‘सारी’ कहा। लेकिन फिर पीछे हटने के बजाए तुमने मेरे स्तनों पर फिर से अपने हाथ फिराये – वो एक मिनट मुझे अपनी ज़िंदगी का सबसे लंबा समय लगा था – और फिर तुम्हारे हाथ मेरे कूल्हों पर आ गए। तुम बहुत धीरे–धीरे सब कर रहे थे, क्यों? तुम्हारे हाथ मेरे शरीर के उन हिस्सों पर चल रहे थे जहां पहुंचने की अनुमति मैंने नहीं दी थी। आज तक मैं तुम्हारे उत्तेजित लिंग की अपने कूल्हों पर छुहन भूली नहीं हूँ, चाहे मैंने कितनी ही कोशिश की है।
उस दिन तक, मैं हमेशा यही सोचती थी की लड़ने या भाग जाने की स्थिति अगर कभी उत्पन्न हुई, तो मैं हमेशा ही इतनी हिम्मत ज़रूर रखूंगी की मुझ पर हमला करने वाले व्यक्ति का सामना करते हुए उसके गुप्तांगों पर ज़ोर से लात ज़रूर लगा दूँगी। मैं पहले एक बार ऐसा कर भी चुकी थी। लेकिन उस रात, जैसे मैं बिलकुल बर्फ ही हो गयी थी। मेरे दिमाग की नसों नें मेरे शरीर को मानों संदेश देना ही बंद कर दिया था; मैं कितनी ज़ोर से चिल्लाना, धक्का देना, काटना और मुक़ाबला करना चाह रही थी। मैं अपने दिल को शांत करना चाह रही थी जो इतनी ज़ोर से धड़क रहा था मानों मेरी पसलियों को तोड़ कर बाहर ही निकाल आएगा और मेरे फेफड़ों को छलनी कर देगा।
मेरे मनोचिकित्सक का कहना है की शरीर ऐसी प्रतिक्रिया खुद को सुरक्षित करने के लिए करता है, जब चुनौती मिलने पर स्थिति को हाथ से बाहर निकलने से बचाया जाना हो। A, उस समय मेरे शरीर का हर जोड़, हर कोशिका और हर टिशू मुझसे पलट कर तुम्हारे हाथों को पीछे हटाने और तुम्हारे नाक पर ज़ोर का मुक्का जड़ने के लिए कह रहा था। लेकिन, उस समय तुम्हारे 6 फुट लंबे शरीर के आगे, मैंने खुद को लाचार और कमजोर पाया, जैसे मैं किसी का खिलौना हूँ।
क्या तुम जानते हो अगले दिन मैंने क्या किया? मैं जागी, उठी, तुम्हारे घर से निकली और वो सब कुछ भूल जाने की कोशिश की जो उस रात हुआ था। वो दिन है और आज का दिन है, कभी कोई दिन ऐसा नहीं निकला जब मैंने यह नहीं सोचा कि तुमने मेरे साथ क्या किया था ।
***
मैंने 2018 में मनोचिकित्सक के पास थेरेपी के लिए जाना शुरू किया जब भारत में #MeToo आंदोलन शुरू हुआ था। उन दिनों मैंने रेप और यौन अत्याचार के अनेक कहानियाँ पढ़ीं, और मुझे अपने बचपन के उस हादसे के बारे में सोचकर वो तकलीफ फिर से उभर आई जिसे मैंने अपने मन के भीतर कहीं दबा कर रख छोड़ा था। अगले कुछ महीनों में, मुझे बार बार उन घटनाओं का सामना करना पड़ा और तब मुझे लगा था की मैं अपने जीवन में इतनी कमजोर कभी नहीं थी। अब मुझे एहसास हुआ कि 2017 की रात की उस घटना के बाद, जाने अनजाने में मैंने, अपने जीवन के हर संबंध को जैसे तोड़ दिया था, यही सोचकर कि अगर मैंने ज़्यादा नज़दीकियाँ बनायीं तो न जाने क्या होगा। आज भी मैं, किसी को अपने बहुत करीब नहीं आने देती हूँ, फिर वो चाहे कोई दोस्त हो या कोई और, क्योंकि मुझे बेचैनी होती है, मुझमे आत्मविश्वास की कमी हो गयी है, मेरे मन में बार बार वही घटना कौंध जाती है और यौन उत्पीड़न का बोझ मन में घर कर जाता है। मैं आज भी किसी से लगाव करना चाहती हूँ, अंतरंगता चाहती हूँ, संवेदी बनना चाहती हूँ, लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो कभी नहीं भरते।
मैंने दो बरस तक तुमसे दूर रहने की कोशिश की। मैंने न केवल हमारे सभी फोटो और तुम्हारे सभी संपर्क नंबर मिटा दिये, बल्कि मुझे हमेशा यही डर लगा रहता था कि कहीं तुमसे आमना–सामना न हो जाये। मेरे मन में हमेशा बुरे ख्याल ही आते थे, मुझे लगता था कि हर लंबे कद और घुँघराले बालों वाला आदमी कहीं तुम ही न हो, रॉयल एनफ़ील्ड मोटरसाइकल पर सवार हर व्यक्ति मुझे तुम्ही लगते थे। मैंने न केवल उन सभी जगहों में जाना छोड़ दिया जहां हम जाया करते थे, बल्कि फिल्में देखना, संगीत सुनना और वो सब खाना भी बंद कर दिया जिनसे मुझे तुम्हारी याद आती थी। मैगनम आइसक्रीम तो उन सब चीजों में से सिर्फ एक चीज़ है।
पिछले साल नवम्बर में, न जाने क्यों, मैंने तुम्हें फेस्बूक मेस्सेंजर पर संदेश लिखा कि क्या तुम मुझसे मिलना चाहोगे। उस समय मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, बर्नआउट होने जैसी स्थिति में थी; अब मैं एक ऐसी ज़िंदगी चाहती थी जहां मुझे शहर के किसी मशहूर हिस्से में जाने से डर न लगता हो। मुझे नहीं पता कि तुमसे मिलने की इच्छा मैने क्यों जताई और क्यों तुमसे मिलना तय किया। मुझे इतना पता था A कि मैं खुल कर तुम्हें बता देना चाहती थी कि तुम्हारे किए का मेरे जीवन पर कितना बुरा असर पड़ा था।
यह अलग बात है कि इस मुलाकात के परिणाम कुछ और ही निकले। मैंने तुम्हें सब कुछ बताया कि तुमने उस रात मेरे साथ क्या किया और कैसे उस घटना नें पिछले 2 सालों में मेरी ज़िंदगी पर असर किया था। मुझे पक्का यकीन है कि तुम्हें याद होगा, मेरी बातें सुनकर तुमने क्या कहा था। तुमने मेरे सामने बहाना बनाया कि उस रात तुम नशे में थे, शायद पहली बार। तुमने अपने किए के लिए शर्मिंदगी ज़ाहिर नहीं की, न माफी मांगी और न ही यह माना कि वो सब हुआ था। तुमने यह भी नहीं माना कि तुम अपने दोस्तों के बीच यह अफवाह फैलाते रहे हो कि यह सब मेरे मन की कोरी कल्पना मात्र थी। बल्कि मुझे तो हैरानी होती है कि कैसे तुमने पूरी स्थिति को अपने तरीके से पेश किया था। तुम कहने लगे कि कैसे उस रात की घटना के बारे में मेरी सोच और मेरी बातों से तुम्हारे अपने दोस्तों के साथ संबंध खराब हुए थे, और तुम्हें थेरेपी के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ा था।
मुझे नहीं पता कि इस मुलाकात से मुझे किस तरह के नतीजों की उम्मीद थी। शायद में नादान थी और यह मान बैठी थी कि शायद तुम अपने किए की ज़िम्मेदारी लोगे, या कम से कम खेद जताओगे, अपनी गलती मानोंगे या फिर अपनी एक समय की सबसे अच्छी दोस्त को धोखा देने के लिए खेद व्यक्त करोगे।
A, मुझे लंबे समय तक इंसानियत के खत्म हो जाने का एहसास होता रहा है। मुझे नहीं पता कि मैं कभी तुम्हें माफ कर भी सकूंगी या नहीं, या फिर क्या मैं तुम्हें माफ करना भी चाहती हूँ या नहीं। या फिर यह कि किसी को माफ कर देना होता क्या है।
लगभग 1 साल और 6 महीने तक थेरेपी लेने के बाद, मैंने अपने मन के भाव उजागर होने दिये। और ऐसा करना मेरे लिए सबसे कठिन काम रहा है। मुझे पता है और मैं मानती हूँ कि मुझसे धोखा हुआ है, मुझे चोट पहुंची है मुझे लगता है मुझे त्याग दिया गया है और सबसे बड़ी बात तो यह कि मुझे हर समय यह दर्द अपने शरीर के हर अंग में महसूस होता है। लेकिन न जाने क्यों, मुझे अब गुस्सा नहीं आता।
अब मैं बार–बार पीछे मुड़कर देखने और अंजान आदमियों के भय से डरी रहने से भी थक चुकी हूँ। मेरे मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि मेरी शारीरिक सीमायों का कोई उल्लंघन न कर दे और साथ ही मैं अब लोगों को अपने से दूर रखते रहने की कोशिश करते हुए भी थक चुकी हूँ। A, अब मुझे हर रोज़ फिर उसी रात की घटना याद हो आती है और मेरे मन से अपने शरीर पर रेंगती तुम्हारी उन खुरदरी अंगुलियों का एहसास भुलाए नहीं भूलता है, भले ही मैं कितनी ही बार स्नान क्यों न करती रहूँ । मैं अब थक चुकी हूँ और मुझमें अब कोई जीवन शक्ति संचित नहीं रह गयी है।
A, मुझे नहीं लगता कि ऐसी घटनाओं को भुला देना और किसी को माफ कर देने जैसी कोई चीज़ होती है। मुझे लगता है यह केवल फिल्मों/ टीवी filmo/TV में होता होगा जहां सब कुछ भुला देने की बात को रूमानी ढंग से पेश किया जाता रहा है। मुझे नहीं लगता है कि मैं सब कुछ भुला कर अब अपने जीवन में आगे बढ़ सकूँगी। मुझे लगता है कि जीवन में एक ऐसा समय आता है जब हम अपने साथ हुए धोखों और शारीरिक उल्लंघन के बोझ तले जीना सीख लेते हैं।
उम्मीद करती हूँ तुम्हारी माँ सकुशल होंगी,
और कभी तुमसे दोबारा मिलना न हो।
सप्रेम, ।
K
नोट – पत्र के अंत में ‘सप्रेम’ केवल खत को खत्म करने की औपचारिकता के तौर पर लिखा है। चूंकि मैं हर खत को ‘सप्रेम’ लिखकर ही खत्म करती हूँ, इसलिए इसे मैं बोलूंगी नहीं।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित।
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