सदीयों से हम सबकी प्रेम पाने की आशा जस की तस बनी हुई है।
इस सहस्त्राब्दी के आरंभिक वर्षों में नई पीढ़ी के अधिकांश लोगों नें शायद अपनी पहली ईमेल आइडी बनाई होगी या अकाउंट तैयार किया होगा। वर्ष 2004 आते-आते ऑर्कुट की सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट शुरू हो चुकी थी जो अब शायद चलन में नहीं रही है। उस समय कंप्यूटर स्क्रीन के सुरक्षा घेरे के पीछे सेअपने सभी नए व पुराने दोस्तों, मित्रों और स्वजन स्नेही जनों से संपर्क कर पाना कितना सुखद लगता था। उम्र के दूसरे दशक में प्रवेश पाने वाली मैं, उस समय अपने दोस्तों के सामने अपने मन के भावों को प्रकट नहीं कर पाती थी।
मैंने अपने कॉलेज के समय के एक पुराने मित्र को ऑर्कुट के माध्यम से ही खोज निकाला था। मेरे उस दोस्त नें ऑर्कुट पर मेरी रिक्वेस्ट के उत्तर में मुझसे संपर्क भी किया और कुछ ही समय में हम दोनों ऑनलाइन रूप से एक दूसरे के संपर्क में आ गए थे। हम एक दूसरे को ईमेल भेजते थे और हमारा यह पूरा ऑनलाइन रोमांस जी-मेल पर एक दूसरे को ईमेल भेजते हुए ही परवान चढ़ने लगा था। हम एक दूसरे के दोस्त थे, फ़्लर्ट भी करते थे, और मैं तो पूरी तरह से प्रेमरस में सराबोर हो चुकी थी।
इस पूरे प्रेम व्यवहार में समस्या केवल एक थी – और वह ये कि इस एकतरफा प्रेम में केवल मैं ही एकमात्र सहभागी थी! और मुझे इसका एहसास तब जाकर हुआ जब एक दिन मेरे प्रेम का यह पूरा आडंबर मेरी आँखों के सामने भरभराकर ढह गया। मैंने इतने दिनों तक प्रेम करते रहने, फ़्लर्ट करती हुए ईमेल लिखने में बहुत मेहनत की थी और जब मेरे इस मित्र नें मुझे इस पूरे प्रकरण के बारे में अपने विचार बताए, तो मेरा दिल टूट कर चूरचूर हो गया। मुझे समझ में आ गया कि इसकी वजह यही थी कि हमारा प्रेम एकतरफा था।
प्रिय पाठक, उसे गलत न समझें प्लीज़ उसने कुछ गलत नहीं किया था। लेकिन मुझे यह समझ में आ गया था की ऑनलाइन चैट करते समय हमें सामने वाले लोगों की भाषा, उनके लहजे, या भाव भंगिमाओं का पता नहीं चल पाता है और इसलिए हम लोगों के मन के भावों, उनकी मंशा को समझ नहीं पाते हैं। लेकिन जब हम लोगों से आमने-सामने मिलते हैं या बात करते हैं, तो उनके बारे में बहुत सी जानकारी, वो क्या चाह रहे हैं, आदि के बारे में हमें उनके हाव-भाव से पता चलता है या फिर उन्हें देख कर हमारा मस्तिष्क खुद से ही इस जानकारी को ग्रहण कर लेता है। यही कारण है कि ऑनलाइन मुलाकात के दौरान हमें सामने वाले लोगों के बारे में बहुत कुछ पता नहीं चल पाता है। मैंने भी इसी तरह अपने इस ऑनलाइन प्रेम अनुभव में अपने मित्र के बारे में गलत अनुमान लगा लिया था, और इस कड़वे अनुभव के बाद अच्छा ही हुआ कि मैं ऑनलाइन चैटिंग करने की आदत से सदा के लिए दूर हो गई।
फिर, बहुत वर्षों के बाद मैंने बहुत अनमने भाव से ऑनलाइन डेटिंग करने की कोशिश फिर से शुरू की।
तीस बरस की होते-होते मैं खुद को नितांत अकेली महसूस करने लगी थी। मेरी कोई बहुत अच्छी सोशल लाइफ भी नहीं थी और मेरे माता-पिता और दूसरे रिश्तेदारों का मुझपर शादी कर लेने का दबाब बढ़ता ही जा रहा था। अब माँ-बाबा की इच्छा से चुने हुए वर से विवाह कर लेने का मेरा मन था नहीं, इसलिए अपने कुछ प्रिय दोस्तों के बार-बार कहने और उकसाने पर मैं आधे मन से प्रेम की ऑनलाइन तलाश करने के लिए तैयार हो गई। मैं सिर्फ लोगों से मिलना चाहती थी और मेरे मन में यह बिल्कुल नहीं था कि मेरे मन का मीत मुझे इस ऑनलाइन खोज में मिल जाएगा और मैं उससे विवाह भी कर लूँगी। यहाँ यह कह देना सही होगा की इस ऑनलाइन खोज अभियान की शुरुआत के समय से ही मुझे इसकी सफलता को लेकर संदेह था।
मेरा यह ऑनलाइन डेटिंग का सफर पूरा एक वर्ष चला और इस दौरान मैंने दो वेबसाइट्स (Match व eHarmony) पर सदस्यता पाने के लिए भुगतान किया और एक अन्य (OkCupid) पर मुझे नि:शुल्क सदस्यता मिल गई। अपनी इस ऑनलाइन डेटिंग यात्रा के बारे में मेरे अनुभव इस प्रकार रहे:
ऑनलाइन डेटिंग साइट पर सेटअप
ऑन लाइन डेटिंग शुरू करने का फैसला करने के बाद, सबसे पहले तो मुझे बहुत ध्यानपूर्वक अपना एक प्रोफाइल तैयार करना था। मैंने अपनी पुरानी तस्वीरों में से सबसे ‘अच्छी’ दिखने वाली तस्वीरों को चुनने में बहुत समय लगाया लेकिन प्रोफाइल के लिए अपने बारे में जानकारी देने वाला वो एक पैराग्राफ मुझसे लिखते नहीं बन रहा था। फिर इसके बाद मैंने अपने लिए सही लगने वाले लोगों की विशेषताएँ चुनने में खासा समय लगाया और तब कहीं जाकर मेरा यह प्रोफाइल तैयार हो गया। वैसे देखा जाए तो ऑनलाइन डेटिंग की यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ 3 आसान काम करने पर पूरी हो जाता है; लेकिन सच्चाई यही है कि खुद को ‘वहाँ’ सबके सामने, अपने बारे में फैसला लेने के लिए, खड़ा करना और फिर अपने बारे में लोगों के निर्णय का इंतजार करना, बहुत ही कठिन और भयभीत कर देने वाला होता है।
अपने बारे में वेबसाईट पर जानकारी डालने के बाद मेरी ओर ज़्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया। केवल कुछ ही लोगों नें मेरी फोटो देखीं और मुझे संदेश भेजे। क्योंकि प्रोफाइल बनाते समय अपनी फोटो चुनने में मैंने बहुत मेहनत की थी, इसलिए मैंने सिर्फ अपने बारे में लिखे गए परिचय में ही थोड़ा बहुत बदलाव करने की कोशिश की। अब हर दिन मुझे अपने लिए सुझाए गए साथियों की एक फेहरिस्त मिल जाती, और रोज शाम को मैं बैठ कर उन लोगों के प्रोफाइल देखती- किसी को आँख मारने वाले ईमोजी भेज देती या किसी एकाध को कोई छोटा सा संदेश लिख भेजती।
लोगों के प्रोफाइल देखते हुए मुझे यह समझ में आया कि सभी के प्रोफाइल एक-दूसरे से लगभग मिलते जुलते थे। अगर उनमें दिए गए चित्रों को न देखा जाए, तो लगभग सभी लोगों के प्रोफाइल का आरंभिक पैराग्राफ लगभग एक समान था। हर व्यक्ति सही तरह का भोजन खाने, सही व्यायाम करने, सही जगहों पर घूमने फिरने, मौज मस्ती करने का शौकीन था और अपने काम को लेकर बहुत गंभीर था। शायद किसी डेटिंग वेबसाईट या पोर्टल पर अपने बारे में, निश्चित संख्या के शब्दों में हम इतना ही तो लिख सकते हैं। अगर सच कहूँ, तो केवल कुछ लोगों के प्रोफाइल पढ़ कर ही ऐसा लगने लगता है मानों आपने सबके बारे में पढ़ लिया हो और फिर इसके बाद सभी लोगों का परिचय पढ़ना बोरियत भरा लगने लगता है।
इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि अलग-अलग लोगों के प्रोफाइल के बीच भेद केवल उनके चित्रों या फोटो के आधार पर ही हो पाता है। जैसा कि न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे एक जानकारी भरे लेख से पता चलता है, ‘ऑनलाइन डेटिंग में फ़्लर्ट करने वाली महिलाएँ या फिर जिनके फोटो में उनकी वक्षरेखा (cleavage) साफ और गहरी दिखाई पड़ती है, वे दूसरों के मुकाबले ज़्यादा सफल रहती हैं’। इसी तरह से पुरुष जो फोटो में ‘अधिक मुस्कुराते नहीं हैं या सीधा कैमरा की ओर नहीं देखते, वे दूसरे पुरुषों की तुलना में ज़्यादा पसंद किए जाते हैं’। कम से कम महिलाओं के बारे में तो निश्चित तौर पर मैं भी इसकी पुष्टि कर सकती हूँ। मैं जानने के लिए उत्सुक थी कि मेरे प्रोफाइल को इतने कम लोगों नें क्यों देखा था और यही जानने के लिए मैंने एक पुरुष नाम से नकली प्रोफाइल तैयार किया और वेबसाइट में लॉगिन किया। यहाँ पुरुष के रूप में लॉगइन करने पर मुझे अधिकांश फैशनेबल बनीसँवरी लड़कियों के फ़्लर्ट करते हुए चित्र ही देखने को मिलें।
मुझे अपने इस चोरी छिपे किए ऑपरेशन से दो बातें स्पष्ट हो गईं: मेरी उम्र की दूसरी लडकियाँ मुझसे कहीं ज़्यादा मेकअप करती थीं, और, दूसरा यह कि ऑनलाइन पोस्ट की गई मेरी तस्वीरें दूसरी लड़कियों की तस्वीरों के मुकाबले कहीं ज़्यादा उबाऊ/बोरिंग थीं। निश्चित तौर पर मैं ऑनलाइन प्रोफाइल पोस्ट करने की इस कला से अनभिज्ञ थी।
विवाह और नैतिकता
इन ऑनलाइन डेटिंग साइट्स पर मुझसे संपर्क करने वाले विवाहित पुरुषों की कमी नहीं थी। ये विवाहित पुरुष दो वर्गों के थें: पहले तो वे जो शादीशुदा थें और शायद फिर से डेटिंग करना चाहते थें; दूसरे वे लोग थें जो केवल ‘खाना खिलाने के लिए आपको बाहर ले जाना चाह रहे थें’ और शायद (मुझे ऐसा लगा) उनकी वर्तमान पत्नियों को उनकी इन हरकतों का ज़रा तनिक भी एहसास नहीं था। शुरुआत में तो मुझे उनका ऐसा करने की कोशिश करना भी बहुत नागवार गुज़रा लेकिन फिर बाद में मुझे लगा कि मुझे उनके इस तरह से खुलकर अपने विवाहित होने के बारे में बता देने और फिर भी मुझसे मिलने की बात कहने के लिए उन्हें थोड़ा श्रेय देना तोह पड़ेगा। उनके हिसाब से शायद उनका ऐसा करना ठीक ही था – उन्होंने तो अपनी स्थिति स्पष्ट कर ही दी थी, अब यह पूरी तरह से मुझ पर निर्भर था कि मैं उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार करूँ या नहीं।
अब उनके विवाहित होने की स्थिति भले ही मुझसे स्पष्ट कर दी गई थी, लेकिन उनकी पत्नियों का क्या जिन्हें इसका तनिक भी एहसास नहीं था (सभी पुरुषों के तो विवाह के बहार संबंध (open marriage) नहीं होंगे)? इस बात को लेकर मैं काफी परेशान रही क्योंकि किसी विवाहित पुरुष के साथ संबंध बढ़ाना मेरी नैतिकता के खिलाफ था। यह सब देख कर मेरे मन में यह विचार बन गए (शायद मेरा ऐसा सोचना गलत भी रहा हो) कि ये डेटिंग साइट्स वास्तव में विवाहित पुरुषों के लिए कम उम्र की लड़कियों के साथ डेटिंग करने के लिए शिकार के मैदान के समान हैं। हालांकि मेरे पास अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए कोई आँकड़ें नहीं हैं, लेकिन अपने इस अनुभव के बाद इस पूरी डेटिंग की प्रक्रिया को लेकर मेरे मन में एक तरह की कड़वाहट सी आ गई थी। इससे मुझे एक और बात यह साफ हो गई कि शायद कुछ लोगों के लिए बेवफाई करना एक आम बात, एक सच्चाई थी। अभी तक मैंने केवल दूसरे लोगों से इसके बारे में सुना भर था – मुझे यह पता चल गया कि एक पत्नी के होते हुए भी दूसरी लड़कियों से संबंध बनाने की कोशिश करना मेरे आसपास हर जगह फलफूल रहा था।
ऐलगोरिदम की कमियाँ
किसी भी डेटिंग साइट पर प्रोफाइल तैयार करते समय, आपसे पूछा जाता है कि अपने लिए उपयुक्त साथी के चुनाव में सहायता के लिए आप कुछ मापदंड निर्धारित करें और अपनी आवश्यकता बताएँ। मैंने अपनी प्रोफाइल में यह स्पष्ट किया था कि मैं अपने से तीन वर्ष तक बड़ी या छोटी उम्र के व्यक्ति के साथ डेटिंग करना चाहूँगी और किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क करना चाहूँगी जिसके कोई संतान न हो, या फिर जिसने कभी पहले विवाह न किया हो, जो धूम्रपान न करता हो और किसी धर्म विशेष का अनुयायी न हो, आदि। अब मेरी इन प्राथमिकताओं के आधार पर डेटिंग साइट के ऐलगोरिदम नें मुझे मेरी पसंद के अनुरूप हर रोज 10 लोगों के प्रोफाइल के सुझाव देने थे।
लेकिन मैंने यह पाया कि अनेक बार इस (भुगतान की गई) डेटिंग साइट के ऐलगोरिदम नें मेरे लिए गलत साथियों का चुनाव कर मुझे सुझाव भेजे। मुझे अनेक ऐसे पुरुषों नें संपर्क किया जिनकी आयु साठ वर्ष से भी ज़्यादा थी, जो तलाकशुदा थें या जिनके पहले से बच्चे भी थें। कभी-कभी तो मुझसे संपर्क करने वाले पुरुष इन सभी वर्गों में सम्मिलित थें। मुझे यह देख कर बहुत ही बुरा लगा, ऐसा लगा मानों जानबूझकर मेरा निरादर किया जा रहा हो! क्या एक मशीनी ऐलगोरिदम भी इतनी हिम्मत रखता है कि मुझे मेरी पसंद के अनुसार पुरुष न सुझाए, या फिर क्या इन पुरुषों की प्राथमिकता मुझसे ज़्यादा महत्व रखती थी? अब बाद में सोचती हूँ तो लगता है कि मुझे उसी समय वेबसाइट से संपर्क कर यह जानने की कोशिश करनी चाहिए थी कि यह सब क्यों हो रहा था।
वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, ऑनलाइन डेटिंग साइट्स के इस उद्योग में हर वर्ष लगभग 2 अरब डालर का कारोबार होता है और आंकड़ों को सही माने तो लोगों को ये डेटिंग साइट्स बहुत उपयोगी भी लगती हैं। अब आप इस पर गौर करें: वर्ष 2010 में 25% विषमलैंगिक दंपति और 70% समलैंगिक दंपतियों की मुलाकात इन्हीं डेटिंग पोर्टल्स पर ही हुई थी। इन आकड़ों से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि इन डेटिंग साइट्स पर लोगों को किसी तरह की समस्या हो रही हो, शायद मैं ही इसका एकमात्र अपवाद थी।
भयभीत हो जाना
जैसा कि मैंने पहले भी अपने बारे में बताया है, मैं उस श्रेणी के लोगों में से हूँ जिन्हे अपनी पसंद के किसी व्यक्ति से पहली बार आरंभिक बात कर पाने में भी बेहद कठिनाई महसूस होती है। मुझे किसी से संपर्क कर बात करने से ज़्यादा, दूर से ही उस व्यक्ति को सराहते रहना कहीं अधिक सुरक्षित लगता है और इसीलिए मैं जल्दी से किसी से बात नहीं कर पाती। मेरे अनेक मित्रों नें मुझे यह समझाने में अपना बहुत सा बहुमूल्य समय गंवाया है कि किसी व्यक्ति से मिलने या उनके साथ डेट पर जाने का आग्रह करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, यह कोई बहुत टेढ़ी खीर नहीं है। लेकिन मेरे लिए तो वाकई यह एक बड़ी विकट समस्या होती है। किसी भी व्यक्ति से डेट पर जाने के लिए कहना, फिर चाहे यह ऑनलाइन कहना हो या फिर आमने-सामने, मुझे इसमें बहुत मुश्किल आती है।
इन सभी डेटिंग वेबसाइट्स पर लॉगइन करने पर मुझे पता चला कि बाहर नए लोगों से मिलने, उनसे डेट करने के इच्छुक पुरुष और महिलाओं की संख्या सैंकड़ों और हजारों में है। मुझे यह भी एहसास हो गया कि इन सैकड़ों लोगों से संपर्क कर पाना, उनमें से कुछ से मिलना, संबंध विकसित कर पाना और अंतत: किसी एक से विवाह कर लेना (अगर संपर्क करने का लक्ष्य विवाह करना ही हो) किसी के लिए भी एक बहुत कठिन काम हो सकता है। ऑनलाइन डेटिंग करते हुए अपने लक्ष्य को पा लेने मे सफल रहने के लिए बहुत ज़्यादा धैर्य और उससे भी कहीं ज़्यादा अच्छी किस्मत का होना बहुत ज़रूरी है।
खैर, मैंने अपने मन के इन सभी तरह के डर को दरकिनार करने और लोगों से मिलने की ठान ली। आखिरकार मैं एक बार डेट पर भी चली गई। निश्चित तौर पर यह मेरे लिए किसी तरह की विजय से कम नहीं था। फिर इसके बाद तो मुझे किसी के द्वारा ऑनलाइन अस्वीकार कर दिए जाने पर भी उतनी अधिक तकलीफ नहीं होती थी और मैंने इन सब बातों से निबटना सीख लिया। धीरे-धीरे निश्चित तौर पर मेरे अंदर इतना आत्मविश्वास जग गया कि अब मैं केवल कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं, बल्कि आमने सामने भी पसंद आए किसी व्यक्ति को डेट पर जाने के बारे में पूछ सकती थी। फिर एक साल खत्म होते होते मैंने अपने सभी ऑनलाइन प्रोफाइल मिटा दिए क्योंकि मैं जान चुकी थी कि यह ऑनलाइन डेटिंग मेरे बस की बात नहीं थी और अब मैंने खुल कर एक सक्रिय सामाजिक जीवन जीना शुरू कर दिया था।
फिर भी, हमारे इस वर्तमान समय की यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि यह निर्जीव इंटरनेट लोगों को साथ लाने का एक कुशल और सफल माध्यम बन चुका है। आज यह अध्ययन करने के लिए बड़ी संख्या में आँकड़े उपलब्ध हैं कि लोग आपस में किस तरह से मिलते हैं, कैसे वे रोमांटिक संबंध विकसित करते हैं, और कैसे किसी व्यक्ति की पसंद, उनका वंश, आय आदि किसी व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। इन आंकड़ों से यह भी मालूम चल सकता है कि क्या वाकई में हम जानते है कि हमारी अपेक्षाएँ क्या हैं। अंत में तो यह सब कुछ निजी अनुभव से ही मालूम चल सकता है, हमें खुद ही यह अनुभव कर देखना होगा कि इसका परिणाम क्या निकलता है। हमारा अनुभव कुछ भी रहे, ऑनलाइन डेटिंग एक तरह से हमें अपनी खुद की पसंद, अपनी प्राथमिकताओं को बेहतर रूप से जान पाने में मददगार हो सकती है। लगे रहिए, और ऑनलाइन डेटिंग करते रहिए!
लेखिका : दिव्या स्वामीनाथन
दिव्या स्वामीनाथन एक Computational Biophysicist हैं और इस समय कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, अर्विन में काम करती हैं। उन्होंने यह देखा है कि 10 वर्ष के अपने शैक्षणिक जीवन में उन्होंने आजतक किसी दूसरी महिला सहकर्मी के साथ काम नहीं किया है। एक प्रवासी और एक वैज्ञानिक के रूप में वे अपने अनुभवों को लिखने की इच्छुक हैं।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित।
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Cover Image: Indu Kumar