सम्पादकीय नोट: हमने इस समीक्षा का हिंदी में अनुवाद करने का फैसला किया क्योंकि हमने सोचा कि यह हिंदी पाठकों को फैन-फिक्शन और फैनडम कल्चर (जिससे आप में से बहुत से लोग पहले से ही परिचित होंगे) में एक दिलचस्प झलक दे सकता है। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि फैनगर्ल पुस्तक का हिंदी में अनुवाद नहीं किया गया है, लेकिन हम आशा करते हैं कि लेख में फैनडम के बारे में विभिन्न विचार और तर्क हमारे पाठकों को रोचक लगेंगे।
“वास्तव में एक *नर्ड बनने के लिए, उसने फैसला किया कि ज़रूरी है कि तुम हकीकत की बजाए सपनों की दुनिया में जियो”।
– रेनबो रौवेल, फैनगर्ल
जब युवाओं के लिए लेखिका रेनबो रौवेल का उपन्यास फैनगर्ल 2013 में प्रकाशित हुआ, तो यह बहुत जल्द ही इंटरनेट के माध्यम से फैनडम (प्रशंसक) समुदायों में बेहद लोकप्रिय होने लगा। शायद यह उस समय प्रकाशित होने वाला पहला ऐसा उपन्यास था जिसमें प्रशंसकों में प्रचलित लोकधारा और संस्कृति (फैनडम कल्चर) को इतनी गहराई से जानने की कोशिश की गयी थी – और जैसा कि उपन्यास के नाम से ही पता चलता है, इसमें एक वास्तविक फैनगर्ल के किरदार के माध्यम से अपनी बात कही गयी थी। यह किरदार न केवल एक खास तरह के साहित्य को पढ़ने में रुचि रखती है बल्कि खुद भी क्वीर फैन कथा-साहित्य (फैन-फिक्शन – प्रशंसकों द्वारा किरदारों के बारे में लिखी गयी काल्पनिक कहानियाँ) लिखती है। और उसके लेखन का परिणाम यह होता है कि दुनिया भर में असंख्य दूसरी फैनगर्ल्स उसकी इन रचनाओं को बेहद पसंद करती हैं – उन्हें लगता है कि फैनगर्ल्स के बारे में पहली बार किसी ने लिखा है और इससे उनके समुदाय को भी पहली बार पहचाना जाने लगा है।
अब, इस उपन्यास के प्रकाशित होने के लगभग 10 वर्षों बाद, जब फैनडम कल्चर मुख्यधारा में शामिल होने लगा है और इसे सामाजिक स्वीकृति भी मिल रही है, लोग इसके बारे में बात करने लगे हैं। अब तो मीडिया सामग्री तैयार करने वाले लेखक अक्सर इन प्रशंसकों के साथ सीधे बातचीत करना पसंद करते हैं और शिक्षा जगत में भी फैनडम कल्चर को समझने के लिए हो रहे अध्यननों में बद्धोतरी हुई है। 2010 वाले दशक के आरंभिक सालों तक फैनडम कल्चर का हिस्सा बनना केवल ‘नर्ड’ या ‘सनकी’ लोगों की पसंद समझा जाता था, लेकिन अब इंटरनेट का विस्तार होने के बाद और मीडिया के लगातार बड़े उद्योगों और निगमीकरण के रूप में सामने आने (खास तौर पर मारवेल, हैरी पॉटर, के-पॉप आदि के प्रसिद्ध होने पर) के साथ-साथ ही फैनडम कल्चर का हिस्सा होने को भी ‘कूल’ समझा जाने लगा है, और यह एक तरह की सांस्कृतिक धरोहर बनता जा रहा है। अब फैनगर्ल्स एक उपेक्षित वर्ग नहीं रह गयी हैं और न ही समाज में उनके प्रतिनिधित्व में किसी तरह की कोई कमी है – हालांकि अब यह अच्छा है या बुरा, यह एक बिलकुल ही अलग वाद-विवाद का विषय है।
कुछ भी हो, इस फैनडम कल्चर के बारे में लोगों की लगातार बदलती राय के चलते ही रेनबो रौवेल के उपन्यास की इस किरदार फैनगर्ल के बारे में भी इसके प्रशंसकों की राय में लगातार बदलाव आता रहा है। पहले, इस उपन्यास के प्रकाशन के तुरंत बाद ही लोगों नें इसको और इसकी किरदार फैनगर्ल को बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार कर लिया था – बड़ी संख्या में किशोरियां इस फैनगर्ल के किरदार की दीवानी हो रही थीं और उस फैनगर्ल को अपनी खुद की पहचान का रूप देते हुए अपने प्रतिबिंब की तरह देखने लगी थीं। इसका एक कारण यह भी था कि वे ऐसा कर अपने हाशिये पर होने और अजनबी बने रहने की दोहरी व्यथा से शायद छुटकारा पाने के साधन के रूप में इसे देखती थीं। इन लड़कियों का खुद को इस तरह से हाशिये पर और उपेक्षित महसूस करने का कारण केवल उनका जेंडर (या अक्सर उनकी गैर-विषमलैंगिक यौनिक पहचान और रुझान) ही नहीं बल्कि फैनडम कल्चर, जिससे वो जुड़ी रही थीं, उसका समाज में उपेक्षित और अलग-थलग रूप में देखा जाना भी था – लेकिन अब, हाल के कुछ वर्षों में, फैनडम कल्चर को स्वीकार्यता मिलने से ये सब परिस्थितियाँ बदल गयी हैं।
और शायद, ऐसा होने के पीछे एक कारण है।
फैनगर्ल की कहानी 18 वर्षीय कैथ एवेरी की है, जो साइमन स्नो नामक एक काल्पनिक पत्रिका (यह हैरी पॉटर कहानियों की तरह ही है) को पढ़ती है और उसकी ज़बरदस्त प्रशंसिका है। कैथ एवेरी इस पत्रिका के नायक और उसके तथाकथित ‘प्रतिद्वन्द्वी’ बाज़ पिच के बीच चल रही रोमांटिक समलिंगी स्पर्धा के बारे में फैन-फिक्शन भी लिखती है। कैथ जब विश्वविद्यालय की पढ़ाई शुरू करने के लिए घर से दूर जाती है तो उसे बहुत अकेलेपन का एहसास होने लगता है। वह खुद को अपने इस ऑनलाइन लेखन को जारी रख पाने में असमर्थ पाती है, और उसे हमेशा अपनी जुड़वां बहन रेन, जो की बहुत आकर्षक दिखती है, के मुक़ाबले कमतर होने का एहसास सताता रहता है। यह उपन्यास मूल रूप से कैथ के खुद को समझ पाने और अपने पैरों पर खड़े हो पाने की दास्तान है, और कहानी के इस सफर में कैथ के रोमांटिक सम्बन्धों में असफल रहने और फिर सफलता पाने का ज़िक्र है कि कैसे वह अपना खोया हुआ आत्म-विश्वास दोबारा पाने में सफल होती है। उपन्यास की कहानी मूलत: कैथ के इस फैनडम की दुनिया में जूझने की कहानी है, और इसी के माध्यम से कहानी में विभिन्न घटनाओं के तारों को जोड़ा गया है।
लेकिन फिर भी, कहानी में जो फैनडम के बारे में बताने की कोशिश हुई है और कैसे फैनडम की यह संस्कृति कैथ के जीवन को प्रभावित करती है, अब बिलकुल ही वास्तविकता से परे दिखाई देती है – और इसका कारण केवल इतना है कि यह बिलकुल कमज़ोर सामाजिक मान्यताओं और इन मान्यताओं को दर्शा रहे प्रभावहीन पात्रों के माध्यम से बताने का प्रयास दिखाई पड़ता है।
दुनिया भर में बहुत सी किशोरावस्था की लड़कियों के इस तरह गहराई से फैनडम समुदायों या मान्यताओं को समझ पाने की कोशिश अक्सर उनके द्वारा अपनी पहचान और यौनिकता को समझ पाने की कोशिश दिखाई पड़ती है। जब आप अपने आप को खुद पर थोपी जा रही पितृसत्तात्म्क सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा कर पाने में विफल पाते हैं, और खुद को उन ‘स्वीकार्य’ यौनिक रुझानों के अनुरूप बनाने की कोशिश कर रहे होते हैं, तो ऐसे में यह फैनडम संस्कृति आपके लिए एक तरह से पलायनवाद का माध्यम बन सकती है। इससे आपको न केवल दो लड़कों के एक दूसरे को किस (चुम्बन) करने के बारे में कोई कहानी लिख पाने का मौका मिल जाता है (जैसे कि कैथ करती है, जब वह साइमन और बाज़ के बारे में लिखती है), बल्कि आपको खुद अपने यौन रुझानों को समझ पाने, उनसे पार पाने और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक हर वो काम कर पाने की हिम्मत मिलती है जिससे कि आप अपनी खुद की यौनिकता को समझ कर और व्यक्त करते हुए, अपने आगे की राह तय करते हैं।
लेकिन फैनगर्ल में, लेखिका रेनबो रौवेल नें इस फैनडम और फैन-फिक्शन के माध्यम से मिलने वाली अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को बिलकुल ही अनुचित तरह से पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। साइमन स्नो पत्रिका के प्रति कैथ के लगाव को दरअसल कैथ के चरित्र में एक तरह की खामी की तरह न केवल दिखाया गया है बल्कि ऐसा आभास भी मिलता है कि साइमन स्नो के प्रति अपने लगाव के कारण ही कैथ जीवन में ‘वास्तविक संबंध’ नहीं बना पाती है। लेखिका साफ तौर पर यह कहना चाह रही हैं कि कैथ के बचपन से ही फैनडम कल्चर में ज़रूरत से ज़्यादा जुड़े रहने का परिणाम यह हुआ है कि अब वो सामाजिक रूप से खुद को कमज़ोर और असुरक्षित पाती है और यह भी कि जीवन में खुशी पाने और अपनी यौनिक अभिव्यक्ति के लिए फैनडम पर आश्रित रहने वाली कैथ जब इस बंधन से खुद को मुक्त करवा लेती है, तभी वह सही मायने में प्रेम संबंध बना पाने में सफल होती है और उसे अपनी पहचान का पुन: आभास भी होता है। यहाँ एक फैनगर्ल के रूप में कैथ की जो स्थिति दिखाई गयी है वो वास्तव में वर्ष 2000 से 2010 तक के बीच फैनडम के बारे में लोगों के विचारों के अनुरूप है, फर्क केवल इतना है कि कैथ के जीवन में उस तरह की यौनिक स्वतन्त्रता आरंभ होना नहीं दिखाया गया है जैसे कि वास्तविक फैनगर्ल्स के जीवन में अक्सर होता है; बल्कि यहाँ तो दिखाया गया है कि फैनगर्ल होने के कारण ही कैथ के जीवन में कुछ कमी रहती है और वह व्यक्तिगत रूप से पूरी तरह से स्वायत और आज़ाद नहीं हो पाती। इस तरह से कैथ के किरदार और उसके जीवन को दिखाया जाना वास्तव में उन अनगिनत फैनगर्ल्स के प्रति अन्याय ही कहा जाएगा जो एक फैन के रूप में अपनी पहचान को अपने वास्तविक सामाजिक और यौनिक जीवन व रुझानों पर कभी भी हावी नहीं होने देती। ऐसी असंख्य फैनगर्ल्स वास्तव में हैं, जो अब वयस्क हो चुकी हैं, विवाहित हैं और भरे पूरे संतोषजनक प्रेम संबंध निभा रही हैं। दरअसल, फैनडम उनके लिए एक ऐसा अनुभव रहा है जिसने उनके जीवन में वास्तविक सामाजिक और यौनिक अनुभवों को और अधिक जीवंत बनाया है और फैनडम के कारण उनके जीवन में किसी भी तरह की कोई नीरसता, कोई खालीपन नहीं आया है। वास्तविक जीवन में ‘प्रगति कर पाने’ के लिए यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है कि किसी लड़की को अपनी फैनगर्ल की पहचान छोड़नी पड़े।
फैनडम समुदायों या फैनडम की दुनिया में युवा लड़कियों के जुडने का एक दूसरा कारण यह भी है कि यहाँ उन्हें एक समुदाय का हिस्सा होने का एहसास और अनुभव होता है। फैनडम समुदाय में आप पूरी दुनिया से एक तरह की सोच रखने वाले लोगों को इंटरनेट के माध्यम से एक जगह पर इककट्ठा देख सकते हैं; यहाँ वे आपस में जुड़ कर अपनी यौनिक पहचान के कारण अपने हाशिये पर होने से जुड़े अनुभवों को साझा कर सकते हैं। वे उन काल्पनिक कथानकों और कथा चरित्रों के जीवन से सीख कर अपने जीवन में किसी तरह की राहत का अनुभव कर सकते हैं क्योंकि उनके खुद के जीवन में वे पितृसत्तात्म्क मान्यताओं के चलते दुनिया से खुद को अलग-थलग पाते हैं। सही मायने में देखें तो जिस फैनडम कल्चर को आज हम जानते हैं उसकी शुरुआत इंटरनेट के आने से बहुत पहले ही हो गयी थी, जब हमनें देखा था कि महिलाएं मिलकर ‘फैनज़ायीन्स’ पत्रिकाओं का प्रकाशन करने लगी थी। इन पत्रिकाओं में उस समय साफ तौर पर क्वीयर और यौन रूप से उत्तेजक सामग्री की भरमार होती थी – और उस समय यह सब कुछ हो पाना अपने आप में बहुत बड़ी क्रांतिकारी पहल थी। उन दिनों जब प्रमुख मीडिया में महिलाओं (क्वीर महिलाओं समेत) को अर्थपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता था, उस समय ये फैनज़ायीन्स पत्रिकाएँ महिलाओं के लिए अपने खुद के कथानक निर्धारित करने, अपने प्रशंसकों के समूह बनाने (जिनमे महिलाएं ही मुख्य नायिका हो सकती थीं), स्टार-ट्रेक सिरियल के कैप्टन किर्क और स्पौक को एक दूसरे के रोमांटिक यौन साथी दिखा पाने के सहायक माध्यम बन कर उभरे थे। फैनजायीन की लेखिकाओं और पाठकों का यह वर्ग फैनडम की बढ़ोतरी में बहुत सहायक सिद्ध हुआ क्योंकि अब फैनगर्ल्स को लगता था कि उनकी भी कोई पहचान है और इसी कारण फैनडम की प्रसिद्धि में भी वृद्धि हुई – आज भी एक समुदाय के रूप में फैनडम की पहचान ज्यों की त्यों बनी हुई है और विभिन्न सोश्ल मीडिया प्लैटफ़ार्मस (जैसे फेसबुक, ट्विटर आदि) पर इन प्रशंसकों की आपसी बातचीत से यह साफ झलकता है।
लेकिन फैनगर्ल किताब में प्रशंसकों के समुदाय, उनके वर्ग को पूरी तरह से अनदेखा किया गया है। समुदाय की बजाए इस उपन्यास में कैथ पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित किया है और दर्शाया गया है कि फैन साहित्य लिखने में कैथ कितनी ज़्यादा पारंगत और दक्ष है। खुद कैथ के किरदार को भी सही मायने में एक सेलेब्रिटी (लोकप्रिय व्यक्ति) के रूप में दिखाया गया है जिसकी लिखी फैन-फिक्शन को बहुत से पाठक बड़े चाव से पढ़ते हैं (अब इसे भी ‘फैनडम’ कहा जा सकता है)। ऐसा लगता है मानो एक फैन साहित्य लिखने वाली लेखिका के रूप में कैथ का व्यक्तित्व बाकी हर बात पर भारी पड़ता है, जो कि फैन समुदायों में प्रत्येक तरह के फैन को बराबर का दर्जा दिये जाने के सिद्धान्त से बिलकुल अलग है। फैनगर्ल किताब में दर्शाया गया यह दृष्टिकोण फैनडम और उसमें विविध यौनिकताओं को पूरी छूट मिलने के सिद्धान्त की विपरीत दिशा में दिखाई पड़ता है।
अब अगर देखें तो समझ में आता है कि क्यों 2013 में यह उपन्यास फैनगर्ल इतना अधिक प्रसिद्ध हो गया था। इसका एकमात्र कारण यही था कि उस समय काल्पनिक फैनगर्ल्स के बहुत अधिक किरदार मौजूद नहीं थे, तो वास्तविक जीवन में फैनगर्ल्स के पास मीडिया में अपने जीवन को देख पाने का और कोई ज़रिया भी नहीं था। लेकिन हाल के समय में फैनडम संस्कृति में हुई वृद्धि और लोगों को इसकी जानकारी मिलने के साथ आने वाले समय में हमें अनेक ऐसी किताबें देखने को मिल सकती हैं जिसमें लोग मीडिया की किसी एक विधा के ज़बरदस्त प्रशंसक बने रहते हैं। शायद अब समय आ गया है कि किसी फैनगर्ल की प्रकाशित होने वाली कहानी में उस फैनगर्ल की पहचान में ही इन वास्तविक प्रशंसकों को अपनी पहचान नज़र आए और जिस पर वे गर्व कर सकें। यह एक ऐसी पहचान हो जिसे ‘जीवन में एक बेहतर इंसान’ बनने के लिए छोडने की ज़रूरत उन्हें बिलकुल भी न पड़े।
*नर्ड अंग्रेज़ी में उन लोगों को कहा जाता है जिनके शौक़ (जैसे और खासकर, किताबें पढ़ना) उबाऊ माने जाते है।
लेखिका: रोहिनी बैनर्जी
रोहिनी बैनेर्जी लोकप्रिय संस्कृति (पॉप कल्चर) के प्रति आकर्षित रहती हैं। इन्हें गैर सरकारी संगठनों में काम करने और कई नारीवादी प्रकाशनों के लिए लिखते रहने का अनुभव है। इस समय वे मैकक्वैरी विश्वविद्यालय (Macquarie University) से मीडिया व संचार के विषय में स्नातकोत्तर उपाधि के लिए पढ़ रही हैं और समय मिलने पर सब-टाइटल लिखने और कॉपी राइटिंग का काम भी करती हैं।
सोमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित
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कवर इमेज: उपन्यास का पुस्तक आवरण