मेरी माँ कई बार मुझे यह कहकर उलाहना देती है कि ‘तुम मुझसे, अपने घर से, बहुत दूर हो गयी हो’। और वो ऐसा तब कहती हैं जब उन्हें मेरी कोई बात या मेरा कोई व्यवहार अनुचित लगता है – यह मेरा अकेले सफर पर जाना, मांग न भरना, भगवान के आगे हाथ जोड़ना भूल जाना या फिर मद्य पीना हो सकता है। हाल ही में, उन्होने मुझसे कहा था कि वे मुझे उसी प्रसन्नचित्त और ‘मासूम’ रूप में देखना चाहती हैं जैसा कि मैं कॉलेज की पढ़ाई के लिए जाने से पहले थी।
समय के साथ–साथ अब मैं जान चुकी हूँ कि उनके इस उलाहने में ‘घर’ का मतलब सिर्फ वो जगह नहीं है जहां मेरे माता–पिता रहते हैं, बल्कि इसका मतलब उन सभी मान्यताओं और व्यवहारों से है जिनकी अक्सर माता–पिता अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं। और ये व्यवहार, मान्यताएँ हमारी जेंडर से जुड़ी भूमिकाओं, धर्म, यौन सम्भन्द, विवाह, दोस्ती से जुड़े ‘सही आचरण’ को लेकर होती हैं।
और यही वजह है कि मेरे लिए ‘घर’ शब्द का मतलब अब भी मेरे माता–पिता का घर ही है, भले ही मैं पिछले 10 साल से ज़्यादा से घर से दूर रह रही हूँ। मेरे लिए मेरा घर कई बार अपने दोस्तों के साथ रहा है और अभी हाल ही में मैंने विवाह के बाद अपना खुद का घर बसा लिया है। लेकिन इस सबके बाद भी क्या हम कभी भी घर की इस मर्यादा, इन सीमाओं से दूर हो सकते हैं?
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चेन्नई की एक सड़क के किनारे फुटपाथ पर बैठ ताज़े नारियल पानी का आनंद लेती हुई दो लड़कियां आपस में बात कर रही हैं। “अच्छा इस लड़के के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है”, एक सहेली दूसरी से पूछती है। “हाँ, अच्छा लग रहा है”, दूसरी सहेली उस लड़के को नज़रों से आँकते हुए जवाब देती है। अब पहली लड़की इसके कान में धीरे से कुछ कहती है, जिस पर दूसरी लड़की जवाब देती है, “नहीं, बिलकुल नहीं! मैं शादी से पहले यह सब कुछ बिलकुल नहीं करने वाली। अगर कहीं गर्भ ठहर गया या कुछ और उल्टा–सीधा हो गया तो?”
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अरुवि (‘पानी का झरना या जलप्रपात’) नाम से एक तमिल फिल्म है जो दिसम्बर 2017 में रिलीज़ हुई और दर्शकों और समीक्षकों, दोनों नें इसे बहुत ज़्यादा सराहा। इस फिल्म की नायिका अपने घर और खासकर उसके पिता से लगाव के कारण ही अपनी यौनिकता को न केवल समझती है बल्कि यौनिकता, पूंजीवाद और धर्म जैसे मुद्दों पर सवाल भी खड़े करती है।
फिल्म की नायिका अरुवि एक 90 के दशक की एक साधारण मध्यमवर्गीय लड़की है। फिल्म में दो गाने जो लगभग एक के बाद एक आते हैं, उनमे निर्देशक ने तकरीबन हर वो चीज़ या घटना दिखा दी है, जिसे 90 के दशक में चेन्नई में रहने वाले मेरे और मेरे दोस्तों जैसे बच्चे बहुत पसंद करते थे, जैसे शक्तिमान, टीवी का एंटेना, विस्पर के वो मोटे सैनिटरि पैड, सलवार–कमीज़ और दुपट्टे वाली स्कूल की यूनिफ़ार्म, लड़कियों के बालों में रिबन डालकर बनाई गयी चोटियाँ, काजल का डब्बा, या फिर भड़कीले कपड़े पहने हुए कोई जन्मदिन की पार्टी मनाते हुए बच्चे।
अरुवि एक हंसमुख और खुशदिल लड़की है; उसे खिलखिलाकर हँसना अच्छा लगता है, दिखावा करना, अच्छे कपड़े पहनना पसंद है और वो दूसरों के साथ मज़ाक करती रहती है। अरुवि अपने पिता से बहुत स्नेह करती है – उसके एक बार कहने पर उसके पिता सिगरेट पीना बंद कर देते हैं (हाँ भले ही हाथ में पकड़ी हुई सिगरेट का आखिरी कश खींचने के बाद), अरुवि के पूछने पर उसके पिता उसे पार्टी पर जाने की भी इजाज़त दे देते हैं (वे उस पर जान छिड़कते हैं और उसका ध्यान रखते हैं), जबकि उसकी माँ उसके पार्टी पर जाने के सख्त खिलाफ है। वही अरुवि भी एक आज्ञाकारी बेटी है – विद्यालय में पढ़ाई करते हुए उसके उसके मन में इस बारे में भव्य विचार हैं कि कि कोई लड़का उसे कैसे ‘प्रोपोज़’ करेगा या उसके प्रति अपना प्रेम प्रदर्शन करेगा (वो सोचती है कि कोई उसे एक कार्ड देगा जिस पर सिर्फ यह लिखा होगा कि, “लव यू, अरुवि” या “मुझे तुमसे प्रेम है अरुवि”), लेकिन यही अरुवि एक लड़के को तब यह कहकर धमका देती है कि “पापा से शिकायत कर दूँगी”, जब वो उससे प्रेम का इज़हार करता है। बड़ी होने के साथ–साथ अरुवि दुनिया के कुछ अनुभव करना भी शुरू तो करती है लेकिन इसके लिए उसने कुछ सीमाएं निर्धारित कर रखी हैं – जैसे कि वो कभी शराब नहीं पियेगी, या शादी से पहले सेक्स नहीं करेगी, और इस सबकी वजह यही है कि वो अपने पिता का दिल नहीं दुखाना चाहती है।
देखा जाये तो अरुवि एक बहुत ही ‘मासूम’ और सरल–सी नवयुवती है जिसे उसके छोटे से परिवार में सभी पसंद करते हैं। एक बड़े ही साधारण लेकिन भावनापूर्ण दृश्य में अरुवि अपने पिता से बात कर रही है। उसका परिवार अभी हाल ही में एक छोटे से कस्बे से घर बदल कर चेन्नई आया है और उस कस्बे में उनका घर दूर तक फैले खेतों के बीच बना था, लेकिन अब वे एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं। अरुवि अपने पिता से कहती है कि उसे अपना यह नया घर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। उसके पिता मुस्कुराकर उसे गले लगा लेते हैं… शायद वे कहना चाह रहे हैं कि भले ही उन्होने घर बदल लिया हो लेकिन अरुवि के लिए तो वे, यानि उसका वास्तविक घर, तो बिलकुल अपनी जगह ही है। फिल्म के अगले कुछ दृश्यों में दिखाया गया है कि अरुवि अब एक किशोरी बन चुकी है और शहर में रहते हुए अपने जीवन का आनंद लेने लगी है।
प्रेम से भरे इस घर रूपी नीड़ में एक दिन अचानक तब खलबली मच जाती है जब उसके परिवार के लोगों को किसी बात पर ऐसा लगता है कि हो न हो अरुवि नें कोई ‘जघन्य अपराध’ कर दिया है और उसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है। फिल्म में यह साफ नहीं दिखाया गया है कि आखिर अरुवि ने क्या गलती की है – या फिर क्या उसका गर्भ ठहर गया है? अगर ऐसा है तो यह कैसे हुआ और कब? अब अरुवि के सामने इस संकट से निबटने के लिए क्या विकल्प हैं? ऐसा उससे क्या हो गया है कि उसे इतना प्यार करने वाला यह परिवार अब उसका साथ नहीं दे रहा – या फिर कम से कम उसके पिता, जो उसके साथ चट्टान की तरह खड़े रहते थे, अब उसका साथ क्यों नहीं दे रहे हैं?
घर से दूर रहने के इन असंख्य दिनों, महीनों और वर्षों में अरुवि आसरा पाने और अपराधबोध से मुक्त होने के लिए अनेक लोगों के पास जाती है – जैसे उसकी एक सहेली है जिसके पिता अरुवि को अपने घर में रहने की अनुमति दे देते हैं; या फिर एमिली, एक ट्रांसवुमन जिसके संपर्क में वो आती है; कपड़े सिलाई की दुकान पर उसके मालिक; एक धर्म गुरु जो उसे समस्या से छुटकारा दिलाने का भरोसा दिलाता है। एमिली अरुवि को उसके जीवन की नयी सच्चाई को मान लेने में मदद करती है। ये दोनों ही अपनी–अपनी जाति से बाहर किए गए लोग हैं – अरुवि जिसे घर से बाहर निकाल दिया गया है और एमिली, जो शायद अपनी जेंडर पहचान के कारण समाज से दूर उपेक्षित जीवन जी रही है। अब ये दोनों जाति बहिष्कृत महिलाएं अपने लिए एक नया घर बनाती हैं जो उनके उस ‘घर’ से दूर है जहां से उन्हें बाहर कर दिया गया है। दोनों साथ सब्ज़ियां खरीदने जाती हैं, मिलकर खाना बनाती हैं, चेन्नई की सड़कों और समुद्र किनारे रेत पर हाथ में हाथ डाले घूमती हैं, और आर्थिक या मानसिक संकट और तकलीफ के समय एक दूसरे का सहारा बनती हैं। एमिली के साथ रहते हुए, कुछ समय बाद, अपने घर से दूर होने का दुख अरुवि के लिए कम हो जाता है और वो हालात से समझौता करना सीख लेती है – अब वो सिगरेट और शराब पीने लगी है, कभी–कभार गाँजा भी फूँक लेती है और बड़ी मेहनत से कमाए हुए पैसे खर्च कर एमिली के साथ किसी पानी के झरने के पास पिकनिक के लिए जाती है। अरुवि अब जीवन जीना सीख चुकी है और पिछला सब कुछ भूल गयी है। वो उन सभी बन्दिशों को भी पार चुकी हैं जो उसके घर में उस पर लगाई जाती रही थीं। एमिली और अरुवि की यह दोस्ती, जो शायद अरुवि के अपने घर में न तो संभव होती और न ही पसंद की जाती, शायद मेरे लिए आजतक किसी फिल्म में देखी गयी दोस्ती की सबसे अच्छी मिसाल है। एमिली की जेंडर पहचान इन दोनों की दोस्ती में बिलकुल भी आड़े नहीं आती; अरुवि को एमिली अच्छी लगती है, उसे फर्क नहीं पड़ता कि एमिली की जेंडर पहचान क्या है – उसके लिए तो एमिली एक भरोसेमंद दोस्त है जो अच्छे–बुरे समय में उसके साथ खड़ी रही है।
अरुवि के जीवन की परिस्थितियों से जुड़ी सच्चाई तब सामने आती है जब अरुवि बताती है कि वो एचआईवी पॉज़िटिव है – उसका यही ‘अपराध’ उसके परिवार को इतना जघन्य लगा था कि उन्होने उसे घर से बाहर कर दिया था और अरुवि अपने ‘घर’ से हमेशा के लिए दूर हो गयी थी। अब फिल्म में यह साफ तौर पर बताया नहीं गया है कि अरुवि को यह संक्रमण कैसे लगा है, लेकिन अब शायद अरुवि को भी इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है; एचआईवी का यह संक्रमण तो केवल अरुवि के जीवन की अनेक समस्याओं में से एक समस्या है। अरुवि नें तीन पुरुषों पर भरोसा किया और तीनों नें ही उसका शोषण किया था। अरुवि बड़ी मुश्किल से अपने पिता के ऑपरेशन के लिए रुपयों की व्यवस्था करती है लेकिन उसका भाई इन पैसों को लेने से मना कर देता है – बाद में दिखाया गया है कि उसने रुपयों की व्यवस्था करने के लिए अपने मालिक के साथ सोना स्वीकार किया था। ऐसा लगता है कि अब अपने परिवार के दायरे के बहार एक महिला किसी भी तरह से ‘भोली’ या ‘मासूम’ नहीं रह जाती और उसके साथ जो कुछ भी बुरा–भला हो सकता है या होता है वो कही न कही उसके लायक है, फिर चाहे वो किसी से धोखा मिलना हो या फिर बलात्कार होना। आखिरकार, घर छोड़ने वाली महिला ‘भटक गयी’ है और किसी भी तरह के शोषण को न्योता दे सकती है। सद्गुणों की ज़रूरत से भरे इस समाज में अब वो अपने ‘घर’ वापस भी नहीं जा सकती है; अपने पिता के ऑपरेशन के लिए जब अरुवि अपने भाई को पैसे देने की कोशिश करती है, तब भी वह उससे यही कहता है, “क्या पैसे देकर तुम घर वापिस आने की कोशिश कर रही हो? इसकी ज़रूरत नहीं है, अब हमनें तुम्हारे बिना भी जीना सीख लिया है और तुम भुला दी गयी हो”।
एक के बाद एक चुनौती का सामना करते हुए अरुवि हार नहीं मानती और न ही लोगों से दया की उम्मीद करती है। वह समाज को उसी के तरीके से जवाब देना चाहती है। अरुवि एक ऐसे टेलीविजन शो में पहुँचती है जहां शो के सेट पर दो परस्पर विरोधी पक्षों के लोगों को एक साथ बुलाकर न्याय दिलाने की कोशिश की जाती है। इस टीवी शो की प्रस्तुतकर्ता एक तमिल ब्राह्मण महिला है जो नैतिकता का दम भर्ती है और पर्दे पर लोगों के साथ हमदर्दी से पेश आने वाली यही महिला कैमरा बंद होते ही बिलकुल रंग बदल सकती है। अरुवि इस शो में उन तीनों पुरुषों से सवाल करती हैं जिन्होने उसके साथ बलात्कार किया था जिसके बाद अरुवि निगमित दुनिया में एक दूसरे को पीछे छोडने की दौड़, खराब तरह से बनायी गयी फिल्मों, अरुचिकर विज्ञापनों, अस्पतालों का व्यवसायीकरण, धर्मगुरुओं, उपभोकतावाद, रीयलिटी शो, आदि सब के विरोध में अपने मन दाबी भड़ास खुल कर निकालती है।
शायद फिल्म का निर्देशक भी यही संदेश देना चाहता है कि इतना शोर–शराबा, गुस्सा और क्षोभ दिखाने के बाद भी अरुवि अब भी ‘मासूम और भोली’ है। दर्शकों को यह नहीं पता चल पाता कि उसे एचआईवी संक्रमण कैसे हुआ । फिल्म के अंत में, और शायद अरुवि के जीवन का अंत नज़दीक होने पर, अरुवि को डरा–सहमा दिखाया गया है; वो अपने पिता को अपने पास चाहती है। उसने उन सभी पुरुषों को माफ कर दिया है जिन्होने उसका शोषण किया (मुझे तो ऐसा लगा कि उसने बहुत आसानी से इन आदमियों को माफ कर दिया – महिलाओं से कितनी उम्मीद की जाती है कि वे इतनी कोमल हृदय हों? या फिर शायद अरुवि है ही ऐसी?) अंत में वो तो केवल घर वापसी की उम्मीद लगाए हुए है। फिल्म के आखिरी दृश्य में दिखाया गया है कि अरुवि के परिवार के लोग और मित्र उससे मिलने के लिए दूर पहाड़ों में आते हैं जहां हर किसी से बचने के लिए अरुवि जा छुपी है। अपने पिता को अपने पास देख कर उसका धैर्य छूट जाता है, और वे पहले व्यक्ति होते हैं जिन्हे मरणासन्न कमज़ोर अरुवि गले से लगाती है। उसे एक आदमी एक कार्ड थमाता है जिस पर केवल यह लिखा होता है “लव यू, अरुवि”, बिलकुल वैसा ही जैसा उसे हमेशा चाहिए था। फिल्म खत्म होती है तो अरुवि को एक बड़ी सी मुस्कान लिए हँसता हुआ दिखाया गया है। आखिरकार अरुवि घर पहुँच ही जाती है।
दर्शक यह अनुमान ही लगाते रह जाते हैं कि अरुवि इस प्रतीक रूप से घर लौटने का क्या अर्थ निकाल रही होगी – एक ऐसा घर जहां एक टीवी शो पर उसके असंख्य नये दोस्त बने हैं, जहां उसका शोषण करने वाले भी अब उसके साथ हैं। क्या उसके परिवार के लोग केवल इसीलिए उससे मिलने पहुँचते हैं क्योंकि वो बार–बार यही दोहराती है कि उसने “कुछ भी गलत नहीं” किया था, वो तो केवल हालात और परिस्थितियों की शिकार एक पीड़िता थी? तब क्या हुआ होता अगर अरुवि में यह एचआईवी संक्रमण किसी पुरुष के साथ सहमति से असुरक्षित यौन सम्बन्ध के कारण या फिर नशे के इंजेक्शन लेने के लिए सुई साझा करने पर हुआ होता? अपने को पवित्र और अपने ‘भोलेपन’ को साबित करते हुए क्या अरुवि ने अपने उसी घर को फिर से नहीं अपना लिया जहां से उसे बाहर कर दिया गया था? क्या ऐसे घर का फिर से मिल जाना सही मायने में उसके साथ न्याय है? समाज में जेंडर, जेंडर से जुड़ी भूमिकाओं और उन सामाजिक मान्यताओं को जानने और समझने के लिहाज़ से अरुवि एक बेहतरीन फिल्म है जिन्हें कभी भी इस तरह की बारीकियों से दिखाया नहीं जाता, खास कर एक नायिका प्रधान फिल्म में तो कभी भी नहीं। फिर भी, मुझे अब भी कभी–कभी ऐसा लगता है कि क्या अरुवि तब भी एक मासूम, भोली–सी लड़की होती अगर वो शुरू से ही अपने माता–पिता के साथ रहते हुए भी सिगरेट या शराब पीती होती, या फिर शादी से पहले किसी के साथ सह संवेदी यौनिक सम्बन्ध बना लेती।
लेखिका : वाणी विश्वनाथन
वाणी विश्वनाथन को कहानियाँ प्रस्तुत करना बहुत पसंद है; वे एक नारीवादी हैं जिन्होने अपने जीवन के इन दोनों पहलुओं को साथ लाते हुए एक सफल आजीविका बनायी है। वे एक विकासवादी संवाद विशेषज्ञा हैं जिन्हे कहानियों, निगमित जगत और गैर सरकारी संगठनों के कार्यक्रमों व अभियानों के प्रबंधन का खासा अनुभव है। वाणी तारशी (TARSHI) में कार्यरत हैं और साथ ही एक ऑनलाइन साहित्य पत्रिका ‘स्पार्क’ का संचालन भी करती हैं।
सोमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित
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