संपादकीय टिप्पणी: यह लेख पहली बार अंग्रेजी में सितम्बर, 2014 में लिखा और प्रकाशित किया गया था।
“…2006 में, नाज़ फाउंडेशन ने यंग पीपल्स इनिशिएटिव (YPI) की शुरुआत की, जिसे पहले द गोल प्रोग्राम के रूप में जाना जाता था। युवा किशोरियों को महत्वपूर्ण जीवन कौशल प्रदान करने के लिए इस कार्यक्रम में नेटबॉल, एक नो-कॉन्टैक्ट गेम, का उपयोग किया गया है। 16 से अधिक वर्षों के लिए, इस कार्यक्रम का राष्ट्रीय पदचिह्न रहा है। लड़कियों और युवा महिलाओं को सहकर्मी नेताओं, सामुदायिक खेल प्रशिक्षकों और नेटबॉल क्लब के नेताओं के रूप में काम करने के अवसर प्रदान करके, कार्यक्रम महिला नेतृत्व को बढ़ावा देता है। COVID-19 के कारण, खेल तत्व को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था। नाज़ निकट भविष्य में खेल को विकास के एक उपकरण के रूप में उपयोग करने के लिए तत्पर हैं। नाज़ ने तब से अपना ध्यान आठ कदम पर केंद्रित कर लिया है, जो YPI के पूर्व छात्रों के लिए एक आर्थिक सशक्तिकरण पहल है। नाज़ के आठ कदम कार्यक्रम का उद्देश्य विशेष आजीविका कार्यक्रम के माध्यम से दिल्ली में वंचित महिलाओं का प्रोत्साहन करना है जो महिलाओं के सॉफ्ट और हार्ड कौशल में सुधार करता है और उन्हें इंटर्नशिप और नौकरी के अवसरों के लिए प्रतिष्ठित नियोक्ताओं से जोड़ता है। कार्यक्रम को लगभग 200 युवा महिलाओं द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। रसद और वित्तीय सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले नाज़ के वर्तमान कार्यक्रम पूरे होने वाले हैं, और महिलाएं नौकरी के लिए इंटरव्यू की तैयारी करने लगी हैं। नाज़ आज तक आठ कदम कार्यक्रम के प्रभाव का विश्लेषण कर रहा है और जल्द ही परिणामों की रिपोर्ट करेगा। …”
नंगे पैर, शुष्क भूरे बाल, जर्जर कपड़े – एक लड़की जो 12 साल से ज़्यादा उम्र की नहीं है दूसरी लड़कियों को नेटबॉल खेलते देखती है। यह एक रोज़ की बात है। सारा गुट एक साथ खेलता हुआ, एक मौन दर्शक अकेला। एक दिन, तक़रीबन एक महीने बाद, वह गुपचुप लड़की मेरे पास आती है और पूछती है कि क्या वह भी खेल सकती है। मैंने हाँ कहा और बताया कि यह प्रोग्राम, नाज़ फाउंडेशन का द गोल प्रोग्राम, समुदाय की किसी भी लड़की के लिए है जो 12 साल से ज़्यादा उम्र की है। इसी तरह सीमा में आली विहार बारात घर के मैदान पर नेटबॉल खिलाड़ियों में शामिल होने का अपने अंदर निर्णय लेने की हिम्मत पैदा हुई जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी।
गोल प्रोग्राम को शुरू करने से पहले, अपने परिवार के साथ नई दिल्ली प्रवास के बाद स्कूल में दाख़िले के लिए सीमा को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था। अंततः उसे पास के एक म्युनिसिपल स्कूल में दाख़िला मिल गया था।
इस प्रोग्राम के ज़रिए उसने दो साल तक सर्वोदय कन्या विद्यालय में आंचलिक स्तर पर नेटबॉल खेली। वो आली नेटबॉल टीम की कप्तान भी बनी। सीमा की कहानी उन लड़कियों के लिए विशेष है जिन्होंने 2006 में शुरू हुए नाज़ फ़ाउंडेशन के नेटबॉल ऑस्ट्रेलिया के साथ दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में चलाये जा रहे गोल प्रोग्राम में दाख़िला लिया। यह प्रोग्राम खेल-कूद, विशेषतः नेटबॉल, का उपयोग करते हुए सामाजिक-आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक युवा लड़कियों को स्वयं की छवि, सामाजिक समावेशन, और व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास के मुद्दों पर जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करता है।
WHO के अनुसार HIV से तक़रीबन 360 लाख (36 मिलियन) लोग मारे जा चुके हैं। 2012 में विश्व के 16 लाख (1.6 मिलियन) के क़रीब लोग AIDS से जुड़ी बीमारियों की वजह से मारे गए। 2010-11 की अपनी रिपोर्ट में NACO (National AIDS Control Organisation) आंकड़ों के अनुसार भारत में 2008-2009 में क़रीब 23.9 लाख (2.39 मिलियन) लोग HIV/AIDS के साथ रह रहे थे। जब भारत ने 1986 में HIV का पहला केस देखा तो कुछ लोगों ने सोचा कि यह एक संकट है और आने वाले सालों के लिए गहन चिंता का विषय है।
HIV और AIDS के केसों की संख्या बढ़ने के मुख्या कारन जानकारी की कमी और असावधानी हो सकते हैं। बहुत सारे लोग कभी भी HIV का टेस्ट नहीं करवाते हैं। वे जो HIV पॉज़िटिव होते हैं उन्हें इसके बारे में बात करने से बहुत डर और घबराहट होती है। इस कारण उनके यौन साथी वायरस के संचरण को लेकर असुरक्षित हो जाते हैं।
नाज़ फाउंडेशन गोल प्रोग्राम के ज़रिए 12 से 19 वर्ष की लड़कियों के लिए संचार और परिवर्तन की योजना का इस्तेमाल करता है। समकक्ष लोगों के साथ समूह में होना, उस प्रभाव को बाँटना और उसी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिवेश से उभरना एक महत्वपूर्ण उत्प्रेरक तत्व बन जाता है जो लड़कियों को इस कार्यक्रम के द्वारा उन मुद्दों और प्रश्नों का सुरक्षित रूप से अन्वेषण करने में सक्षम बनाता है जो अन्यथा कलंक और चुप्पी के दायरे में खो जाते हैं। अधिकतर लड़कियों के लिए गोल प्रोग्राम वह पहला साधन बनता है जहाँ वे अपने जीवन, घरों में और आसपास हो रहे अपने जेंडर की भूमिका, भविष्य के बारे में सवाल, स्वाधीनता और उसकी चुनौती को समझ सकें।
हमने नेटबॉल का इस्तेमाल एक टीम स्पोर्ट की तरह किया। इसमें न्यूनतम संसाधन लगते हैं, यह सस्ता है, और टीम के साथियों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने में मदद करता है जिससे पियर सपोर्ट में मार्गदर्शन मिलता है। गोल प्रोग्राम से लगभग 10,000 लड़कियों को फ़ायदा हुआ है।
यह प्रोग्राम अधिकार आधारित दृष्टिकोण रखता है और सम्पूर्ण विकास को लक्ष्य बनाते हुए इसके चार मुख्य क्षेत्र हैं। प्रतिभागियों को अधिकार के मूल सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है और ये सिखाया जाता है कि यदि वे किसी बात को लेकर असहज हैं या उन पर कोई नियम लागू किया गया है तो वे ‘ना’ कह सकती हैं। इस प्रोग्राम में स्वास्थ्य और स्वच्छता पर पाठ्यक्रम है। प्रतिभागियों को विभिन्न वातावरण और सामाजिक मुद्दों की जानकारी मिलती है और वे उनसे सीखते हैं। इस कोर्स का फ़ाइनेंशियल इक्विटी सेगमेंट इस का आख़िरी हिस्सा है और लड़कियों को वित्तीय स्वतंत्रता एवं बजट बनाने की जानकारी देता है।
गोल प्रोग्राम में महिला कोच होती हैं जो लड़कियों को सुरक्षित महसूस करने में, उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में, और उनको प्रेरित करने में मदद करती हैं। प्रतिभागी अपने कोच को एक रोल मॉडल की तरह देखते हैं और कई लड़कियाँ कोच बनने के लिए आकांक्षा करती हैं।
जो 18 वर्ष और उससे ऊपर की लड़कियाँ हैं उन्हें फाउंडेशन में कोच और ट्रेनर बनने का विकल्प मिलता है। वे हर सप्ताह दो घंटे के लिए आकर काम करती हैं और उन्हें बदले में स्टाइपेंड भी मिलता है। आजकल 37 ऐसी युवा लड़कियाँ हैं जो कम्युनिटी स्पोर्ट्स कोच के रूप में इंटर्न कर रही हैं।
गोल प्रोग्राम को चलने की सबसे बड़ी चुनौती लड़कियों के परिवारों को तैयार करना है। ज़्यादातर परिवार आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर बैकग्राउंड से हैं और जिस सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में वे अपनी भूमिकाओं औरआकांक्षाओं को परिभाषितकरते हैं वह जेंडर असमानता और रूढ़िवादिता से चिन्हित है। खेलकूद को आम तौर पर ज़रूरी नहीं समझा जाता और जहाँ परिवार इसे लड़कों के लिए सही और “प्राकृतिक” मानते हैं, उन्हें लगता है कि अगर लड़कियाँ कोई भी स्पोर्ट खेलेंगी तो वे अपनी पढ़ाई और घर के कामकाज के साथ समझौता करेंगी। अतः प्रोग्राम के कार्यान्वयन के लिए प्रोग्राम टीमों को रणनीतिक रूप से समुदाय और परिवार को ऐसी प्रक्रिया में शामिल करना होगा जिसका उद्देश्य दृष्टिकोणों के साथ अपेक्षाओं को बदलना होगा।
जिन लड़कियों ने गोल प्रोग्राम के लिए एनरोल किया था उनपर इसका एक साफ़ प्रभाव रहा है। उनकी बॉडी लैंग्वेज में सुधार हुआ है और वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से आश्वस्त और सेहतमंद हुई हैं। नज़रिये में बदलाव आये हैं। शुरू में, हमारे सेशन में बहुत सारी लड़कियों ने स्कूल छोड़ा हुआ था। अंततः हमारे प्रोग्राम में भाग लेने वाली कुछ लड़कियों ने स्कूल में दोबारा दाखिला लिया। जिन समुदायों में नाज़ की पहुँच होती है, वहाँ लड़कियों की स्कूल ख़त्म होने के बाद ही शादी करा दी जाती थी। अब ज़्यादातर खिलाड़ी अपने परिवारों को जॉब करने या आगे पढ़ाई करने के लिए मनाने लगे हैं। गोल प्रोग्राम स्टैण्डर्ड चार्टेड कम्यूनिटी इन्वेस्टमेंट का हिस्सा है, और यह वित्तीय साक्षरता को बहुत महत्त्व देता है। गोल प्रोग्राम से पहले, बहुत सारी लड़कियाँ बैंक नहीं गई थीं, न कोई ATM। गोल प्रोग्राम में भाग लेने के बाद वो आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने और अपना ख़ुद का बैंक अकाउंट होने की आवश्यकता समझती हैं।
सबसे अच्छा परिवर्तन, यौन स्वास्थ का मुद्दा जो निषिद्ध करता था वो अब टीम मीटिंग में और प्रशिक्षण सेशन के दौरान अक्सर खुली चर्चा का विषय होता है।
लक्ष्मी के अनुसार जो प्रोग्राम में एक कम्युनिटी स्पोर्ट्स कोच हैं, टीम स्पोर्ट ने उन्हें बदल दिया है। पहले वे इसको आनंद के लिए खेलती थीं। टीम का भाग होने पर उनके आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को मज़बूत किया। लक्ष्मी का हिफ़ाज़ती परिवार शुरू में उनके खेलने के ख़िलाफ़ था पर जब उनकी टीम टूर्नामेंट में भाग लेने और जीतने लगी तो वे मान गए। एक कोच की तरह लक्ष्मी अपने साथियों के साथ आत्म-सम्मान, शरीर और यौनिकता से जुड़े कई मुद्दों पर बात करती हैं। शुरू में लड़कियाँ माहवारी और सुरक्षित यौन सम्बन्ध (सेफ़ सेक्स) के बारे में सुन कर शर्मा जाती हैं। फिर जब वो देखती हैं की लक्ष्मी कितनी सहजता से इन विषयों पर बात करती हैं, वे संकोच करना बंद कर देती हैं और खुल कर इस बारे में बात कर पाती हैं। लक्ष्मी को 2014 में ऐम्सटर्डम में आयोजित एक नेतृत्व सम्मलेन (लीडरशिप प्रोग्राम) के लिए चुना गया और उन्होंने इस अवसर को खुलर स्वीकार किया जो की उनके व्यक्तिगत इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण था।। एक युवा लड़की के लिए, जिसे गोल प्रोग्राम से पहले सामाजिक और सार्वजनिक बातचीत से दूर रखा गया था, , यह उस लंबे रास्ते का प्रतीक है जिसे उन्होंने और उनके जैसी कई और लड़कियों ने बहादुरी से पार करके एक परिवर्तन की यात्रा तय कर ली है।
(शिखा आलेया के लेखन सुझावों के साथ)
जया तिवारी – एसएनडीटी विश्वविद्यालय से मानव विकास में डिग्री और दिल्ली विश्वविद्यालय से गृह विज्ञान में बीए के साथ, जया ने नाज़ फाउंडेशन और वी.वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संसथान (वी.वी. गिरी नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट) के लिए HIV और यौनिकता के मुद्दों पर काम किया है। 2009-14 से, उन्होंने दिल्ली में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की पहल ‘द गोल प्रोग्राम’ (www.goal-girls.com) के कोर्डिनेटर के रूप में काम किया। 2014 से, वह गोल प्रोग्राम, दिल्ली और मुंबई में प्रत्यक्ष परिपालन प्रबंधक हैं।
दीपिका द्वारा अनुवादित।
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