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व्यापक यौनिकता शिक्षा का बाल यौन शोषण से क्या लेना-देना है?

"Sex education" written with white chalk on a black board. It is in all caps and underlined.

अभिभावकों के साथ बाल यौन शोषण पर काम करते वक़्त अक्सर वे मुझसे पूछते हैं कि, “बच्चे की उम्र कितनी होने पर उससे यौन शोषण के बारे में बात शुरु करनी चाहिए?” मेरा जवाब आमतौर पर होता है, “बच्चों के साथ यौन शोषण किस उम्र में शुरु होता है?” क्योंकि सच तो ये है कि ऐसा शोषण किसी भी बच्चे के साथ हो सकता है, चाहे उसकी उम्र कितनी भी कम क्यों न हो। सुनने में अचरज हो सकता है लेकिन नवजात शिशु भी यौन शोषण का शिकार होते हैं।

बाल यौन शोषण रोकना बच्चों की ज़िम्मेदारी नहीं है। चूंकि बच्चे बड़ों के द्वारा शोषित होते हैं,[1] इसे ख़त्म करना बड़ों की ही ज़िम्मेदारी है, मगर ये सच है कि माता-पिता/अभिभावक और दूसरे बड़े लोग बच्चों को अपनी हिफ़ाज़त करना सिखा सकते हैं। इसके कुछ तरीक़े हैं – भावनाओं के बारे में बच्चों से बात करना, उन्हें समझाना कि उनका शरीर सिर्फ़ उनका है, उन्हें ख़तरनाक हालात पहचानना सिखाना और इन हालातों से कैसे निकलना चाहिए (‘ना’ कहकर, भागकर, और किसी से शिकायत करके) ये बताना।

बाल यौन शोषण के रोकथाम के लिए शिक्षा ज़रूरी है और बच्चों और किशोरों के लिए बहुत फ़ायदेमंद भी, लेकिन ये सिर्फ़ एक हद तक ही उपयोगी और प्रभावकारी है। रोकथाम के लिए बताए जाने वाले नियम और सुझाव शायद बहुत छोटे बच्चों को समझ में न आए। ऊपर से, ज़्यादातर मामलों में उत्पीड़क बच्चे की पहचान का ही कोई होता है, जैसे उसके शिक्षक, रिश्तेदार, स्पोर्ट्स कोच, अभिभावक, डॉक्टर, दादा/दादी या नाना/नानी, या ऐसा कोई जो बच्चे से ज़्यादा ताक़तवर है। ऐसे में जब किसी अभिभावक के हाथों ही बच्चों का शोषण होता है तो उन बच्चों लिए इस पर बात करना या इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना आसान नहीं होता।

बाल यौन शोषण रोकथाम पर शिक्षा को असरदार बनाने के लिए इसके साथ-साथ व्यापक यौनिकता शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education) ज़रूरी है। यौनिकता शिक्षा सिर्फ़ ‘सेक्स कैसे करते हैं?’ तक सीमित नहीं है। इसमें सम्मान के आधार पर बने रिश्तों, रज़ामंदी, यौनिक स्वास्थ्य, सुरक्षित संबंध बनाने के सुझावों, गर्भनिरोध, यौनिक रुझान (sexual orientation), जेंडर मानदंडों, शारीरिक छवि (body image), यौन हिंसा वग़ैरह पर जानकारी भी होती है। इसलिए ‘व्यापक यौनिकता शिक्षा’ बोलने में थोड़ा मुश्किल होने के बावजूद भी इस तरह की शिक्षा के लिए ये एक बिलकुल सटीक नाम है।

यौनिकता पर शिक्षा हर उम्र के बच्चों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है क्योंकि यौनिकता हम सबकी ज़िंदगी का एक अभिन्न हिस्सा है। यौनिकता की भावना हम सभी के अंदर है और बच्चों के मामले में भी बात कुछ अलग नहीं है। ऐसा नहीं होता कि किसी एक उम्र में ही अचानक से हमारे अंदर यौनिकता से जुड़ी भावनाएं पैदा होने लगती हैं। हमारी यौनिकता की भावनाएं बाहर से नहीं आती बल्कि हमारा ही एक अंतरंग हिस्सा हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि सबके लिए यौनिकता का अनुभव एक ही जैसा है। एक छोटे बच्चे के लिए यौनिकता का अनुभव वयस्क होने की कगार पर किसी किशोर के अनुभव से अलग होगा, और इस किशोर का अनुभव भी अपने से बड़े किसी के अनुभव से बिलकुल अलग होता है।

जब 26 साल के दो हमसफ़र आपस में इस बारे में बात करते हैं कि उन्हें गर्भनिरोध की कौन सी पद्धति अपनानी चाहिए, वे अपनी यौनिकता से जुड़ी भावनाएं व्यक्त कर रहे होते हैं। वैसे ही जब 6 साल के बच्चे ‘डॉक्टर-डॉक्टर’ खेलने के ज़रिए एक-दूसरे के शरीर के अलग-अलग हिस्सों को पहचानने लगते हैं तो इसका मक़सद यौनिकता से जुड़ी जिज्ञासा को मिटाना होता है। ये दोनों ही यौनिकता के अनुभव हैं, चाहे वे एक-दूसरे से कितने भी अलग क्यों न हों। व्यापक यौनिकता शिक्षा देते वक़्त हमें इसलिए सीखने वालों की उम्र और उनके हालातों को ध्यान में रखना चाहिए।[2]

आमतौर पर यौनिकता शिक्षा को स्कूली शिक्षा के साथ जोड़ा जाता है। ये सच है कि स्कूलों में यौनिकता शिक्षा दिया जाना चाहिए मगर ये ज़रूरी नहीं है कि ये शिक्षा सिर्फ़ शैक्षणिक संस्थानों में दी जाए, बल्कि ज़रूरी है कि औपचारिक शिक्षा के अलावा भी आम ज़िंदगी में इन मुद्दों पर बातचीत हो। SIECUS[3] के मुताबिक़ यौनिकता शिक्षा “जानकारी हासिल करने और विचारों और मूल्यों की संरचना करने की ऐसी प्रक्रिया है जो जीवनभर जारी रहती है।”

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नीचे कुछ तर्क दिए गए हैं जो साबित करते हैं कि बाल यौन शोषण रोकने में व्यापक यौनिकता शिक्षा की क्या भूमिका है।

1. यौनिकता शिक्षा के माध्यम से बच्चों को ज़रूरी भाषा का ज्ञान दिया जाता है।

‘शरीर के हिस्सों’ वाला वो पोस्टर याद है जो स्कूल के क्लासरूम की दीवारों पर लगा हुआ करता था? उस पर एक इंसान की तस्वीर बनी होती थी और उसके शरीर के अलग-अलग अंगों के नाम लिखे होते थे। इन पोस्टरों पर दिखाया गया शरीर हमेशा एक गोरे, विकलांगता-रहित मर्द का हुआ करता था।

इस मर्द को हमेशा अंडरवेयर पहने हुए दिखाया जाता था। उसकी एड़ियां, उसके हाथ-पैर, उसकी ठुड्डी साफ़-साफ़ दिखाए जाते थे मगर उसके यौनांग हमेशा अंडरवेयर से ढके हुए होते थे। उसी तरह, घर पर जब अभिभावक अपने बच्चों को शरीर के अंगों के नाम सिखाते हैं, वे जननांगों के नाम बताने से सकुचा जाते हैं। बच्चों को इन अंगों के बारे में अगर बताया भी जाए तो अटपटी सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल किया जाता है जिससे बच्चे ये समझते हैं कि इन अंगों का नाम लेना ‘सही’ नहीं है।

एक पुरुष-प्रधान समाज में लड़कों को सेक्स के बारे में बात करने की ज़्यादा छूट दी जाती है और वे बातचीत के ज़रिए जननांगों के लिए अश्लील भाषा का इस्तेमाल करने लगते हैं। वे ऐसे शब्द सीख लेते हैं जिनका इस्तेमाल सिर्फ़ गालियों के रूप में होता है।

जब बच्चों के साथ यौन शोषण होता है, उनके लिए अक्सर इसके बारे में बात करना नामुमकिन होता है क्योंकि यौनांगों के लिए उपयुक्त शब्द न मालूम होने पर उन्हें पता ही नहीं होता कि इस अनुभव के बारे में कैसे बताया जाए। उन्हें बताने में शर्म भी आ सकती है क्योंकि इन अंगों के लिए जिस सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल होता है वो बच्चों को यही बताने के लिए सिखाई जाती है कि इन चीज़ों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। बच्चों को उनके शरीर के हिस्सों के सही नाम (जैसे लिंग, योनि, मलद्वार, स्तन) सिखाना बहुत ज़रूरी है और यौनिकता शिक्षा ये भाषा सीखने में उनकी मदद करती है।

2. यौनिकता शिक्षा यौनिकता के बारे में खुली चर्चा को बढ़ावा देती है।

यौन और यौनिकता से जुड़ी शर्म बाल यौन शोषण के बारे में बात करने से रोकती है। बहुत छोटी उम्र में बच्चे ये सीख जाते हैं कि उनके शरीर के कुछ ऐसे हिस्से हैं जिन पर उन्हें शर्म आनी चाहिए। अपने यौनांगों को छूने या उनके बारे में बात करने के लिए उन्हें अक्सर डांट पड़ती है या सज़ा मिलती है। लड़कियां ये सीख जातीं हैं कि समाज उन्हें अपनी यौनिकता का अनुभव करने का हक़ नहीं देता, हालांकि वही समाज उन्हें यौन वासना पूरी करने वाले वस्तुओं की तरह देखता है। जब हम यौनिकता के मुद्दों पर चुप्पी और गोपनीयता के माहौल को बढ़ावा देते हैं, हम बच्चों के लिए अपने अनुभवों के बारे में बात करने को मुश्किल बनाते हुए उनके उत्पीड़कों को और भी ताक़तवर बना देते हैं। यौनिकता शिक्षा यौनिकता को ज़िंदगी का एक अभिन्न और प्राकृतिक हिस्सा मानकर इन प्रचलित विचारों को चुनौती देती है।

3. यौनिकता शिक्षा जेंडर-आधारित सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाती है।

जेंडर पर आधारित पाबंदियां सिर्फ़ लड़कियों और औरतों पर ही नहीं बल्कि लड़कों और मर्दों पर भी लगाई जातीं हैं और ये आगे जाकर शोषण को बढ़ावा देतीं हैं। बाल यौन शोषण की जड़ पितृसत्ता है और जेंडर-आधारित मानदंड इसमें साफ़ झलकते हैं। मर्दों में औरतों के शरीर पर हक़दारी की भावना, लड़कियों और औरतों को वस्तु के रूप में देखना, यौन हिंसा का सामान्यीकरण, औरतों के यौन उत्पीड़न का समर्थन करने वाली ये सोच कि ‘लड़के तो लड़के ही होते हैं’, और लड़कियों और महिलाओं की यौनिक स्वतंत्रता का दमन पितृसत्ता के वो हिस्से हैं जो बाल यौन शोषण और अलग-अलग तरह की यौन हिंसा में साफ़ नज़र आते हैं। यौनिकता शिक्षा बच्चों और किशोरावस्था से गुज़र रहे लोगों को इन जेंडर-आधारित मानदंडों पर सवाल उठाना सिखाती है और उन्हें ये समझने में मदद करता है कि ये मानदंड भेदभावपूर्ण हैं और समाज द्वारा रचे गए हैं।

4. यौनिकता शिक्षा शारीरिक छवि से जुड़े मुद्दों पर रौशनी डालती है।

आत्मसम्मान बाल यौन शोषण से बचाव कर सकता है। किशोरावस्था में ख़ासतौर पर अगर लड़कियों का अपने शरीर के साथ एक अच्छा संबंध नहीं बन पाता है तो उनके आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचता है। अपनी उम्र के लोगों के साथ अच्छे रिश्ते भी बचाव कर सकते हैं और जब किसी के शरीर या शक्ल के आधार पर उनका मज़ाक़ उड़ाया जाता है तो वे अकेले पड़ जाते हैं और उनके लिए अपने हमउम्र लोगों के साथ दोस्ती करना मुश्किल हो सकता है। यौनिकता शिक्षा शारीरिक छवि (हम अपने और दूसरों के शरीर के बारे में क्या सोचते हैं) से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देते हुए उन सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाती है जो लड़कों और लड़कियों पर सुंदरता के निर्धारित पैमानों पर खरा उतरने के लिए दबाव डालते हैं।

5. यौनिकता शिक्षा होमोफ़ोबिया दूर कर सकती है।

होमोफ़ोबिया लड़कों और मर्दों को अपने यौन शोषण के बारे में चुप रहने पर मजबूर करता है। बाल यौन शोषण करने वाले ज़्यादातर लोग मर्द होते हैं और वे छोटे लड़कों का भी शोषण करते हैं। समाज में फैले होमोफ़ोबिया की वजह से लड़कों को अपने यौन रुझान के बारे में सोचने में घबराहट होती है। उन्हें फ़िक्र होती है कि वे अपने बाल यौन शोषण का अनुभव किसी से साझा करें तो उन्हें ‘गे’ समझा जाएगा। वे चुप रह जाते हैं क्योंकि लोग उनके शोषण के अनुभव को ‘गे अनुभव’ का तमग़ा दे देते हैं और उनके साथ खड़े होने के बजाय उन पर अपनी होमोफ़ोबिक विचारधारा थोप देते हैं। ये ग़लतफ़हमी कि यौन उत्पीड़न हमारा यौनिक रुझान तय करता है बिल्कुल अवैज्ञानिक है और इसका कोई सकारात्मक योगदान नहीं है। यौनिकता शिक्षा युवा लोगों में अलग-अलग यौनिक रुझानों के बारे गहरी समझ लाती है और उन्हें सिखाती है कि सिर्फ़ विषमलैंगिकता ही ‘प्राकृतिक’ और ‘स्वाभाविक’ नहीं है।

6. यौनिकता शिक्षा उन्हें दोषी मानने का विरोध करती है जो यौन शोषण से गुज़र चुके हैं।

जो यौन शोषण से गुज़र चुके हैं उन पर उंगली उठाना शोषण करने वालों को सशक्त करता है और शोषण से गुज़रने वालों को अशक्त करता है। बच्चों और किशोरावस्था से गुज़र रहे लोगों से पूछा जा सकता है कि उन्होंने अपने साथ शोषण क्यों होने दिया और उन्होंने किसी को बताया क्यों नहीं। लड़कियों पे ख़ासतौर पर ‘छोटे कपड़े’ पहनने और उत्पीड़क को उकसाने का इल्ज़ाम लगाया जाता है। परिवार, दोस्तों, न्याय व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था द्वारा शोषण सहने वालों को इसी तरह दोषी ठहराया जाता है और उत्पीड़क ने ऐसा क्यों किया ये सवाल उठाया ही नहीं जाता।

यौनिकता शिक्षा रज़ामंदी पर ज़ोर डालते हुए शोषण सहने वाले को दोषी मानने के रिवाज पर सवाल उठाती है। ये कहता है कि अगर कोई अपने पूरे होशोहवास में यौनिक रिश्ते के लिए राज़ी न हो तो उसके साथ यौनिक रिश्ते बनाना जायज़ नहीं है, और यौनिक रिश्तों में हिंसा की भी कोई जगह नहीं है। जब जवान लोग यौनिकता के संदर्भ में रज़ामंदी और हिंसा के बारे में सीखते हैं, वे ये भी सीखते हैं कि जिन लोगों से रज़ामंदी नहीं ली गई या जिन पर हिंसा की गई हो, उन्हें कभी भी अपने हालातों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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ज़्यादातर अभिभावक अपने बच्चों की हिफ़ाज़त की फ़िक्र करते है जिसकी वजह से स्कूलों में बाल यौन शोषण रोकने पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तो वे आमतौर पर इनका स्वागत करते हैं और इन्हें बढ़ावा देते हैं, चाहे उन्हें ख़ुद अपने बच्चों से इन मुद्दों पर बात करने में असहजता क्यों न महसूस हो। इसके बावजूद भी व्यापक यौनिकता शिक्षा के बारे में उनकी राय इतनी सकारात्मक नहीं है। उन्हें लगता है कि यौनिकता के बारे में जानने से उनके बच्चों का पढ़ाई-लिखाई से ध्यान भटक जाएगा और उन्हें बिना रोक-टोक के यौन संबंध बनाने की छूट मिल जाएगी। मगर इस तरह की सोच बच्चों और युवाओं के अधिकारों के ख़िलाफ़ है और ये किसी ठोस सबूत पर भी आधारित नहीं है।

स्कूल और घर पर यौनिकता शिक्षा दिया जाए तो ये बच्चों को बाल यौन शोषण से सुरक्षित रखने में अभिभावकों की मदद कर सकती है। यौनिकता शिक्षा के सभी प्रतिरूप एक जैसे नहीं हैं और वे कौन से मुद्दों पर ध्यान देते हैं या नहीं देते इसमें भी बहुत फ़र्क़ है। मगर व्यापक यौनिकता शिक्षा के तहत यहां बताए गए सभी मुद्दों पर बराबरी से चर्चा होनी चाहिए और अभिभावक होने के नाते आपको भी इन मुद्दों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग करनी चाहिए। बच्चों और युवाओं तक व्यापक यौनिकता शिक्षा पहुंचाने की कई सारी वजहें हैं – बाल यौन शोषण को रोकना और उसका सामना करना निश्चित रूप से उनमें से एक है।

 

अलंकार शर्मा समाज कार्य के शिक्षक और शोधकर्ता हैं और ऑस्ट्रेलिया के वोलोंगोंग विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। उनका कार्य मर्दों और मर्दानगी की परिभाषाओं, यौनिकता, यौनिक अधिकारों, यौन हिंसा, और उत्पीड़न पर आधारित है। उनके कई शोधकार्य मर्दों के ख़िलाफ़ बाल यौन शोषण के अनुभवों पर प्रकाश डालते हैं। उनसे alankaar.sharma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

ईशा द्वारा अनुवादित।
To read the original article in English, click here


[1] बाल यौन शोषण ज़्यादातर बड़ों के द्वारा ही किया जाता है, हालांकि कभी-कभी एक बच्चा भी दूसरे बच्चे का शोषण करता है।

[2] यौनिकता शिक्षा पर तारशी की किताबें देखिए जो पाठकों की उम्र और स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए बनाई गईं हैं। लाल किताब 10 से 14 साल के बच्चों के लिए है, नीली किताब 15 साल या उससे ज़्यादा उम्र के लोगों के लिए है, पीली किताब माता-पिता के लिए है, और नारंगी किताब शिक्षकों के लिए।

[3] SIECUS (Sexuality Information and Education Council of the United States) एक ग़ैर-लाभकारी संगठन है जो व्यापक यौनिकता शिक्षा पर जानकारी उपलब्ध कराता है।

कवर इमेज: International Women’s Health Coalition