एक सुरक्षित स्थान या समाज द्वारा तिरस्कार किया जाना? भावनाओं को व्यक्त करने की आज़ादी या उन्हें दबाना? मनोरंजन और आनंद को केंद्रित रखना या डर के आधार पर चलना? अलग-अलग सीखने की शैलियाँ या शैक्षणिक सत्र? परियोजना-आधारित या सहभागी-आधारित?
दिल्ली के हाशिए पर रहने वाले क्षेत्रों की 18 वर्षीय लड़कियों के साथ एक कार्यशाला के बाद जब मैं घर वापस आई, तो मेरे दिमाग़ में कई सवाल आ रहे थे। प्रतिभागी अक्सर एक गुमनाम प्रश्न बॉक्स में – जो यौनिकता शिक्षकों की एक पसंदीदा रणनीति है – कई ऐसे प्रश्न पूछते हैं जिन्हें उठाने में वे सुरक्षित महसूस करते हैं और इसी प्रकार सत्र को लेकर वे अपनी सबसे वास्तविक प्रतिक्रिया भी दे पाते हैं। मैं हमेशा गुमनाम प्रश्न बॉक्स के प्रभाव को कम आँकती थी, लेकिन इस कार्यशाला के बाद मैंने इसका महत्व समझा। प्रतिभागियों के प्रश्नों के आधार पर, मैं उस समूह की वास्तविक ज़रूरतों का अनुमान लगा पायी जिसके लिए मैं यह कार्यशाला कर रही थी। सहमत फाउंडेशन – जिस संगठन से मैं जुड़ी हूँ – में मैं एक ऐसे स्थान की कल्पना करती हूँ जहां हम प्रतिभागियों की ज़रूरतों के आधार पर प्रत्येक कार्यशाला को डिज़ाइन कर सकें और इसलिए मैं अपनी पहचान एक यौनिकता शिक्षक के बजाय, एक यौनिकता फ़ैसिलिटेटर के रूप में करना चाहूँगी, जो इस विषय के बारे में और गहराई तक जानने में मदद करती है।
पाठ्यक्रम के लिए सामग्री का चयन करना
जब कोई संगठन हमें कार्यशाला आयोजित करने के लिए आमंत्रित करता है, तो अक्सर हमें ऐसे डिज़ाइन बनाने के लिए कहा जाता है जो स्वास्थ्य और अधिकारों पर ज़्यादा केंद्रित हों और यौनिकता के अनुभवात्मक पहलुओं पर कम। अगर हम इन अनुभवों के बारे में बात करें, तो यह लगातार प्रेम, रोमांस, यौन इच्छा, आनंद, उत्तेजना आदि जैसे विषयों को सामने लाकर सामाजिक बाधाओं को तोड़ता है। लेकिन अगर हम विषयों का चयन प्रतिभागियों पर छोड़ दें तो क्या होगा? गुमनाम प्रश्न बॉक्स में ज़्यादातर प्रश्न अगर गर्भनिरोधक, यौन स्वास्थ्य और यौन शोषण के बारे में होते, तो मैं ज़्यादा सोचे बिना सत्र का डिज़ाइन मुख्य रूप से इन विषयों पर केंद्रित करती। लेकिन ये जो प्रश्न हैं, काफ़ी अलग हैं। इनमें जानवरों के यौन संबंध, समान जेंडर वाले लोगों के बीच यौन संबंध, अनेक लोगों के साथ एक ही समय पर रिश्तें, और ख़ुद को हस्तमैथुन द्वारा आनंद देने के बारे में जिज्ञासायेँ है। जब मैं यौनिकता से जुड़ी कार्यशाला में स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में बात करती हूँ, तो प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए विषयों को अगर मैं शामिल न करूँ तो यह ग़ैर-समावेशी होगा। लेकिन अक्सर, जिस संगठन ने मुझे इन सत्रों को आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया है, वही तय करता है कि बाद के सत्रों के लिए कौन से विषय शामिल करने हैं और कौन से नहीं। सत्ता आयोजकों के हाथ में है, सीधे प्रतिभागियों के हाथ में नहीं।
शिक्षणशास्त्र और विभिन्न प्रक्रियायों को शामिल करना
जब भी मैं कोई सत्र डिज़ाइन करती हूँ, तो मेरे सहकर्मी और सह-फ़ैसिलिटेटर्स इस बारे में बहुत सारे सवाल उठाते हैं कि मैंने पाठ्यक्रम में क्या शामिल किया है और क्या नहीं। वास्तविकता यह है कि हर यौनिकता शिक्षक, अपनी सुविधा और लक्षित ऑडियंस के आधार पर, संभावित प्रतिभागियों के लिए एक विशिष्ट पाठ्यक्रम डिज़ाइन करतें है। अगर हम पूर्ण रूप से एक व्यापक पाठ्यक्रम तैयार कर पाते हैं, तो यह निश्चित रूप से 100 घंटे से ज़्यादा समय तक चलने वाला होगा। जानकारी को आत्मसात करने के अलग-अलग माध्यमों की मदद से ऐसे बहुत सारे विषय हैं जिनके बारे में बात की जा सकती है और उन्हें संबोधित किया जा सकता है। आख़िरकार, व्यापक यौनिकता शिक्षा का मतलब सिर्फ़ ज्ञान देना ही नहीं है। हम ऐसे सक्षम शिक्षक चाहते हैं जो हमारे यौन अनुभवों को संबोधित करने के लिए कला, नृत्य, संगीत, रंगमंच जैसे कई तरीक़ों को शामिल करते हैं और हमें आगे जाकर ऐसे अनुभवों के लिए तैयार करते हैं। सहमति जैसे विषय को “समझाया” नहीं जा सकता; हम केवल अनुभवात्मक साधनों के माध्यम से और अपने सत्रों में वास्तविकता का अनुकरण करके इसके बारे में समझ बनाने की कोशिश कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, “सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श” का विषय यौन शिक्षा कार्यशालाओं के दायरे में आता है। क्या यह एक ऐसी कार्यशाला हो सकती है जो सिर्फ़ जानकारी देने के बारे में हो? वास्तव में “हाँ” या “नहीं” कह पाना और इनके बीच के कई पहलुओं को संभाल पाना, इसके बारे में क्या? क्योंकि सहमति बहुत जटिल हो सकती है।
इसलिए, यौनिकता शिक्षकों के रूप में, हमें न केवल विषयों और विषय-वस्तु के संदर्भ में अपने सत्रों को व्यापक बनाने का प्रयास करना चाहिए, बल्कि उन विभिन्न तरीक़ों पर भी ध्यान देना चाहिए जिनसे जानकारी दी जाती है और जिसे जीवन में लागू किया जा सकता है।
कई वर्षों के अपने काम में, मैंने व्यापक यौनिकता शिक्षा (CSE) को उन परियोजनाओं में स्वीकार किए जाते हुए देखा है जो यौनिकता को केवल ज्ञान खंड के रूप में नहीं बल्कि “जीवन कौशल” के रूप में पेश करती हैं। एक जीवन कौशल के रूप में, यौनिकता शिक्षा इस बात पर केंद्रित है कि हम अपने यौन जीवन को शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ तरीक़े से कैसे जी सकते हैं। जहां स्कूल अपने विस्तृत पाठ्यक्रम में कई प्रमुख तत्वों को शामिल करते हैं, वहीं स्कूलों के बाहर के समुदाय भी यौनिकता शिक्षकों की मांग करते हैं। यह जीवन-कौशल प्रशिक्षण केवल किशोरों को ही नहीं मिल रहा है, बल्कि सभी आयु समूहों को मिल रहा है। इसलिए, जब कोई मुझसे कहता है, “अपने आस-पास देखो – इंस्टाग्राम पर ही काफ़ी सारे यौनिकता शिक्षक हैं,” तो मुझे पता है कि 1.3 बिलियन (130 करोड़) लोगों के इस देश में चाहे कितने भी यौनिकता शिक्षक हों, यह कभी भी पर्याप्त नहीं होंगे। हमारी आबादी के केवल कुछ वर्गों ने ही यौन शिक्षा को एक ज़रूरत के रूप में स्वीकार करना शुरू किया है, क्योंकि अभी भी बहुत प्रतिरोध है और व्यापक यौनिकता शिक्षा (CSE) को अभी भी विस्तृत रूप से एक ज़रूरत के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। वयस्क आबादी के साथ सीधे जुड़ने के अवसरों की अभी भी कमी है। ऐसे बहुत से समूह हैं जिन्हें यौन शिक्षा के मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता है, और अब तक केवल किशोरों को ही केंद्रित किया गया है। समूह बैठकों और इस तरह के स्थानों में बातचीत के विषय के रूप में यौनिकता अभी भी अस्वीकार्य है। शिक्षकों द्वारा सोशल मीडिया पर सामग्री प्रस्तुत करने के तरीक़े और वास्तविक जीवन में फ़ैसिलिटेटर्स द्वारा जानकारी देने तथा कार्यशालाओं में यौनिकता के बारे में सावधानीपूर्वक तैयार किए गए प्रोग्राम को प्रस्तुत करने के तरीक़े में भी अंतर है।
व्यापक यौनिकता शिक्षा पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए संवेदनशीलता और शिक्षाशास्त्र या पेडागोजी में विशेषज्ञता की जो आवश्यकता है, इसने यौनिकता क्षेत्र को पूरी तरह से मुश्किल में डाल दिया है।
मैं यह देखती हूँ कि कैसे हम लगातार नई जानकारी को अपने सत्रों में शामिल करने की कोशिश में रहते हैं और हमारी कार्यशालाओं में जो कुछ होता है उसे समझने में हम निरंतर अभिभूत महसूस करते हैं ।
समाज के बारे में बहुत कुछ पता चलता है, और साथ ही यौनिकता के बारे में जो धारणाएँ और मिथक हैं जिनके साथ हम जी रहे हैं, वे भी सामने आते हैं। कार्यशाला में, हम न केवल जानकारी दे रहे हैं, बल्कि इस बारे में भी बहुत कुछ सीख रहे हैं कि हमारी संस्कृतियाँ यौनिकता का अनुभव कैसे करती हैं। इन सीखों को एकीकृत करने और भविष्य के सत्रों के लिए प्रासंगिक सामग्री तैयार करने की ज़िम्मेदारी हमारी है।
एक शिक्षक के रूप में मेरी अपनी यौनिकता
मेरी एक परियोजना में, हमें पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग सत्र आयोजित करने पड़े, जो एक बहुत ही द्विआधारी या बाइनरी तरीक़ा था। जब हमारी टीम में से एक फ़ैसिलिटेटर हमारे साथ शामिल हुए, तो वे भी अपनी ख़ुद की जेंडर पहचान तलाश रहे थे। इस सफ़र के एक साल बाद, मैं देख रही हूँ कि वास्तव में वे एक बोझ महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अब उन्हें इन बाइनरी सत्रों में अपनी ग़ैर-बाइनरी पहचान को छिपाना पड़ता है। हम शिक्षक के रूप में जहाँ हैं और हमारी परियोजनाएं जहाँ स्थित हैं, वहाँ पर विभिन्न यौनिकताओं की समझ और स्वीकृति में बहुत बड़ा अंतर है। अगर हम अपने प्रतिभागियों के लिए सुरक्षित स्थान बनाना चाहते हैं, तो हमारे ऐसे अनुभव हो सकते हैं जहाँ हमारी अपनी पहचान को लगातार चुनौती दी जाती है। सिर्फ़ प्रतिभागियों के लिए ही नहीं, बल्कि उन फ़ैसिलिटेटर्स के लिए भी सुरक्षित स्थान बनाने की ज़रूरत है जो चर्चा के विषय के रूप में प्रस्तुत हर विषय के बारे में सीख रहे हैं और पहले से सीखी हुई चीज़ों को भूलकर, उन्हें नए रूप से दोबारा सीखने की कोशिश कर रहे हैं।
एक साल काम करने पर ही मैंने जो बर्नआउट (लंबे समय से चल रहे तनाव का नतीजा जिससे हमें शारीरिक, भावनात्मक, और मानसिक थकान होती है) महसूस किया, उसकी वजह से मेरे संगठन के लक्ष्य को प्राप्त करने की मेरी गति बहुत धीमी हो गयी। मैं बहुत तनाव और थकान से गुज़र रही थी, क्योंकि मुझे अपने प्रतिभागियों को यौनिकता के बारे में जानकारी देनी थी, और हमारे सत्रों में दिए जा रहे संदेशों के अनुसार जीना मेरे ख़ुद के लिए भी चुनौतीपूर्ण था। साथ ही, इस क्षेत्र में मेरे साथी भी मेरे दृष्टिकोण पर सवाल उठा रहे थे, जो रोकथाम-आधारित नहीं, बल्कि एकीकरण पर आधारित था। मैं ऐसे सत्र दे रही थी जो परियोजना की ज़रूरतों के साथ उतने मेल नहीं खा रहे थे जितने कि प्रतिभागियों की ज़रूरतों के साथ। मेरे विचार से, परियोजना को यौनिकता शिक्षा कार्यक्रमों के अपने दृष्टिकोण में उन चीज़ों को शामिल करने की ज़रूरत है, जिनके बारे में लक्षित ऑडियंस वास्तव में ख़ुद के लिए जवाब ढूँढना चाहते हैं।
हमारे सत्रों में इन विषयों को लेकर हमारे अन्वेषण की सीमा और दायरा कहाँ तक है?
हां, हम यौनिकता क्षेत्र में जिस तरह की शिक्षा पद्धतियों का उपयोग करना चाहते है, उसके प्रमुख दृष्टिकोणों पर भी हमें ग़ौर करना चाहिए। इस क्षेत्र के कई मार्गदर्शकों ने हमारे लिए अपना काम करने के लिए एक जगह तैयार की है और उन परियोजनाओं के लिए मार्ग तैयार किया है, जो अब गर्व से यौनिकता-शिक्षा को जीवन कौशल के रूप में घोषित करते हैं। उनके प्रयास इसलिए भी सफ़ल रहे हैं क्योंकि उनके द्वारा अपनाये गए तरीक़े सोच-समझकर संवेदनशीलता के साथ बनाये गए हैं। लेकिन क्या हमें ऐसे फ़ैसिलिटेटर्स बने रहना चाहिए जो हमेशा सावधानी से काम करते हैं, ताकि हमारे प्रतिभागियों के लिए कुछ भी ऐसा न हो जो बहुत “सुस्पष्ट” बोला जा रहा हो? व्यापक यौनिकता शिक्षा (CSE) पाठ्यक्रम बनाने के लिए, हमें चुनौतीपूर्ण और नए विचारों को शामिल करना होगा जो लोगों के लिए पहली बार सुनने में असामान्य हों। अगर ऐसा नहीं है, तो शिक्षा और अन्वेषण की हम कैसे बात कर सकते हैं? मेरा मानना है कि जिस तरह फ़िल्में हमारी वास्तविकताओं को दर्शाती हैं, उसी तरह हमारे पाठ्यक्रम को भी उन्हें दर्शाना चाहिए। हम वास्तविकता के जितने क़रीब होंगे, यह उतना ही चौंकानेवाला लगेगा। अगर मैं इस बारे में स्पष्ट रूप से बात करूँ कि लोग किस तरह के यौन अनुभवों में शामिल होते हैं, उदाहरण के लिए, अगर मैं ओरल सेक्स यानि मुख मैथुन के आनंद और जोखिम दोनों के बारे में स्पष्ट रूप से बात करूँ, तो यह उन लोगों के लिए, जो इस तरह के यौन कृत्यों को अप्राकृतिक या घिनौना मानते हैं, प्रामाणिक भी होगा और चौंकाने वाला भी होगा। लेकिन यह भी सच है कि अब हम यौन शिक्षा को लेकर एक अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपना रहे हैं। जो हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बनाया है, उसे हमारी अपनी बदली हुई वास्तविकताओं के आधार पर किए गए हमारे परिवर्धन के साथ-साथ विकसित होना ज़रूरी है।
मेरी एक कार्यशाला में, एक प्रतिभागी ने पूछा कि क्या कार्यशाला के दौरान यौन अनुभव करने की अनुमति है। और मेरा दिमाग़ कई दिशाओं में घूम गया। मैंने ध्यान से सोचा-समझा और फिर जवाब दिया,
“सवाल पूछने के लिए धन्यवाद!
हमारे कार्यशाला स्थल पर कमरे हैं और कोई भी अपने निजी स्थान में, जहाँ सेक्स “निषिद्ध” नहीं है, यह कर सकता है, जब तक कि इसमें भाग लेने वाले सभी लोगों की सहमति हो।
हालांकि, कार्यशाला के दौरान कार्यशाला हॉल में हमारे देश की क़ानूनी व्यवस्था के अनुसार जिस चीज़ की अनुमति नहीं है, उसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। इसलिए, सार्वजनिक स्थान पर नग्नता निषिद्ध होगी। यदि आप यौन क्रिया में संलग्न होते हैं और सत्र में भाग लेने वाले या इसे देखने वाले कोई भी अपनी सोच के आधार पर परेशान, अपमानित या धमकाया हुआ महसूस करतें है, तो भी अनुमति नहीं है। इसलिए, प्रतिभागियों और वहाँ मौजूद देखने वालों की अनुमति के बिना, ऐसा कोई भी कार्य परेशानी का कारण भी बन सकता है। हालाँकि, मैंने देखा है कि मैं जिन जगहों पर गयी हूँ, वहाँ गले लगाने और चूमने पर सवाल नहीं उठाया जाता है।
वास्तव में यह पूरी तरह से प्रतिभागियों और हमारे समूह पर निर्भर करेगा।”
उद्देश्य के आधार पर विषय-वस्तु को प्रस्तुत करना
हाल ही में एक सत्र में, मैंने पहली बार “यौन प्रतिक्रिया चक्र” को एक विषय के रूप में पेश किया। मैंने जिस तरह से इसे पेश किया, वह यौन अनुभवों के लिए “तैयारी” बनाने के मेरे इरादे पर आधारित था। तैयारी सिर्फ़ गर्भनिरोधक के साथ तैयार होने और ख़ुद पर और अपने साथी/साथियों पर एसटीडी स्क्रीनिंग करवाने को लेकर नहीं है, हालाँकि, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, बल्कि हमारे शरीर की तत्परता को देखना और इच्छा, उत्तेजना, प्लेज़र प्लेटो[1], ओर्गास्म/चरमानंद और सन्तुष्टि के चरणों को समझकर हमारे शरीर की प्रतिक्रियाओं का आकलन करना भी है। सत्र को डिज़ाइन करते समय, इस विषय को शामिल करना एक जोखिम की तरह लग रहा था। क्या यह इस समूह के लिए बहुत संवेदनशील और भारी होगा? क्या यह जटिल है? क्या यौन प्रतिक्रिया चक्र विश्वसनीय है? मुझे जो कम समय मिल रहा था, उसके कारण मुझे कई विषयों के बीच चुनना पड़ रहा था, और मेरे विकल्प एक सेक्स-एड फ़ैसिलिटेटर के रूप में मेरी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा रहे थे। क्या होगा अगर प्रतिभागियों को यह बातें समझ में नहीं आये और सभी भ्रमित रह जाएँ? लेकिन प्रतिभागियों ने इन बातों में जो रुचि दिखाई वो बहुत ही अद्भुत था! इसके कारण, इससे पहले कि मैं विषय शुरू करती, स्वाभाविक रूप से “सहमति” के विभिन्न पहलुओं की समझ को चर्चा में लाया गया! इसके चलते “आनंद” और “कम्युनिकेशन” (आपस में खुलकर बातचीत) जैसे विषयों के बारे में भी बात शुरू हुई। बहुत सारे ऐसे विषय जिन्हें मुझे सत्र में बाद में अलग से उठाना पड़ता, वे पहले से ही प्रतिभागियों की ओर से स्वाभाविक रूप से उठाये गए।
यह मुझे उस सिद्धांत की भी याद दिलाता है जिसे पाउलो फ़्रेयर ने 55 साल पहले लिखी अपनी पुस्तक ‘पेडागॉजी ऑफ़ द ऑप्रेस्ड’ में पेश किया था – प्रतिभागियों की भागीदारी के ज़रिए पाठ्यक्रम तैयार करना। प्रतिभागी चुनते हैं कि उन्हें क्या सीखना है। यह एक बहुत ही लोकतांत्रिक और संवादात्मक प्रक्रिया है जिसे मैंने शिक्षकों को निजी स्कूलों में गणित और विज्ञान जैसे विषयों के लिए भी इस्तेमाल करते देखा है। तो यौनिकता के लिए क्यों नहीं? आख़िरकार, यह एक ऐसा विषय है जो किसी भी अन्य विषय की तुलना में कहीं ज़्यादा अनुभवात्मक है और हमारे सामाजिक ढाँचों पर आधारित है।
शर्मिला भूषण (ए एस इंटरनेशनल) द्वारा अनुवादित। शर्मिला भूषण एक स्पेनिश और हिंदी दुभाषिया (इंटरप्रिटर) और अनुवादक हैं, जिन्होंने पिछले 30 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक काम किया है। उन्होंने पेंगुइन एस.ई.ए. के लिए दो उपन्यासों का स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद किया है। ए एस इंटरनेशनल 2020 से कई भाषाओं में इंटरप्रिटेशन और अनुवाद की सेवाएँ प्रदान कर रहा है, खासकर विकास क्षेत्र के लिए।
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[1] पठार चरण मानव यौन प्रतिक्रिया चक्र का एक चरण है जो उत्तेजना चरण के बाद और ओर्गास्म/चरमानंद से पहले होता है। इसकी विशेषता यौन सुख में वृद्धि, हृदय गति और रक्त संचार में वृद्धि, तथा मांसपेशियों में तनाव में वृद्धि है।
Cover Image: Photo by Yannis Papanastasopoulos on Unsplash