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सॉन्ग्स ऑफ द कैरवेन: भारत में ट्रान्स्जेंडर लोगों का पहला आडियो एल्बम

Collage of eight pictures of eight different people. The photos show them in different poses: smiling, singing, or simply posing for a passport photo.

संगीत की भाषा सार्वभौमिक है। यह वर्ण, जाति तथा लिंग इत्यादि से भी परे है। संगीत सभी का है। कुछ समुदायों के लिए संगीत उनके ज़ख्मों को भरने का एक तरीका है, उनकी अन्यथा संघर्ष से भरी ज़िन्दगी में थोड़ा आनन्द भरने का माध्यम। ट्रान्स्जेंडर या ट्रान्सविमेन अधिकतर मुख्यधारा के समाज में बहिष्कृत तथा अप्रतिष्ठित समझे जाते हैं। लोग इन्हें शादी-ब्याह या अन्य खुशी के मौके पर नाचने गाने वाला समुदाय ही मानते हैं। इन्हें फ़िल्मों में भी हास्य पात्रों के रूप में लिया जाता है, जिनकी समाज में अपनी खुद की कोई ख़ास पहचान नहीं होती।

गत दस वर्षों के दौरान कई लोग, जिसमें ट्रान्स्जेंडर समुदाय के कुछ प्रभावशाली लोग भी शामिल हैं, इनके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और उन्हें काफ़ी हद तक सफ़लता भी मिली है। भोपाल में एक ट्रान्स्जेंडर के पूर्व महापौर होने से लेकर बैंगलूरू में ट्रान्स्जेंडर रेडियो जॉकी और पुडुचेरी में एक अभिनेत्री होने तक ट्रान्सविमेन काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं और सामाजिक निरर्थकता से स्वयं को मुक्त करा चुके हैं। ट्रान्स्जेंडर लोगों को सशक्त करने और समाज की मुख्यधारा में इनके लिए आदर पैदा करने हेतु यह एक सफल शुरुआत है। ‘किन्नर खेल’ आयोजित करने से लेकर हरेक राज्य में ‘ट्रान्स्जेंडर कल्याण बोर्ड’ की स्थापना और ट्रान्स्जेंडर लोगों को भारत सरकार की ‘अन्य पिछड़ा जाति’ श्रेणी में शामिल करने सहित, कई छोटे-बड़े कदम हैं, जो इस समुदाय को सहायता प्रदान करने हेतु उठाए जा रहे हैं।

एक सबसे बड़ी चुनौती, जो अब भी बाकी है, वह इस समुदाय के बारे में व्यापक स्तर पर प्रचलित धारणाओं को मिटाना और सामाजिक तथा राजनैतिक स्तरों पर इन्हें मान्यता देना है।

स्वतंत्र, प्रतिभाशाली एवं सशक्त महिलाओं के रूप में इनमें जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से जीवन ट्रस्ट ने ‘गीत कारवाँ के’ (सॉन्ग्स ऑफ द कैरवेन) एल्बम तैयार की जिसमें पहली बार पूरे भारत के ट्रान्स्जेंडर लोगों ने न केवल पेशेवर कलाकारों तथा गायकों, बल्कि निर्भीक एवं सतेज व्यक्तियों के रूप में अपने स्वरों को पहचान दी है।

इस एल्बम को तैयार करना भी किसी कठिन सफ़र से कम नहीं था। यह एल्बम विश्व भर के सेक्सुअल अल्पसंख्यकों के अधिकारों को संवर्धन देने की दिशा में कार्य कर रहे, प्लैनेट रोमियो फ़ाउन्डेशन, द नेदरलैन्ड्स, जीवन ट्रस्ट और एचआईवी तथा यौन स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम कर रही अभिव्यक्ति फ़ाउन्डेशन द्वारा प्रायोजित है। जीवन ट्रस्ट विकलांगता, लिंग आधारित भेदभाव जैसे मुद्दों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास कर रही है, जिन्हें उतनी तरज़ीह नहीं दी जाती है, जितनी की दी जानी चाहिए।

इस एल्बम को बनाने के दौरान, कोलकाता के अमितावा सरकार के साथ जुड़ना हमारा सौभाग्य रहा।अमितावा राष्ट्रीय स्तर पर ट्रान्स्जेंडर समुदाय के लिए काम कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में इनका सहयोग तथा मार्गनिर्देशन काफ़ी मूल्यवान रहा। कलाकारों को अपनी इच्छा से किसी भी भाषा में अपनी पसंद के कॅापीराइट मुक्त गीत चुनने को कहा गया। रिकॉर्डिंग राज्य स्तर पर हुई और इस एल्बम के लिए प्रशिक्षण तथा अन्य सभी खर्चों के लिए प्रत्येक कलाकार को पूर्णतया भुगतान किया गया।

फ़िर इन रिकॉर्डिंग्स को नई दिल्ली, भारत में मास्टर किया गया। विभिन्न राज्यों के छ: कम्पोज़रों ने इस एल्बम को रिकार्ड तथा कम्पोज़ किया है। जी हाँ, ये सभी गीत पहले से ही मास्टर्ड थे, पर इन सभी गीतों में साम्य रखने हेतु एक अंतिम मास्टरिंग भी आवश्यक थी। इस एल्बम को बनाने के दौरान कई भागीदारों ने भेदभाव से जुड़े अपने बचपन के किस्से बताए। अक्कई पद्मशाली ने बताया, ‘मुझे अपनी संगीत की कक्षाएँ छोड़ने को कहा गया था, क्योंकि अध्यापक को अन्य अभिभावकों से शिकायतें मिलती थीं, कि उनके बच्चे मेरे साथ पढ़ने में सहज महसूस नहीं करते।’ मणिपुर की कांता, जिन्होंने एल्बम में दो गीत गाए हैं, ने बताया, ‘मुझे परिवार तथा मित्रों में शायद ही कभी स्वीकार्यता मिली हो, लेकिन मैं अपने विश्वास पर टिकी रही।’

इस एल्बम में नौ अलग-अलग राज्यों के नौ गायकों ने कुल तेरह गीत रिकार्ड किए हैं, जो इसे वास्तव में एक वृहत भारतीय अंदाज़ प्रदान करते हैं। इसमें लोक गीत, प्रेम गीत तथा मंगल गान शामिल हैं। गायकों के अपने लिखे तथा कम्पोज़ किए गीत भी इस एल्बम का हिस्सा हैं। ये गीत संगीत की कर्नाटकीय तथा हिन्दुस्तानी शैली और रवीन्द्र संगीत में गाए गए हैं। जैज़ तथा ब्लूज़ शैली को भी इसमें स्थान दिया गया है। रेडियो की जानी मानी हस्ती शमशीर राय लूथरा, जो कि विगत 25 वर्षों से संगीत उद्योग से जुड़े हैं, द्वारा इन गीतों की समीक्षा की गई है।

कुछ शुरुआती कठिनाइयों के बावजू़द गायक इस एल्बम का हिस्सा बनने पर बेहद खुश हैं। अमितावा सरकार ने कहा, ‘अन्य सभी सहभागियों के साथ इस एल्बम को रिकार्ड करना वास्तव में एक शानदार अनुभव था। मैंने हमेशा यह महसूस किया है, कि ट्रान्स्जेंडर लोग ऐसे कई मंचों के हकदार हैं और लोगों को उनके बारे में अपनी धारणाएँ बदलने की ज़रूरत है।’गुजरात के अंकुर पाटिल के साथ अन्य भागिदारों में बंगलुरू से अक्कई पद्मशाली, मुम्बई से कल्याणी, राजस्थान से हंसा, दिल्ली से रानी, तमिलनाडु से काल्कि सुब्रमणियम, कर्नाटक से मधुरिमा तथा मणिपुर से एल. कांता शामिल हैं। पुडुचेरी से काल्कि सुब्रमणियम ने कहा, ‘मैंने पहली बार गाया है और मुझे लगता है, कि मुझे एक नई आवाज़ मिल गई है।’ काल्की मीडिया एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में डबल एम.ए. हैं और सहोदरी नामक संगठन चलाती हैं।

यह एल्बम संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के समर्थन से, दिल्ली में 17 जनवरी, 2015 को लॉन्च की जाएगी। इस एल्बम की कॉपी खरीदने एवं डाउनलोड करने के लिए या एल्बम के विषय में अधिक जानकारी के लिए www.songsofthecaravan.in पर लॉग ऑन करें।

Pic Source: Songs of the Caravan

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