आली द्वारा प्रकाशित
आली द्वारा 6 राज्यों में (जिसमें उ.प्र., म.प्र., हरियाणा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व केरल शामिल हैं) इस विषय पर किए गए एक अध्ययन , से यह निकल कर आया कि इन सभी राज्यों की क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद इन सभी राज्यों में औरतों के यौनिक रिश्तों में चयन के अधिकार का हनन किया जाता है। आली द्वारा, ‘यौनिक सम्बन्धों में चयन का अधिकार’, इस छोटी सी पुस्तिका के माध्यम से भारत में विद्यमान कानूनों के परिपेक्ष्य में रिश्ते में चयन के अधिकार का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों व इस विषय पर काम करने वाली संस्थाओं के लिए सरल भाषा में एक दिशा निर्देश बनाने का प्रयास किया गया है। इसी पुस्तिका के कुछ अंश नीचे दिए गए हैं। पूरी पुस्तिका पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
इस पुस्तिका के पृष्ठ 6 पर लड़की के लिए यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 16 वर्ष लिखी है जो बालकों का लैंगिक अपराधों से संरक्षण अधिनियम, 2012 के लागू होने से पहले मान्य थी। इस अधिनियम के लागू होने के बाद लड़की तथा लड़के, दोनों के लिए ही यौन संबंध के लिए सहमति देने की कानूनी उम्र 18 वर्ष कर दी गयी है। अत: पाठकों से अनुरोध है कि वे कानून के इस बदलाव को ध्यान में रखते हुए बुकलेट पढ़ें।
चयन के अधिकार का अर्थ है, अपने लिए सबसे उचित व अच्छा चुनने का अधिकार। चयन का यह अधिकार पहनने-ओढ़ने से लेकर जीवन साथी चुनने के सभी छोटे-बड़े मामलों पर लागू होता है।
एक औरत जब अपने यौनिक साथी या जीवन साथी को चुनने और निर्णय लेने के अधिकार का प्रयोग करती है तो उसे अक्सर बहिष्कार, शोषण, यातना व हिंसा का शिकार होना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय समाज द्वारा स्वीकृत यौन संबंध केवल शादी है। यह शादी अभिभावकों या परिवार के बड़े बुज़ुर्गों द्वारा जाति, धर्म और वर्ग के कठोर नियमों को ध्यान रखकर तय की जाती है।
समाज द्वारा स्वीकृत व्यक्ति से शादी का यह सांस्कृतिक दबाव इज़्ज़त या सम्मान की अवधारणा से जुड़ा हुआ है। वो औरत जो स्वीकृत धर्म, जाति, वर्ग व जातीय समूह के व्यक्ति से शादी करती है, उसे परिवार के सम्मान के रूप में देखा जाता है। यदि कोई औरत इससे अलग जाकर शादी करती है तो यह उसके परिवार व जिस धर्म, जाति या वर्ग से वह परिवार जुड़ा है, उसके लिए बेइज़्ज़ती का कारण हो जाता है। औरत का ऐसा यौनिक संबंध, जो शादी से बाहर हो या समलैंगिक हो, परिवार के लिए असम्माननीय समझा जाता है क्योंकि विषमलैंगिक और परिवार द्वारा आयोजित शादी को ही सामाजिक रूप से वैध संबंध माना जाता है।
यौन संबंधों में रिश्तों के चयन का परिणाम भी भेदभावपूर्ण होता है। एक पुरुष के लिए अपने साथी का चुनाव सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देने वाला होता है, पर औरत के लिए यह पवित्रता व सम्मान के साथ खिलवाड़ करने का मुद्दा बन जाता है।
चयन के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में स्थापित करना ही एक बड़ी चुनौती रही है क्योंकि कुछ समय पहले तक महिला मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं में भी इस विषय पर बहुत अधिक समझ या सक्रीयता नहीं थी। जाति पंचायतों द्वारा इस प्रकार के रिश्तों का चयन करने पर असंवैधानिक तरीकों से हिंसा व बहिष्कार पहले से ही किया जाता रहा है पर पिछले कुछ समय से इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है ।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय संविधान चयन के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में स्वीकृति देता है तथा इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए कई कानून भी बनाए गए हैं। साथ ही साथ भारत सरकार ने इससे संबंधित कई अंतर्राष्ट्रीय सन्धियों और प्रतिज्ञा पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए हैं। इन सबके बावजूद जब परिवार, समुदाय व धर्म द्वारा चयन के अधिकार का उल्लघंन किया जाता है तब राज्य के विभिन्न अंग (पुलिस, प्रशासन, न्यायपालिका, वकील आदि) पीड़ितों के संरक्षण के बजाय उसके हनन में सहयोग करते हैं।
वैवाहिक संबंधों के अंतर्गत मिले अधिकार –
भारत में कोई भी महिला, जो 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की है, उसे यह कानूनी अधिकार है कि वह किसी भी ऐसे पुरुष से शादी कर सकती है जो,
- 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र का हो
- जिसकी कोई जीवित पत्नि न हो (अगर मुसलमान नहीं है)
- इस सम्बन्ध के लिए पूरी सहमति दे।
कानून स्त्री और पुरुष के बीच ऐसे विवाह को वैधता प्रदान करता है जो,
- किसी निजी कानून के तहत दोनों (स्त्री और पुरुष) एक ही धर्म का पालन करते हों, जिसमें भारतीय ईसाई कानून शामिल नहीं है।
- यदि स्त्री और पुरुष अलग अलग धर्मों के मानने वाले हैं और धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहते तो विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत शादी कर सकते हैं। इस प्रकार का विवाह अदालती विवाह (कोर्ट मैरिज) के रूप में प्रसिद्ध है।
अवैवाहिक सम्बन्धों के विषय में
- संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को संघ बनाने का अधिकार देता है।
- कोई भी कानून वयस्क औरत को यौनिक सम्बन्ध बनाने से नहीं रोकता, 2003 में भारत के उच्चतम न्यायलय ने फैसला दिया था कि ‘औरत / आदमी कहीं भी जा सकते हैं जहाँ वे जाना चाहें और किसी को भी पसंद कर सकते हैं या किसी के भी साथ रह सकते हैं। यह एक स्वतंत्र, लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति व्यस्क है तो उसके माता पिता भी उसके मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।’
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, विवाहित, अविवाहित तथा शादी के समान रिश्तों में रहने वाली महिला के अधिकारों का भी संरक्षण करता है। यह अधिनियम औरत के यौनिक सम्बन्धों में चयन के अधिकार के उल्लंघन को स्पष्ट रूप से घरेलू हिंसा के रूप में मान्यता देता है और इस हनन से बचाव के लिए राहतें प्रदान करता है।…
चयन के अधिकार का प्रयोग करना वाले जोड़े के खिलाफ़ झूठे मुक़दमे दायर होने के मामले में लड़की कहाँ पुलिस को सूचना दे, उम्र को साबित करने के लिए किन दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है, लड़की का बयान दर्ज करवाने के बारे में तथा चिकित्सकीय जाँच आदि के बारे में जानने के लिए पूरी पुस्तिका यहाँ पढ़ें।