पार्टनर्स फ़ॉर लॉ इन डेवलपमेंट द्वारा सन् २०१५ में प्रकाशित किताब के अंश
काम करने वाली जगहों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न एक कड़वी सच्चाई है। यह महिलाओं के अस्तित्व, उनकी सेहत और श्रम को चोट पहुंचाता है; साथ ही उन्हें रोज़गार छोड़ने तक पर मजबूर कर देता है। महिला श्रमिकों को यह मौका ही नहीं मिलता कि वो पुरुषों की तरह बराबरी से अपना योगदान दे सकें। इस गैर-बराबरी की वजह से संस्थाओं, फैक्ट्री, और कम्पनिओं और इन जैसी तमाम काम करने की जगहों को, समाज और देश की अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हो रहा है।
काम में समान अवसर, समान काम के लिए समान वेतन, तरक्की में समान अवसर जैसी तमाम बातें महिलाओं के मौलिक अधिकार हैं। लेकिन वे बड़े पैमाने पर इन सब से वंचित हैं। महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न इसी भेदभाव का एक हिंसात्मक रूप है। यह रूप महिलाओं के श्रम, उनके हौसले और उनकी प्रतिभा को पूरी तरह से नकार कर उन्हें यौन वस्तु बना देता है। कई सर्वे इस खौफनाक सच का सबूत बनकर सामने आए हैं कि लगभग हर महिला कभी ना कभी, किसी ना किसी रूप में यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है।
इस भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान में कई प्रावधान हैं। कानून और कई तरह की नीतियां बनाई गई हैं। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून सामाजिक न्याय और समानता के कानूनी ढांचे का एक हिस्सा है।
काम करने की जगहों पर यौन उत्पीड़न और अन्य तरह के लिंग आधारित भेदभाव को मिटाने की ज़िम्मेदारी कानून ने सरकार और नियोक्ता यानि मालिक पर डाली है। संविधान से मिले हक और सामाजिक न्याय को हासिल करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यौन उत्पीड़न को झेलना और उससे लड़ना सिर्फ औरत का काम नही है। इससे सभी को मिलकर लड़ना होगा।
इसीलिए संसद ने, सुप्रीम कोर्ट के विशाखा निर्णय के आधार पर, महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निशेध एवम निवारण) कानून, 2013 को पास किया है। इस कानून ने कार्यस्थल पर रोज़गार के दौरान यौन उत्पीडन को ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी साफ़-साफ़ सरकार और मालिक पर डाली है। यह इनकी ज़िम्मेदारी है कि कार्यस्थल पर ऐसा माहौल बनाएं कि यौन उत्पीडन के बारे में कोई सोच भी ना सके और ऐसी किसी भी घटना के खिलाफ तुरंत शिकायत दर्ज हो। एक ऐसा माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी जिसमें यह साफ़ नज़र आता हो कि यौन उत्पीड़न करने वाले को किसी भी हाल में बख्शा नही जाएगा। दोषी चाहे किसी भी पद पर हो, उसे सज़ा मिलकर रहेगी।
आजकल रोज़गार और कार्यक्षेत्र की ना तो कोई खास तय जगह है और ना ही कोई खास समय। कोई सड़क या बाज़ार में काम करता है तो कोई निर्माण स्थल पर तो कोई दफ्तर में। कुछ लोग काम के सिलसिले में रेल से, बस या यातायात के अन्य साधनों से लम्बा सफ़र तय करते हैं। सच पूछें तो अब शहर-गांव का बड़ा हिस्सा किसी ना किसी रूप में काम करने की जगह से जुड़ गया है। इसीलिए यौन उत्पीडन को मिटाने की ज़िम्मेदारी पूरे समाज पर आ जाती है।
इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए यह ज़रूरी है कि कानून की जानकारी हो। पार्टनर्स फोर ला इन डेवेलपमेंट (पी. एल. डी.) ने यौन उत्पीडन के खिलाफ़ समझ और जागरुकता पैदा करने के लिए कई सामग्रियाँ तैयार की हैं – पोस्टर, संक्षिप्त पुस्तिका और यह किताब। यह सब सामग्री हिंदी में उपलब्ध है।
हमनें इस किताब में कानूनी जानकारी को यौन उत्पीड़न के संदर्भ से जोड़कर समझने की कोशिश की है। हमारा प्रयास है कि हम केवल कानूनी धाराओं की तकनीकी जानकारी तक ही सीमित ना रहें। हम चाहते हैं कि इस बात को समझा जाए कि यौन उत्पीड़न के संदर्भ में इस कानून का महिलाओं, श्रमिकों और कार्यस्थल पर किस हद तक प्रभाव पड़ सकता है, यह हमारे कितने काम आ सकता है।
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पार्टनर्स फ़ॉर ला इन डेवेलपमेंट द्वारा विकसित इस किताब ‘हिंसा और कानून; कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न’ को प्राप्त करने के लिए यहाँ संपर्क करें।