मैं अलग हूँ,
कैसे?
तुमने पूछा |
मैंने तुम्हें लौटाया,
खाली हाथ,
बैरंग,
छूछा |
मेरा प्रेम बद्ध नहीं है,
धर्म, जाति, आयु से …
लिंग से भी नहीं …
क्योंकि समलैंगिक भले हूँ मैं,
पर है मेरे पास भी,
प्रेम की,
विराट मंजूषा |
—————–
तुमने चोट पहुंचाई,
मुझ तक न पहुँच पाई।
नहीं पाया मैंने,
तुम्हारे मेरे बीच,
कोई भी विरोध !!
हम एक ही तो हैं,
भिन्न है,
केवल हमारा लिंग बोध ।
तुम और मैं,
आत्मीय हैं,
सामीप्य किन्तु,
वर्जनीय है ।
मेरी समलैंगिकता,
महत्त्वपूर्ण है तुम्हारे लिए,
मेरे लिए,
मेरा आत्मबोध |
Read this poem in English