जुलाई १, २०१६ . ओशिन सिआओ भट्ट
सभी समाजों में, माहवारी से जुड़ी वर्जना न केवल इस पर चर्चा करने के लिए कार्यरत मृदु भाषा में स्पष्ट है, बल्कि इसके आसपास की मायावी चुप्पी में भी है। यह निषेध माहवारी के बारे में बहुत बड़ी अज्ञानता पैदा करता है और महिलाओं के लिए इससे निपटना सीखने के तरीकों पर भी बहुत बड़ा प्रभाव डालती है। माहवारी की शुरुआत, यौन परिपक्वता को बच्चे पैदा करने की सक्षमता की तरह दर्शाती है, जो कि अधिकतर समाजों में, केवल शादी के अंदर ही, महिला यौनिकता के लिए स्वीकार्य एकमात्र अभिव्यक्ति है। माहवारी के दौरान महिलाओं के लिए रोक या तो माहवारी से जुड़ी वर्जनाओं के रूप में लगाई जाती है या फिर माहवारी चक्र से इनकार की पूरी प्रणाली के रूप में लगाईं जाती है, और यह रोक इस तरह लगाई जाती है कि इस पर खुले तौर से चर्चा करना भी अस्वीकार्य हो जाता है, बजाए इस सवाल को उठाने के, कि कैसे विभिन्न तरीकों से महिलाओं की यौनिकता को दबा दिया गया है। दूसरी ओर, माहवारी प्रबंधन के कई तकनीकों की अंतर्दृष्टि ‘पीरियड इंडस्ट्री’ में प्रयोग किए जा रहे नवपरिवर्तन की एक बहुतायत प्रकट करते हैं, जो कि समाज भर में माहवारी के निपटारे के स्वदेशी तरीकों के साथ प्रयोग में लाये जा रहे हैं। इन्ही औद्योगिक या घरेलू, नवपरिवर्तनों को मैंने माहवारी को विज्ञान के साथ बांधकर समझने के लिए चुना है।
२०१० में प्रकाशित वाटर एड की एक रिपोर्ट में दक्षिण एशिया में मासिक धर्म स्वास्थ्य की उपेक्षा से लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास पर पड़ रहे प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। [१] इस रिपोर्ट में यह तर्क दिया गया है कि माहवारी से जुडी स्वच्छता प्रबंधन की लापरवाही, जिसमें भौतिक बुनियादी ढांचे और स्वच्छता एवं गरिमा के साथ माहवारी को संभालने के लिए सांस्कृतिक वातावरण को शामिल करना चाहिए, न केवल अलगाव पैदा करने वाली सांस्कृतिक प्रथाओं को, बल्कि माहवारी के रक्तस्राव से निपटने के लिए अपर्याप्त सुविधाओं की वजह से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को भी पैदा करता है। बदले में, यह न केवल लड़कियों के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है बल्कि जेंडर असमानता और बहिष्कार को और भी मजबूत करता है। जहाँ एक तरफ सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की आवाज के अभाव के लिए इसको जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, इस तरह से कि विकास से जुड़े मुद्दों में उनके अनुभवों और जरूरतों को ध्यान में नहीं रखा जाता है, वहीँ माहवारी के विषय से जुडी शर्म और शर्मिंदगी भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
माहवारी चक्र के बारे में औपचारिक ज्ञान और जागरूकता के अभाव के कारण, ऐसी जानकारी जो जो आम तौर पर माताओं द्वारा बेटियों को या महिला साथियों के बीच एक दूसरे को दी जाती है और जो अक्सर अधूरी होती है, ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में कई महिलाएं माहवारी के रक्त को सोखने के लिए पुरानी साड़ी से फाड़े गए कपडे का उपयोग कर रहीं हैं जिसे पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। वैसे कपड़े का उपयोग अपने आप में समस्या नहीं है, कुछ कपड़ों में अधिक संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा सुविधाओं की कमी जैसे, स्वच्छ पानी, और निजी शौचालयों की कमी के साथ-साथ माहवारी से जुड़ी गोपनीयता, इस्तेमाल किये गए कपड़े को धुप में सुखाने (जो बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है) से रोकती है, जिससे अक्सर कई तरह के स्वास्थ्य से जुड़े नुकसान होते हैं। इसके अलावा, माहवारी के रक्तस्राव से निपटने के लिए पर्याप्त संरचनात्मक सुविधाओं की कमी की वजह और माहवारी के बारे में गलत जानकारी होने की वजह से, माहवारी की शुरुआत के साथ ही कई लड़कियाँ स्कूल छोड़ देती हैं। यह उपेक्षा के एक ऐसे चक्र में ईंधन का काम करती है जो महिलाओं के विकास को गतिहीन करता है, जिसमें शुद्धता और अशुद्धि से जुड़े सांस्कृतिक विचार भी योगदान करते हैं।
इसके दूसरे छोर पर ‘पीरियड इंडस्ट्री’ है, जो मीडिया के माध्यम से प्रसारित कुछ विचारों और विश्वासों पर पनपती है। इसने अपने आप के लिए एक बाज़ार तैयार किया है जिसमें टैमन, सैनिटरी नैपकिन और उपयोग करके फेकने वाले पैड जैसे उत्पाद शहरी महिलाओं के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं। जहाँ एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका में महिला आन्दोलनों ने टैम्पोन की खरीद पर विलासिता कर लगाने पर सवाल उठाए हैं, माहवारी पर चर्चा में इस तरह के रक्स्त्राव को लगातार ‘गंदगी और अशुद्धता’ एवं शर्मिंदगी से जोड़ने पर सवाल उठाया गया है, वहीँ दूसरी तरफ, इन उत्पादों का उपयोग करने में शामिल खतरों के बारे में चर्चा में गंभीर कमी दिखाई देती है।
टैम्पोन और सैनिटरी नैपकिन के रूप में प्रयोग किये जाने वाले माहवारी उत्पादों के बारे में बढ़ती चिंताओं में से एक है पर्यावरण पर उनके प्रभाव। हाल के वर्षों में, कचरा भरने की जगहों में पैड और टैम्पोन की बढ़ती संख्या, और उनको बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले जाने वाली सामग्री जो प्राकृतिक तरीके से नष्ट नहीं होती है, निश्चित रूप से एक ऐसी समस्या है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसके अलावा, इन उत्पादों में प्रयोग में लाए जाने वाले विषैले रसायन न केवल पर्यावरण के लिए लेकिन शरीर के लिए भी हानिकारक हैं। हालांकि बड़े निकायों के लिए इस तरह की चिंताओं को ध्वस्त करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन को प्रायोजित करना असामान्य नहीं है, ’टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम’ और टैम्पोन के संबंध के बारे में व्यापक जानकारी है। इस तरह के ज्ञान, अब तक सीमित ही सहीं, ने सुरक्षित उत्पादों की दिशा में एक छोटे से आंदोलन का रूप लिया है जो न केवल शरीर बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। वापस पुन: प्रयोज्य इस्तेमाल किये जा सकने वाले कपड़े के पैड का प्रयोग, यहां तक कि माहवारी कप के उपयोग की तरफ आन्दोलन की शुरुआत हुई है जिसका उद्देश्य न केवल माहवारी के साथ निपटने के ऐसे तरीके बनाना है जो शरीर और पर्यावरण के लिए स्वस्थ हैं, बल्कि सस्कृति और खरीदी गई मीडिया से पैदा हुई माहवारी के रक्त से जुडी वर्जनाओं और संकोच के बारे में बातचीत शुरू करना भी है।
महिलाओं की एक बड़ी संख्या पुन: उपयोग किये जाने वाले माहवारी के उत्पादों का उपयोग करने से इस वजह से दूर भागती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि मासिक धर्म का रक्त गन्दा है और इसीलिए पुन: उपयोग किये जाने वाले उत्पादों को लेकर भी अस्वच्छता की धारणा होती है। हकीकत में, हालांकि, अगर उचित देखभाल और स्वच्छता का ध्यान रखा जाए, तो पुनः प्रयोग किये जा सकने वाले कपडे के पैड या माहवारी कप अधिक स्वास्थ्यकर और अपनी पुनः प्रयोग में आने की क्षमता की वजह से आर्थिक रूप से बेहतर साबित होते हैं। कई स्थानीय उद्यम शुरू हो गए हैं जो कि पुन: उपयोग किये जा सकने वाले कपड़े से बने पैड का उत्पादन कर रहे हैं, जैसे कि इकोफेम। यह उद्यम अक्सर माहवारी की ऐसी प्रथाओं के आदर्शों को पुनः जीवित करने की धारणा के साथ काम करते हैं जो स्वास्थ्यपरक हैं, पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हैं, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हैं और महिलाओं का सशक्तिकरण करती हो। अन्य तरह की नई पद्धतियाँ खुले तौर पर इन कपड़े के पैड के उपयोग, धोने और सुखाने और इनसे जुडी शर्म और शर्मिंदगी को संबोधित करती हैं, वे कारण जो इनके उपयोग से जुडी रुकावटों में सबसे आगे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण आसानी से प्रयोग में लाया जा सकने वाला एक उपकरण है जिसे फ्लो कहा जाता है, इसे कैलिफ़ोर्निया के आर्ट सेंटर कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा तैयार किया गया है, जो विशेष रूप से कम आय वाले समाज में रहने वाली लड़कियों के पुनः प्रयोग किये जाने वाले कपडे के पैड को धोने और सुखाने में सहायता कर सकते हैं। यह एक प्लास्टिक की टोकरी से बना है जिसके अन्दर दो कटोरों में पानी और डिटर्जेंट रखा जाता है और ऊपर से एक रस्सी बांधी जाती है जिससे उसे घुमाया जा सके। इसके साथ ही दोनों कटोरे पुनः प्रयोग में आने वाले कपडे के पैड को भी छिपाते हैं और बाद में उन दोनों कटोरों को खींचकर बहार निकला जा सकता है जिससे कपडे के पैड धुप में सुखाए जा सकें, जिसके चारो तरफ एक दूसरा कपड़ा लगाकर गोपनीयता को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह इस तरह से लड़कियों के इस्तेमाल किये गए कपड़े को अँधेरे, गुप्त स्थानों में छुपाने की ज़रुरत महसूस होने की समस्या, जो कि स्वास्थ्य के लिए खतरा भी है, से निपटने में कारगर साबित होता है।
कुछ अन्य तरह के नवाचारों में प्रौद्योगिकी के साथ घनिष्ठ भागीदारी शामिल है जो ऐप के रूप में हैं जैसे माय.फ्लो, जिसमें एक पहने जा सकने वाले ब्लूटूथ उपकरण को टेम्पोन मॉनिटर के साथ जोड़ा जा सकता है जो टेम्पोंन के पूरी तरह भर जाने पर नज़र रखता है। इस तरह का ऐप ‘सार्वजनिक जगहों पर माहवारी के समय मासिक स्त्राव बाहर आ जाने’ और लोगों को माहवारी का पता चल जाने के डर को संबोधित करता है। महिलाओं में अपने माहवारी चक्र को गुप्त रखने का महत्व, ‘दाग लग जाने’ को लेकर निरंतर डर और इस तरह की शर्मिंदगी से बचने के लिए बनने वाले उत्पादों में परिलक्षित होता है। जहाँ महिलाओं के नेतृत्व में इस तरह की नई पद्धतियां उन मुद्दों को संबोधित करते हैं, जिनसे पीरियड इंडस्ट्री के पुरुष शायद कभी निपट ही न पाएं, वहीँ यह उत्पाद माहवारी से जुड़ी वर्जनाओं को और मजबूती देते जा रहे हैं। फिर भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के इस योगदान का सम्मान करना महत्वपूर्ण है, जो इस तरह के महिला केंद्रित मुद्दों से जूझने पर प्रभाव डालते हैं।
महिलाओं द्वारा मासिक रक्तस्त्राव के प्रबंधन से जुड़ी नई खोजों के ऐसे कई उदाहरण हमें पूरे समाज में दिखाई देते हैं। १५ वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, ईजिप्शियन महिलाओं ने पपायरस का बहुत ही रचनात्मक उपयोग ढूँढा, वहीँ अफ्रीका और एशिया में महिलाओं ने शोषक काई के साथ प्रयोग किया है, और प्रथम विश्व युद्ध की नर्सों ने सेल्यूलोज पट्टियों के मायने बदल दिए। इसी तरह लिलियन गिल्बर्ट द्वारा जॉनसन एंड जॉनसन के साथ काम करते हुए सेनेटरी पैड को सुधारने में महिलाओ की परख का प्रयोग किया गया। महिलाओं की प्रतिक्रियाओं ने ईंट की तरह दिखने वाले पैड के प्रयोग के प्रति असंतोष को सामने रखा, जिसका वे अपने शरीर में फिट बैठने के लिए सुधार करतीं थीं। हालांकि, इन निकायों के कर्ताधर्ता पुरुषों ने, अपने पहले से मौजूद उत्पादों से महिलाओं में होने वाले असंतोष को ध्यान में नहीं रखा और लिलियन गिल्बर्ट की खोज नियम बनने की जगह अपवाद बन गई। आधुनिक समय में ९५% सैनिटरी नैपकिन के पेटेंट पुरुषों के स्वामित्व वाले हैं यह किसी के लिए भी इन उत्पादों के सुरक्षित होने के परिमाण और इन उत्पादों के उपयोगकर्ताओं की सुविधा पर सवाल खड़ा करता है, जो हितधारकों के लिए एक चिंता का विषय है।
इसी संबंध में, विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रयास, जो मुख्य रूप से महिला उन्मुख नवपरिवर्तन पर विशेष रूप से काम कर रहे हैं, को अधिक सराहनीय बनाता है। ऐसा ही एक उदाहरण है, एक इंजीनियर रिद्धि तारियल के अनुभव का है जो घर पर प्रजनन विकारों पर नजर रखने के लिए माहवारी प्रवाह का उपयोग कर उन्हें चिकित्सीय नमूनों में विकसित करने के लिए कार्यरत हैं। सुइयों का उपयोग किए बिना मासिक स्त्राव के खून का उपयोग करने का विचार उनके पुरुष सहयोगियों की नज़र में नहीं आया जबकि उनके महिला होने के अनुभव ने उन्हें इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया। यह परियोजना, जो अभी भी चल रही है, जो टैम्पोन से मिले हुए खून के उपयोग से विकारों जैसे, एन्डोमेट्रीओसिस की चेतावनी देने वाले संकेतों को पकड़ने में सहायक साबित हो सकती है।
जबकि इस तरह के प्रयास प्रशंसनीय हैं, वहीँ यह भी साबित किया जा सकता है कि किस प्रकार माहवारी के आसपास के नवपरिवर्तन, सर्वशक्तिमान ‘पीरियड इंडस्ट्री’ की सांस्कृतिक शक्ति से प्रभावित हैं। जहाँ ‘पीरियड इंडस्ट्री’ माहवारी के बारे में गलतफहमी, वर्जना और गोपनीयता पर पनपती है, यह माहवारी प्रबंधन के जरूरी सतत और स्वस्थ साधन की जरूरत को भी किनारे करती है। यह इस बात से स्पष्ट होता है कि टैम्पोंन को नवपरिवर्तन के ऐसे उद्देश्यों के लिए ‘स्वाभाविक पसंद’ माना जाता है। जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है टैम्पोन और सेनेटरी पैड पर्यावरण और शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं लेकिन फिर भी ‘पीरियड इंडस्ट्री’ द्वारा अपरिहार्य होने की मान्यता दिए जाने के कारण बेहद लोकप्रिय हैं। ऐसे में, माहवारी के टिकाऊ और स्वस्थ उत्पादों के नवाचारों की वैकल्पिक संभावनाओं पर प्रकाश डालना और भी जरूरी हो जाता है।
- माहों, टी & फर्नांडीस, एम. (२०१०)। मेन्स्त्रुअल हाइजीन इन साउथ एशिया: ए नेग्लेक्टेड इशू फॉर वॉश (वाटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन) प्रोग्राम्म्स. वाटरएड। लंदन: जेंडर एंड डेवलपमेंट