2006 में जब पहले-पहल मैं दिल्ली आई, उस समय मेरी उम्र 22 वर्ष की थी और मुझे यौनिक व्यंग्य या कटाक्षों के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी। उन दिनों एफ़एम रेडियो पर ‘Fropper’ नाम की एक मशहूर डेटिंग/’दोस्ती’ करने की साइट का विज्ञापन चला करता था, और मैंने एक बार कॉल सेंटर की अपनी नौकरी के लिए कैब में सफर करते हुए इसके बारे में सुना था। मैं ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया से थोड़ी अनजान थी (ईमानदारी से कहूँ तो ये ऑनलाइन डेटिंग उन दिनों बहुत नई चीज़ थी, ये बात ऑर्कुट ओर फेसबुक के पहले के दिनों की है)। अपनी पहली ब्लाईंड डेट पर मेरी मुलाक़ात एक 44 साल के आदमी से हुई, जिसने अपने प्रोफ़ाइल में खुद को 22 का बताया था। हम कनाट प्लेस में मिले थे।
उस व्यक्ति के अपने से ज़्यादा उम्र के होने पर मुझे कम बुरा लगा था, मैं इस बात से ज़्यादा दुखी थी कि उसनें मुझसे झूठ कहा था। उसे, वहीं दूसरी ओर शायद मेरे सपाट सीने को देखकर व्यंग्य करने में ज़्यादा ही खुशी मिल रही थी। उसने कहा, ‘इतने पिम्पल हैं तुम्हारे, दो और कहाँ पता चलेंगे?’ उसे हमारी उम्र के अंतर पर, मेरी स्वप्रतिरक्षित त्वचा के रोग के बारे में कटाक्ष करने में शायद बहुत मज़ा आ रहा था। उसे इसमें भी आनंद मिल रहा था कि मैं उससे काफी कुछ कम जानती थी और हर लिहाज से उससे शायद कम विशेषाधिकार प्राप्त थी। भले ही मुझे उसकी कही हुई बातों का अर्थ पूरी तरह से समझ नहीं आया, लेकिन उसके बात करने के तरीके और हाव-भाव से मुझे इन बातों का कुछ-कुछ एहसास हो गया था। बाद में अपने हॉस्टल लौटने पर मेरी दोस्तों नें जब मुझे उसकी बातों का मतलब बताया तब जाकर मुझे उसके कहे हुए शब्दों का सही मायने में बोध हुआ।
यहाँ यह सब बताने का मेरा तात्पर्य सिर्फ यही है कि, जैसा अक्सर कहा जाता है, उम्र सिर्फ एक नंबर या संख्या नहीं होती बल्कि इसमें अनेक बातों, अनुभवों का मेल होता है। उम्र के साथ साथ आप में शालीनता आ जाती है, आपके अनुभव ज़्यादा होते हैं, आपकी जानकारी ज़्यादा होती है, आप विकट परिस्थितियों में पलट कर मुक़ाबला कर पाने की बेहतर स्थिति में होते हैं। लेकिन फिर भी, अनगिनत दूसरे रूपों में, उम्र वाकई एक क्रमसंख्या से ज़्यादा कुछ नहीं होती।
तो 22 साल की उम्र में उस समय तो मैं उसकी किसी बात का प्रतीकार नहीं समझी, न ही उसे पलट कर जवाब दे पाई थी। लेकिन आज, 15 सालों के बाद, मैं किसी से भी कम नहीं हूँ। 22 साल की उम्र में मुझे नहीं पता था कि क्वीयर व्यवहार क्या होते हैं। आज 37 की उम्र में, मैंने खुद के परीक्षण और त्रुटि से सीखा है, अनेक अनुभव पाए हैं, यौनिकता के अनेक पहलुओं को करीब से समझा और जाना है। अनेक यौन व्यवहारों में BDSM है, किंक (kink) है, LGBTQIA+ लोगों की समस्त संभव विविधता है जिसके बारे में जाना और समझा है और इन सब से मुझे अपने शरीर, अपनी इच्छाओं और यौनिकता के बारे में बहुत कुछ पता चला है। मैंने दूसरों के प्रभाव में आकर सहमति व्यक्त करने से लेकर समझबूझ कर, अपनी बातें साफ़ कह कर, स्पष्ट सहमति देने तक का लंबा सफर पार किया है।
तो, मैं उम्र और यौनिकता को इस लिहाज से देखती हूँ – बिलकुल अपने नज़रिये से। उम्र को देखने का दूसरा एक नज़रिया है, अपने साथी चुनते हुए उम्र को देखना। मुझे हमेशा से ही अपने से 7 से 10 साल ज़्यादा उम्र के पुरुष अधिक आकर्षित करते रहे हैं। मुझे लगता है कि अपने से ज़्यादा उम्र के लोगों की तरफ मेरे अधिक आकर्षित होने का कारण यही रहा कि मेरे अंदर, मन ही मन कहीं यह भाव रहा था कि उम्र का सीधा ताल्लुक अनुभव और परिपक्वता से होता है।
आज, मैं पहले से ज़्यादा जानती और समझती हूँ। आज हम देखते हैं कि कैसे 16 से 25 साल की उम्र के लोग भी बोलने और विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए और हमारी पृथ्वी को बचाने के लिए डट खड़े हुए हैं। हमनें इस उम्र के लोगों को सच बोलने पर गिरफ़्तार होते देखा है। आज युवा उम्र के लोग न केवल यौनिक सशक्तिकरण के लिए आवाज़ उठाते दिखाई देते हैं, बल्कि वे समानता, समवेशिता, पर्यावरण और ऐसे ही अनेक मुद्दों पर भी अपनी आवाज़ उठाते हैं। आप मेरा यकीन मानें, आज के ये युवा लोग यौनिक उत्तरदायित्व के बारे में और यौनिक विविधता को स्वीकार करने को लेकर अपनी उम्र से अनेक बड़े लोगों से कहीं ज़्यादा सजग हैं।
यह सब कहने के बाद भी, व्यक्तिगत तौर पर मैं युवा पुरुषों की ओर ज़्यादा आकर्षित इसलिए नहीं होती, क्योंकि मुझे लगता है कि यौन सुख का संबंध अपने साथी के साथ बौद्धिक स्तर पर जुड़ाव और भावनात्मक अनुरूपता पर ज़्यादा होता है। जहां युवा उम्र के पुरुषों की जानकारी का स्तर अधिक होने से दो लोगों के बीच की अक्ल के अंतर की दूरी कम रहती है, वहीं भावनात्मक स्तर पर कम उम्र के पुरुषों में एक तरह के बचपने के कारण मुझे वो प्रभावित नहीं कर पाते। असल जीवन में, इनमें से ज़्यादातर युवा पुरुषों नें कभी बूढ़े हो रहे अपने रोगग्रस्त माँ-बाप की देखभाल नहीं की होगी, इन्हें घर पर लिए कर्ज़ की किश्ते चुकाने का कोई अनुभव नहीं होगा और शायद किसी का साथ निभा पाने या संतान को पालने का अनुभव भी नहीं होगा। मैं ऐसा नहीं कह रही कि ये युवा पुरुष किसी भी तरह से अपने से बड़ी उम्र के पुरुषों की तुलना में ‘कमतर’ होते हैं, मेरा बस अपना व्यक्तिगत झुकाव बड़ी उम्र के पुरुषों की ओर रहता है और इस मामले में मेरा नज़रिया काफी कुछ ऐसा ही बन चुका है।
वहीं दूसरी ओर, अपने से बहुत ज़्यादा बड़ी उम्र के पुरुषों का साथ निभा पाने में भी मुझे अनेक तरह की चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं। मैंने देखा है कि समय के साथ उनके व्यवहार बहुत दृढ़ हो चुके होते हैं और वे बदलना नहीं चाहते। सेक्स के लिहाज से और बौद्धिक तौर पर भी मुझे ये सब ज़्यादा भाता नहीं। तो एक 40 वर्ष की उम्र के घेरे में आने वाले व्यक्ति के तौर पर मुझे अब यौनिकता और उम्र के इस प्रतिच्छेदन (इंटरसेक्शन) पर चलने में कठिनाई होने लगी है।
कभी-कभी तो मेरे मन में यह ख्याल भी आता है कि जब मैं ‘रजोनिवृत्ति’ कि उम्र में पहुँचूंगी, या बूढ़ी होने लगूँगी तो क्या मेरे शरीर के हॉरमोन मेरा साथ देंगे? क्या तब भी मेरे मन में इतनी इच्छाएँ और कामुकता बची होगी? क्या उस समय भी मैं लोगों को आकर्षक लगती रहूँगी?
अपने इन्हीं विचारों को देखते हुए मुझे यह एहसास हो चला है कि उम्र के बढ़ने के साथ यौनिकता के बारे में जब मैं सोचती हूँ, तो मैं केवल सेक्स में बहुत अधिक शारीरिक क्रियाकलापों पर ध्यान नहीं देती बल्कि मैं यह सोचती हूँ कि किसी को आकर्षक मानने, यौन अभिव्यक्ति और विश्वास के बारे में मेरे सामाजिक-सांस्कृतिक विचार क्या है, और व्यक्तिगत तौर पर और अपने यौन साथी, दोनों के नज़रिये से यौन सम्बन्धों के बारे में हमारी मानसिकता किस तरह की है। यौनिकता के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को समझ पाने के लिए आवशयक अध्ययन हम बहुत कम करते हैं और इससे भी कहीं कम हम दयालु भाव से सोच विचार करने या समनुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण से दूसरों को आंकने की कोशिश करते हैं। अपने जीवन में उम्र के इस पढ़ाव पर पहुँचकर मुझे यह अहसास हो चला है कि उम्र के बढ़ने और यौनिकता के बीच संख्यात्मक संबंध शायद हो सकता है, लेकिन उससे भी कहीं ज़्यादा, यह कि ये एक सतत यात्रा है और इसे एक बार में ही पूरा समझ लेने की कोशिश करना शायद निरर्थक होगा। शायद बेहतर यही होगा कि पूरे प्रेम और पूरी स्वतन्त्रता के साथ इस लंबी यात्रा से गुज़र कर देखा जाए और इसका अनुभव किया जाए।
लेखिका : अस्मि
अस्मि एक सक्रिय BDSM प्रैकटीशनर हैं, लोगों को जीवन जीने के तरीके सिखातीं हैं, लेखन करतीं हैं, दूसरों को सशक्त करने के लिए आवाज़ उठातीं हैं, BDSM, नारीवाद, LGBTQIA+ व्यवहारों, यौनिकता और कामुक साहित्य पर अनेक तरह से जानकारी और अनुभव प्राप्त करतीं रहतीं हैं। वे अनेक वास्तविक BDSM समुदायों में सक्रिय भागीदार हैं और पूरी दुनिया में और भारत के अनेक दूसरे ऐसे ही प्रैकटीशनर लोगों से उनके निकट संबंध हैं। उन्होंने BDSM के अनेक पहलुओं पर अब तक 3 पुस्तकें लिखी हैं। उनकी ये पुस्तकें किंडल पर उपलब्ध हैं। उनसे फेसबुक पर या ईमेल द्वारा asmi.uniqus@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
सोमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित।
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