दीपा रंगनाथन द्वारा
मैं एक २६ वर्षीय महिला हूँ। क्या इसमें कुछ भी अद्भुत है? शायद नहीं। पर २६ वर्ष की परिपक्व उम्र में एक महिला के रूप में एकल एवं अविवाहित होना निश्चित रूप से एक अद्भुत बात है। यह वो उम्र है जहाँ महिला अपने ‘उत्कृष्ट समय’ को पीछे छोड़ चुकी होती हैं। एक ऐसी उम्र जब उनकी जैविक घड़ी (यानि समाज द्वारा निर्मित एक आध्यात्मिक घड़ी) टिक-टिक करना प्रारम्भ कर देती है। संभवतः २६ एक अमूर्त एवं यादृच्छिक/ यूं ही लिया गया अंक है। एक अविवाहित महिला जैसे ही ‘शादी योग्य उम्र’ तक पहुँचती हैं, वो समाज को चुभने लगती हैं – एक भयंकर घड़ी के रूप में। और जब मैं समाज का उल्लेख करती हूँ तो मेरा इशारा हमारे परिवारों की ओर है – वह मुख्य संस्थान जो किसी भी संस्कृति के प्रति जागरूक समाज को निर्मित करता है।
निसंदेह यह लेख विवाह की निंदा करने के बारे में नहीं है। या उन लोगों के ख़िलाफ़ नहीं है जो विवाहित हैं या विवाह करने का फ़ैसला करते हैं। या उन परिवारों के ख़िलाफ़ जो विवाह के संस्थान या विचार में भागिदार हैं। यह लेख इस बात को प्रतिबिंबित करता है कि आप चाहे कितनी भी सफलताओं एवं संतुष्टियों की ऊँचाइयों को छू लें फिर भी व्यक्ति का अविवाहित होना समाज को चुभता है। मैं एक शैक्षिक रूप से योग्य, सफ़लतापूर्वक रोज़गार करने वाली, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला हूँ जिसका अपने जीवन पर (प्रकट रूप से) नियंत्रण है। एक ऐसी महिला होने के बाद भी, जिसका जीवन एक खूबसूरत तस्वीर जैसा है, मैं सामाजिक कोप से नहीं बच सकती। एक एकल महिला के रूप में, जिसने कहावत के अनुसार शादी के लड्डू को नहीं चखा है, मैं सबसे अलग हूँ। अविवाहित। उपेक्षित।
ज़्यादातर, एक व्यक्ति का अविवाहित होना उनके यौनिक रूप से सक्रीय होने या न होने से काफ़ी हद तक सम्बंधित है। दिलचस्प रूप से और काफ़ी कुछ विरोधाभास के रूप में भी, समाज लोगों के यौन जीवन में गहरी रुचि रखता है। विरोधाभास इसलिए क्योंकि हमारे रूढ़िवादी समाज के लिए यह करना उसके अपने नियत सिद्धांतों के खिलाफ़ जाने जैसा है। सेक्स जो एक क्रिया के रूप में और एक पहचान के अंश के रूप में, दोनों ही रूपों में इतना निजी विषय है, वह परिवार में सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। हममें से वो जो यौन रूप से सक्रिय नहीं हैं, विवाह उनके लिए एक अंतिम लक्षित सरहद की तरह है जहाँ वे अपने कौमार्य को सम्मानित रूप से खोकर हमेशा के लिए आनंदपूर्ण जीवन बिता सकते हैं। हममे से वो महिलाएँ जो यौन रूप से सक्रिय हैं, उनपर हमेशा परिवार का दबाव बना रहता है और उन्हें सलाह दी जाती है कि वे सिर्फ एक गर्लफ्रेंड या प्रेमिका बनी रहने के बजाय पत्नी बनें। दोनों में से पहली सूरत में समाज की स्वीकृति है और दूसरी के लिए उपहास, निंदा, ताने और अपरिहार्य अफ़वाहें।
कार्यस्थल पर भी, एक व्यक्ति का वेतन वृद्धि पत्र उतनी एहमियत नहीं रखता जितना उनका विवाह प्रमाणपत्र। जब उन सफ़ल एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं की बात आती है जो ‘अविवाहित’ की विस्तृत श्रेणी में आती हैं, तो पितृसत्ता की राजनीति अनगिनत तरीकों से प्रकट होती है। पदोन्नति हुई? ठीक है पर करिअर इंतज़ार कर सकता है, विवाह नहीं। वेतन वृद्धि हुई? वो तो ठीक है पर अपने से ज्यादा वेतन पाने वाली महिला से कौन सा मर्द विवाह करना चाहेगा? अपनी पीएचडी पूरी कर ली? चलो आखिरकार! बेहतर हो की आप विवाह कर लें; एक अधिक योग्यता प्राप्त लड़की से कौन विवाह करेगा? ये सभी जवाब विशिष्ट रूप से महिलाओं के लिए होते हैं। जिस तरह से विवाह, उसकी केन्द्रीयता और उसके गंभीर महत्व को प्रस्तुत किया जाता है, व्यक्ति किसी भी अन्य सफ़लता का आनंद अपराध-बोध के बिना नहीं ले सकते हैं। हर बार जब भी मैंने अपने जीवन में किसी काबिलेतारीफ़ चीज़ पर विचार करने की कोशिश की है, मुझे अपने अविवाहित होने की कठोर सच्चाई को अपनाने के लिए मजबूर किया गया है।
विषमलैंगिक मानदण्डात्मक (हेटेरोनोर्मटिव) सामाजिक ढांचे का उत्कृष्ट प्रतिनिधि परिवार, जिसमें हम रहते हैं, महिला के शादीशुदा या शादी से पहले के जीवन में बहुत दखलंदाज़ी करता है। यह महिलाओं के यौनिक जीवन में परिवार की दिलचस्पी के कारण है, जिसपर वह अपना पूरा नियंत्रण जताता है। एक अविवाहित महिला होने के नाते मेरे विवाह के पहले के जीवन में जितना हो सके उतना कौमार्य / ब्रह्मचर्य होने की आकांक्षा की जाती है। आदर्श रूप से मेरा परिवार यही चाहेगा कि मेरा कोई बॉयफ्रेंड ना हो या फिर (अगर मेरा परिवार थोड़ा सा भी गैर-पारम्परिक हो तो) ये उम्मीद की जाएगी कि मैं अपने रिश्ते की स्थिति के बारे में उन्हें लगातार अवगत कराती रहूँ। एक महिला साथी होने का तो सवाल ही नहीं उठता। और अपने पसंद के साथी के साथ शादी से पहले साथ रहना तो संस्कृति के ख़िलाफ़ है।
मैं हाल ही में एक अभियान के निरिक्षण एवं कार्यान्वन में शामिल रही हूँ जो जल्द ही फेमिनिस्ट एप्रोच टू टेक्नोलॉजी (FAT) संस्था की लड़कियों द्वारा चलाया जाएगा| यह वह संस्था है जहाँ मैं काम करती हूँ, नई बातें सीखती हूँ और पुरानी सीखी हुई कुछ बातों को मिटाने की कोशिश करती हूँ। FAT सुविधाहीन परिवारों की लड़कियों को फोटोग्राफ़ी और फिल्म बनाना सिखाती है, जिससे वे अपने तकनीकी हुनर का उपयोग करके अपने खुद के अभियान चला सकें, उन फिल्मों का प्रयोग करके जिन्हें वे खुद बनाती हैं। ये घरेलु कामगार और निर्माण कर्मियों की बेटियां हैं जो सुबह ४ बजे उठती हैं और स्कूल और कॉलेज तक पहुँचने के लिए निरंतर संघर्ष करती हैं । दूसरी ओर हूँ मैं: इकीसवीं सदी की एक उच्चजातीय, मध्यम वर्गीय, साक्षर एवं शिक्षित महिला । हालाँकि, जो हमें साथ में बांधता है, वो यह समाज है जिसकी हम सब उपज हैं। दबाव हम सब पर एक जैसे ही हैं, पर उनकी अभिव्यक्ति अलग है। अविवाहित महिला के रूप में हमारे संघर्ष आश्चर्यजनक रूप से समान हैं। हमारी सबसे बड़ी जंग हमारे घरों के अंदर लड़ी जाती है।
शायद किसी दिन मैं शादी करना चाहूँ। उनसे जिनकी मेरे जीवन में एहमियत हो, और जिनके साथ मैं अपनी पूरी जीवन बिताना चाहूँ। शायद एक ऐसे तरीके से जिसमें दबाव कम हो और संतोष ज़्यादा। मैं ज़बरदस्ती के सख्त खिलाफ हूँ। यदि मैं १९ साल की हूँ और शादी करना चाहती हूँ तो ऐसा करने का मुझे पूरा अधिकार है। ठीक वैसे ही जैसे २६ वर्ष के होने पर शादी ना करने की चाह रखने का अधिकार। यहाँ यह बात शायद बहुत सुस्पष्ट लग रही हो पर चलिए इस तथ्य को दोहरा ही लेते हैं कि यह कोई नहीं बता सकता कि हम शादी के लिए कब पूरी तरह से तैयार हैं। हमारे खुद के आलावा। आइये चयन के अधिकार का आदर करें। आइये उस युगल जोड़े को आशीर्वाद दें जो अलग परिवेश होने के बाद भी साथ होना चाहते हैं। आइये उन लोगों के लिए ख़ुशी मानते हैं जो एकल/अविवाहित की श्रेणी पर सही का निशान लगाने में ख़ुशी महसूस करते हैं। आइये सीमाओं को तोड़ते हैं। आइये परिवर्तनकारी/क्रन्तिकारी बनते हैं। आइये उस एक चीज़ का आदर करते हैं जिससे हमने लोगों को सदा वंचित रखा है। चयन। आज़ादी। साधन। हम जो और जैसे हैं, वैसे ही रहने का सरल अधिकार।
इस लेख का एक संक्षिप्त एवं संशोधित संस्करण अँग्रेज़ी में लेखिका के ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है।