मैं एक लेखिका हूँ । बीडीएसएम (BDSM) के बारे में लिखती हूँ । एक दशक से ज़्यादा हो गया मुझे इस जीवन शैली को जीते हुए। मैं विवाहित नहीं हूँ और भारत में रहती हूँ ।
मैं जानती हूँ कि आपके दिमाग में क्या तस्वीर बन रही है। छरहरी काया, सुतवाँ जिस्म, तने हुए स्तन, लंबी टांगें, कसे हुए नितम्ब, काला नकाब, चमड़े के काले कैट वुमन (Cat woman) जैसे कपड़े और हाथ में एक चाबुक! एक सुन्दर, निर्दयी औरत जो अपने आस–पास के लोगों को कुछ नहीं समझती सिवाय अपने खिलौने के।
और या फिर आपके दिमाग की दूसरी तस्वीर शायद ये है :
मरमरी बदन, अर्ध या पूर्ण नग्न देह, बंधे हाथ, शायद बंधे पैर भी; और हाँ, यौनांग कुछ इस तरह दिखते हुए कि लगे रति क्रीड़ा के लिए कोई खिलौना है। वो हंटर वाली शायद इस मरमरी देह पर कुछ चाबुक भी बरसा रही हो, कुछ यौन उत्पीड़न और अप्राकृतिक, उत्तेजक यौन क्रीड़ा का न्योता–सा देती भाव–भंगिमा।
आइए अब ज़रा यथार्थ भी जान लें। एक उच्च शिक्षा प्राप्त, आधुनिक एवं गरिमापूर्ण व्यक्तित्त्व की स्वामिनी, अक्सर सलवार कुरता या साड़ी पहन कर दफ़्तर जाने वाली, कार्य निपुण महिला हूँ मैं। घर वालों का ध्यान रखती हूँ, सामान्य तौर पर सुन्दर कही जा सकती हूँ, अपने पद, सामाजिक स्थिति, पारिवारिक परम्पराओं के दायरे में रह कर भी संकुचित दृष्टिकोण नहीं रखती। और हाँ, मुझे चमड़े से भी एलर्जी है, और नग्नता से भी, क्योंकि मेरी त्वचा अत्यधिक संवेदनशील है। लेकिन हाँ, मेरे निजी संबंधों में, बीडीएसएम (BDSM) दृष्टिकोण से, मैं अधीन या सबमिसिव (submissive) हूँ। अपने साथी के साथ निजी क्षणों में यदि आप मेरा व्यवहार देखें तो लगेगा शायद कोई ग़ुलाम हूँ। किन्तु उसी साथी के साथ निजी संबंधों के बाहर एक व्यावसायिक मीटिंग में बैठे होने पर कोई मेरा निजी व्यक्तित्त्व नहीं पहचान सकता।
यथार्थ के धरातल पर आपका स्वागत है!
यह सोच कर अजीब लगता है कि कैसे बाज़ारू पोर्न और कपोल कल्पित यौन क्रीड़ा के विडियो हमारे यथार्थ को मटमैला कर देते हैं? कितनी औरतें देखी हैं आपने वास्तविक ज़िन्दगी में जो उतनी छरहरी काया की स्वामिनी हो कर, कटीली नचनिया सा नृत्य कर, हाथ में चाबुक ले कर पुरुषों को लगातार रिझाती रह सकें ? कितने पुरुष देखे हैं आपने जिनका यौनांग नैसर्गिक रूप से वैसा हो जैसा इन फिल्मों में दीखता है?
मुझे गलत मत समझियेगा! मैं ना तो ये कह रही हूँ कि ऐसे लोग नहीं होते, न ही ये कि ऐसी यौन क्रीड़ा नहीं होती । मैं ये तो बिलकुल भी नहीं कह रही कि ऐसा होना नहीं चाहिए। जब तक वयस्कों की सहमति से, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए, बिना किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित या चालाकी किए बिना कुछ भी हो; मेरी व्यक्तिगत दृष्टि में वो जायज़ है। उस पर सवाल या ऊँगली उठाने का हक़ किसी का नहीं।
मगर समस्या तब होती है जब पोर्न और कपोल कल्पित, उत्तेजक, यौन फैन्टसी और रति क्रीड़ा के विडियो प्रभाव के कारण मुझ जैसी महिलाओं को चालू या चरित्रहीन का तमगा मिल जाता है। ये कहने भर की देर होती है कि हम BDSM के बारे में जानती हैं, या उसमें हमारी दिलचस्पी है; और मान लिया जाता है कि हम किसी के भी साथ निजी सम्बन्ध बना लेती होंगी। हमें हासिल करना आसान होगा, हमारी ना का तो कोई मायने ही नहीं होगा। और ये सारा फ़साद किसलिए? सिर्फ इसलिए कि बाज़ार में बिकने वाला पोर्न, वास्तविकता के बारे में हमारे सही और गलत की समझ को धूमिल कर देता है!
पोर्न देखने और पोर्न साहित्य पढ़ने वाले कई मित्रों को बहुत झटका लगते देखा है जब उनके BDSM साथी फिल्मों की तरह नहीं होते। उसके बाद या तो उन्हें समझ आ जाता है कि कपोल कल्पना सिर्फ़ ‘अपना सुख, अपने हाथ ‘ तक ही सीमित रहे तो ठीक है। या फिर मायूस हो कर वो इस जीवन शैली को छोड़ देते हैं। और या फिर एक मृग मरीचिका की तलाश में साथी से साथी तक भटकते हैं।
किसी वक्त मैंने भी पोर्न और यौन साहित्य के प्रभाव को महसूस किया है। मगर, मैंने वक़्त रहते समझ लिया था कि सुनहरे परदे की तरह पोर्न फिल्में, पोर्न कथाएँ और फैन्टसी बस नए विचारों से परिचित करवाने तक ही सीमित रहे तो अच्छा। और आप तक अपनी बात पहुँचाने के पीछे का कारण भी यही है। याद रहे कलाबाज़ के कार्य कलापों को दोहराने के लिए या तो प्रशिक्षण लेना होता है, या फिर अपने हाथ- पैर ,गर्दन, भावनाओं या संबंधों की बलि चढाने की तैयारी करनी होती है। और हाँ, बीडीएसएम हो या सामान्य निजी सम्बन्ध, उत्तेजना हो या प्रेम, वास्तविकता के धरातल पर ही अधिक आनंदप्रद होता है। व्यावसायिक पोर्न की नक़ल से उसकी प्राप्ति कितनी संभव है, ये अंदाज़ा तो आप खुद भी लगा सकते हैं।
Cover Image: James Scott Edwards