बल्ली कौर जसवाल का उपन्यास एरॉटिक स्टोरीज़ फ़ॉर पंजाबी विडोज़ (2017) एक शानदार कामुक अनुभव जैसा है। एक बेहतरीन सफ़र जो एक प्यारे-से क्लाइमैक्स पर जा रुकता है, जिसके बाद तुरंत बिस्तर पर गिरकर मीठी नींद लेने का मन करता है। ये किताब एरॉटिका और थ्रिलर शैलियों का एक अनोखा मेल है जो कई दिलचस्प किरदारों के माध्यम से हमें एक दमदार कहानी सुनाती है।
कहानी है निक्की की जिसे स्थानीय गुरुद्वारे में कुलविंदर कौर कुछ विधवा महिलाओं को अंग्रेज़ी सिखाने के काम पर लगाती है। निक्की ब्रिटेन में रहने वाली एक बाग़ी, नारीवादी, ‘मॉडर्न’ हिंदुस्तानी औरत है जो अपने रूढ़िवादी परिवार के कहने पे चलना पसंद नहीं करती। उसे जल्द ही पता चलता है कि उसकी नई छात्राएं दिखने में जितनी ‘बोरिंग’ लगतीं हैं उतनी हैं नहीं। वे अंदर-अंदर काफ़ी शरारती हैं और उनकी ‘ए बी सी डी’ सीखने से ज़्यादा दिलचस्पी सेक्स की कहानियां सुनाने में रहती है। निक्की को भी इससे कोई ऐतराज़ नहीं है, हालांकि वो ये बात अपनी बॉस को नहीं बताती। कहानी आगे बढ़ती है और ऐसे कई राज़ सामने आते हैं जिनसे लंडन के साउथहॉल इलाक़े में रहने वाले भारतीय समुदाय से जुड़े कई गंभीर मुद्दों के बारे में पता चलता है।
भारत के बाहर स्थित होने के बावजूद ये कहानी इक्कीसवीं सदी में दक्षिण एशिया का प्रतीक उसी तरह है जिस तरह माइक्रोवेव में गरम की हुई दाल। ये कई मुद्दों पर नज़र डालती है जैसे कि रंगभेद, सहमति से बने रिश्ते, औरतों के शरीर और उनकी यौनिकता पर निगरानी, ‘इज़्ज़त’ का सवाल, औरतों की इच्छाएं, और अपने समुदाय की ओर वफ़ादारी। पूरी कहानी इतनी ख़ूबसूरती से बताई गई है कि कभी-कभी ये अनदेखा रह जाता है कि ये इतनी क्रांतिकारी क्यों है। इसे साहित्य और यौनिकता के समावेश के संदर्भ में पढ़ने के लिए ये देखना ज़रूरी है कि इसके किरदार कौन हैं। कहानी है कुछ अधेड़ उम्र की विधवाओं की जो पढ़ी-लिखी नहीं हैं और जिन्हें समाज के हाशिये पर रखा जाता है, और यही विधवाएं ‘साहित्यकार’ कौन हैं और अच्छा साहित्य पढ़ने और लिखने का हक़ किसे है इस बात पर हमारा नज़रिया बदल देतीं हैं।
दक्षिण एशिया में कहानियां सुनने-सुनाने की परंपरा नई नहीं है लेकिन जब मंजीत कौर नाम की एक औरत ये कहती है कि, “मुझे अच्छा लगता है कि मैं जो कुछ भी कल्पना करती हूं उसे क़ागज़ पर उतार दिया जाता है”, वो इन क्लासों के मक़सद पर ग़ौर कर रही होती है। क्लास में ये औरतें सिर्फ़ गपशप और हंसी-मज़ाक़ करने नहीं आतीं! वे कहानीकार हैं जो चाहतीं हैं कि उनके काम को गंभीरता से लिया जाए। उसी पल से उनकी क्लासें एक ‘रूटीन’ के हिसाब से चलने लगतीं हैं।
कुछ औरतें अपनी कहानियां मौखिक रूप से बयां करतीं हैं और उनमें से जो इकलौती औरत अंग्रेज़ी पढ़-लिख सकती है वो उन्हें लिपिबद्ध करती है। बाक़ी गुरमुखी में लिखतीं हैं। इसी तरह एक नई सृजनात्मक प्रक्रिया पनपने लगती है। वे आपस में एक-दूसरे की समालोचना और तारीफ़ करतीं हैं, एक पुराने ‘प्लेबॉय’ मैगज़ीन से प्रेरणा लेतीं हैं, ‘राइटर्स ब्लॉक’ (लेखक के लिए कोई नई रचना पर काम कर पाना मुश्किल होना) का सामना साथ में करतीं हैं, और अलग-अलग उलझनें सुलझाते हुए एक-दूसरे को सलाह देतीं हैं। वे साहित्य रचना के पारंपरिक तरीक़ों में नहीं बंधती। उनके लिए कहानियां लिखना किसी एक का काम नहीं बल्कि लेखक और पाठक का संयुक्त प्रयास है जो भरोसे और खुलेपन पर आधारित एक सहजीवी रिश्ते से जन्म लेता है।
उनकी सेक्सी कहानियों में आनंद और फैंटसी का चित्रण पूरी तरह औरतों की इच्छाओं पर केंद्रित हैं। पूरे उपन्यास में बल्ली कौर जसवाल इतने क़ायदे से इन कहानियों को मूल कहानी के साथ बुनतीं रहतीं हैं कि दोनों कभी एक-दूसरे से अलग नहीं नज़र आते। ये सारी कहानियां हमें लिखने वाले के बारे में कुछ न कुछ बतातीं हैं। इन्हें पढ़ते हुए अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कौन-सी कहानी से किसके बारे में हम क्या जान सकते हैं। एक बेहद सुंदर कहानी ये बयां करती है कि किस तरह शर्म पैदा करने वाली एक चीज़ (शरीर पर एक ‘बदसूरत’ तिल) कामुकता का प्रतीक बन सकती है।
कई फैंटसियां बयां की गईं हैं जो एक रूढ़िवादी समाज में आदर्श पत्नियों और मांओं को ‘शोभा नहीं देतीं’। एक कहानी में एक नई-नवेली दुल्हन शुरु-शुरु में शर्माने के बावजूद भी बाद में आनंद का अनुभव करने के नए-नए तरीक़े ढूंढ लेती है। एक और कहानी समलैंगिक प्रेम के एक दृश्य के ज़रिए हेटेरोनॉर्मेटिविटी (विषमलैंगिकतावाद) को कड़ी चुनौती देती है तो वहीं एक कहानी उम्र के आधार पर भेदभाव पर बात करती है। ‘मैजिक रियलिज़्म’ शैली की एक कहानी में एक दर्ज़ी को ज़िंदगीभर के लिए कुंवारे रहने का श्राप मिला होता है, और वो श्राप तभी टूटता है जब उसकी इच्छाओं से जगाई हुई एक देवी उसके साथ संबंध बनाती है।
सारी कहानियां उनके लिखने वालों की राजनैतिक, भौगोलिक, और ऐतिहासिक हक़ीक़तों में स्थित हैं, जो उन्हें और भी धमाकेदार बनाता है। उपन्यास के एक पुरुष किरदार जेसन की तरह किसी के मन में भी ये सवाल आ सकता है कि जिन औरतों की शादी इतनी कम उम्र में हुई है और जो ज़िंदगीभर अपने रूढ़िवादी पंजाबी घरों और गली-मोहल्लों में सीमित रहीं हैं, उन्हें ऐसी कहानियां लिखने के ख़्याल कहां से आ रहे हैं? निक्की यौनिक इच्छा के प्राकृतिक स्वभाव पर ग़ौर करते हुए इस सवाल का जवाब देती है। वो कहती है, “आप और मैं…हमने ज़िंदगी की कई और चीज़ों के बारे में सीखने के बाद ही सेक्स के बारे में सीखा है, जैसे पढ़ना, लिखना, कंप्यूटर चलाना वग़ैरह। लेकिन इन औरतों के लिए सेक्स इन सारी चीज़ों के पहले से ही ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा रहा है।”
ये बड़ी दिलचस्प बात हमें देखने को मिलती है कि टीचर होते हुए भी निक्की रोज़ अपनी छात्राओं से कुछ न कुछ सीखती है। यौनिकता के बारे में बात करते हुए ये औरतें एक ख़ास भाषा का इस्तेमाल करतीं हैं जो कामुकता के उनके निजी अनुभवों से पनपती है, जैसे यौनांगों के लिए सब्ज़ियों के नाम इस्तेमाल करना और ल्यूब्रीकैंट को ‘घी’ कहना। कहानी आगे बढ़ती रहती है और हम देखते हैं कि इन कहानियों के लिखे जाने की प्रक्रिया सहज है और इसमें कोई दिखावा नहीं है। ये प्रक्रिया इन औरतों को लिखने का आनंद दिलाने के अलावा भी गहरे, सामाजिक-राजनैतिक मायने रखती है। ये कहानियां एक-दूसरे से बातें शुरु करने का एक ज़रिया है और क्लासरूम आपसी सौहार्द और दोस्ती जताने का एक माहौल बन जाता है। इसलिए यहां शरारती सेक्स टिप्स भी साझा किए जाते हैं जिन्हें सुनते ही गाल लाल हो जाते हैं, और सालों पहले गुज़र चुके पतियों की यादें भी बयां की जातीं हैं जिनसे वो ख़ालीपन नज़र आता है जिसमें ये सभी औरतें जी रहीं हैं।
ये कहानियां उपन्यास के दूसरे किरदारों को भी प्रभावित करतीं हैं, जैसे निक्की, कुलविंदर कौर, और तरमपाल (क्लास की इकलौती छात्रा जो ये कहानियां सुनाने और लिखने में हिस्सा नहीं लेती), लेकिन बात अभी काफ़ी आगे जाना बाक़ी है। आख़िर ये तो ज़ाहिर है कि हर तरह का अच्छा साहित्य ज़्यादा देर तक बिना पढ़े गए नहीं रह सकता। इसलिए हर तरह की सावधानी बरतने के बावजूद ये कामुक कहानियां क्लासरूम से बाहर निकलकर पूरे साउथहॉल और दूसरे इलाक़ों में जा उठतीं हैं और हर जगह हैरानी और संतुष्टि की लहरें पैदा करतीं हैं। साउथहॉल में ये बात फैल जाती है कि अब औरतें बिस्तर में अपने हक़ जताने लगीं हैं। गुप्त नेटवर्कों के ज़रिए साउथहॉल के दकियानूसी नैतिक पुलिस संगठन ‘ब्रदर्स’ की नज़रों से बचते हुए कहानियां गुरुद्वारे से गुरुद्वारे तक जाने लगतीं हैं। हमारे किरदारों का जीना ख़तरे में आने लगता है और काफ़ी सस्पेंस और डर के बाद उपन्यास का अंत इतना धमाकेदार होता है कि पढ़नेवाले का मुंह खुला का खुला रह जाता है!
2017 में प्रकाशित होने के बाद से एरॉटिक स्टोरीज़ फ़ॉर पंजाबी विडोज़ ने काफ़ी सफ़लता पाई है और साहित्यप्रेमी समूहों के अलावा हॉलीवुड में भी इसकी समालोचना हुई है। ये अभिनेत्री रीज़ विदरस्पून के बुक क्लब का एक हिस्सा रह चुका है। इस किताब पर फ़िल्म बनाने के अधिकार भी बिक चुके हैं जिसका मतलब है कि इसके नए-नए संस्करण हमें बहुत जल्दी देखने को मिलेंगे।
आप चाहे ये किताब महज़ मज़े के लिए पढ़ें या इसकी गहराई तक जाना चाहें, आप देखेंगे कि ये वासना को एक नए नज़रिये से देखना सिखाती है। ये साहित्य लिखने की प्रक्रिया को सार्वजनिक बनाने की बात करती है और ये बताती है कि यौनिक इच्छा की कोई ‘एक्स्पायरी डेट’ नहीं होती। ये किताब उतनी ही बोल्ड, सेक्सी, और शानदार है जितनी इसमें बताई गईं कामुक कहानियां।
ईशा द्वारा अनुवादित।
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