A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
प्रतिमा का यह एक-चला रूप, जिसकी उपासना पहचान और पहचान की राजनीति से जुड़े क्विअर समुदाय के लोग करते हैं, जैविक सम्बन्धों और विषमलैंगिकता के विचार पर बनी परिवार की इस परिभाषा को चुनौती देता है।
इस घटना नें मुझे हिलाकर रख दिया था। मुझे महसूस हुआ कि हमारे समाज में जहां सामान्य से हटकर किसी भी तरह के व्यवहार को मान्य नहीं समझा जाता, वहाँ लोगों को सिर्फ अपने जेंडर और यौनिकता की अभिव्यक्ति करने की भी कितने बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। समाज के इस असहनशीलता से मेरे मन में डर का जो भाव पैदा हुआ, वह मेरे लिए कोई नया नहीं था।
आज के महाराष्ट्र में महिलाओं की स्थिति और उन्नीसवीं सदी की महिलाओं की स्थिति में बहुत अंतर है और इस अंतर के लिए, आज के महाराष्ट्र के लिए, और महिलाओं की आज की बेहतर स्थिति के लिए सावित्रीबाई फुले जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान अतुलनीय है। सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस (३ जनवरी) के अवसर पर उनके योगदान को याद करते हुए लेखक ने उन्नीसवीं सदी के महाराष्ट्र और उसकी महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला है।
वापस फिर एक बार, पोस्टर पर लिखी गयी घोषणा पर लौटते हुए – पहली बार ‘कानूनन’ सेक्स कर पाने के अपने अनुभव को ज़ाहिर करने की इस घोषणा में एक बहुत ही शक्तिशाली सांकेतिक संदेश निहित है जो हमें सेक्स में ज़्यादा चरम आनंद लेने में भले ही मदद न करे लेकिन मुक्ति के चिन्ह हमेशा धनी लोगों द्वारा किए जा रहे दिखावे की तरह नहीं होते, उनमें एक प्रभावी संदेश निहित होता है।
अंत में, मुझे तो फिल्में विषयों और परिस्थितियों को एक अन्य अंदाज़ से देखने का अवसर देती हैं। मैंने फिल्मों को देखकर शरीर और इसकी इच्छाओं के बारे में बहुत कुछ जाना है – मैंने समझा है कि दर्द जो कुछ लोगों के लिए दर्द होता है, वही दूसरों के लिए आनंद के स्रोत बन सकता है। मैंने यह भी जाना है कि पैसे का लेन–देन करके किया जाने वाला सेक्स हमेशा अपराध नहीं होता और यह कि सभी लोग आनंद का अनुभव करते हैं और कर सकते हैं।
देवदत्त पटनायक आधुनिक समय में, प्रबंधन, प्रशासन प्रक्रिया और नेतृत्व जैसे क्षेत्रों में पौराणिक विचारों की प्रासंगिकता के विषय पर लिखते हैं। डाक्टरी की पढ़ाई और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होने 15 वर्ष तक स्वास्थ्य देखभाल उद्योग और दवा निर्माता कंपनियों के साथ काम किया।
डांस मूवमेंट थेरेपी वर्कशाप के उन तीन दिनों में मुझे पता चला कि मेरे मन, मस्तिष्क और शरीर के बीच जैसे कोई सामंजस्य था ही नहीं, और कैसे आमतौर पर पारंपरिक मौखिक कार्यशालाओं में शरीर और मन के बीच के इस संबंध को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
समय के साथ-साथ अब मैं जान चुकी हूँ कि उनके इस उलाहने में ‘घर’ का मतलब सिर्फ वो जगह नहीं है जहां मेरे माता-पिता रहते हैं, बल्कि इसका मतलब उन सभी व्यवहारों और मान्यताओं से है जिनकी अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं।