A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
सामान्य तौर पर एक नारीवादी माँ का काम, जो रोज़मर्रा की चर्चा में यौनिकता के बारे में बात करने के लिए दृढ संकल्पी हो, अनिश्चितता से भरा है। अन्य नारीवादी दोस्तों के साथ बातचीत और संसाधनों जैसे तारशी की अभिभावकों के लिए लिखी गई उत्कृष्ठ किताब द यलो बुक से उत्पन्न मेरी रणनीति है कि सवालों का ठीक-ठीक जवाब देना, जब भी वे पूछे जाएँ। हालाँकि, मुझे उम्र के हिसाब से जानकारी देना सीखने में समय लगा।
यूँ तो विवाह और उससे जुड़े महिलाओं के ‘स्थान परिवर्तन’ को ‘प्रवसन’ का दर्ज़ा दिया ही नहीं जाता है, इसको एक अपरिहार्य व्यवस्था की तरह देखा जाता है जिसमें पत्नी का स्थान पति के साथ ही है, चाहे वो जहाँ भी जाए। पूर्वी एशियाई देशों में, १९८० के दशक के बाद से एक बड़ी संख्या में महिलाओं के विवाह पश्चात् प्रवसन का चलन देखा गया है जिन्हें ‘फॉरेन ब्राइड’ या विदेशी वधु के नाम से जाना जाता है। इन देशों की लिस्ट में भारत के साथ जापान, चीन, ताइवान, सिंगापुर, कोरिया, नेपाल जैसे कई देशों के नाम हैं। यदि विवाह से जुड़े प्रवसन को कुल प्रवसन के आकड़ों के साथ जोड़ा जाए तो शायद ये महिलाओं का सबसे बड़ा प्रवसन होगा।
पहनावे से जुडी नैतिक पुलिसिंग व लैंगिक भेदभाव को लेकर एक लंबा इतिहास रहा है। जहां पुरुषों के लिये उनका पहनावा उनके सामाजिक स्टेटस को दिखाता है वहीँ दूसरी ओर महिलाओ के लिये उनके पहनावे को लेकर मानदंड एकदम अलग है! जोकि महिलाओं के पहनावे के तरिके की निंदा करते हुए एक व्यक्तिगत पसंद पर नैतिक निर्णय बनाते हैं! भारत में कई राज्यों में महिलाएँ या लडकियां कुछ खास तरह के कपड़े नहीं पहन सकती है या फिर मैं ये कहूंगी कि ऐसे कपडे जिसमें वो ज्यादा आकर्शित लगती हों! जबकि पुरुष वही तंग जींस पहन सकते हैं पारदर्शी शर्ट पहनते हैं और धोती पहन सकते हैं!
वह एक ऐसे परिवार में बड़ी हुई थीं जहाँ बनने संवरनें की सराहना की जाती थी, इसलिए कपड़ों के प्रति उनकी चाहत को कभी भी विलासिता की तरह नहीं देखा गया। उनकी माँ की शख्शियत की एक विशिष्ट पहचान, उनकी बड़ी सी बिंदी और सूती साड़ी हमेशा अपनी जगह पर रहती थी, चाहे दिन का कोई भी समय हो, चाहे वो खाना बना रहीं हों, धूप या बारिश में बाहर गई हों, सो रहीं हों या बस अभी ही जागी हों, हंस रहीं हों, या रो रहीं हों। उनकी और उनकी बहन के लिए, उनकी माँ की फैशन को लेकर एक ही सलाह थी, “हमेशा ऐसे तैयार होकर रहो जैसे आप बाहर जा रहे हों, भले ही आप सारा दिन घर पर ही हों।” अपनी माँ की सलाह के बावजूद, वह घर पर ‘गुदड़ी के लाल’ की तरह और बाहर जाते वक़्त ‘सिंडरेला’ की तर्ज़ पर चलने वाली बनी।
पहनावा किसी भी व्यक्ति की छवि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। समाज में किसी भी व्यक्ति की पहचान उनके पहनावे से भी की जा सकती है। कपड़े एक मनुष्य की पहचान का सबसे स्पष्ट हिस्सा होते है। कपड़े शरीर का घूंघट होते हैं। वे शील और यौनिक मुखरता के, अस्वीकृति के और अभिराम के, जश्न के खेल के नियमों को समाहित करते हैं। वे आइना होते हैं समाज के पदानुक्रम का, यौनिक विभाजन का और नैतिक सीमाओं का।
काम करने वाली जगहों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न एक कड़वी सच्चाई है। यह महिलाओं के अस्तित्व, उनकी सेहत और श्रम को चोट पहुंचाता है; साथ ही उन्हें रोज़गार छोड़ने तक पर मजबूर कर देता है। महिला श्रमिकों को यह मौका ही नहीं मिलता कि वो पुरुषों की तरह बराबरी से अपना योगदान दे सकें। इस गैर-बराबरी की वजह से संस्थाओं, फैक्ट्री, और कम्पनिओं और इन जैसी तमाम काम करने की जगहों को, समाज और देश की अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हो रहा है।
इन प्लेनस्पिक के इस काम व यौनिकता के मुद्दे को सुनने के बाद पहला विचार मन में आया कि मैं कार्यस्थल पर होने वाली यौन हिंसा के बारे में लिखूंगी। फिर ऑफिस में रोमांटिक रिश्तों व लव स्टोरी के बारे में याद आया जो हम सब अपने काम के आसपास देखते या सुनते आये हैं और यह बॉलीवुड फिल्मों का भी पसंदीदा मुद्दा रहा है। मुझे ये बड़ा ही रोमांचक लगा, और जब मैंने लिखना शुरू किया तो एक सवाल मेरे दिमाग में आया – क्या कार्यस्थल पर इस मुद्दे से सम्बंधित कोई नीति है?
अब इस अनजान व्यक्ति ने कुछ बेचैनी से कहा, ‘मुझे माफ़ करना, मैं कोई मूर्ख्ताप्पूर्ण बात नहीं करना चाहता लेकिन आप को साथ देख कर इसलिए हैरान क्योंकि आप जैसे जोड़े प्राय: देखने को नहीं मिलते’। ज़ाहिर है इस वाकया के बाद एक घबराई हुई हंसी थी।
किसी व्यस्क व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा से पैसों के भुगतान के बदले दी जाने वाली यौन सेवाओं को सेक्स वर्क (यौन कर्म या आम बोलचाल की भाषा में धंधा करना) कहते हैं। सेक्स वर्क की इस परिभाषा का कौन सा भाग ‘काम’ के बारे में हमारी सोच का उल्लंघन करता है? क्या पैसे के बदले दी जाने वाली सेवाएं? या फिर किसी व्यस्क व्यक्ति द्वारा पैसे के बदले दी जाने वाली सेवा? या, वयस्कों द्वारा आपसी सहमति से पैसे के बदले दी जाने वाली सेवा?
अनीता जो महाराष्ट्र में एक देवदासी हैं, के इस आत्म कथ्य से पता चलता है कि सहमति और हिंसा के मुद्दे हमेशा स्पष्ट और सीधे रूप में सामने नहीं आते। अनीता का कथ्य बताता है कि जीवन की कई परिस्थितियों में वो अपना रास्ता खुद मर्ज़ी अनुसार चुन पाई हैं ।