A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
मेरे जेंडर के बारे में उनकी प्रतिकारिता हमारी बातचीत में हर जगह होती है, लेकिन वह मुझे यह भरोसा देने में भी देर नहीं लगातीं कि मेरी ग़ैर-विषमलैंगिकतावादी यौनिकता ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया।
इसलिए, तुम्हारे आज के स्वः या अवतार के रूप में, मैं तुम्हें अपनी क्षमताओं में विश्वास रखने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ, अपने सपनों पर केंद्रित रहना, एक स्वाभाविक मूल्य प्रणाली विकसित करना जो हठधर्मिता से मुक्त हो, हमेशा जिज्ञासु बनी रहना और निरंतर सीखने की अपनी इच्छा का पोषण करना, और अपना जीवन स्वतंत्र रूप से और पूरी तरह से जीना।
सच्चाई इस सब से परे थी; सच्चाई ये थी कि मैं एक किशोर लड़की थी जिसके मन में अनेको आकांक्षाएँ थी, वासना थी, लालसा थी और इन सब को पूरा करने के तरीके ढूँढने की ललक भी थी।
मैं अपनी यौनिकता को अपनी पहचान का अलग हिस्सा नहीं मानती। मैं अलग व्यक्ति नहीं हूँ क्योंकि मैं एसेक्शुअल हूँ। यह सिर्फ़ आकार देता है कि मैं कौन हूँ, वैसे ही जैसे मेरी राजनीतिक राय या धार्मिक विश्वास मेरे दुनिया के प्रति नज़रिए को आकार देते हैं।
प्रतिमा का यह एक-चला रूप, जिसकी उपासना पहचान और पहचान की राजनीति से जुड़े क्विअर समुदाय के लोग करते हैं, जैविक सम्बन्धों और विषमलैंगिकता के विचार पर बनी परिवार की इस परिभाषा को चुनौती देता है।
इस घटना नें मुझे हिलाकर रख दिया था। मुझे महसूस हुआ कि हमारे समाज में जहां सामान्य से हटकर किसी भी तरह के व्यवहार को मान्य नहीं समझा जाता, वहाँ लोगों को सिर्फ अपने जेंडर और यौनिकता की अभिव्यक्ति करने की भी कितने बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। समाज के इस असहनशीलता से मेरे मन में डर का जो भाव पैदा हुआ, वह मेरे लिए कोई नया नहीं था।
आज के महाराष्ट्र में महिलाओं की स्थिति और उन्नीसवीं सदी की महिलाओं की स्थिति में बहुत अंतर है और इस अंतर के लिए, आज के महाराष्ट्र के लिए, और महिलाओं की आज की बेहतर स्थिति के लिए सावित्रीबाई फुले जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान अतुलनीय है। सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस (३ जनवरी) के अवसर पर उनके योगदान को याद करते हुए लेखक ने उन्नीसवीं सदी के महाराष्ट्र और उसकी महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला है।
वापस फिर एक बार, पोस्टर पर लिखी गयी घोषणा पर लौटते हुए – पहली बार ‘कानूनन’ सेक्स कर पाने के अपने अनुभव को ज़ाहिर करने की इस घोषणा में एक बहुत ही शक्तिशाली सांकेतिक संदेश निहित है जो हमें सेक्स में ज़्यादा चरम आनंद लेने में भले ही मदद न करे लेकिन मुक्ति के चिन्ह हमेशा धनी लोगों द्वारा किए जा रहे दिखावे की तरह नहीं होते, उनमें एक प्रभावी संदेश निहित होता है।