A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
अंत में, मुझे तो फिल्में विषयों और परिस्थितियों को एक अन्य अंदाज़ से देखने का अवसर देती हैं। मैंने फिल्मों को देखकर शरीर और इसकी इच्छाओं के बारे में बहुत कुछ जाना है – मैंने समझा है कि दर्द जो कुछ लोगों के लिए दर्द होता है, वही दूसरों के लिए आनंद के स्रोत बन सकता है। मैंने यह भी जाना है कि पैसे का लेन–देन करके किया जाने वाला सेक्स हमेशा अपराध नहीं होता और यह कि सभी लोग आनंद का अनुभव करते हैं और कर सकते हैं।
देवदत्त पटनायक आधुनिक समय में, प्रबंधन, प्रशासन प्रक्रिया और नेतृत्व जैसे क्षेत्रों में पौराणिक विचारों की प्रासंगिकता के विषय पर लिखते हैं। डाक्टरी की पढ़ाई और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होने 15 वर्ष तक स्वास्थ्य देखभाल उद्योग और दवा निर्माता कंपनियों के साथ काम किया।
अपने बच्चों को बाहरी दुनिया की बुराइयों से बचाने की अपने यक़ीन के कारण भारतीय परिवार इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि बच्चों को भी दुनिया को समझने के लिए तैयारी की ज़रुरत होती है।
अधिकतर अभिभावकों, शिक्षकों और देखरेख करने वालों को बच्चों के साथ यौनिकता के विषय पर बात करने और यौनिकता शिक्षा देने में शर्म आती है। क्या इसे दूर करने के लिए व्यंग का उपयोग किया जा सकता है?
डांस मूवमेंट थेरेपी वर्कशाप के उन तीन दिनों में मुझे पता चला कि मेरे मन, मस्तिष्क और शरीर के बीच जैसे कोई सामंजस्य था ही नहीं, और कैसे आमतौर पर पारंपरिक मौखिक कार्यशालाओं में शरीर और मन के बीच के इस संबंध को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
समय के साथ-साथ अब मैं जान चुकी हूँ कि उनके इस उलाहने में ‘घर’ का मतलब सिर्फ वो जगह नहीं है जहां मेरे माता-पिता रहते हैं, बल्कि इसका मतलब उन सभी व्यवहारों और मान्यताओं से है जिनकी अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं।