A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
हम धीरे-धीरे अपनी शर्म, असहजता, और ‘हेटेरोनॉर्मेटिव’ मानसिकता से ऊपर उठने लगे ऐसी कई सारी कृतियों का विश्लेषण करते हुए, जो न तो वात्स्यायन का ‘कामसूत्र’ थे और न ही यौनिकता पर फ़ूको की समीक्षा।
ऑनलाइन डेटिंग पहली मुलाक़ात में किसी को अपने घर बुला लेने जैसा लग सकता है, लेकिन फ़र्क़ ये है कि हम फ़ैसला कर सकते हैं कि हम उन्हें अपने घर और अपनी निजी ज़िंदगी के कौन-से हिस्सों में जगह देने के लिए तैयार हैं।
मां बनने के बाद से आत्म-देखभाल पर मेरे नज़रिये में बहुत बदलाव आया है। एक अभिभावक की भूमिका निभाते हुए और उसकी चुनौतियों का सामना करते हुए अपना ख़्याल कैसे रखा जा सकता है?
हमारा मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ हमारी इकलौती ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी है जिनका हम हिस्सा हैं। इसलिए हमारी सेहत और ख़ुशहाली बनाए रखने के लिए इनका योगदान ज़रूरी है।
उर्दू शायरी की एक पूरी शैली है, ‘रेख़्ती’, जो औरतों के नज़रिये से लिखी गई है और जिसमें औरतों की ज़िंदगी और भावनाओं की बात होती है। ये ‘रेख़्ता’ का उल्टा है, जो कि मर्द के नज़रिये से लिखा गया साहित्य है।
एक मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से बॉलीवुड की फ़िल्मों में वर्ग और जेंडर के मुद्दों के चित्रण पर ग़ौर करना केथ्रीजी जैसी फ़िल्मों पर नई आलोचनाओं को बढ़ावा देता है।
In this month’s issue of Play and Sexuality, Wesley D’Souza recounts the time his school put up a production of The Pied Piper of Hamelin, his preparations for its audition, and how the process was intertwined with an exploration and acceptance of his sexuality.
हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं, अपने ख़्याल कैसे बयां करते हैं, यहां तक कि बात करते दौरान कैसी आवाज़ का इस्तेमाल करते हैं ये सब हमारी सामाजिक परवरिश पर निर्भर करता है।