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काम करने वाली जगहों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न एक कड़वी सच्चाई है। यह महिलाओं के अस्तित्व, उनकी सेहत और श्रम को चोट पहुंचाता है; साथ ही उन्हें रोज़गार छोड़ने तक पर मजबूर कर देता है। महिला श्रमिकों को यह मौका ही नहीं मिलता कि वो पुरुषों की तरह बराबरी से अपना योगदान दे सकें। इस गैर-बराबरी की वजह से संस्थाओं, फैक्ट्री, और कम्पनिओं और इन जैसी तमाम काम करने की जगहों को, समाज और देश की अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हो रहा है।
व्यंग छुपी हुई हंसी को बाहर लाने का अवसर देता है। प्रतिभागी जो आज तक इन मुद्दों को गंदा, कलंकित या महत्वहीन मान कर छुपा रहे हैं अब कम से कम उनपर हंस सकते हैं।
यहाँ लड़कियों के लिए सेक्स करना सामजिक रूप से बहिष्कृत हो जाने जैसा अनैतिक काम है या कहिये कि यह गैर-कानूनी ही है, हालांकि कानूनन इसे गैर-कानूनी घोषित नहीं किया गया है।
आज सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्मस के रूप में पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में है, और मुझे इस बात का एहसास है कि काफ़ी हद तक मैंने इस ताक़त को हल्के में लिया है।
शुरुआत में ही स्वीकार लेता हूँ की मुझे शादियों का बहुत शौक़ है। जब अपनी राजनैतिक सोच और व्यक्तिगत…
“अगर आप उसपर हँस सकते हैं तो सब कुछ मज़ाकिया है।” – लुईस कैरोल लुईस कैरोल को अधिकार-आधारित परिप्रेक्ष्य वाला…
आज मुझे लड़कियों के अपने हॉस्टल से निकले हुए तीन वर्ष हो चुके हैं, और मुझे लगता है कि हॉस्टल जीवन में मिली सभी सीखें आज भी मेरे यौनिक जीवन को सही दिशा देने में कारगर साबित हो रही हैं।
The concluding chapter reiterates the aims of the book, i.e., “to start critical conversations within the disciplines of psychology, social work, childhood studies, and family studies in India and to think about exclusions inherent in these disciplines.
घरेलु हिंसा विषय पर काम कर रही एक नारीवादी संस्था के साथ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपने करियर के…
इंटरनेट की दुनिया मुझे अपने ‘ज़नाना’ शरीर पर पितृसत्ता के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का मौक़ा देती है।
ऑनलाइन डेटिंग पहली मुलाक़ात में किसी को अपने घर बुला लेने जैसा लग सकता है, लेकिन फ़र्क़ ये है कि हम फ़ैसला कर सकते हैं कि हम उन्हें अपने घर और अपनी निजी ज़िंदगी के कौन-से हिस्सों में जगह देने के लिए तैयार हैं।
संगीत की भाषा सार्वभौमिक है। यह वर्ण, जाति तथा लिंग इत्यादि से भी परे है। संगीत सभी का है। कुछ…
भारत जैसे देश में सेक्स जैसी चीज़ों के ज़रिए शारीरिक सुख का आनंद उठाने को लालच और कमज़ोरी के रूप में देखा जाता है। हमें आमतौर पर ये सिखाया जाता है कि सुख की तलाश महज़ फ़िज़ूल की ऐयाशी है जो हमें आत्मबोध तक पहुंचने से रोकती है, जिसकी वजह से हमें लुभावों से दूर रहना चाहिए।
सेक्स या भावनात्मक जुड़ाव के लिए दोनों तरफ़ से जुड़ाव होना ज़रूरी है। विकलांगता के साथ जी रहे व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से थोड़ा ज़्यादा देना होगा जिससे कि रिश्ता चल सके।
संपादक की ओर से – जब शरीर और यौनिकता के बीच के रिश्ते की बात की जाती है तो ये…