- तन्वी अक्सर असहज महसूस करती है जब उसके चाचा उसे गले लगाते हैं; भले ही वे कहते हैं कि वह सबसे अच्छी लड़की है, तन्वी को कभी अच्छा नहीं लगता!
- अब्दुल एक टीचर हैं जो क्लास 8 में पढ़ने वाली अपनी एक स्टूडेंट को अपने घर बुलाते हैं जहाँ वो उसे इम्तिहान से पहले प्राइवेट टूइशन देंगे।
- हीना एक लड़के को पसंद करती है जो बग़ल वाले घर में रहता है। वो लड़का भी उससे बात करना चाहता है। हिना को समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करे।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट में रिहाना की नज़र एक लड़के पर पड़ती है जो एक लड़की को घूर रहा था और लड़की परेशान हो रही थी; रिहाना उन दोनो के बीच आ जाती है और बैठने के लिए सीट माँगती है।
ऐसे विषयों या स्तिथिओं के बारे में हम अपने जीवन में अक्सर सुनते रहते हैं। सुरक्षा से जुड़ी बातें हमें यौनिकता के बारे में बात करने से रोकती हैं और यही लड़कियों और लड़कों से जुड़े सामाजिक उम्मीदों के नियमों को आकार देते हैं। ज़्यादातर, घरों में इस बारे में कोई शिक्षा नहीं होती है। माता-पिता/अभिभावक अपने बच्चों से सेक्स या सेक्शूऐलिटी (यौनिकता) के बारे में बात नहीं करते, बस माएँ कभी-कभी लड़कियों को माहवारी के बारे में बता देती हैं।
यौनिकता शिक्षा का अधिकार स्वास्थ्य, शिक्षा, भागीदारी , और सुरक्षा के अधिकारों पर निर्भर करता है। ये अधिकार मनवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर), आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (CESCR, आर्टिकल 13) और बाल अधिकारों पर कनवेंशन (CRC, Articles 28 और 29) के द्वारा उपलब्ध हैं। जहाँ काग़ज़ी सरकारी कार्य-योजना यौनिकता शिक्षा की ज़रूरत को बढ़ावा देती है और इसे राष्ट्रीय शिक्षा विषय के माध्यम से अभिनीत करती हैं, इन तंत्रों के वास्तविक क्रियान्वयन असफल हो जाते हैं। शिक्षक-शिक्षिकाएँ और प्रशासक भी उसी सामाजिक पर्यावरण से आते हैं जहाँ सेक्स और यौनिकता के बारे में बात करना ‘सुरक्षित’ नहीं है।
ऊपर दी हुई दूसरी कहानी में, बांग्लादेश में जब एक पुरुष शिक्षक लड़कियों को घर बुलाकर और टिपण्णी देकर उन्हें असहज महसूस करवाते हैं, लड़कियाँ, जो पहले से ही एक संगठन का हिस्सा हैं, एक साथ होकर स्कूल प्रशासन और यूनियन परिषद् से मिलती हैं और यूनियन उस शिक्षक पर केस करती है। लड़कियों के अभिभावक उनका साथ देते हैं और उस शिक्षक को जेल हो जाती है।
जब लड़कियों की सुरक्षा का सवाल उठता है तो यह घर पर, समुदाय में, सार्वजनिक स्थानों और शैक्षणिक संस्थानों मैं एक चिंता का विषय बन जाता है। अगर हम इस सुरक्षा की समीक्षा करें, तो हमें ऐसे मज़बूत नियम दिखते हैं जो लड़कियों और औरतों की यौनिकता पर असर डालते हैं और समाज में उनकी आकांक्षाओं को सीमित करते हैं। केयर (CARE) की टिप्पिंग पॉइंट (TIPPING POINT) पहल ऐसे प्रतिबंधात्मक मानदंडों को कई तरीकों से चुनौती देने का प्रयास करती है जिससे लड़कियों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करते हुए उनके लिए सहायक और सुरक्षित संबंधों और वातावरण का विस्तार किया जा सके।
उपर्युक्त पहली कहानी में तन्वी के जैसी बहुत लड़कियाँ होंगी जो किसी परिचित व्यक्ति के अनचाहे संपर्क को रोक पाएंगी अगर वो अपने अधिकारों को जानती हैं और यह समझती हैं कि अपनी आवाज़ उठाने के लिए उनकी आलोचना नहीं होगी और उनको दोषी नहीं ठहराया जाएगा।
लड़कियों की आवाज़ और नेतृत्व
लड़कियों की आवाज़ को मज़बूत करने की आवश्यकता है जिससे वो स्वयं के लिए खड़ी हो सकें और सुरक्षा के नाम पर बाहर जाने या लड़कों से बात करने से प्रतिबंधित किये जाने पर अपने अभिभावकों से सवाल कर सकें। लड़कियों का समूह बनाकर उनकी आवाज़ एक जुट हो जाती है जिससे वे बुलंदी के साथ प्रश्न पूछ सकती हैं जब उन्हें लोगों द्वारा यह कह्कर रोका जाता है कि ये प्रतिबंध सही हैं। यह लड़कियों को साथ लाता है जिससे वो सक्रिय होकर अपने कौशल और आत्मविश्वास को बढ़ा सकती हैं और किसी भी स्तिथि को सम्भाल सकती हैं।
यह आवश्यक है कि सारे समुदाय लड़कियों को अलग-अलग जगहों पर देखने के आदी हो जाएं। विभिन्न स्थानों पर लड़कियों की उपस्थिति, उनका अनेक मुद्दों पर चर्चा करना, दोस्तों के साथ मसलों पर बातचीत करना और किसी भी कारण के लिए एकत्रित होना स्वयं ही समाज में मानदंड को चुनौती देता है और उनकी सुरक्षा, गतिशीलता और यौनिकता को बढ़ावा देता है। समुदाय में लड़कियों और लड़कों का साथ काम करते दिखना दोनों के सामान्य होने की स्वीकृति पर ज़ोर देता है।
हमें हीना जैसी लड़कियों के लिए उपाय खोजने हैं जो किसी लड़के की तरफ़ आकर्षित है और नहीं जानतीं कि क्या करें। यदि वो बात करना भी चाहें तो भी सामाजिक नियम उन्हें लड़कों से बात करने की इजाज़त नहीं देंगे। ये मानदंड लड़कियों को लड़कों के साथ दोस्ती की शुरुआत करने या उनमें दिलचस्पी दिखाने की अनुमति नहीं देते। और, महत्वपूर्ण बात यह है कि, यदि दोनों एक दूसरे को जान जाते हैं और प्यार करने लगते हैं तो भी उन्हें ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए शायद ही सुगम जानकारी आसानी से मिलती हो।
अभिभावकों और द्वारपालों के साथ जुड़ाव
ज़्यादातर ग्रामीण समुदाय में, एक नियम है कि लड़कियाँ अपने अभिभावकों से यौनिकता के विषय पर बात नहीं कर सकतीं। इसलिए, यह आवश्यक है कि अभिभावक इन नियमों पर विचार करें। अक्सर सरकार के पास पेरेंट टीचर असोसीएशन (पीटिए) ही एक मंच है। स्कूल ना जाने वाले किशोर-किशोरियों के अभिभावकों को पीटिए का अवसर नहीं मिलता। किशोरावस्था के साथ यौनिकता से जुड़े विषयों पर काम करते समय अभिभावकों को भी शामिल करना चाहिए जिससे घर पर यह बातचीत शुरू हो सके। वार्ता का मौक़ा एक रिश्ता बनाता है जहाँ दोनों समूह यौनिकता और सुरक्षा के विषय पर बात कर सकते हैं और खुले और ईमानदार रिश्ते नए सामाजिक मानक हो सकते हैं। टिपिंग पोईंट अभिभावकों, धार्मिक नेताओं, और स्कूल टीचरों के साथ काम करती है जो भागीदारी द्वारा सामाजिक नियमों को चुनौती देते हैं। लड़कों, लड़कियों, माता और पिता के बीच संवाद जैसे हस्तक्षेप भी सुरक्षा और यौनिकता के आदर्शों को चुनौती देते हैं।
टीचरों के पास अभिभावकों और छात्रों के साथ जुड़ने का मौक़ा होता है। यौनिकता से सम्बंधित शिक्षा पर चर्चा करने और उसको बढ़ावा देने के लिए उनकी क्षमता में परिवर्तन करके न केवल छात्रों को सही जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी बल्कि अभिभावकों के साथ बातचीत में भी सुधार होगा। अपने जीवन के संधर्ब में यौनिकता के विषय पर विचार करने के लिए टीचरों के पास भी एक सुरक्षित स्थान होना ज़रूरी है। ख़ुद के अनुभवों से उमड़ने वाली सोच नियमों को चुनौती देने में सहायता करेगी। वे फिर अभिभवकों और छात्रों के साथ बैठकर यौनिकता से जुड़े विषयों को समय दे पाएंगे। हालाँकि यौनिकता शिक्षा पाठ्यक्रम में टीचर प्रशिक्षण शामिल है, कारगर चर्चा पर अनुसरण ज़रूरी है। सुरक्षित पर्यावरण में परस्पर प्रभाव और प्रतिबिम्ब के बिना सामाजिक नियम बदल नहीं सकते – और एक वख़्त का प्रशिक्षण निवेश इसे प्रदान नहीं कर सकता।
किसी घटना के दर्शक का कार्य (बाइस्टैंडर ऐक्शन)
उपर्युक्त आख़िरी क़िस्से में, बाइस्टैंडर ऐक्शन द्वारा रिहाना सहायता प्रदान करती है। यह आवश्यक है कि लड़कियाँ, लड़के और वयस्क मित्रों (अडल्ट ऐलायज़) बाइस्टैंडर ऐक्शन को याद रखें और उसका अभ्यास करें जब वो किसी की सुरक्षा का समझौता होते देखें। यह उन लोगों के लिए कठिन और असुरक्षित महसूस हो सकता है जो बाइस्टैंडर ऐक्शन ले रहे हों। ब्रेक्थ्रू (Breakthrough) का “बेल बजाओ” कैम्पेन – जो घरेलू हिंसा होने पर दरवाज़े की घंटी बजाने को प्रोत्साहित करता है – बाइस्टैंडर ऐक्शन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। अनुभवों को बाँटना और बाइस्टैंडर ऐक्शन के बारे में बात करना लड़कियों, लड़कों, माता-पिता और शिक्षक-शिक्षिकाओं को उस क़दमों को पहचानने में मदद करता है जो वे तब ले सकते हैं और जो उन्हें तब लेने चाहिए जब उनके पास किसी असुरक्षित स्तिथि में हस्तक्षेप करने की क्षमता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि यौनिकता से जुड़ी ज़रूरी चर्चा घर पर, स्कूल में और पीढ़ियों के बीच हो सकती हैं, मापदंडों को बदलने के लिए प्रयास ज़रूरी हैं – विशेष रूप से वो जो सुरक्षा के धारणाएं से जुड़े हैं। इस बातचीत के लिए सुरक्षित स्थानों को बनाये रखने और इस विचार-विमर्श को सामान्य व्यवहार बनाने के लिए लोगों, संस्थानों, संगठनों और नीतियों को साथ मिलकर काम करना होगा।
सुनीति नियोगी नेपाल और बांग्लादेश में CARE के टिपिंग पॉइंट इनिशिएटिव के साथ एक जेंडर सलाहकार हैं। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश, भारत से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और पिछले 18 वर्षों से बाल शीघ्र और जबरन विवाह (सीईएफएम), प्रजनन और यौन स्वास्थ्य, बाल स्वास्थ्य और पोषण, किशोर नेतृत्व और आंदोलन, पुरुषों और लड़कों को शामिल करना, जेंडर आधारित हिंसा, सामाजिक मानदंड प्रोग्रामिंग और माप के मुद्दों पर केयर के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने सीएनएन, हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू, टेलर एंड फ्रांसिस की पत्रिका जेंडर एंड डेवलपमेंट, एल्डिस/इनसाइट्स, ब्रिज प्रकाशन और द गार्जियन के लिए लिखा है।
दीपिका द्वारा अनुवादित
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