प्रत्येक फैंटसी या कल्पना एक बेहद ही निजी अनुभव होती है, भले ही यह मन में ही रखी जाए या दूसरों को बतायी जाए, और चाहे उसका सम्बन्ध यौनिकता से हो या नहीं। कोई व्यक्ति किस तरह से अपनी यौनिकता (या फिर औरों की भी) का निर्माण कर पाते हैं और यौन आनंद और इच्छाओं को किस तरह अनुभव कर पाते हैं, इस पर उनकी फैंटसी के होने या ना होने का, फैंटसी को स्वीकार करने या इनकार करने का, और इस वास्तविकता का कि वे अपनी इन कल्पनाओं से दुखी होते हैं या इनसे सुख अनुभव करते हैं, बड़ा प्रभाव पड़ता है। बहुत से जाने-पहचाने दृश्यों, चित्रों और आवाजों में हमें ऐसे कल्पनाएँ दिखती हैं जो आमतौर पर लोग अपने मन में करते हैं और इन्हीं से यौनिकता की मुख्य विचारधारा निर्मित होती है।
यहाँ दिया गया चित्र सुपर स्ट्रीट बाइक मैगज़ीन में छपे एक लेख से है, जिसमें कहा गया है, “मोटरसाइकिल तो वाकई सेक्सी होती ही हैं। तो ज़नाब ये कोई कहने की बात नहीं है कि आपकी यौन ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि आप किस मोटरसाइकिल की सवारी करते हैं”। सबसे पहले यह देखें कि इस वक्तव्य का मूल क्या है।
यौनिकता (सेक्शुअलिटी) = यह केवल सेक्स से कहीं अधिक है। यौनिकता में भावनात्मक, मानसिक, सामजिक और व्यक्तिगत अनुभवों, रिश्तों और विचारों का समावेश है।
फैंटसी या कल्पना = यह वास्तविकता नहीं है, यह सोचने या कल्पना करने से उत्पन्न होती है और विचारों के साथ-साथ विकसित होती रहती है।
यौनिकता और फैंटसी के बीच सम्बन्ध = दोनों एक दुसरे के विकास में मदद करते हैं, यौनिकता और कल्पना या फैंटसी एक दूसरे में ऐसे घुले मिले हैं कि इनको अलग कर पाना कठिन है।
कुछ लोगों के लिए चमड़ा (लेदर) और मोटरसाइकिल दोनों ही वास्तविकता हो सकते हैं, अपनी यौनिकता को विकसित करने, प्रकट करने और प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का अंग हो सकते हैं। या तो यह उनकी कल्पना का परिणाम हो सकते हैं या फिर हो सकता है इससे उनकी कल्पना उड़ान भरती हो। ठीक वैसे ही जैसे पति की लम्बी आयु के लिए परम्परागत करवाचौथ के व्रत के दौरान हाथ में फूल लेकर और छलनी से चाँद को निहारती हुई औरत की छवि पित्रसत्तात्मक समाज के अंतर्गत एक साझी फैंटसी ही तो है। यह छवि वैवाहिक संबंधों में यौनिकता का एक दूसरा रूप है जिसे प्रथाओं का आवरण पहनाया गया है।
प्रचलित मीडिया और विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले चित्र और दृश्य यौनिकता के बारे में उन आम कल्पनाओं को मूर्त रूप देते हैं और मज़बूत करते हैं जिनमें आयु, शरीर और यौनिक पहचान को देखा और स्वीकारा जाता है।
यौन कल्पनाओं में सामान्यत: हम केवल शारीरिक रूप से सक्षम लोगों की कल्पना ही करते हैं और प्रचलित साहित्य, कामुक साहित्य एवं पोर्न में भी केवल सक्षम लोग ही दिखाए जाते हैं। इसके अलावा दूसरी तरह की फैंटसी भी होती हैं जो इन कल्पनाओं को करने वालों की यौनिकता से जन्म लेती है, ये वो लोग हैं जो आयु, शरीर और यौन पहचान के स्वीकृत मानकों पर खरे नहीं उतरते। आगे दिए गए कुछ वाक्यांश एक बातचीत का अंश हैं जिन्हें सुनना ज़रूरी है –
वाक्यांश 1:
“अपनी यौन कल्पनाओं में, वह सुनहरे बालों वाली एक फिट और प्रबल महिला है जो अपने पुरुष साथियों पर हुक्म चलाती है। वास्तविक जीवन में वह …” ।
वाक्यांश 2:
“…जैसा मैंने कहा ‘आपको अपने सेक्स को स्टोरीबोर्ड करना है’ अर्थात इसे कहानी की तरह बयान करना है। आप अपने संभावित साथी के साथ बैठ कर चर्चा और विचार करें कि आप दोनों के लिए क्या ठीक रहेगा। आप बात कर सकते हैं कि आपको क्या पसंद नहीं है, क्या करने से आपको कष्ट हो सकता है और ऐसा क्या है जिसे करने में अजीब लगेगा या मज़ा आएगा…”।
वाक्यांश 3:
“हम एक दुसरे से बात करते हैं। हम वो सब करते हैं जो हम करना चाहते हैं। हमें जो भी चाहिए होता है, हम एक-दुसरे को पूछ लेते हैं। और सत्र या सेशन ख़त्म होने के बाद…”
वाक्यांश 4:
“बांधे जाकर, धीमे धीमे लेकिन मजबूती से किया जाए….”
इन चारों वाक्यांशों में ऐसे अनुभव झलकते हैं जिनसे यौनिकता और फैंटसी के बारे में काफ़ी कुछ पता चलता है, लेकिन इन वाक्यांशों में ये अनुभव उस यौनिकता और फैंटसी से अलग हैं जैसा कि हम इन्हें आमतौर पर समझते हैं। वाक्यांश 1 से 4 के व्यक्तिगत अनुभव हमें तभी पता चलेंगे जब हम इन्हें पूरा सुनेंगे और इनका सन्दर्भ समझेंगे।
वाक्यांश 1 में दिया गया ब्यौरा आगे कुछ इस तरह है – “वास्तविक जीवन में वो एक कुंवारी (वर्जिन) महिला हैं जो बिजली से चलने वाली व्हीलचेयर पर निर्भर हैं, आज तक उनके शरीर को सिर्फ़ देखभाल करने वालों और डॉक्टरों ने छुआ है”। इस वाक्यांश में 30 वर्षीया लेतिटिया रेबोर्ड के बारे में बताया गया है जिन्हें विकलांगता के कारण यौन भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इस बारे में वो कहती हैं, “एक विकलांग व्यक्ति को बच्चे की तरह देखा जाता है” … “और ज़ाहिर है बच्चे के साथ सेक्स नहीं किया जाता”।
वाक्यांश 2, जो किसी अन्य व्यक्ति के साथ अपनी यौन कल्पनाओं को साझा करने की कार्ययोजना लगती है, वास्तव में एंड्रू मोर्रिसन-गुर्जा से सम्बंधित है जो विकलांगता के विषय पर परामर्शदाता के रूप में काम करते हैं और विकलांगों में क्विअर व्यवहारों पर चर्चाओं में भाग लेते हैं। ‘स्टोरीबोर्डिंग सेक्स’ के बारे में बताते हुए एंड्रू कहते हैं, “हमारे समाज में एक प्रचलित मिथक यह है कि बढ़िया सेक्स हमेशा अचानक, उर्जा से भरपूर और आश्चर्यजनक रूप से चुपचाप रहकर होता है। मेरा अनुभव यह है कि यह मिथक क्विअर संबंधों में अक्सर माना जाता है जहाँ प्रत्येक साथी को सही समय पर अपने साथी के मन के भाव समझ लेने होते हैं और फिर यहाँ से अपनी यौन फैंटसी शुरू करनी होती है। यह सब बहुत सुखद लगता है लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह वास्तविकता नहीं है”। मेरे विचार से इसका अर्थ यह है कि वास्तविक जीवन में हमें सोच विचार कर बनाई गयी फैंटसी की ज़रुरत होती है।
वाक्यांश 3 डेनियल दोरिगुज्ज़ी का है जो लगभग 50 वर्ष के होने वाले हैं। उन्हें फ्रेडरिक्स अटक्सिया है जिससे शारीरिक समन्वय और आवाज़ के बीच तालमेल नहीं रहता। उनका कहा गया पूरा वाक्य इस प्रकार है, “हम खुद को एक काल्पनिक बुलबुले में बंद कर लेते हैं और सामान्य दम्पति के समान हो जाते हैं। हम एक दुसरे से बातें करते हैं, एक दुसरे को अपनी इच्छा बताते हैं और साथी की इच्छा जानने की कोशिश करते हैं और यह सब कुछ कर लेने के बाद हम उस आवरण को तोड़ बाहर आ जाते हैं” बस इतना ही है। यही है एक साझी फैंटसी के बारे में सही समझ। यहाँ वे अपनी प्रशिक्षित सेक्स चिकित्सक (थेरपिस्ट) और यौनिक सहायक गेओगोरी के साथ बिताये जाने वाले समय के बारे में बता रहे हैं।
वाक्यांश 4 बड़ी उम्र के लोगों के अनुभवों का वर्णन है जो “अर्ली बर्ड स्पेशल!!! एंड 174 अदर साईंस दैट यू हैव बिकम अ सीनियर सिटीजन” शीर्षक से किताब में छपे हैं। पूरा वाक्य कुछ इस तरह है, “उनका कहना है…अब मैं कभी भी फ़िल्मी सितारों के साथ या एथलीट या विलेन के साथ सेक्स करने के दिवास्वप्न नहीं देखती”। “अब मैं यह कल्पना ही नहीं करती कि मेरे हाथ-पैर बांधे गए हैं और मेरे साथ कोमलता से लेकिन मजबूती से सेक्स किया जा रहा है”।
एंड्रू का स्टोरीबोर्डिंग का तरीका सेक्स के बारे में सोचने का बहुत ही रोचक तरीका है। फैंटसी भी लगभग इसी तरह से काम करती हैं; आपके दिमाग में कहानी लिखने का बोर्ड होता है, फ़र्क केवल इतना है कि सेक्स के बारे में लिखते समय आपके साथ एक यौन साथी भी होता है जो इस साझेदारी में बराबर का भागीदार होता है और आनंद लेता है।
जब किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर कोई कल्पना की जाती है तो इसमें साझेदारी, आनंददायक और आपसी सहमती जैसे शब्द बहुत मायने रखते हैं। अगर इसमें साझेदारी, आनंद और सहमति नहीं होती लेकिन फिर भी किसी अन्य व्यक्ति को इसमें शामिल करने का प्रयास किया जाता है तो यही कल्पना शोषण और हिंसा बन जाती है।
अगर दूसरे व्यक्ति की सहमति ना हो पर फिर भी आप अपनी यौन कल्पना को पूरा करने के लिए ‘उनके तकिये पर फूलों की पंखुड़ियां बिखरा दें’ तो यह यौन उत्पीड़न माना जाएगा और परिस्थितियों के अनुसार उस दुसरे व्यक्ति के लिए दुखदायी और त्रास देने वाला अनुभव हो सकता है। आपसी सहमति से दो यौन साथियों के बीच, मिलकर अपनी यौन कल्पनायों को पूरा करते समय जो चाबुक या रस्सी आदि प्रयोग में लाए जाते हैं, वास्तव में वे अपमानजनक या दुखदायी नहीं होते।
कल्पना और सच्चाई के बीच के अंतर को समाप्त कर देना एक कठिन काम है; इसके बारे में विचार करना और बात करना ज़रूरी होता है। इस बारे में विचार कैसे संभव है जब तक हमें विभिन्न तरह के मानवीय अनुभवों की जानकारी ना हो। इस विषय पर हम तब तक चर्चा कैसे कर सकते हैं जब तक कि हम फैंटसी, यौनिकता और इन दोनों के बीच के सम्बन्ध पर विचार न करें?
ऊपर दिए गए 4 में से 3 वाक्यांशों में परिप्रेक्ष्य एक जैसा है – इन सभी में शामिल व्यक्ति शारीरिक विकलांगता के साथ रह रहे हैं। चौथे वाक्यांश में एक अन्य सन्दर्भ दिखता है – वह है बढ़ती आयु का। इन सभी वाक्यांशों में जीवन के बारे में इन लोगों के दृष्टिकोण पर, जिसमें यौनिकता भी शामिल है, इन अनुभवों के प्रभाव दिखाई पड़ते हैं। यह वाक्यांश इन विभिन्नताओं को दर्शाने वाले कुछ दुर्लभ वाक्यांश हैं।
सभी दृश्य, चित्र, कहानियाँ, यौनिकता के निर्माण पर आधारित फैंटसी, और सेक्स के दौरान रोल-प्ले के लिए सभी साजो-सामान एक विशेष प्रकार की फैंटसी के लिए हैं – एक विशेष प्रकार के शरीर के लिए और उस शरीर में रह रहे एक विशेष व्यक्ति के लिए। यही स्वीकार्य मानक होता है। एक अलग शरीर वसले व्यक्ति, विकलांगता के साथ रह रहे किसी व्यक्ति, अलग प्रकार के बौद्धिक स्तर वाले या भिन्न भावनात्मक और सामाजिक अनुभव रखने वाले लोगों के लिए अपनी कल्पना के माध्यम से यौनिकता व्यक्त करने के लिए किसी तरह के खिलौने, उपकरण, किताबें, ऑडियो-बुक, या लिखित सामग्री नहीं मिल पाती।
हालांकि यह सही है कि सेक्स और यौनिकता के तरह ही, हमारी कल्पनाएँ भी हमारे मन की उपज होती है, लेकिन साथ ही साथ यह भी सही है कि कल्पना पर आधारित यौनिकता को व्यक्त करने के लिए किसी न किसी प्रकार की गतिविधि करने या कुछ करने की ज़रुरत होती है। कुछ लोगों ने विकलांग लोगों के लिए भी सेक्स और यौनिकता व्यक्त कर पाने को आसान बनाने की चुनौती को हल करने के प्रयास किये हैं। इस दिशा में आप नेट पर एक एक्सेसिबल वाइब्रेटर का ब्यौरा देख सकते हैं – “यह उपकरण (रम्बल) बहुत ही हलका है और सही मायने में इसकी बनावट सरल प्रयोग के लिए बनी है – यह पकड़ने में आरामदायक है और इसे पकड़ने पर हाथ पर ज्यादा जोर नहीं पड़ता। या फिर यह – “यदि किसी व्यक्ति को कूल्हे (पेल्विक भाग) को हिलाने में कठिनाई हो तो उनके लिए जाँघों पर बाँधी जाने वाली हार्नेस बहुत उपयोगी है। इन उपकरणों की खोज एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इनसे मनुष्यों के बीच की विविधता को स्वीकार करने और आदर देने का आभास होता है और साथ यह भी लगता है कि सम्पूर्ण खुशहाली के लिए यौनिकता और फैंटसी की भूमिका को स्वीकार किया जाने लगा है।
अंत में मुझे डॉ. जस्टिन लह्मिल्लेर के ब्लॉग, ‘सेक्स एंड साइकोलॉजी’ पर यौन फैंटसी के अध्यनन पर कुछ जानकारी दिखाई दी। इसमें “अब तक यौन कल्पनाओं के सबसे बड़े अध्यनन” में भाग लेने का आमंत्रण दिया गया था। मैंने डॉ जस्टिन को ट्वीट करके उनसे इस सर्वे के परिणाम जानना चाहा तो उन्होंने मुझे बताया कि वे अभी उसके परिणामों को अंतिम रूप दे रहे थे। मुझे उम्मीद हैं जल्दी ही मुझे इस बारे में जानकारी मिल जायेगी और आशा करती हूँ कि इनमें अनेक तरह के अनुभव और विचार देखने को मिलेंगे।
अब समय है कि हम यौनिकता, फैंटसी और विविधता के बारे में अपने, खुद के विचारों पर सोच-विचार करें। हमें यह अधिकार है कि हम अपनी यौनिकता निर्मित करने, खुद से और दूसरों के प्रति अपनी यौन सोच को बनाने और उसके अन्वेषण के प्रयास जारी रखें। फैंटसी हमारे, हमारी यौनिकता और हमारे संबंधों का अभिन्न अंग होती हैं।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
कवर चित्र हिंदी फ़िल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ से (2011).
You can read the English version of this article here.