
2013 के अक्टूबर के पहले हफ्ते का ख़त्म हो रहा था जब मैं और मेरे मामा प्रदीप के घर गए उससे और उसके परिवार से मिलने। मेरे मामा पहले ही कई बार उन सब से मिल चुके थे और इस बार उन्होंने मुझ पर ज़ोर दिया कि मैं भी चलूँ और ‘लड़का’ देखूं। यह करीब छह महीने के लगातार झगड़े के बाद की बात है जब मुझसे कहा जा रहा था कि मेरी शादी की उम्र हो गयी है और अब तक मैं ‘सेटल’ नहीं हुई हूँ। प्रदीप और उसके परिवार के साथ पहली मुलाकात अच्छी रही। मैंने अपने बारे में उन्हें बताया कि मैं किन चीज़ों में विश्वास रखती हूँ और किन में नहीं। मैंने मेरी राजनैतिक सोच के बारे में बातचीत की, आने वाले कल में मैं अपनी ज़िन्दगी किस तरह देखती हूँ, मेरा काम क्या है, वगैरह-वगैरह। इन सब बातों के बीच एक बहुत अहम बात पर मैंने ज़ोर दिया कि कैसे मुझे एक धूमधाम शादी बिलकुल भी नहीं चाहिए। मेरे लिए यह मायने रखता है कि भावनात्मक तौर पर मेरे साथी के साथ मेरा जुड़ाव कैसा होना चाहिए और कैसे मैं शादी के बाद समाज के बनाये हुए नियमों से बंधना नहीं चाहती।
इस मुलाकात के बाद मैं बेंगलुरु चली गयी जिसके दौरान प्रदीप और मैंने लगातार एक हफ्ते फ़ोन पर मेसेजिंग की ताकि हम एक दूसरे को और अच्छे से जान सकें। संक्षेप में कहें तो यह किसी और बात से ज़्यादा उसे अपने बारे में बताने जैसा था। मैंने पाया कि वह स्वभाव से ख़ुशमिज़ाज लेकिन कम बोलने वाला था। अगले हफ्ते के आखिर में मैं मद्रास वापस आ गयी और हम दो बार मिले। अपने परिवार से मुझ पर पड़ने वाले दबाव को देखते हुए, मैं सभी को बताती रही कि प्रदीप के बारे में मेरी कोई राय नहीं है। जब प्रदीप ने मुझे उस वक़्त बताया कि यह उसके लिए “हाँ” था, तो मैंने उस से कहा कि मेरे पास “नहीं” कहने का कोई कारण नहीं था, लेकिन इसका मतलब “हाँ” भी नहीं था। इसके तुरंत बाद, मुझे फैलिन बवंडर से प्रभावित ज़िलों में काम करने के लिए ओडिशा जाना पड़ा। जब मैं ओडिशा में थी, तो मेरे परिवार की ओर से मुझ पर बहुत दबाव था, और निराशा के एक पल में, मैंने प्रदीप से कहा कि मैंने अपने परिवार से बात आगे बढ़ाने के लिए हां कहा है, जबकि असल में मैंने अपने परिवार को मेसेज किया था कि “इस प्रक्रिया को औपचारिक रूप देने के लिए आपको जो भी करना है, करें। मैं इसे लेकर बहुत खुश नहीं हूँ। मैं अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती कर रही हूँ”। इसे शादी के लिए मर्ज़ी के तौर पर समझा गया! मैं मद्रास के लिए वापस फ्लाइट में सवार हुई, इस उम्मीद के साथ कि मैं वापस आकर प्रदीप के साथ अच्छा समय बिता पाऊंगी और उसके साथ अपने लिए अपने मन में चीज़ें को सुलझा पाऊंगी। लेकिन मुझे झटका लगा क्योंकि मुझे प्रदीप के परिवार के साथ लगातार समय बिताना पड़ा।
यहां मैं इस बात पर विस्तार से बताना चाहूंगी कि जब कोई भी सूक्ष्म और गुप्त रूप से पितृसत्तात्मक तमिल ब्राह्मण परिवार में शादी के मुश्किल ढांचे के अंदर यह तय कर रहा हो कि वह किसके साथ रहना चाहता है, तो उसे क्या-क्या सहना पड़ता है। यह इस सचाई के बावजूद है कि मेरा पालन-पोषण मेरी माँ के मायके के परिवार द्वारा किया गया था, क्योंकि मेरी माँ और मैं अपने पिता के साथ अत्यधिक दुर्व्यवहार वाले रिश्ते में सालों तक रहे थे। इसलिए मेरी माँ के अलावा, मेरे दो मामी और दो मामा थे जिनकी उम्मीदों और सपनों के साथ मुझे संघर्ष करना पड़ा और निपटना पड़ा। ऐसा परिवार हर लड़की का सपना था कि उसे बेशुमार प्यार, स्नेह, अपनापन, पहचान था; यह सचमुच जन्नत की तरह था।
मैं जो चाहती थी, कर सकती थी, बशर्ते मैं एक जिम्मेदार बेटी होने की पारंपरिक भूमिका निभाती। हाँ, ऐसी बेड़ियाँ जो शायद ही कोई देख पाता हो, स्वीकार करना तो दूर की बात है, जब कोई उस स्थिति में होता है। उनके साथ बड़े होने के इन सभी वर्षों में, मुझे पता था कि मुझे उनकी पसंद के अनुसार शादी करनी है।मैं इतनी बुरी तरह से संस्कारित थी कि डेटिंग/रिश्ते बनाने की मेरी कोशिशें भी कई कारणों से सफ़ल नहीं थीं, इस डर से भी की परिवार को निराश करना पड़े और उनके गुस्से का सामना करना पड़े। जब मेरी मामी, मामा और नाना-नानी ने पूरे भरोसे के साथ कहा कि यह मेरे साथ हुई सबसे अच्छी बात थी, तो मुझे आक्रामक चिढ़ की स्थिति में धकेल दिया गया। तब, शायद पहली बार मैं अपने तरीके से उस संघर्ष को समझ पाई, जिससे कई महिलाएं और कभी-कभी पुरुष अपने जीवन के ऐसे मोड़ पर गुज़रते हैं। दुःख की बात है कि मेरे खुद को ‘नारीवादी’ कहने के बावजूद भी ऐसा ही हुआ। इसलिए, हालांकि उस अक्टूबर में मेरा समझदार, सचेत और प्रत्यक्ष हिस्सा मुझसे कहता रहा कि यह वैवाहिक रिश्ता एक आपदा बनने जा रहा है, फिर भी मैं यह उम्मीद करने से खुद को नहीं रोक सकी कि शायद यह सफल हो जाए या मैं इसे सफल बनाने में सक्षम हो जाऊं, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इससे मेरे परिवार को सबसे ज़्यादा खुशी मिली है।
2013 में हुई घटनाओं के सिलसिले पर वापस आते हुए – जैसे-जैसे मेरी सगाई करीब आती गई, मैं घबरा गई और प्रदीप और एक-दूसरे के साथ हमारी अनुकूलता के बारे में और जानने के लिए बेताब हो गई। समय सीमित था; मेरे पास एक हफ्ता था, और इसलिए मैं लगातार उसके घर जाती और उससे मिलती ताकि यह जान सकूँ कि मुझे क्या उम्मीद करनी चाहिए। लेकिन जब मैंने उससे बात की, तो मुझे एहसास हुआ कि यह रिश्ता भावनात्मक साझेदारी वाला नहीं होने वाला था। और हालाँकि मैंने उसे यह बात बताई, लेकिन मैं वास्तव में अपनी बात नहीं रख पाई और वह शादी की ओर बढ़ना चाहता था। सगाई से एक रात पहले मैं टूट गई और अपने परिवार से यह सब रोकने के लिए कहा। बदकिस्मती से, उस कॉल में मेरा साथ नहीं दिया गया और अपने परिवार से नाता टूटने के डर से मैंने सगाई कर ली। इसके तुरंत बाद, शादी की तैयारियाँ कर ली गईं और सगाई के एक महीने के अंदर ही शादी की तारीख तय कर दी गई।
मैं प्रदीप से शादी करने के अपने परिवार की ज़िद को पूरा न कर पाने के कारण बहुत निराश थी। कुछ और मुलाकातों के बाद मैंने किसी तरह उससे भावनात्मक रूप से जुड़ने की कोशिश की, लेकिन यह कभी काम नहीं आया। इस पूरे समय (यहां तक कि शादी की सुबह भी) मेरे मन में घर से भाग जाने के ख्याल आते रहे, लेकिन मैं खुद को ऐसा करने के लिए तैयार नहीं कर पाई, जबकि मैं एक मज़बूत, स्वतंत्र, शिक्षित और सशक्त महिला मानी जाती थी, क्योंकि मुझे अपने परिवार के साथ अपने रिश्ते पर पड़ने वाले विपरीत परिणामों का डर था। मैं एक व्यथित और बहुत दु:खी दुल्हन थी।
मैं शादी के दौरान लो ब्लड प्रेशर के साथ रही, ऐसा कुछ जिसका मुझे पहले कभी कोई अनुभव नहीं था। शादी के बाद, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दूरी की मेरी स्पष्ट आवश्यकता और अधिक स्पष्ट हो गई। इससे आखिरकार प्रदीप के लिए खतरे की घंटी बज गई। प्रदीप ने अपने परिवार को बताया और उन्होंने तुरंत मुझसे पूछताछ की। फिर मैं हिम्मत जुटाकर उन्हें अपनी मानसिक स्थिति के बारे में और भी खुलकर बता पायी। मैंने उन्हें बताया कि मेरे लिए यह बहुत मुश्किल होता जा रहा है और मुझे लगता है कि साझेदारी में अंतर कभी नहीं पाटा जा सकेगा।
शादी के बाद मुझे इतना दिखावे भरा और मुखर क्यों होना पड़ा, मुझे नहीं पता। शायद, मैं अचानक ऐसी जगह पर पहुँच गई थी जहाँ मुझे लगा कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता। तब मुझे पता चला कि मैंने अपनी आवाज़ त्याग दी है। मैं असहाय महसूस कर रही थी। मेरे कई तथाकथित दोस्तों ने मुझे जज किया था। कई लोगों को लगा कि मैं गुस्सा दिखा रही हूँ। कई लोगों ने सिर्फ़ इसलिए सहानुभूति जताई क्योंकि मैं एक टूटे हुए परिवार की ‘उत्पाद’ थी जिसने अपने दु:खों का एक उचित हिस्सा देखा था। मैं अचानक से बेशर्मी से अपनी बात कहने लगी, बिना किसी लाग-लपेट के कि मैं क्या नहीं चाहती थी, बिल्कुल साफ़, जिस तरह से मैंने अपनी माँ और मामा से व्यवस्था के बारे में लगातार बात की थी। अब मेरे पास बाकी दुनिया के लिए कोई फ़िल्टर नहीं था।
प्रदीप के परिवार ने मुझे मनाने की कोशिश की, यहाँ तक कि गुस्सा भी किया। मैं ने उनकी ज़िद और अपराध बोध के कारण प्रदीप के साथ रहना जारी रखा, लेकिन फिर भी रिश्ता ठीक से नहीं चल पाया। मैं इस हद तक परेशान हो गयी थी कि मुझे मदद लेनी पड़ी और काउंसलिंग के लिए जाना पड़ा। लेकिन शादी के एक महीने के अंदर ही प्रदीप और उसका परिवार आक्रामक हो गया। उन्होंने मुझे अपना घर छोड़ने को कहा। सिर्फ़ अपना सामान लेकर मैं अपने दोस्तों के साथ रहने चली गई और फिर बाद में अकेले रहने लगी। प्रदीप और उसके परिवार ने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी और मुझे उनके घर वापस आने के लिए कहा, लेकिन मैंने ऐसा करने से मना कर दिया। हम बाद में एक बार मिले, जब मैंने उन्हें बताया कि मैं बुरी हालत में हूँ और मैं बस अपना ख्याल रखना चाहती हूँ, अकेले और किसी और चीज़ के बारे में नहीं सोचना चाहती। वर्तमान में, आपसी सहमति से तलाक के लिए अंतिम सुनवाई चल रही है। मेरी नज़र में, यह एक नकली शादी के लिए नकली तलाक है!
जब भी मैं अपने परिवार के बारे में बात करती हूँ तो मेरा कभी भी यह इरादा नहीं होता कि मैं उन्हें बदनाम करूँ कि वे क्या हैं या क्या रहे हैं। यह कि उन्होंने अपनी 26 वर्षीय बेटी की आवाज़ नहीं सुनी, जिसकी राय और दुनिया के बारे में उनके विचार बहुत अलग थे, जो स्वतंत्र, शिक्षित और विशेषाधिकार प्राप्त थी, साथ ही उनके द्वारा पालने-पोसने की वजह से, जो पूरी दुनिया से ज़्यादातर अकेले ही निपटती थी, यह वास्तव में चिंताजनक और दुष्ट है। उनके लिए जो मायने रखता था वह यह था कि उन्हें आर्थिक, स्थानिक और सांस्कृतिक रूप से सबसे अच्छा साथी मिल गया था; और उन्होंने इसे मेरे अज्ञात और संभवतः बेलगाम यौनिकता पर भी नज़र रखने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। आज भी, वे मानते हैं कि उन्होंने मेरी मर्ज़ी को ध्यान में रखते हुए ही सब कुछ किया।
मेरा परिवार और मैं आपस में बातचीत करते हैं और हम अक्सर मिलते हैं, फिर भी जिस तरह से हम ‘शादी’ से पहले और बाद में होने वाली घटनाओं के सिलसिले को समझते हैं, वह बिल्कुल अलग है। मैं अभी भी नहीं जानती कि उस परिवार के साथ कैसे पेश आऊँ जो यह मानता है कि मैं एक बच्ची हूँ जिसने गलत फैसला लिया और उन्हें चोट पहुँचाई और बेइज़्ज़त किया। मैं अभी भी ‘चंचल-मन’ वाली लड़की या टूटे हुए परिवार की पुरानी पीड़ा से पीड़ित लड़की होने के आरोपों से निपटने के बारे में नहीं सोच पाती। उनके साथ मेरी कई बातचीत निरर्थक होती हैं। कई लोग बस अतीत को खोदना नहीं चाहते हैं, इस अनुरोध के साथ समाप्त होते हैं। मेरे पास इस अस्पष्ट स्थिति से बाहर निकलने में मदद करने के लिए कोई वास्तविक तरीका नहीं है जिसमें मैं अपने परिवार के साथ हूँ।
एक बात जो मैं जानती हूँ वो ये है कि ये एक ऐसा चुनाव है जो मैं कर रहीं हूँ। अपने अमूल्य परिवार के साथ इस रिश्ते को फिर से बनाने का चुनाव, चाहे वो कितना भी जटिल और पेचीदा क्यों न रहा हो, लेकिन इस प्रक्रिया में, सीमाओं, स्थान और अर्थ को फिर से परिभाषित करना। उम्मीद है कि एक दिन, मैं एक अर्थहीन और नकली शादी और तलाक की घटनाओं के माध्यम से हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी को अच्छी तरह से व्यक्त कर सकूंगी।
मैं अभी भी विशेषाधिकार के साथ जी रही हूँ। मुझे इस बारे में लिखने, कुछ नए और कुछ पुराने दोस्तों से बात करने के लिए जगह मिली है। मेरा सोशल नेटवर्क निराशाजनक होने के साथ-साथ बेहद सहायक भी रहा है। मुझे लोगों द्वारा मेरे विकल्पों को मान्य करने का सौभाग्य मिला है। मुझे इसे खुद से संसाधित करने का सौभाग्य मिला है। मैं ऐसा करना जारी रखती हूँ। मुझे उस अपराध बोध से निपटने का सौभाग्य मिला है जो मुझे दूसरे परिवार को चोट पहुँचाने के लिए चुभता है। मुझे कई मायनों में बहुत सारे विशेषाधिकार प्राप्त हैं जो कई अन्य लोगों को नहीं मिले हैं।
प्रांजलि शर्मा द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।
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