मेरी यौन जागृति कॉलेज में हुई। या यूँ कहें कि मुझ में ‘यौन जागृति’ कभी नहीं आएगी यह अहसास मुझे कॉलेज में हुआ। तभी, मुझे एहसास हुआ कि मैं एसेक्शुअल थी। नहीं, यह पौधों में अलैंगिक प्रजनन के बारे में जीव विज्ञान का पाठ नहीं है। थोड़ी मेहनत कीजिए, एक पल का समय लीजिए और इसे गूगल करके देखिए। मैं इंतजार करूँगी।
अब, ज़ाहिर है, महिलाओं और लड़कियों के रूप में, हमें अक्सर बहुत कम उम्र से ये समझ आ जाती है कि हमारे शरीर को यौनिक माना जाता है। शायद आपकी माँ ने आपको और अधिक ढकने के लिए कहा होगा। हो सकता है कि आपके स्कूल के शिक्षक ने छोटी स्कर्ट पहनने के लिए आपको सज़ा दी होगी। या ये लोग आपके आस-पास के वो पुरुष थे जो आपको ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए, आप पर बुरी नज़र डालते हुए, आपके निकलते ही सीटी बजाते थे? आख़िरकार, यह आपकी खुद की शर्म की भावना थी, जो जहाँ भी आप गए वहाँ आपके पीछे साए की तरह चलती रही। मैं सोचती हूँ, क्या यह कभी दूर होती है?
चलिए मैं आपको एक दशक पीछे ले चलती हूँ। मेरा बचपन सामान्य मध्यवर्गीय भारतीय बचपन था। दो चोटियों और चश्मे के साथ मैं वो किताबी कीड़ा कहलाने वाले बच्चों की तरह थी। मुझे यकीन है आप समझ रहे होंगे मैं कैसी थी। मैंने स्कूल में पढ़ने में अच्छी थी, सभी शिक्षक मुझे पसंद करते थे, मेरे दोस्त अच्छे थे – सब कुछ बहुत अच्छा था! फिर यौवनारंभ या किशोरावस्था के रूप में घोर संकट आन पड़ा। धीरे-धीरे कक्षा के विषय सेक्स, डेटिंग, लड़कों के इर्द-गिर्द घूमने लगे। सबसे हॉट सेलिब्रिटी कौन था? सबसे सेक्सी अभिनेता कौन था? उस जोड़े का ब्रेकअप क्यों हुआ? ज़ाहिर है, मुझे बातचीत में शामिल होना पड़ता था। बॉलीवुड का सबसे हॉट स्टार कौन था, इस पर मेरी राय कैसे नहीं हो सकती थी। इसलिए मैं हर गपशप के दौरान सिर हिला देती थी। सभी सही पलों में ऊह और आह कर देती थी। कभी भी कोई भी यह नहीं बता पाया कि मैं एसेक्शुअल थी। वो बता भी कैसे सकते थे जब मैं खुद यह नहीं जानती थी?
अब कुछ साल आगे चलते हैं। मैं अमरीका (यूनाइटेड स्टेट्स) में कॉलेज गई। मेरे बचपन का सपना अंतरिक्ष यात्री बनने का था, इसलिए मैंने इंजीनियरिंग और बाद में भौतिक-विज्ञान लिया। अपने विषयों के चुनाव पर मुझे कितना पछतावा हुआ, यह पूरी तरह से एक अलग कहानी है। मेरे लिए, घर से हजारों मील दूर कॉलेज जाना असल में जीवन का सबसे बड़ा अनुभव था। अचानक मुझे सारी दुनिया की आज़ादी मिल गयी थी। सच कहूँ तो मुझे यह पता नहीं था कि मैं इसका करूँ क्या। मैं कभी किसी रिश्ते में नहीं रही थी। मुझे चुंबन या सेक्स करने के बारे में सोचने भर से घबराहट हो जाती थी। लेकिन संबंध होने का मतलब तो यही होता है ना? अंतरंग होना? चूंकि मैं ऐसा नहीं कर पाई, मैंने अपने आप को आश्वस्त किया कि मेरे मानक (स्टैंडर्ड) बहुत ज़्यादा ऊँचे थे। निश्चित रूप से मैं डेटिंग नहीं कर रही हूँ, मैंने खुद से कहा, ऐसे कोई आदमी हैं ही नहीं जिनसे मैं आकर्षित हूँ! मुझे धैर्य रखने और जब तक मुझे सही आदमी नहीं मिल जाता, तब तक इंतज़ार करने की ज़रूरत है। ये हो जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब आप असल में जानते ही नहीं कि आप कौन हैं, तो प्यार को पाना मुश्किल है। सिर्फ़ सुंदरता की नज़र से, मुझे बहुत से लोग पसंद थे! फिर भी मैं जब भी सेक्स के बारे में सोचती तो स्वयं को घृणा महसूस करने से रोक नहीं पाती। तो एक लड़की को क्या करना होगा? स्वाभाविक रूप से, मैंने किताबों में गूगल पर देखा! एक सप्ताह (या शायद कम) की अवधि में ही मैं द एसेक्सुअलिटी विजिबिलिटी एंड एजुकेशन नेटवर्क पर कई चर्चा सूत्रों के माध्यम से सरसरी नज़र डाल चुकी थी (ब्राउज़ किया); यह पता लगाने के लिए कि क्या मुझमें यौन इच्छा है, दो पोर्न वीडियो देखे (मैं इस पद्धति की सलाह नहीं देती), अपने करीबी दोस्तों से बात की, और एसेक्शुअलिटी के बारे में हर एक किताब या वीडियो छान मारा जो मुझे मिल पाया। लोगों के एक पल में रोमांटिक रिश्ते बन जाते हैं। मैंने पल भर में यौनिक खोज कर ली थी। अंततः मुझे ऐसे लोग मिले जो मेरे जैसे महसूस कर रहे थे, दुनिया को उसी तरह अनुभव कर रहे थे।
हालाँकि, अब मुझे नई समस्याओं का सामना करना पड़ा। जितना मुझे समझ आया था उस हिसाब से एसेक्शुअल लोग जनसंख्या का एक छोटा प्रतिशत ही थे। यौनिकता विषय ही बातचीत और अकादमिक शोध में हाल ही में आया है। संसाधनों के लिए मैं कहाँ जाऊँ? मैं ऑनलाइन समुदायों के बाहर एसेक्शुअल लोगों से कैसे मिलूँ या बात करूँ? अमरीका में मेरे विश्वविद्यालय में, मैंने छात्र-संचालित LGBTQA विभाग की सह-अध्यक्षता की। हमने बहुत सारे आउटरीच और सहकर्मी शिक्षा (पीयर एडुकेशन) कार्यक्रम किए। इनमें से एक को ‘आउट 2 लंच’ श्रृंखला कहा जाता था, जहाँ हमने पूरे कैंपस के लोगों को आने और विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करते था। दोपहर का भोजन मुफ़्त दिया जाता था, ज़ाहिर है। एक बार मैं एसेक्शुअलिटी पर चर्चा का नेतृत्व कर पायी। सच कहूँ, तो मुझे नहीं लगा था कि बहुत से लोग आएँगे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। कई लोग चर्चा में आए और अपनी कहानियों, अपनी राय, यहाँ तक कि अपनी शंकाओं को साझा करने के लिए तैयार थे। मुझे यह जानकर सुकून मिला, कि मेरे पास जुड़ने के लिए एक समुदाय सदृश कुछ लोग थे। चर्चा ने एसेक्शुअल होने और दीर्घकालिक संबंध रखने के बारे में मेरी कई आशंकाओं को कम किया। अपनी पुस्तक कम्युनियन – द फीमेल सर्च फॉर लव में, बेल हुक्स का कहना है, “प्यार देखभाल, प्रतिबद्धता, ज्ञान या जानकारी, ज़िम्मेदारी, सम्मान और विश्वास का मिश्रण है।” किसी के साथ प्रेमपूर्ण संबंध बनाने के लिए आपको सेक्स की आवश्यकता नहीं है। हम सभी सहज रूप से यह जानते हैं, क्योंकि हमारे माता-पिता या दोस्तों या भाई-बहनों के साथ स्वस्थ संबंध हैं। फिर भी जब रोमांस की बात आती है, तो हम सेक्स के बिना प्यार के बारे में नहीं सोच पाते। मेरा दृढ़ विश्वास है कि इसकी जड़ स्त्री जाति के प्रति घृणा में निहित है। पुरुषों को महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाना और मानव जाति को आगे ले जाना होता है। महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पुरुषों को समर्पित रहें और बच्चे पैदा करने के लिए सेक्स करें। उनके पास अपनी यौनिकता के स्वामित्व की स्वतंत्रता नहीं है और वे अपनी शर्तों पर सेक्स की माँग नहीं कर सकती हैं, वरना उन्हें गाली के शब्दों का नाम दे दिया जाएगा। जो महिलाएँ सेक्स नहीं करना चाहती हैं, उन्हें ‘पाखंडी’ कहा जाता है। हम किसी भी तरह से जीत नहीं सकते। इंसान के रूप में हमारा मोल इस बात से अटूट रूप से बंधा हुआ है कि हम कैसे सेक्स करते हैं और किसके साथ सेक्स करते हैं।
जब मैं बच्ची थी और मुझे सेक्स की समझ नहीं थी, तब भी मुझे ‘पता’ था कि यह रिश्तों का एक ‘सामान्य’ हिस्सा है। शुक्र है, अब मैं बेहतर जानती हूँ। मुझे समझ आ गया है कि केवल कुछ चुनिंदा लोग यह निर्धारित करते हैं कि क्या सामान्य है। ये लोग शायद शादी हो जाने के बाद भी बिना सेक्स के रोमांटिक रिश्ते के विचार पर हंसेंगे। वे आपको एक समस्या के रूप में देखेंगे और आपके लिए समाधान पेश करेंगे। शायद यह सिर्फ़ एक अवस्था है? क्या इसे थेरेपी से ठीक किया जा सकता है? इस तरह के माहौल में, खुद को स्वीकार करने में लंबा समय लग सकता है और खुद को दूसरों के सामने व्यक्त करने में तो और भी लंबा समय लग सकता है।
मैं अपनी यौनिकता को अपनी पहचान का अलग हिस्सा नहीं मानती। मैं अलग व्यक्ति नहीं हूँ क्योंकि मैं एसेक्शुअल हूँ। यह सिर्फ़ आकार देता है कि मैं कौन हूँ, वैसे ही जैसे मेरी राजनीतिक राय या धार्मिक विश्वास मेरे दुनिया के प्रति नज़रिए को आकार देते हैं। आखिरकार, मेरा सेक्स जीवन (या उसकी कमी) मेरा मामला है और इससे किसी और का कोई लेना-देना नहीं है। अगर प्यार देखभाल के बारे में है, तो मैं पूर्णतः सक्षम हूँ। अगर प्यार प्रतिबद्धता और सम्मान और विश्वास के बारे में है, तो मैं इसके लिए भी सक्षम हूँ। अंत में, मुझे लगता है कि हम सभी ऐसे साथी चाहते हैं जो हमें समझेंगे और रिश्ते में हमारे साथ बराबरी का व्यवहार करेंगे – मैं भी यही चाहती हूँ, बस सेक्स के बिना। बहुत मुश्किल तो नहीं होना चाहिए, है ना?
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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Image: Vancouver Film Festival