स्वप्ना वासुदेवन थम्पी
यह जानते हुए कि इसका छपना लगभग असंभव था, मैंने इस लेख को कुछ पत्रकारों द्वारा प्रकाशित एक इंटरनेट मैगज़ीन के लिए भेजा। निश्चित है, यह नहीं छपा, और जैसी कि मुझे अपेक्षा थी, उन्होंने मुझे लेख में बदलाव करने को कहा। जब हम यौनिकता और उससे जुड़े मुद्दों के बारे में लिखते हैं, तो लोग बहुत सारी बातों को लेकर आशंकित हो जाते हैं और अधिकांश लोग अभी भी इसे जीवन के एक हिस्से के रूप में देखने के लिए तैयार नहीं हैं।
एक सक्रियतावादी (एक्टिविस्ट) होने के नाते, मैं अक्सर आकस्मिक, अनियोजित लम्बी यात्राओं पर जाती हूँ। इसके अलावा, मैं हर रोज शहर के बाहरी भाग (सबर्ब), जहाँ मैं रहती हूँ, वहाँ से महानगर के लिए यात्रा करती हूँ। हर रोज, मैं धीमे चलने वाली एक ट्रेन में सफ़र करती हूँ जिसमें अधिकतर यात्री पुरुष होते हैं।
मैं अपनी इस दैनिक यात्रा को, अपने असली अस्तित्व से बहुत अलग, एक थिएटर प्रोजेक्ट के रूप में देखती हूँ – मैं अपने-आप को सिर से लेकर पैर तक ढक लेती हूँ और अपने चेहरे से दुगना बड़ा धूप का चश्मा पहन लेती हूँ। क्यों? क्योंकि अधिकांश पुरुष यात्री डिब्बे में सभी महिलाओं को ऐसे देखते हैं जैसे कि यह कोई ऐसी चीज़ है जो उन्हें टिकट के साथ मुफ़्त मिलती है। अधिकतर अपना मोबाइल फोन निकाल लेते हैं और या तो ज़ोर-ज़ोर से बात करते हैं या फोन किसी महिला सह-यात्री के मुँह के सामने कर लेते हैं (दुर्भाग्य से मेरी सह-यात्री महिलाएँ ऐसे दिखाती हैं कि जैसे उन्हें कोई अंदाजा ही नहीं कि ऐसा कुछ हो रहा है)। मुझे सच में डर लगता है कि मेरे चेहरे की फोटो ले ली जाएगी और शायद उसका रंग-रूप बदल कर इंटरनेट पर डाल दिया जाएगा। बहुत बार, मैंने सार्वजनिक स्थानों और यात्रा करते समय यात्रियों द्वारा कैमरे वाले मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए जनहित याचिका दायर करने के बारे में तय किया। मैंने इस मामले पर अपने साथी वकीलों से चर्चा भी की लेकिन दुर्भाग्य से, उनमें से कोई भी मेरे साथ जुड़ने को तैयार नहीं थे, और कइयों को यह मुद्दा उठाने के लिए बहुत मामूली लगा।
हाल ही में अपने मूल निवास स्थान (होम टाउन) की यात्रा ने मेरे दिमाग पर एक गहरा असर छोड़ा। हमेशा की तरह मैं अकेली सफ़र कर रही थी, और मेरी टिकट प्रथम श्रेणी के ए.सी. डिब्बे की थी। जिस समय मैं स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रही थी, एक युवा सरकारी अधिकारी, जिनसे मैं वाकिफ़ हो गयी थी और जो नियमित यात्री हैं, उन्होंने मुझे इस विशेष श्रेणी में कुछ ‘समाज विरोधी’ तत्वों के उपस्थित होने की चेतावनी दी, जिसने मुझे थोड़ा बेचैन कर दिया। लेकिन ट्रेन में चढ़ने के बाद, मुझे यह देख कर खुशी हुई कि मेरे सह-यात्री एक दंपति थे जिनका एक छोटा बच्चा था।
हालाँकि, कुछ स्टेशनों के बाद दंपति मुझे अकेले छोड़कर ट्रेन से उतर गए। मैं अपने एकांत का आनंद ले ही रही थी, कि लगभग आधे घंटे के बाद, मैं चौंक गयी जब मैंने एक बड़े पैर को ऊपर की सीट से बाहर लटके हुए देखा। एक आदमी नीचे कूदा और ठीक मेरे सामने बैठ गया। मुझे ये सोचकर झटका सा लगा कि इस सारे समय वह चुपचाप डिब्बे में मौजूद था।
फिर वह आदमी ज़ोर-ज़ोर से अपने मोबाइल पर बात करने लगा। अपनी पहली कुछ कॉलों में, वह कुछ भारी रकम के लेन-देन में बारे में बात करता रहा। धीरे-धीरे, बातचीत मेरी मातृभाषा में बदल गई और अप्रत्यक्ष रूप से इशारा मेरी तरफ़ था। मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब उसने मेरी उम्र के बारे में बात करना शुरू कर दिया, जो उसे डिब्बे के बाहर लगे चार्ट से पता चली थी। उसने अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं के बारे में ताने-भरी टिप्पणियाँ करनी शुरू कर दीं और कैसे उनमें से कुछ अपनी उम्र के बावजूद कितनी आकर्षक लगती हैं। उसने बड़ी सफ़ाई से मेरे गुस्से के संकेतों को अनदेखा कर दिया, और मुझे डिब्बा छोड़ कर बाहर निकलना पड़ा।
जब मैं बाहर खड़ी थी तब टिकट एग्जामिनर के साथ डिब्बे के परिचारक (अटेन्डेंन्ट) दिखाई दिए। मैंने टिकट एग्जामिनर से पूछा कि क्या अगले स्टेशन पर कोई डिब्बे में चढ़ेगा और अपने सह-यात्री के गंतव्य स्थान के बारे में पूछताछ की। उन्होंने मुझे बताया कि अगले स्टेशन पर एक दंपति चढ़ेंगे और वह आदमी चार स्टेशनों के बाद ट्रेन से उतर जाएगा।
अगले स्टेशन पर बच्चे के साथ एक युवा दंपति के आने से मेरे अतिसक्रिय, अति-मुखर सह-यात्री में अचानक देखने लायक बदलाव आया। उन्होंने अपना मोबाइल फोन अलग रख दिया और अधिक परिपक्वता से व्यवहार करना शुरू कर दिया। दंपति को मेरी सीट नंबर के बारे में कुछ संदेह था क्योंकि उन्होंने छोटे बच्चे के लिए नीचे की सीट का अनुरोध किया था। वह आदमी उनका मसीहा बन गया और मेरी सीट के विवरण के बारे में विनम्रता से पूछना शुरू कर दिया, जैसे कि वे बहुत ही सज्जन हैं जो अपने साथी इन्सानों के प्रति गहरी सहानुभूति रखते हैं।
मैं ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी और उन्हें चुप रहने को कहा। जब चार साल की उम्र में मुझे खुद को एक करीबी रिश्तेदार की विकृतियों से बचाना पड़ा था, उससे जुड़ा मेरा सारा गुस्सा, जबर्दस्ती छूने के खतरों के साथ मेरे अनगिनत टकराव, मेरी कमज़ोर स्थिति, यह सब एक ही बार में बाहर आ गया।
बाद में जब वह आदमी अपने गंतव्य स्थान पर उतर गया, तो मैंने उस दंपति से अपने असभ्य होने के लिए माफ़ी मांगी। मैं अभी भी दयनीय और असहाय महसूस करती हूँ कि मैंने उस आदमी के उत्पीड़न के लिए और अधिक प्रतिक्रिया क्यों नहीं व्यक्त की और अपने असली स्वभाव को दबाकर क्यों रखा।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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