Editor’s Note – This article originally appeared in a different version in English. It has been shortened and adapted for Hindi translation.
संपादकीय टिप्पणी – यह लेख मूलतः अंग्रेजी में एक अलग संस्करण में प्रकाशित हुआ था। इसे संक्षिप्त करके हिंदी अनुवाद के लिए अनुकूलित किया गया है।
काम का मतलब घर, बाहर और कार्यालयों में अलग-अलग तरह के कार्यों और व्यवसायों से है। हम हर चीज़ को काम नहीं मानते जब तक कि वह सीधे तौर पर वेतन से जुड़ी न हो। घर पर महिलाओं का काम तब भी काम ही है, भले ही उसका भुगतान न किया जाए। दिए गए तर्कों में यह भी शामिल है – घर पर महिलाओं का काम वास्तव में भुगतान वाला काम है, क्योंकि पुरुष घर के लिए सामान ख़रीदने का काम करते हैं। जैसा कि हम बार-बार सुनते आए हैं, पुरुष बाहरी गतिविधियों, शिकार, मछली पकड़ने, बाघों का पीछा करने तथा सेना में लड़ाकू भूमिकाओं के लिए ज़्यादा उचित माने जाते हैं। और इसके चलते महिलाओं को सामाजिक और जेंडर भूमिका के हिसाब से पढ़ाना चाहिए, कपड़े डिज़ाइन करने चाहिए तथा पापड़ और अचार बनाना चाहिए। यह सच है कि यह सब वैध काम है। हम सभी को पहनने के लिए कपड़े और खाने के लिए अचार की ज़रुरत होती है, और चाहे हमें युद्ध की ज़रुरत हो या नहीं, हमें रक्षा बलों की ज़रुरत तो होती ही है। मैं केवल नौकरियों में जेंडर के हिसाब से नियुक्ति की ऑटोपायलट पद्धति की ओर इशारा कर रही हूं। प्रत्येक जेंडर को काम के कुछ निश्चित क्षेत्र सौंपे गए हैं। अगर आप किसी भी जेंडर की तरह, अपनी सीमा से बाहर क़दम रखते हैं, तो आप एक क्रांतिकारी माने जाते हैं जो जेंडर को बेंड करने की कोशिश कर रहे हैं। और तो और, सिर्फ़ ये ही नहीं। अगर आप उस सीमा के अंदर कुछ अलग करते हैं और अपनी छवि और रूढ़िवादिता को तोड़ते हैं, भले ही वह काम आपके ‘जेंडर के लिए’ ही क्यों न हो, तो यह भी बड़ी बात बन जाती है।
यौनिकता और जेंडर के बीच का संबंध बड़ा जटिल है। दोनों एक नहीं हैं, पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जेंडर एक सामाजिक संरचना है, जो मुख्य रूप से लोगों को उनके जननांग के आधार पर महिलाओं और पुरुषों में विभाजित करती है, तथा उनके लिए अलग-अलग तरह के स्वीकार्य व्यवहार, भावनाएं और व्यवसाय इत्यादि निर्धारित करती है। यह विविध पीढ़ियों, समाजों और संस्कृतियों में अलग-अलग होता है। यौनिकता का संबंध केवल यौन संबंधों और रिश्तों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यौन प्राणियों के रूप में हम किस प्रकार महसूस करते हैं, ख़ुद की कैसे पहचान करते हैं और जीने तथा स्वयं को अभिव्यक्त करने का कैसा चुनाव करते हैं, इन सबसे सम्बंधित है। उदाहरण के लिए, यौनिकता कपड़ों के माध्यम से अभिव्यक्त हो सकती है जो किसी के जन्म के दौरान निर्धारित जेंडर से मेल खा भी सकती है और नहीं भी। इसके विपरीत, ऐसी अभिव्यक्ति को एक कोड या प्रतीक के रूप में देखने की प्रवृत्ति, जो किसी की संपूर्ण यौनिकता का प्रतिनिधित्व करती है, बहुत तरह की समस्याओं को जन्म देती है। उस कोड का खुला अनुपालन करने में किसी की पहचान खो जा सकती है। आप एक पुलिस की वर्दी को हुक पर लटकते हुए देखते हैं तो आप मान लेते हैं कि एक आदमी उसे पहन लेगा, और अपराधियों को पकड़ने के लिए वह अपनी जीप की ओर दौड़ पड़ेगा। तो अब वर्दी इस बात का कोड बन गई है कि कौन इस नौकरी के लिए आवेदन कर सकता है। अगर आपको इस पोशाक की जेब में कोई लंबी और चमकदार बालियां मिलेंगी, तो आप एक पल के लिए सोच सकते हैं कि वर्दी के मालिक ने इसे चुराया है या किसी महिला के लिए उपहार के रूप में ख़रीदा है, न कि यह कि वर्दी की मालिक एक महिला है!
शायद इस लेख की शुरुआत भारत में 27% जेंडर वेतन में जो अंतर है, उससे होनी चाहिए थी, जो इस लेख के लिखे जाने के समय ख़बरों में था। हम महिलाओं के लिए दो से चार इंच की ऊँची एड़ी के जूते (हाई हील्स) अनिवार्य ड्रेस कोड से भी शुरुआत कर सकते थे, जिस पर अब ब्रिटेन की संसद में बहस होगी, क्योंकि निकोला थोर्प फ़्लैट्स यानि बिना ऊँची एड़ी के जूते पसंद करती हैं और उन्होंने उन्हें पहनने के अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी है।
चलिए, जेंडर वेतन के अंतर पर लौटते हैं। 2024 में भी यह अंतर जारी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके कारण पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और भी बदतर हो गई हैं – “भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 और अप्रैल 2021 के बीच 27% पुरुषों की तुलना में 37% महिलाओं ने अपनी नौकरी खो दी थी। यह भी देखा गया है कि महिलाओं के रोज़गार में सुधार की गति धीमी रही है।” जैसा कि इस लेख में कहा गया है, “महामारी ने दशकों की प्रगति को उलट दिया है, जैसा कि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2020-21 के प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि 2018-19 और 2020-21 के बीच अंतर में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।”
आप कौन हैं,
आप क्या करते हैं,
आपके वेतन राशि तथा उसकी तुलना किसी और के वेतन राशि से किस प्रकार की जाती है, जो अलग जेंडर से हैं, लेकिन उसकी योग्यताएं, क्षमताएं, उपलब्धियां और अनुभव आपके समान हैं,
आपको कौन और क्यों काम पर रखता है,
आप जो काम घर पर करते हैं उसके लिए आपके साथ घर पर कैसा व्यवहार किया जाता है और आप जिस स्थान पर काम करते हैं वहां आपके काम के लिए आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है,
अपनी योग्यता, क्षमता और आपके लिए क्या उपयुक्त है, इसके लिए आपकी अपनी समझ क्या है ,
काम और यौनिकता? इस तरह से देखें तो यह आपकी पूरी ज़िंदगी है।
इस तरह की पत्रिका बाइट के लिए, मैं ख़ुद को लॉन्ड्री और साइबर स्पेस के बीच की कहीं एक कतार में फंसी हुई पाती हूं।
आइये सबसे पहले केटी मूसोरिस के साथ साइबर स्पेस पर नज़र डालें। कौन हैं केटी मूसोरिस? वर्तमान में, वह ल्यूटा सिक्योरिटी की संस्थापक और सीईओ हैं, “जो व्यवसायों और सरकारों को हैकर्स के साथ मिलकर डिजिटल हमलों से बेहतर तरीक़े से बचाव करने में मदद करती हैं”, इससे पहले वह हैकरवन की मुख्य नीति अधिकारी थीं। हैकरवन सुरक्षा कोडों में बग और कमज़ोरियों की जांच करता है, जिससे कंपनियों को डेटा की सुरक्षा करने में मदद मिलती है। वह माइक्रोसॉफ़्ट की पूर्व कर्मचारी भी हैं और उन्होंने माइक्रोसॉफ़्ट पर जेंडर-आधारित भेदभावपूर्ण व्यवहार के लिए मुक़दमा दायर किया था, जिससे महिला कर्मचारियों के वेतन और पदोन्नति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था। क्या आपको याद है जब माइक्रोसॉफ़्ट के सीईओ सत्या नडेला से पूछा गया था कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं को कैसे आगे बढ़ना चाहिए, तो उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने भाग्य या कर्म पर निर्भर रहना चाहिए? अब 2024 में, दस साल बाद, हम बदलाव की दिशा में एक और प्रयास देख रहे हैं – नडेला ने कहा, “जिन चीज़ों को लेकर मैं बहुत उत्साहित हूं, उनमें से एक पहल जिसे हमने ‘कोड विदाउट बैरियर’ नाम दिया है, उसे भारत में विस्तारित करना और 2024 तक वास्तव में 75,000 महिला डेवलपर्स की मदद करना है।”
ख़ैर, हैकिंग में महिलाओं की बात पर लौटते हैं! सच कहें तो, जिस दुनिया में हम रहते हैं, वह इतना जेंडर के आधार पर पक्षपात करती है कि हममें से अधिकांश को यह देखकर हैरानी होती है कि हैकर महिलाएं भी सकती हैं! पर इन सरहदों पर कुछ ऐसा है जो जेंडर-आधारित भेदभाव को चुनौती देता है, लोगों को वह बनने की अनुमति देता है जो वे चाहते हैं, दोनो गुमनाम और खुले तौर से। जैसा कि जेनी लैमेरे कहती हैं, “कंप्यूटर को नहीं पता कि आप लड़का हैं या लड़की। लोग कंप्यूटिंग में महिलाओं को लेकर बहुत ज़्यादा बातें करते हैं, लेकिन असल में यह सिर्फ़ आप और कंप्यूटर हैं।” आपका जेंडर कोई मायने नहीं रखता। साथ ही, कोड लिखने या कोड तोड़ने के लिए आपको कोड पहनने की ज़रूरत नहीं है।
मैंने पहले हील्स का उल्लेख किया था। ऐसी हील्स जो हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स ने कान्स में नहीं पहनी थी। प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स (PwC) कंपनी ने रिसेप्शनिस्ट निकोला थॉर्प को इसी तरह की हील्स पहनने को कहा था, जो 2 से 4 इंच से कम न हो, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए कंपनी वालों ने उसका वेतन काट लिया। मुझे आश्चर्य है कि अगर PwC का कोई पुरुष कर्मचारी ऊँची एड़ी के जूते पहनकर काम पर आए तो क्या होगा? हालाँकि, मैं यह कहना चाहूंगी कि इस कहानी का अंत अच्छा है। निकोला की याचिका, “कंपनी द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए ऊँची एड़ी के जूते पहनना अनिवार्य करना ग़ैरक़ानूनी बना दिया जाए” के समर्थन में 48 घंटों के भीतर 1,00,000 से अधिक लोगों ने अपनी राय दर्ज की।
काम और यौनिकता का पुरुषों के जीवन में भी बहुत बड़ा संबंध है। मैं यहां केवल एक व्यवसाय बारे में बात करुँगी जो मेरी रुचि का है – देखभाल कार्य यानी कि केयर वर्क। जब आप अस्पताल में होते हैं और नर्स को बुलाते हैं, तो आप उम्मीद करते हैं कि वह स्मार्ट और साफ़-सुथरी, स्कर्ट, मोज़े पहने हुए आएगी और उसके स्वभाव के अनुसार उसके चेहरे पर मुस्कान या तेवर होंगे। मैंने “बॉयज़ डोंट नर्स” को बड़ी रुचि से पढ़ा था। 2009 में लिखे गए इस लेख में मद्रास न्यायालय के उस फ़ैसले का ज़िक्र किया गया था जिसमें राज्य सरकार ने पुरुषों के नर्सिंग में डिप्लोमा कोर्स करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। तभी मेरी नज़र “बैंगलोर मेल ‘नर्सेज़’ डिफ़ाइंग नॉर्म्स” पर पड़ी। इस लेख में कुछ पुरुष नर्सों, उनके कुछ रोगियों, सहकर्मियों और वरिष्ठ नागरिकों का साक्षात्कार लिया गया है, और देखभाल कार्य में पुरुषों के पक्ष में एक अच्छा मामला प्रस्तुत करता है। हालाँकि, जब मैं इस तरह का लेख पढ़ती हूँ तो मुझे अभी भी उन धारणाओं में जेंडर आधारित पक्षपात महसूस होता है जो सर्जरी में ‘बलवान पुरुष नर्सों’ के लिए वरीयता व्यक्त करता हैं। तो यह ‘बलवान’ पुरुष नर्स का मूल्य इसके विपरीत क्या है? अगर नर्स पुरुष नहीं है, तो क्या नर्स प्रबल नहीं है? शायद मुझे इसे छोड़ देना चाहिए और ख़ुश होना चाहिए कि कुछ चीज़ें बदल रही हैं, अपने तरीक़े से और अपनी गति से।
यह बात मुझे कपड़े धोने के काम पर वापस ले आती है। बहुत समय से विज्ञापनों में महिलाएं स्वच्छ मोज़े और चड्डियों को मुस्कुराते हुए सूंघती रही हैं, जो इसे एक रोमांटिक लत घोषित कर उन्हें उत्तेजित होते हुए दर्शाता हैं, जबकि पुरुष उन्हें वाशिंग पाउडर और/या वाशिंग मशीन बेचते हैं। यह हर महिला का जाना-पहचाना काम है। ऐसा है क्या? क्या ऐसा हो सकता है कि चीज़ें बदल रही हैं? एरियल का विज्ञापन देखकर मैं हैरान रह गयी कि यह कितना अच्छा है। टाइटन रागा का विज्ञापन भी देखने लायक है। हां, भारतीय विज्ञापन बदल रहा है, शायद इसलिए क्योंकि लोग बदल रहे हैं। शायद विज्ञापन लोगों को बदल देगा। शायद काम और यौनिकता के इर्द-गिर्द संबंधों, दृष्टिकोणों और धारणाओं पर तब तक चर्चा और बहस होती रहेगी जब तक हम अपनी वास्तविक पहचान को अपना नहीं लेते, चाहे घर पर हो, ऑफिस में हो, हाई हील्स में हो या बाहर। जब तक घर में हर कोई कपड़े धोने का काम बारी-बारी से न करने लगे।
प्रांजलि शर्मा द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।
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