जब इन प्लेनस्पीक के संपादकों ने पहले-पहल मुझसे स्वयं की देखभाल और यौनिकता के विचार को साथ जोड़कर कुछ लिखने की बात की, तो कुछ पल के लिए मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या लिखूं। ‘देखभाल’ एक ऐसा विषय था जो विधि, विचार-विमर्श, सावधानी से जुड़ा था, जबकि ‘यौन’ आवेग और अभिव्यक्ति, अनायास आनंद के लेने और देने का क्षेत्र लग रहा था। फिर मुझे ख्याल आया, कि कोई यौनिक उन्मुक्ति की खोज में खुद के लिए किस तरह के सुविचारित व्यवहार का निर्माण कर सकते हैं। और क्या यह एक तरह से बहुत ही उदार कल्पना नहीं है कि इन्हें करने के बाद, एक व्यक्ति दुनिया का सामना एक यौन-सकारात्मक, स्वयं की पुष्टि करने वाले (और इसलिए दूसरों की भी पुष्टि करने वाले) व्यक्ति, खुशी और मिलन के बेहतर वाहक के रूप में करेंगे? (इन व्यवहारों या कोशिशों की योग्यता, और इन कोशिशों को करने में निहितऐतिहासिक और सांस्कृतिक बोझ, एक पूरी अलग ही चर्चा है)। इस लेख को सोचने, लिखने और व्याख्यान करने के दौरान, मेरी प्रारंभिक शंका कुछ हद तक कम हो गई हैं।
यह एक सत्यवाद है कि यौनिक आनंद, जहाँ अनुभव की तत्कालता में बेहिचक शामिल है, यह गहराई से सामाजिक रूप से संरचित भी है। सेक्स राजनीतिक है। शर्म और अपराधबोध हमारे यौनिक जीवन की सीमाओं की निगरानी करते हैं। ‘बदचलन औरत‘, ‘विकृत व्यक्ति‘, ‘वेश्या‘, ‘समलैंगिक‘ पर शर्म थोपी जाती है और ये तो बस कुछ ही नाम हैं। हम में से कुछ जब जाने या अनजाने इन सीमाओं को धकेलने या लांघने की कोशिश करते हैं तो हमें भारी कीमत चुकानी पड़ती हैं। किसी एक लड़ाई से दर्दनाक रूप से झूझने और उसकी परिधियों को पार करने के बाद, हम केवल अपनेआप को अन्य प्रकार की करीबी लड़ाइयों के सामने खड़ा पाते हैं। अगर शर्म हमें नहीं मार पाती या नीचा नहीं दिखा पाती, तो इस बात पर निर्भर करते हुए कि हम दुनिया के किस हिस्से में हैं, या तो परिवार, या पड़ोसी, या मकान मालिक, नियोक्ता, गाँव या राज्य हमें आज़माने और हमें दंडित करने, यहाँ तक कि हमला कर मार डालने के लिए भी हमेशा दृढ़ होते हैं। यह एक समस्या है।
कुछ मनोविश्लेषण साहित्य यौनिक शर्म की उत्पत्ति को कौटुम्बिक व्यभिचार (इन्सेस्ट) (और समलैंगिक) वर्जना में बताते हैं। इसकी शुरुआत हमारे माता-पिता के साथ हमारे बचपन के संबंधों से ही हो जाती है। यदि इन प्रेम और देखभाल के संबंधों से जुड़े अनुभव को हमारी वयस्क अंतर्दृष्टि को सूचित करने वाले प्रारूप मान लिया जाए, तो हमारे माता-पिता अपने यौनिक शरीर और इच्छाओं के आसपास जो शर्म और शर्माना अनुभव करते हैं, (खास तौर पर, लेकिन केवल हमारे संबंध में नहीं), वो हमारे वयस्क प्रेम संबंधों पर भी छाप छोड़ेंगे। पिता, जो कभी अपनी बेटियों को बेफिक्री के साथ गले लगाते थे, लेकिन अब इन यौनिक रूप से खिलते नए शरीरों से दूर रहते हैं, अनजाने में कुछ रूपों में विषमलैंगिक शर्म को निश्चत करते हैं। यहाँ पर एक नए तरह का जुनून तो है, पर यह एक परिचित एहसास से दुखद अलगाव भी है। “नहीं, दोस्तों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं बनाए जाते।” “प्रेमी दोस्त नहीं हो सकते। आपकी पत्नी आपकी मित्र हो सकती है, लेकिन आपकी प्रेमी नहीं”।
हमें अपने जीवन में इन शुरुआती शक्तिशाली मॉडलों द्वारा अपने शरीर और इसकी संभावनाओं के प्रति अपने संबंधों को स्वीकार करने के तरीकों को समझने के लिए मनोविश्लेषण सिद्धांत का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं है। मलत्याग और मूत्रविर्सजन (और जब बड़े होते हैं, तब समय-समय पर रक्तस्राव) जैसे अधिकाँश शारीरिक अनुभवों के इर्दगिर्द वो छी-छी करना, गलती से चड्डी का या नंगा दिख जाने पर झिड़की, ये सभी शर्म निश्चित करते हैं। उस छोटे बच्चे के बारे में सोचें जो बिना चड्डी पहने, मेहमानों के सामने हैरानी से आँखें फाड़े आ जाता है। मेरे दोस्त ने बताया कि, कैसे बड़े होते समय, एक चीज थी जिसके चारों ओर बहुत बंदिश और चुप्पी थी, और जब गलती से (आमतौर पर) उसे उजागर और चेतना में लाया जाता था तो हलचल मच जाती थी और घृणा, भय और अपमान बाहर निकलता था, यह थी उनकी (पहनी हुई) चड्डी। उनके लिए यह दिलचस्प है कि कैसे उनके भाई के जाँघिया को इतने विस्फोटक अर्थ में नहीं देखा जाता था। वे जाँघिये तो परिवार में, घर के किसी भी हिस्से में और अन्यथा कहीं आने-जाने की आज़ादी का आनंद लेते थे।
अगर हम देखभाल और यौनिकता के संयोजन को देखें तो देखभाल में विचार-विमर्श (यौनिकता में इच्छा की सहजता के विपरीत) और इसमें नियमितता (यौनिकता में जुनून की ताज़गी के विपरीत) का अर्थपूर्ण होना ही एक अकेला विरोधाभास नहीं है। देखभाल आमतौर पर किसी दूसरे (युवा, वृद्ध, बीमार) के लिए अनुकूलन, स्वयं की तबाही का प्रतीक भी है। यहाँ पर देखभाल को आसानी से उन कामों में मान लिया जाता है जिन्हें औरतों के कार्य कहा जाता है।
दरअसल, सेक्स में, निश्चित रूप से विषमलैंगिक में, लेकिन शायद समलैंगिक या क्वीअर यौनिकताओं के कुछ रूपों में भी, महिला के साथ जुड़ी यह स्वयं की तबाही, अगर पूरी तरह नहीं तो कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे महिला को मर्दानगी की इच्छा वस्तु के रूप में देखा जाना। यहाँ, हम उस समस्याप्रद नारी सुलभ प्रेम और इच्छा की बात कर रहे हैं जो तलाश के बजाए इंतजार करती है, देखने के बजाय देखि जाती है, स्वयं का बलिदान और सेवा करती है। (मुझे कोई याद दिलाता है कि प्यार और वासना अंततः मर्दाना और ज़नाना, सक्रिय और निष्क्रिय, प्रमुख और विनम्र, मालिक और दास की इन सीमाओं को तोड़ देती है – एक-दूसरे में पूरी तरह से घुलमिल जाते हैं, बिलकुल राधा-कृष्ण के मिलन की तरह।)
देखभाल को विशेष रूप से ‘अच्छे नारी सुलभ’ कार्यों के साथ जोड़ कर देखा जाता है, यौनिक रूप से सक्रिय, वांछनीय और पाने की इच्छा वाली माँ स्वार्थी माँ है – ये उन विसंगतियों में से एक है जो शर्म-प्रेरित नियत्रंण और दंड को आमंत्रित करती हैं। वैकल्पिक रूप से, ‘बदचलन औरत‘ (या एकल महिला) को मातृत्व से वंचित रखा जाता है; उनकी आज़ादी, विविधता/एक से अधिक के प्रति उनका रुझान और आधिक्य, जोखिम और साहस की उनकी प्रवृत्ति उन्हें पालन-पोषण के लिए अमान्य बना देती हैं।
शर्म को प्रेरित करने वाला ये साम्राज्य वृहद् लगता है, और साथ ही स्वयं की यौनिक देखभाल की सम्भावना भी; जिसमें अनेकों बच्चे हैं जिन्हें सभ्यता-प्रसार करने वाले सामाजिक लक्ष्य ने बेदखल कर दिया है, वे बच्चे जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है। इस तर्क के हिसाब से स्वयं की यौनिक देखभाल एक राजनैतिक मुद्दा है। और इस तरह, स्वयं की यौनिक देखभाल का समर्थन करना और इसे प्रोत्साहित करना, ‘अनुभवजन्य‘ कार्यशालओं, जेंडर और यौनिकता पर ‘सैद्धांतिक‘ पाठ्यक्रमों और पत्रिका श्रृंखला जैसे कि इन प्लेनस्पीक के लिए, यौनिक सक्रियतावाद (एक्टिविज़्म) का हिस्सा बन जाता है। (स्वयं की) जानकारी से, आशा यह है कि हम इस प्रक्रिया में उत्प्रेरित हो जाएँ, (जो चाहे स्वेच्छा से हो या हमारी इच्छा के बाहर), और जो हमारे शरीर के स्वयं के साथ, हमारी दुनिया के साथ संबंधों को बदल दे।
भूपिंदर तोमर, बिंदू के सी, अन्य दोस्तों और मेरे कई प्यारे छात्रों को इस विषय पर कई शानदार चर्चा के लिए धन्यवाद।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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