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खेल और यौनिकता

A series of 4 pictures - all of them showing a bunch of young girls engaged in playing sports. They are dressed in different kinds of brightly coloured cothes and they each wear a red cap

संपादक की ओर से खेल और यौनिकता, ऐसे विषय हैं जिनको अक्सर साथ रख कर नहीं देखा जाता है। क्रिया (www.creaworld.org) की सुनीता और ज्योति ने अपने इस लेख में खेल और यौनिकता के सीधे सम्बन्ध को दर्शाने की कोशिश की है। इनका यह लेख क्रिया के ‘इट्स माय बॉडी’ कार्यक्रम से प्रेरित है। इस लेख में इन्होंने तीन राज्यों (झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और बिहार) में लागू इस कार्यक्रम से जुड़ी १२१६ साल तक की किशोरियों के अनुभवों की चर्चा की है।

झारखंड की रहने वाली १५ साल की संगीता को अपनी सहेलियों के साथ फुटबाल खेलना बहुत ही अच्छा लगता था। एक दिन मैदान में फुटबाल खेलने वक़्त कुछ लड़कों ने सीटी मारी और छेड़ते हुए कुछ बोल दिया। यह सब संगीता के भाई ने देख लिया और घर आ कर खूब भलाबुरा कहा और फुटबाल खेलने से मना कर दिया। यह सुन कर संगीता खूब रोई मगर उसके भाई ने उसे फुटबाल खेलने की इजाज़त नहीं दी। तब संगीता ने यह बात अपनी सहेलियों और किशोरी समूह चलाने वाली दीदी को बताई। दीदी ने अन्य किशोरियों के साथ मिल कर उसके भाई से बात की और उसे समझाया कि गलती उन लड़कों की है, संगीता की नहीं, तो संगीता को खेलने से मना नहीं करना चाहिए। बहुत समझाने पर यह बात भाई को समझ में आ गयी और अब संगीता हर शाम खेल कर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करती है।

संगीता की कहानी नई नहीं है। बल्कि यह कहानी अधिकतर घरों की है, जहाँ ऐसी न जाने कितनी ही बंदिशे लगायी जाती रही है। किशोर वर्ग में सबसे ज्यादा बंदिशे किशोरियों के ऊपर लगती है जिसके तहत हमारा समाज, परिवार और रिश्तेदार यह तय करते है कि किशोरावस्था आने पर लड़कियों को कैसे बोलना-बैठना चाहिए, उनको किस तरह के कपडे पहनने चाहिए। उनके घूमने फिरने पर भी पाबन्दी लगा दी जाती है। यह पाबंदियाँ सिर्फ यहाँ ख़त्म नहीं होती है। असल में इन पाबंदियों की आड़ में परिवार और समाज यह कोशिश करता हैं  की लड़कियों के हाव-भाव और उनकी ज़िन्दगी को नियंत्रण में रख सके। यह नियंत्रण उनकी रोज़मर्रा की जीवन शैली तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि धीरे-धीरे उनकी ज़िन्दगी के अहम् फैसलों पर भी प्रभाव डालता है। ऐसे में इन फैसलों को ले कर लड़कियों का चुनाव और उनकी सहमति सिर्फ शब्द बन कर ही रह जाते हैं।

किशोरियों के ऊपर यह नियंत्रण सिर्फ परिवार और समाज के स्तर तक ही सीमित नहीं रहता है। राष्ट्रीय स्तर की अगर बात की जाये तो देखा जा सकता है की किशोरियों के स्वास्थ्य सम्बन्धी अधिकतर कार्यक्रम उनके पोषण, प्रजनन स्वास्थ्य और माहवारी के दौरान सफाई जैसे मुद्दों तक ही सीमित रह जाते है। हालांकि किशोरियों के स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दे ज़रूरी हैं और इनसे सम्बंधित सेवाएँ   किशोरियों तक पहुंचाई जानी चाहिए, मगर साथ ही साथ किशोरियों को उनसे जुड़े अधिकारों के बारे में, पसंद-नापसंद, चुनाव और सहमति के बारे में जानकारी देना भी बहुत ज़रूरी है जिससे वो सशक्त हो सकें और अपनी ज़िन्दगी के अहम् फैसले वो खुद ले सकें।

सम्पूर्ण रूप से देखा जाये तो अलग अलग दिखने वाले यह शब्द – पसंद-नापसंद, चुनाव, सहमति और किशोरियों से जुड़े अधिकार – सभी यौनिकता से जुड़े मुद्दे है। अधिकतर लोग यौनिकता का अर्थ यौन क्रिया से ही जोड़ते है और यही वजह है कि किशोर एवं किशोरियों को इस से सम्बंधित जानकारी से दूर रखा जाता है। यौनिकता व्यक्ति के शरीर के किसी विशेष भाग तक सीमित नहीं है और यह शारीरिक से ज्यादा मानसिक होती है। यौनिकता लोगों के विचारों, भावनाओं और उनकी इच्छाओं से व्यक्त होती है। हम कैसा महसूस करते है, क्या सोचते है, कैसे कपड़े पहनना चाहते हैं, क्या करना चाहते हैं – इन सभी भावों से यौनिकता व्यक्त की जाती है।

अक्सर यह देखा जाता है की यौनिकता से जुड़े मुद्दों पर बहुत कम बात की जाती है और ऐसा माना जाता है की अगर हम लड़कियों को उनके अधिकारों, उनकी पसंद-नापसंद, सहमती और यौनिकता के सन्दर्भ में जागरूक करेंगे तो वो ‘बिगड़’ जाएँगी। किशोरियों को इस से जुड़ी जानकारी से दूर रख कर, समाज और परिवार उनसे, उनके खुद के बारे में सोचने और चुनने की समझ को नियंत्रित करने की कोशिश करता है।

यौनिकता से जुड़े इन सभी मुद्दों पर किशोरियों को जानकारी देने के लिए CREA ने झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और बिहार, में ‘इट्स माय बॉडी’ नाम से एक पहल की है। इस कार्यक्रम को १२-१६ साल तक की किशोरियों के साथ शुरू किया गया है। इस के अंतर्गत ग्रामीण स्तर पर २५ किशोरियों का एक समूह बनाया जाता है और खेल के माध्यम से किशोरियों को घर से बाहर लाने की कोशिश की जाती है। इस कार्यक्रम के तहत यह कोशिश की जा रही है की किशोरियों को खेल के माध्यम से जोड़ कर उन्हें रिश्ते, सम्बन्ध, स्वास्थ्य, यौनिकता, चुनाव और सहमति जैसे मुद्दों के बारे में जानकारी दी जाये।

किशोरियों को सशक्त करने के लिए, खेल एक कारगर तरीका है। खेल के माध्यम से न सिर्फ़ किशोरियों को एक साथ लाया जा सकता है बल्कि इसके ज़रिये उनकी खुद अपने बारे में और खुद के शरीर के बारे में जानकारी भी बढ़ती है। खेलने से न सिर्फ किशोरियों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान बढ़ता है बल्कि उन्हें मौका मिलता है की वो अपने आप को खुल कर व्यक्त कर सकें। इस से किशोरियाँ  शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य महसूस करती है। खेलने से किशोरियों को न सिर्फ अपनी पसंद-नापसंद के बारे में पता चलता है बल्कि अपनी पसंद-नापसंद को लोगों के सामने कैसे व्यक्त करना है यह भी सीखती है। यह कौशल किशोरियों को अपने बारे में अहम् फैसले लेने में मदद करता है। और आगे चल कर माँ-बाप से बातचीत कर के शादी की उम्र में देरी जैसे फैसले करने में भी मदद करता है। खेल में फुटबॉल का इस्तेमाल एक ऐसा सक्रीय ज़रिया है जिससे किशोरियों को समूह की ताकत के बारे में और टीम में मिल कर काम करने का प्रशिक्षण मिलता है। इस से अपने समूह और टीम के साथ किशोरियों का जुड़ाव मज़बूत होता है, जिसके कारण वो खुल कर एक दूसरे के साथ बातें करती है। और ज़रुरत पड़ने पर एक दुसरे से मदद लेती है जिससे वो अपने परिवार, स्कूल या समुदाय के अन्य लोगों से बातचीत कर के अपने निर्णय के बारे में समझा सके।

किशोरियों में आये इस परिवर्तन के बारे में बात करती हुई हमारे इस पहल से जुडी झारखण्ड की मौसमी, जो कि ‘लोक प्रेरणा केंद्र’ संस्था से जुडी हैं, बताती हैं कि उनके अनुसार खेलने से लड़कियों में आगे बढ़ने की ललक और प्रतियोगिता की भावना बढ़ी है और अब वो एक दुसरे के साथ खेलती हैं और मिल के काम करती हैं। खेल और यौनिकता के बारे में मौसमी बताती है कि अब उनके समूह की लड़कियाँ कम उम्र में शादी करने से मना करने लगी हैं और उन्हें अपनी यौनिकता की बेहतर समझ होने लगी है। लड़कियाँ अब अपनी पसंद से कपड़े पहनने, बाल बनाने की बातें करती हैं।

हमारी इस पहल से जुडी झारखण्ड की कौशल्या, जो कि ‘सृजन फाउंडेशन’ से जुडी हैं, उनकी भी लगभग यही राय रखती है। लड़कियों के बारे में बात करते हुए वो बोलती है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वो मैदान में जा कर खेल सकती हैं और ऐसा करने से उनको इतना मज़ा आएगा। मैदान में दौड़ना भागना उन्हें काफी पसंद है और ऐसा करने से उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है। और अब लड़कियों ने अपनी पसंद-नापसंद के बारे में बात करना शुरू कर दिया है।

इस कार्यकर्म के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के एक समूह की किशोरी सीमा अपने में आये बदलाव के बारे में बताते हुए कहती हैं कि :

पहले हम लोगों को खेलने को नहीं मिलता था। गाँव में सभी लड़के स्कूल के पास वाले मैदान में फुटबाल खेलते थे। मगर अब, जब से इस समूह का हिस्सा बने है, हम सभी लडकियां मैदान में जा कर अपनी अपनी पसंद का खेल खेलते है। अब हम फुटबाल, खोखो, कबड्डी जैसे खेल खेलते है और समूह की मीटिंग्स में अपने हक के बारे में जानकारी पाते है। दीदी हमें हमारे शरीर के बारे में, यौनिकता के बारे में, रिश्तों के बारे में और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी भी देती है।

उत्तर प्रदेश में चल रहे कार्यक्रम से जुडी एक किशोरी की माता जब परिवार की मीटिंग में आई तो उन्होंने बताया कि ‘मेरी लड़की ने तो घर को मैदान बना रखा है, बर्तन, गिलास, कप…सभी उसको फुटबॉल जैसे ही लगते है। अब अपनी हर बात वो हमसे खुल कर और बेझिझक बोलती है।’

तीनो राज्यों में यह कार्यक्रम लागू करते समय कई तरह की दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा – कभी किशोरी समूह की मीटिंग में किशोरियों के परिजन यह देखने के लिए आ जाते थे की उनकी लड़कियों को क्या सिखाया जा रहा है, तो कभी किशोरियों के भाई उन्हें ‘लड़कों वाले खेल’ खेलने से मना करते थे। और हमारी किशोरी समूह का हिस्सा बनी किशोरियों के रूढ़िवादी विचारों में परिवर्तन लाने में भी काफी समय लगा। मगर धीरे-धीरे यह परिवर्तन देखने को मिल रहा है और अब परिवार और कोशोरियों में खेल और यौनिकता से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करने में ज्यादा रूचि देखने को मिल रही है।

CREA के बारे में:

सन २००० में स्थापित क्रिया, नयी दिल्ली में स्थित एक नारीवादी मानव अधिकार संस्था है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय महिला अधिकार संस्था है, जो समुदाय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करती है। मानव अधिकार आंदोलनों और समूह के विभिन्न भागीदारों के साथ मिल कर, क्रिया महिलाओं और लड़कियों के अधिकार को आगे बढ़ाने और सभी लोगों के यौनिक एवं प्रजनन स्वतंत्रता पर कार्य करती है। क्रिया राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सकारात्मक सामाजिक बदलाव के लिए पैरवी करती है और दुनिया भर से सक्रियतावादियों और पैरवीकारों को ट्रेनिंग और सीखने के अन्य मौके प्रदान करती है।

www.creaworld.org

इट्स माय बॉडी कार्यक्रम का उद्देश्य है खेलकूद के माध्यम से किशोरियों के यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को मज़बूत करना। यह कार्यक्रम १२-१६ वर्षीय किशोरियों के साथ उनके यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर काम करता है। यह कार्यक्रम बिहार, उत्तर प्रदेश के कुल ८ जिलों में, १५ संस्थाओं के साथ मिलकर चलाया जा रहा है।

Pic Source: CREA