लेखक अनीता
परिचय – अनीता जो महाराष्ट्र में एक देवदासी हैं, के इस आत्म कथ्य से पता चलता है कि सहमति और हिंसा के मुद्दे हमेशा स्पष्ट और सीधे रूप में सामने नहीं आते। अनीता का कथ्य बताता है कि जीवन की कई परिस्थितियों में वो अपना रास्ता खुद मर्ज़ी अनुसार चुन पाई हैं ।
मैं गोकुल नगर में पली बढ़ी हूँ (गोकुल नगर वेश्यावृत्ति या धंधे में काम कर रही महिलाओं की एक झुग्गी बस्ती है)। जब मैं छोटी थी, तो हमारे घर पर ग्राहक आते थे और मैं उनकी साइकिल उठाकर घूमने निकल जाती थी… और मैं लुका छिपी खेलती थी।
जब मैं १० साल की हुई तब मुझे पता चला कि मेरी माँ एक सेक्स वर्कर हैं। मेरी माँ के एक नियमित ग्राहक ने मेरी बहनों की और मेरी आर्थिक मदद की। लगभग उसी समय मेरी माँ की मृत्यु हो गई। माँ की मृत्यु के बाद मेरा पिता (वह व्यक्ति जो मेरी माँ के साथ उसके मालक यानि लम्बे समय के प्रेमी या किसी पारम्परिक कानूनी पति के रूप में रहता था) दो-तीन बार हमसे मिलने को आया था। हम लोग अपनी चाची के साथ रहते थे। वही एक व्यक्ति थीं जिन्होंने हमारी देखभाल की थी। मेरी बहन ने मुझसे कहा कि मैं देवदासी बन जाऊं। मुझे देवदासी प्रथा के बारे में कुछ मालूम नहीं था।
जब मैं छोटी थी तो हमेशा मज़े करती थी। हर जगह घूमा करती थी। मैं दिन भर अपने समुदाय की लड़कियां – शैरी, सुमित्री, कमली, म्हादि, अफ़साना – के साथ खेला करती थी। ये सब मेरे बचपन की सहेलियां थीं जिनके साथ मैंने अपने दिन ख़ुशी-ख़ुशी बिताए थे। सब मेरी ही उम्र की थीं। ज़्यादातर खेलने के चक्कर में मेरी अपनी माँ से हुज़्ज़त होती थी। मेरी पिटाई भी होती थी मगर मैंने मज़ा करना बंद नहीं किया।
मेरी माँ ने मुझे स्कूल में बहुत देरी से दाखिला दिलाया था, इसलिए अपनी कक्षा में मैं बड़ी थी। जब मैं चौथी कक्षा में थी तब मुझे माहवारी शुरू हो गई थी। चूँकि मैं बड़ी हो गई थी, तो स्कूल छोड़ दिया। मुझे स्कूल की याद कभी नहीं आई।
जब मुझे येल्लम्मा देवी को समर्पित किया गया, तब मेरी चाची (जिन्हें मैं माँ कहती हूँ) ने मुझे अपने साथ सौन्दत्ति (कर्णाटक के बेलगाँव जिले का एक प्राचीन शहर) आने को कहा। हमारे साथ स्वरुप टॉकीज़ इलाके की तीन-चार महिलाऐं थीं। सबसे पहले हम जोगुल बाई सत्यव्वा के मंदिर गए। उन्होंने मुझे नहाने को कहा और नीम की पट्टी पहनने को कहा। वहां की देवी की पूजा करने के बाद हम पहाड़ी पर मुख्य मंदिर में गए। मेरे साथ की महिलाओं ने दाल, चावल, आटा खरीदा और भोजन बनाया। देवी के लिए प्रसाद की थाली तैयार की गई। शाम को पांच अन्य देवदासियों की उपस्थिति में मैं देवदासी बन गई। उन्होंने मेरे गले में मोतियों की पांच मालाएं डालीं और उस दिन से मैं देवदासी बन गई। उस समय मैं १२ वर्ष की थी। अन्य देवदासियों के समान, मेरे लिए भी यह एक धार्मिक चीज़ थी।
मैंने देवदासी बनने के बारे में ज़्यादा कुछ सोचा नहीं था। मेरा परिवार, मेरी माँ, मेरी चाची, मेरी बहन और मेरी कई रिश्तेदार देवदासियां थीं। जब मैं देवदासी बनी तो मुझे बुरा नहीं लगा। वैसे भी मुझे शादी करने की इच्छा कभी नहीं रही।
जब मैं १८ वर्ष की हुई, तो मैं सेक्स वर्क में शामिल हो गई। मुझे तब इस बारे में कुछ पता नहीं था। एक बार एक आदमी हमारे घर आया और कहा ‘आज शाम मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।’ मेरी सहेलियों ने मुझसे कहा कि ‘देखो ये आदमी तुम्हारे साथ सोने को आएगा। तुम एक-दूसरे का हाथ पकड़ोगे।’ मैंने अपने दोनों हाथों पर मेहँदी लगाई। वह शाम को आया और बिस्तर पर बैठ गया। मेरी सहेलियों ने मुझसे कहा कि जाकर उसके पास बैठ जाऊं। उन्होंने कहा ‘वो तुम्हें कुछ नहीं करेगा।’ तो मैं अंदर जाकर उसके पास बैठ गई। फिर वो मुझे पकड़ने लगा मगर मुझे ठीक नहीं लगा और मैं चिल्लाई, तो उसने मुझे छोड़ दिया। मुझे बाहर अपनी सहेलियों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। सेक्स वर्क करने में मेरी कोई रूचि नहीं थी। तीन-चार महीने बाद वही आदमी फिर से हमारे घर आया और मुझे बुलाया। इस बार उसने सेक्स की मांग की। तब मुझे पता चला कि ‘अंदर जाने’ या ‘किसी के साथ सोने’ का मतलब होता है किसी के साथ सेक्स करना।
अच्छा दिन वह होता था जब मेरे पास कई ग्राहक आते थे, जब मुझे पैसा मिलता था। मैं खूब पैसा कमा सकती थी। मंगलवार भी अच्छा दिन होता था क्योंकि उस दिन उपवास करते थे और दिन भर देवी की पूजा करते थे। ग्राहक न आएं, तो वह मेरे लिए बुरा दिन होता था। ग्राहक न आने के लिए मैं खुद को कोसती थी।
पूरे जीवन में कभी किसी आदमी ने मुझे चोट नहीं पहुंचाई। एक बार एक आदमी आकर मेरे पति (मालक) की तरह व्यवहार करने लगा। मगर मुझे वह पसंद नहीं था और मैंने उसे दूर रखने के लिए काफ़ी संघर्ष किया। उससे लड़कर मैं और भी मज़बूत हुई।
संग्राम से जिस पहले व्यक्ति से मिली वह मीना सेशु मैडम थीं। वह अप्प्रव्वा मोउशी के साथ हमारे समुदाय से मिलने आई थीं। मीना सेशु मैडम ने हमें समुदाय में कंडोम बांटने के बारे में बताया। उन्होंने हमें एचआईवी और एड्स तथा यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) के बारे में बताया और मुझे समुदाय के लिए साथी शिक्षक के रूप में चुन लिया। उन दिनों महिलाओं में एसटीआई का प्रकोप बहुत ज़्यादा था। इस कार्यक्रम के चलने से हम औरतों की ज़िन्दगी में बहुत फ़र्क आया। हमने कंडोम के महत्व के बारे में सीखा और उनका इस्तेमाल शुरू किया। शुरुआत में कुछ ग्राहक, खासकर शादीशुदा ग्राहक निरोध (कंडोम का एक ब्रांड) का उपयोग करने लगे थे। यही ग्राहक कंडोम साथ लेकर आते थे मगर अविवाहित आदमियों को न तो इनके बारे में ज़्यादा कुछ मालूम होता था और न ही वे अपने साथ कंडोम लेकर आते थे।
जब मैं ग्राहकों के साथ कंडोम इस्तेमाल करने लगी, तो मुझे अच्छा लगा। कुछ आदमी ना-नुकर करते थे मगर मैं उन्हें एचआईवी तथा यौन संचारित संक्रमणों के बारे में बताती थी। हालाँकि कई आदमी शुरू-शुरू में कंडोम का इस्तेमाल करने से मना करते थे, मगर मैं उनके साथ बातचीत करती थी और कंडोम का इस्तेमाल करवाती थी।
एक बार मुझे लगा कि मुझे प्यार हो गया। मैंने उसके साथ भाग जाने की योजना बनाई और सांगली में मार्किट यार्ड तक चली भी गई। मैं वहां थोड़ी देर रुकी और अपने परिवार और अपने भविष्य के बारे में सोचा। मैं लौट आई। मालक ग्राहक से अलग होता है। मालक के साथ हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं। और ग्राहकों के साथ मैं पैसों के लिए काम करती हूँ। मालक के साथ मैं मज़े के लिए घूमने-फिरने जाती हूँ। मैं ग्राहकों के साथ भी ऐसा करती थी मगर उसमें मेरा दिल नहीं होता था। मालक और ग्राहक के बीच यही तो अंतर है।
मैं अपने मालक के साथ बच्चे पैदा करना चाहती थी। इसीलिए मैंने उसके साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाया। मैं दिन के समय फुरसत का वक़्त मालक के साथ बिताती थी और गर्भवती हो गई। गर्भावस्था की जांच के दौरान मुझे पता चला कि मैं एचआईवी पॉजिटिव हूँ। मैं बहुत बेचैन हो गई। मैं उस दिन बहुत मायूस थी और दिन भर रोती रही। समुदाय की महिलाओं और (मीना) मैडम ने मुझे समझाया। यह चार साल पहले की बात है। मैं आज जिंदा हूँ तो उन्हीं के सहारे के दम पर।
मैंने सिविल अस्पताल में ऑपरेशन की मदद से एक बच्ची को जन्म दिया। मुझे उसकी बीमारी के बारे में पता नहीं था। दो महीने तक वो ठीक-ठाक रही। जचकी के समय ऑपरेशन हुआ था, इसलिए मुझे डेढ़ महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। मेरी बच्ची बड़ी प्यारी थी। मगर दो माह बाद वह चल बसी। मैं बहुत दुखी हुई। मुझे लगा कि ऑपरेशन और दर्द की जो तकलीफ़ मैंने झेली वह सब फालतू ही गई। बड़ी मुश्किल से मैंने बच्ची को जन्म दिया और फिर खो दिया। संग्राम और वैश्या अन्याय मुक्ति परिषद (वैम्प VAMP) के कई लोगों ने मुझे सामाजिक और आर्थिक मदद दी थी।
मुझे लगता है कि वैम्प (VAMP) मेरे जैसी औरतों के लिए काम करता है। मैं भी ऐसा ही काम अन्य लोगों के लिए करना चाहती थी, इसलिए मैं साथी शिक्षक नेटवर्क में जुड़ गई। मेरे काम से खुद मेरी और अन्य लोगों की क्षमता निर्माण में मदद मिलती है।
जब मुझे पता चला कि मैं एचआईवी पॉजिटिव हूँ, तो मैंने अन्य सेक्स वर्कर को समझाना शुरू कर दिया कि वे कंडोम की मदद से खुद की सुरक्षा करें। शुरू-शुरु में कई औरतें नहीं सुनती थीं। मगर मैं उनसे मिलकर कंडोम उपयोग करने की बात करती रही। अब वे मेरी सुनती हैं और मेरा यकीन करती हैं क्योंकि मैं भी उनके जैसी ही पृष्ठभूमि से हूँ।
मैं औरतों को धंधा छोड़ने को नहीं कहती हूँ क्योंकि यही तो हमारी जीविका है। मैं तो सिर्फ कंडोम का उपयोग करने की सलाह देती हूँ ताकि उनका जीवन सुरक्षित रहे। मुझे लगता है कि समुदाय की हर औरत सेक्स वर्क से जुड़े किसी भी मुद्दे को सँभालने की ताकत रखती है।
जब मेरे हाथों में खूब पैसे होते हैं, तो मैं खुश होती हूँ और त्यौहार के दिनों में, जब मेरे परिवार के सदस्य खुश रहते हैं, जब मेरी सेहत अच्छी रहती है, यही मेरे जीवन के सबसे ख़ुशी के दिन होते हैं।
आज मैं उम्मीद करती हूँ कि मैं एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकूं।
(सम्पादक का नोट : अनीता महाराष्ट्र में स्थित वैश्या अन्याय मुक्ति परिषद (वैम्प) के साथ काम करती थीं, और उन्होंने इन प्लेनस्पीक के लिए अपनी यह कहानी लिखी। २१ जनवरी २०१४ को अनीता का निधन हो गया, हमारी हार्दिक श्रधांजलि)
सुशील जोशी द्वारा ‘यौनिकता, जेन्डर एवं अधिकार अध्ययन बाइन्डर, CREA, नई दिल्ली’, के लिए हिन्दी में अनुवादित
स्त्रोत : तारशी, इन प्लेनस्पीक, फरवरी २०१४
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