‘आप मटरगश्ती (लॉयटर) क्यों करना चाहेंगे?’ नारीवादी शोधकर्ता, अभिभावक, शिक्षक और सक्रियतावादी डॉ॰ शिल्पा फडके से पूछने के लिए एक बढ़िया सवाल है। शिल्पा का मानना है कि मटरगश्ती करना, सार्वजनिक स्थानों पर बस घूमना, मौजूद होना ‘अपने शरीर के ज़रिए शहर पर दावा करने’ के बारे में है। शिल्पा 2011 में प्रकाशित पुस्तक, ‘व्हाई लॉयटर: वीमेन एंड रिस्क ऑन मुंबईज़ स्ट्रीट्स’, की सह-लेखिका हैं। शिल्पा ने नारीवादी पालन-पोषण, जेंडर और स्थान की राजनीति के मुद्दों पर, जोखिम उठाने के अधिकार और संबंधित विचारों और अवधारणाओं पर कई निबंध और जर्नल लिखे हैं। वर्तमान में वे एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं, और मुंबई के टीआईएसएस (TISS) में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ कंटेम्परेरी कल्चर, स्कूल ऑफ़ मीडिया एंड कल्चरल स्टडीज़ की अध्यक्षा हैं।
शिखा अलेया: शिल्पा, इस साक्षात्कार के लिए समय निकालने के लिए धन्यवाद। शुरू करने के लिए, कृपया हमें महिलाओं की सुरक्षा और महिलाओं की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर प्रभाव की प्रचलित अवधारणाओं पर अपने विचारों के बारे में बताएँ।
शिल्पा फडके: जब हम सुरक्षा को एक तर्क के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ‘चीजें कैसी होनी चाहिए’ के बारे में निश्चित विचार देते हैं, तो यह वास्तव में महिलाओं के लिए, और हाशिए पर रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक जाल के समान है। महिलाओं के लिए सुरक्षा, अनिवार्य रूप से, इस शर्त के साथ आती है कि सुरक्षा की हक़दार होने के लिए उन्हें सम्मानजनक होना है और सार्वजनिक स्थान पर किसी ख़ास उद्देश्य से ही होना है, अन्यथा नहीं। और इसी तरह सुरक्षा को अन्य हाशिए पर रह रहे नागरिकों के अधिकारों के खिलाफ़ भी पेश किया जाता है। तो सुरक्षा पर बहस यह तर्क देगी कि महिलाएँ बेरोजगार प्रवासी पुरुषों की वजह से असुरक्षित हैं, और इस तरह एक ही झटके में महिलाओं और गरीब पुरुषों दोनों को सार्वजनिक स्थान से बेदखल कर दिया जाएगा – अर्थात महिलाओं को जनसामान्य (पब्लिक) में नहीं होना चाहिए क्योंकि उन पर हमला हो सकता है, और जनसामान्य के रूप में गरीब पुरुषों को संदेह की नज़र से देखा जाएगा क्योंकि वे संभावित अपराधी हैं। तात्कालिक गाज़ गिरती है जनसामान्य में महिलाओं की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर और सब निश्चित रूप से “हमारे अपने अच्छे” के लिए है।
यदि वाक़ई में महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए वास्तविक प्रतिबद्धता होती, तो हमें बुनियादी ढाँचा – सार्वजनिक परिवहन, शौचालय, सड़क प्रकाश व्यवस्था – प्रदान करने के लिए अधिक प्रयास दिखाई देते। बेहतर और प्रभावी पुलिस व्यवस्था होती, जहाँ महिलाओं के सड़क यौन उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज की जाती और उन्हें गंभीरता से लिया जाता, न कि उन्हें रोज़ की बात कहकर अनदेखा किया जाता। महिलाओं को नागरिक के रूप में सार्वजनिक स्थान तक पहुँचने के अधिकार की स्वीकृति दिखाई देती।
शिखा: अजनबी द्वारा हिंसा और संरचनात्मक हिंसा की अवधारणाएँ स्वतंत्रता, यौनिकता और अधिकारों को कैसे प्रभावित करती हैं?
शिल्पा: सुरक्षा की समकालीन वार्ता में अजनबी द्वारा हिंसा पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित किया जाता है। मीडिया द्वारा खतरे की व्याख्या में विशेष रूप से जनसामान्य में, अंधेरे के बाद, महिलाओं की प्रतीक्षा करती हिंसा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। आकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में, महिलाओं के खिलाफ़ ज़्यादातर हमले निजी स्थानों (प्राइवेट) में होते हैं और जान-पहचान वाले लोगों द्वारा किए जाते हैं। इस तथ्य के बावजूद, हम कभी भी महिलाओं को घर पर न रहने के लिए नहीं कहते हैं, एक ऐसी जगह जो अक्सर महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक होती है, बल्कि, हम महिलाओं से आग्रह करते हैं कि वे इसी स्थान पर लौट आएँ। अजनबी द्वारा हिंसा पर चिंता दो तरह से है, चिंता यह कि युवा महिलाओं पर सार्वजनिक रूप से अजनबियों द्वारा हमला किया जा सकता है, लेकिन साथ ही साथ यह डर भी है कि महिलाएँ ‘अनुपयुक्त’ पुरुषों के साथ सहमति वाले सम्बन्ध बनाएंगी। सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं को पहुँच नहीं देना, एक ही समय पर दोनों चिंताओं – कि महिलाओं पर उनकी इच्छा के खिलाफ़ हमला किया जा रहा है और यह भी कि महिलाएँ सहमति देने वाले वयस्कों के रूप में यौन विकल्प चुन रही हैं – का समाधान देता है, यहाँ तक कि यह महिलाओं को निजी स्थानों पर भी प्रतिबंधित करता है। उदाहरण के लिए, हादिया का केस यह स्पष्ट करता है कि जब महिलाएँ अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी के सम्बन्ध में अपनी मर्ज़ी से चुनाव करती हैं, तो उसकी एक बड़ी कीमत ली जाती है।
शिखा: आपके निबंध में, ‘इफ़ वीमेन कुड रिस्क : रि-इंटर्प्रेटिंग वायलेंस इन पब्लिक स्पेस‘, आपने ‘सामाजिक, सामुदायिक, पारिवारिक प्रतिबंधों और स्वतः प्रतिबंधन को शामिल करने की बात कही है, जिसे अभी तक शायद हिंसा के रूप में बिल्कुल नहीं देखा गया है’ – आप हमें इस संदर्भ में स्वतः प्रतिबंधन के बारे में कुछ और बताएँ?
शिल्पा: जब हम जांच-परख करते हैं कि आम तौर पर हिंसा किसे माना जाता है तो अक्सर यह अजनबियों द्वारा हिंसा या अचानक हुई हिंसा के वाकयों को ही हिंसा के रूप में मान्यता दी जाती है। महिलाएँ पाबंदियों के रूप में जिस संरचनात्मक हिंसा का प्रतिदिन सामना करती हैं, – जब उन्हें कहा जाता है कि माहवारी के दौरान वे अपवित्र होती हैं, जब कहा जा रहा है कि परिवार के ‘सम्मान‘ को बनाए रखने के लिए आपको अपने जाति समूह में विवाह करना होगा, जब कहा जाता है कि उन्हें अपने मन के अनुसार बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी, – इन्हें हिंसा के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि अक्सर इन्हें संरक्षणवाद, यहाँ तक कि प्यार, और महिलाओं के “सर्वोत्तम हित” के रूप में देखा जाता है। महिलाएँ अक्सर इन सख्तियों को आत्मसात करती हैं और स्वतः प्रतिबंधन करती हैं – हम कैसे चलते हैं, हम क्या पहनते हैं, कितनी ज़ोर से बात करते हैं या हंसते हैं, – हम सीखते हैं कि यह हमारा शरीर है जो पुरुषों को “लुभाता” है और कि खुद को सुरक्षित रखना “हमारी ज़िम्मेदारी” है। यह पूरी तरह से पीड़ित को दोष देना है लेकिन इसे कभी ऐसे नहीं देखा जाता है। इसे अक्सर “अच्छी सलाह” के रूप में देखा जाता है। किरन खेर की हालिया टिप्पणी कि चंडीगढ़ में जिस युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था, उसे तीन पुरुषों के साथ ऑटोरिक्शा साझा करके नहीं जाना चाहिए था और उसके बाद की प्रतिक्रिया जिसमें वह “केवल महिलाओं को सतर्क रहने के लिए” कह रही थीं, ऐसी विचारधाराओं का एक उदाहरण है।
शिखा: क्या यह कहना सही होगा कि हम महिलाओं की स्वतंत्रता के संदर्भ में जोखिम, या जोखिम उठाने के व्यवहार पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं, जैसा कि शायद हम अन्य क्षेत्रों, जैसे उद्यमिता या वित्त में करते हैं? नारीवादी दृष्टिकोण से सकारात्मक जोखिम के प्रमुख सिद्धांत क्या होंगे?
शिल्पा: बिल्कुल। उच्च वित्त की दुनिया में जोखिम लेना एक मर्दाना काम है जो अच्छी ख़ासी रकम से पुरस्कृत होता है और ऐसा करने वाले व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है। हालाँकि महिलाओं के लिए, रात में सैर करने का सरल कार्य भी अक्सर “सभी प्रकार के गलत जोखिमों से भरा”, विशेष रूप से प्रतिष्ठा के लिए जोखिम होने के रूप में देखा जाता है। सार्वजनिक स्थान पर हमारे शोध में हमने पाया कि महिलाएँ अक्सर वास्तविक शारीरिक जोखिम की तुलना में प्रतिष्ठा के जोखिम के बारे में अधिक चिंतित थीं जो कि सुरक्षा की बातचीत कैसे गढ़ी जाती है, इस पर एक दुखद टिप्पणी है। एक नागरिक के रूप में, सार्वजनिक स्थान तक पहुँच बनाने के लिए महिलाओं को जिस चीज़ की ज़रूरत है वो है जोखिम उठाने का अधिकार है जिसके लिए उनपर दोष न डाला जाए।
जोखिम कइयों के लिए उत्तेजक है, रोमांचक है और जितना कि किसी और को यह अधिकार है, महिलाओं को भी, यह चुनने का अधिकार है कि हम क्या जोखिम लेना चाहते हैं। हालाँकि, किसी को भी अपर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी के साथ आने वाले शहरी जोखिमों को उठाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मिसाल के तौर पर, पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन की कमी को एक महत्वपूर्ण कारण के रूप में देखा जा सकता है जिसके चलते दिल्ली में युवा फिजियोथेरेपी छात्र ने एक ऐसी बस ली जो मज़े लेने के लिए निकाली थी। निगरानीपूर्ण सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में, किसी भी बस को “मज़े लेने के लिए” नहीं निकाला जा सकता है।
नारीवादी आदर्शलोक एक ऐसा समय होगा जब किसी को आधी रात को बाहर निकलने की इच्छा हो, तो व्यक्ति बस बिना सोचे ऐसा कर सकें जैसे कि सुबह के 9 बज रहे हों।
शिखा: यौनिकता और अधिकारों के व्यापक मुद्दों पर सार्वजनिक स्थानों पर समान रूप से दावा करने के द्वारा महिलाओं के जोखिम लेने का संभावित प्रभाव क्या होगा?
शिल्पा: अगर हम सार्वजनिक स्थानों को ऐसे स्थान के रूप में देख सकते हैं जो, महिलाओं, गरीबों, प्रवासियों, बेरोजगारों, क्वीअर, ट्रांसजेंडर, फेरीवालों, यौनकर्मियों, सभी के लिए है, तो हमारे पास संभावित रूप से एक बदला हुआ शहर होगा, जिसके बारे में हमने अपनी किताब ‘व्हाई लॉयटर? मुंबई की सड़कों पर महिला और जोखिम’ में तर्क दिया है।
शिखा: शिल्पा, एक नारीवादी अभिभावक के रूप में अपने कुछ अनुभव साझा करें – आप बातचीत और व्यवहार में आप स्वतंत्रता और यौनिकता के मुद्दों को कैसे संभालती हैं?
शिल्पा: इस प्रश्न का कुछ शब्दों में जवाब देना मुश्किल है। मूल रूप से एक नारीवादी अभिभावक के रूप में मेरा प्रयास अपनी बेटी को यह समझ दिलाने का है कि उसके पास विकल्प हैं और उसका शरीर उसका है। उदाहरण के लिए, इसका मतलब है, माता-पिता सहित किसी से भी, गले मिलने से इनकार करने के उसके अधिकार का सम्मान करना। सवाल पूछने पर मेरी कोशिश सच बोलने की भी रही है, इसलिए जब उसने तीन या चार साल की उम्र में पूछा कि मेरा सैनिटरी पैड क्या है तो मैंने उसे माहवारी के बारे में बताया। (पर्यावरण के प्रति सचेत लोग मुझे क्षमा करें। मुझे लगता है कि मैं पैड के बजाए माहवारी कप का उपयोग करने के लिए बहुत उम्रदराज हो चुकी हूँ!)।
किसी समय जब उसने पूछा कि बच्चे कैसे बनते हैं, तो मैंने शुक्राणु-अंडाणु के मिलने के घिसे-पिटे विषमलैंगिक रोमांस रूपक पर एमिली मार्टिन की टिपण्णी को ध्यान में रखते हुए अपनी बेटी को शुक्राणु और अंडे की कहानी बताते समय इस बात पर ज़ोर दिया कि अंडाणु है जो शुक्राणु का चयन करता है। उसने अधिक प्रश्न नहीं पूछे इसलिए मैंने इस बात को वहीं छोड़ दिया। कुछ महीने पहले, एक पारिवारिक पिकनिक के लिए जाते समय, बस की पिछली सीट पर बैठी, उसने मुझसे पूछा, “लेकिन मम्मा, शुक्राणु और अंडा – यह मिलते कैसे हैं?” हड़बड़ाहट से बचने के लिए मैं उस वक़्त बस इतना ही कर सकी; अपने जीवन में पहली बार मैंने कहा, “जब हम घर पहुँचेंगे तब मैं आपको बताऊँगी”! मैंने सामान्य रूप से उसे यह संकेत देने की कोशिश नहीं की है कि यौनिकता के बारे में सार्वजनिक रूप से बात नहीं की जा सकती है, लेकिन जैसा कि मैंने पाया है, कुछ सीमाएँ हैं जिनका ध्यान रखना होता है। मैं निश्चित रूप से एक बस में बैठ कर यौनिकता शिक्षा पर आरंभिक सत्र का संचालन नहीं करना चाहता थी जिसमें 70 साल से ऊपर की आंटियाँ बैठी थीं! फिर मैंने उसके दुबारा पूछने का इंतज़ार किया, और जब उसने पूछा तो मैंने उसे बताया। मुझे चिंता थी कि मैं शायद बहुत अधिक जानकारी दे रही हूँ और मैंने उससे कहा कि यदि वह अधिक जानना नहीं चाहती है तो मुझे रोक दे। सौभाग्य से ऐसा लगता है जैसे उसने इसे समझ लिया है। एक बात जो मैंने उसे बार-बार ज़ोर देकर बताई है, वो ये कि यह जानकारी उसके द्वारा सहपाठियों और दोस्तों को शिक्षित करने के लिए नहीं है क्योंकि यह काम उनके माता-पिता का है। (मुझे आशा है कि ऐसा करने में मैंने उसे यह संकेत नहीं दिया है कि यह कुछ खुसपुस करने या छुपाने का विषय है)। यह हमेशा एक विस्फोटक क्षेत्र है और व्यक्ति को कभी पता नहीं होता कि वो सही कर रहे हैं या नहीं।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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