“किसी भी और महिला की तरह, … हम अपने शरीर से अपनी कहानियाँ बुनते हैं।
हममें से कुछ अपने बच्चों या अपनी कला के ज़रिए; और कुछ केवल जीने के अंदाज़ के ज़रिए।
यह सब एक जैसा है।”
- फ्रांसेस्का लिया ब्लॉक
मेरी नब्ज़ की जाँच करने के बाद, ग्रेस, मेरी बहुत ही प्यारी एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ, ने मेरी तरफ़ चिंता भरी नज़रों से देखा। जून महीने की चिलचिलाती गर्मी में मैं बहुत ही तेज़ क़दमों से चलती पसीने से तरबतर, अपनी पीठ के दर्द का इलाज कराने, उनके ऑफिस पहुँची थी जो मेरे घर से करीब एक मील दूर था। ग्रेस को मेरे पसीने से कोई परेशानी नहीं थी । मेरे ठण्डे पेट ने उन्हें चिंता में डाल दिया।
““आपकी माहवारी कैसी है इन दिनों?””
““अधिकतर नियमित रही है लेकिन पिछले साल से, कुछ अनियमित हो गई है।””
““आपका ची फ्लो (प्राणा का संचार) असमान है। आपके शरीर में काफ़ी गर्मी है और आपका एस्ट्रोजन का स्तर कुछ गड़बड़ लग रहा है। और मैं जानती हूँ कि पिछले कुछ समय से आप ठीक से सो नहीं पा रहीं हैं… मेरी राय में हमें कुछ महीनों तक विशेष रूप में इसको ध्यान में रखकर इलाज करना चाहिए और फिर देखते हैं क्या होता है। आपकी उम्र क्या है?””
““अड़तीस वर्ष।””
““अह, अच्छा, तो… लेकिन शायद यह आपके लिए बहुत जल्दी है… चलो इसका ईलाज करते हैं और देखते हैं कि क्या होता है।””
मैंने अपने शरीर में एक झटका महसूस किया, एक व्याकुल मन जो न्यू यॉर्क के उमस भरे दिन में बड़ी बात नहीं है, जल्दी ही शांत होने वाला था। मैं जानती थी ग्रेस क्या कहना चाह रही थीं। उपचार की मेज़ पर लेटे-लेटे, मैं इस संदिग्ध पूर्वानुमान के एहसास में उलझ गई। मैंने थोड़ा दुःख महसूस किया, कुछ खोने का अहसास, वैसा ही जैसा कि कोई अपने अतीत के कगार पर महसूस करेगा। लेकिन मुझे बिलकुल ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं टूट गई हूँ या मेरा जीवन बर्बाद हो गया है। कुछ मायनों में मुझे राहत मिली थी।
मैं बच्चों से प्यार करती हूँ और जीवन में कई बार मैंने गोद लेने के बारे में सोचा है। लेकिन बचपन से ही मुझे पता था कि मैं बच्चों को जन्म नहीं देना चाहती थी। मैं कभी भी अपने इस फैसले के बारे में अस्पष्ट या संदेहात्मक नहीं रही हूँ। मैंने कभी अपने शब्दों को तोड़ा मरोड़ा नहीं और ना ही मैंने मातृत्व को लेकर अपने मनोभाव को छुपाया है। मैंने लगातार सपष्टता के साथ और संक्षिप्त रूप में यह कहा है कि मैं यह नहीं करना चाहती। ऐसा नहीं है कि मैं इसे एहमियत नहीं देती या मेरे पास जीवन में करने के लिए ‘और ज़रूरी काम हैं।’ बस मेरे अन्दर बच्चे पैदा करने की कोई चाहत नहीं है और यह गर्भावस्था के अनुभव के अभाव में नहीं है। 25 से 30 वर्ष की उम्र के बीच मैं गर्भवती हुई थी और मैंने उसके किसी भी पल में आनंद महसूस नहीं किया। जब मेरा गर्भपात हुआ, मैंने, मुझसे अवतीर्ण होने वाली आत्मा के लिए शोक मनाया लेकिन मुझे एक अद्भुत राहत भी महसूस हुई। मेरे लिए, और मेरी तरह अन्य कई महिलाओं के लिए, मेरे रचनात्मक कार्य अनेको तरीकों से प्रकट किए जा सकते हैं, हो सकता है उनमें मेरी प्रजनन क्षमता कभी शामिल ही ना हो।
जब मेरी मातृ स्थिति के बारे में पूछा गया – असल में विरोध किया गया – तब, मेरी जान पहचान वाले और अनजान दोनों ही तरह के लोगों से समान स्तर की आलोचना, चुनौती और अविश्वास सुनने को मिला: “लेकिन क्यों?” “सच में? क्या आपको यकीन है!” “अह, आपके पास अब भी समय है! हो सकता है आपके विचार बदल जाएँ?” “खैर, समय निकल रहा है! बेहतर होगा कि आप इस बारे में ध्यान दें इसके पहले कि मौका हाथ से निकल जाए!” “ओह, लेकिन एक छोटी रेमी कितनी प्यारी होगी ना!” “पर देखिए ना, आप बच्चों के साथ कितनी अच्छी हो! आप स्वाभाविक हैं!”
और यह कि “जब आपके बच्चे होते हैं तभी आप प्यार के सच्चे स्वरुप को जान पाते हैं!”
मेरे ऊपरी आत्मविश्वास और अपनी जीवनशैली के अधिकार में विश्वास के बावजूद, मेरे मातृत्व के बारे में लगातार उठते, अक्सर निर्मम, सवाल मुझे वापस वहीं लाकर खड़ा कर देते हैं। इसमें मेरे व्यक्तित्व के बारे में इतना गंभीर खंडन है कि मैं सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि हम महिलाएँ अपने बारे में निर्णय लेने के लिए कितनी स्वतंत्र हैं। तो इसमें अंतर्निहित यही दिखाई देता है कि नारीत्व, मातृत्व का पर्यायवाची है।
एक महिला जिनके बच्चे हैं, वह अधिक महिला है, और फिर मैं, बिना बच्चों के, उनसे कमतर हूँ। इस सन्दर्भ में, एक महिला की व्यक्तिगत इक्छाएं/चुनाव दोनों में से किसी भी स्थिति में नज़र नहीं आते हैं। समाज में किसी भी अन्य तरह का योगदान हमारी नारीत्व की सबसे पवित्र भूमिका में भाग लेने की अनिक्छा की वज़ह से ख़ारिज कर दिया जाता है। महिलाओं के द्वारा, महिलाओं के लिए अनेकों महत्वपूर्ण योगदान किए गए हैं। इसके बावजूद, समाज में महिलाओं के अधिकारों/कार्यों को नियंत्रित करने के लिए मातृत्व के मिथक का प्रयोग, नियंत्रण के एक गूढ़ हथियार की तरह, जारी है – सामूहिक रूप से और अंतरवैयक्तिक तौर पर। यह एक और स्थान भी है जहाँ हमें याद दिलाया जाता है कि हमारा शरीर ही हमारे अस्तित्व और विश्व में हम क्या योगदान दे सकते हैं इसकी शुरुआत और अंत है।
अगर नोमो (नॉट मदर) आन्दोलन की बढ़ती लोकप्रियता को एक संकेत माना जाए, तो मैं इन भावनाओं को महसूस करने वाली अकेली नहीं हूँ। और बहुत से अध्ययन और रिपोर्टों के अनुसार, पूरे विश्व में अनेकों औरतें सक्रियता से बच्चे नहीं पैदा करना चुन रहीं हैं। इसका 21वीं सदी में नारीत्व के लिए क्या मतलब है?
हालाँकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जो परिवारों की तरफ़ अनुकूलित हैं, फिर भी मातृत्व का विषय चिंता से भरा हुआ है। एक तरफ़ यह तथ्य कि पूरे विश्व में– ‘प्रबुद्ध’ पश्चिमी देश जहाँ मैं रहती हूँ, वहां भी– बहुत सी महिलाएँ हैं जिन्हें आवश्यक प्रसव-पूर्व और प्रसव-पश्चात् देखभाल नहीं मिलती। कुछ उल्लेखनीय देशों को छोड़कर, मातृत्व अवकाश की स्थिति बहुत ही ख़राब है, जो ‘कामकाजी’ महिलाओं के लिए तुरंत ही काम पर लौटने को अनिवार्य बनाती है या फ़िर नौकरी छोड़ने को मजबूर कर देतीं हैं। बताने की ज़रुरत नहीं कि प्रजनन न्याय और महिलाओं पर केन्द्रित उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल शायद ही सामान्य स्तर हैं। इसके साथ ही, कुल मिलाकर महिलाएँ ही समाज में प्राथमिक देखभाल करने वाली होती हैं, न सिर्फ़ बच्चों के लिए बल्कि बुजुर्गों के लिए भी। दूसरी तरफ़, समाज हमें कहता है कि प्रजनन हमारा कर्तव्य है। यह ऐसा है जैसे कि वह महिलाएँ जो बच्चे नहीं पैदा करना तय करतीं हैं वह प्राकृतिक आदर्श से इतनी दूर हैं कि हमारा यह निर्णय अंततः पूरी मानव जाति को ख़त्म कर सकता है!
मेरी माँ मातृत्व के लिए बनीं थीं। उन्होंने मेरे छोटे भाई और मेरा पालन पोषण स्वयं किया, गुजारे के लिए पड़ोसियों के घर साफ़ कर करके और दूसरों के बच्चों की देखभाल करके। क्योंकि पैसे हमेशा कम थे, मुझे पता है हमारे भरण पोषण के लिए वो अपने ऊपर कमी करती थीं। इतनी कठिन परिस्थितियों के बावज़ूद, हमारे रसोईघर में लोगों का ताँता लगा होता था – युवा लोग जो जल्दी में घर से निकल गए हों या निकाल दिए गए हों और जिन्हें भोजन का एक निवाला चाहिए हो और एक ऐसे व्यक्ति की तलाश हो जो सहानुभूति के साथ उनकी बातें सुन सके। मेरी माँ अब भी इस बारे में बातें करती हैं कि उन्हें ध्यानपूर्वक हमारा नाम चुनने में, हमें बाहरी दुनिया दिखाने में, हम हर अवसर का भरपूर उपयोग करें, यह सुनिश्चित करने में उन्हें कितनी ख़ुशी मिलती थी। हमें हर साल बाहर घूमने भेजने के लिए, हमारी भाषा, खेलकूद और नृत्य की कक्षाओं और हमारे दांतों के महंगे इलाज के लिए वह आधे पेट रहकर बचत करती थीं, जिससे हम अपनी ज़िन्दगी भरपूर जी सकें। और अगर उनके और बच्चे होते तो, वह उनके लिए भी जगह बनातीं। यह ऐसा था जैसा कि अपने संघर्ष और कष्टों के बावजूद, मातृत्व और देखभाल उनके लिए आत्म-चेतना का एक रास्ता था।
जब से मुझे याद पड़ता है, मेरी माँ ने मुझे अपनी माँ, बीजी, की कहानियाँ सुनाई हैं जो पंजाब से लंदन प्रवसन के करीब 8 सालों के बाद ही 50 साल की कम उम्र में ही चल बसी। मेरी माँ कहती हैं “बीजी दिल टूटने की वजह से चल बसीं”। एक बहुत ही प्रतिभावान दर्ज़ी, अनेकों वाद्य यंत्र बजाने वाली और होमियोपैथी का अभ्यास करने वाली महिला होने के बावजूद, अपनी पीढ़ी की अन्य कई महिलाओं की तरह, बीजी की ज़िन्दगी भी आसान या ख़ुशहाल नहीं रही। उनकी अपनी माँ की प्रसव के दौरान मृत्यु हुई और बहुत छोटी उम्र में ही बीजी मेरे पापाजी से ‘ब्याह दी गयीं’। पापाजी के परिवार में उनका स्वागत नहीं हुआ, उन्हें अक्सर याद दिलाया जाता था कि वह एक अनाथ हैं और उनसे सौतेला व्यवहार किया जाता था। आख़िरकार बीजी पांच बच्चों की माँ बनी हालाँकि यह मुमकिन है कि उन्होंने सफलतापूर्वक कई गर्भसमापन भी किये होंगे। हो सकता है यह बात उन्हें ठीक तरह से याद ना हो,लेकिन मेरी माँ ने कई बार ज़िक्र किया है कि जब वे गर्भ में थीं तब भी बीजी नें गर्भसमापन की कई असफल कोशिशें की थीं। कहा जाता है, उन्होनें हर संभव कोशिश की थी जैसे कि, खुद को सीढ़ियों से गिराना, गर्म पानी में तब तक बैठना जब तक वे बर्दाश्त कर सकें और ऐसी चीज़ें खाना जो गर्भसमापन का कारण हो सकती थीं। यह 1949 की बात होगी, भारत के बंटवारे के ठीक दो साल बाद की, जिसके कारण मेरे परिवार को पश्चिमी पंजाब का उनका पुश्तैनी घर छोड़कर पूर्वी पंजाब आने पर मजबूर होना पड़ा।
वह बीजी थीं जिन्हें मैंने अपने मन की आँखों से देखा था जब मेरा गर्भपात हुआ था। ऐसा लगा जैसे वह मेरे साथ थीं, आत्मा के रूप में, मुझे आश्वासन देने के लिए कि मेरा यह चाहना गलत नहीं था।
हालाँकि मेरी माँ बीजी को एक बहुत ही ममतामयी और समर्पित माँ की तरह याद करतीं हैं, यह न सोचना मुश्किल है कि अगर बीजी की ज़िंदगी का फ़ैसला पहले ही नहीं कर दिया गया होता तो वह अपनी ज़िन्दगी के साथ क्या करतीं, अगर वह किसी ऐसी जगह और समय में जी रही होतीं जिसमें उनके व्यक्तित्व को सम्मान मिला होता और अधिक सार्थक तरीके से सहयोग मिलता। मैं कह नहीं सकती कि मैं जानती हूँ क्योंकि मुझे नहीं लगता कि 2016 में भी हम वैसी ज़िन्दगी तक पहुँच पाए हैं।
महिलाओं की तीन पीढ़ियाँ मातृत्व के तीन अलग नज़रियों के साथ! क्योंकि नारीत्व एक समान अनुभव नहीं है और यह ज़रूरी नहीं कि इसमें प्रसव का आह्वाहन शामिल हो।
इस बात के अनेकों कारण हो सकते हैं कि महिलाएँ बच्चे क्यों नहीं चाहती हैं, ठीक वैसे ही जैसे इस बात के अनेकों कारण है कि वे बच्चे क्यों चाहती हैं। बच्चे होने के कारणों को सामान्य करार दिया जाना जबकि बच्चे ना होने की इच्छा को ‘सामान्य से अलग’ माना जाना, शर्मिंदा किया जाना और संदिग्ध की तरह करार दिया जाना, सभी के लिए नारीत्व का ‘एक ही अर्थ’ बनाने वाले है। यह नारीत्व को, और इसके आधार पर, सभी महिलाओं को बुरी तरह से तंग जगह पर ढकेलना है, और हमारी रचनात्मकता की मान्यता को नकारना है।
साथ ही, मातृत्व पर हमारी सारी श्रद्धा के बावजूद, जब माताओं के सम्मान की बात आती है तो हम कोई महान काम नहीं करते हैं। उन्हें आर्थिक सहयोग और सार्थक मान्यता देने से इंकार करके और उनके लिए उच्चतम स्तर पर निर्णय लेने की जगह न बनाकर, हम प्रणालीबद्ध तरीके से उन्हें छलपूर्वक वंचित कर असफल करते हैं। और इसीलिए हमें मातृत्व और नारीत्व पर नज़रिए के बारे में एक जुट होकर फिर से सोचना होगा, इन दोनों को मिलाने की किसी भी प्रवृत्ति की जाँच आवश्यक है जो दिखाने के लिए सभी महिलाओं को सम्मानित करने के मायनो से परे हो और बदले में मानव चेतना को बढ़ाए। यह केवल माताओं का ही कर्तव्य नहीं होना चाहिए। इस सन्दर्भ में हम सभी माताएँ हैं क्योंकि हम सभी मानव जाति के उत्थान के लिए कर्तव्य निभा रहे हैं।
“क्योंकि मैं एक महिला हूँ
अद्भुत रूप से
अद्भुत महिला
वो मैं हूँ।”
- माया एंजेलो, फेनोमिनल वीमेन
श्रद्धा माहिलकर द्वारा अनुवादित