चाय पीते–पीते अचानक बारिश की बूंदों की आवाज़ सुनाई दी। मैं ख़ुशी से बाहर झाँकने लगी और तुमसे मैंने कहा कि चलो बाहर बैठते हैं, भीगते हैं, कितना मज़ा आएगा। तुम हँसने लगे और कहा बॉलीवुड का असर है ये, वार्ना भीगने में क्या मज़ा है? अब भी बारिश होते ही मुझे याद आती है वह शाम और तुम्हारी हँसी।
गर्मी के दिन। हम सुबह-सुबह निकल गए थे काम पर। उन टिब्बों के बीच, सिर्फ़ तुम, मैं और वह गाड़ी। शायद जीप थी। धस गयी थी रेत में और हम दोनों धक्के मारने की कोशिश कर रहे थे। पसीने में लतपथ, पर हँसते-हँसते हमने गाड़ी को निकाल ही लिया था और फिर से चल पड़े थे। कहाँ एहसास हुआ कि कड़कती धुप है, अगर किसी चीज़ का अहसास था, तो सिर्फ़ ये कि मैं और तुम एक रेगिस्तान में हैं और कानों में बज रहे थे प्यार के वही वाहियात हिंदी गाने। लौट के गयी थी उसी रेगिस्तान में, तुम याद आए थे लेकिन इस बार वह गाने नहीं बज रहे थे। बहुत बदल गए हैं हम। अब हम इतनी जल्दी बहक नहीं जाते।
बारहवीं के बोर्ड एग्जामिनेशन। दिमाग में आया कि हर सुबह मंदिर जाकर भगवान से बात करूँ तो शायद अच्छे नंबर से पास हो जाऊँगी। वह सुबह दौड़ना और अचानक एक लड़के का मेरा रास्ता रोकना और कहना “क्या तुम मुझसे फ्रेंडशिप करोगी?” थोड़ी सी घबराहट हुई, थोड़ा गुस्सा। क्या यह देख नहीं सकता कि मैं भक्ति में लीन हूँ, इम्तेहान सर पर हैं – रोमांस के लिए मेरे पास कोई टाइम नहीं। और साथ ही साथ कुछ अच्छा लगना, चलो किसी ने तो रोमांस की मांग की है। पर असलियत में मैंने उसे डाँट दिया था, नारीवादी जो ठहरी।
वह पहली बार सड़क पर चलते हुए, एक आदमी का अपने लिंग को सहलाते हुए मुझे पुकारना, बसों में अचानक एक हाथ अपने कमर पर पाना, लड़कों का ठहाका लगाना – अरे कितनी मोटी हो तुम, सुन्दर दोस्तों के साथ कहीं बाहर जाना और लड़कों की दिलचस्पी देखना – अहसास होने लगे कि यह शरीर भी कोई चीज़ है जो जुड़ा हुआ है मेरे अस्तित्व से।
अपनी दुनिया में मैं राजकुमारी हो सकती हो या राजकुमार। मैं कटरीना कैफ़ बन सकती हूँ या शाहरुख़ खान के साथ मेरा गहरा रिश्ता हो सकता है। लेकिन असल ज़िन्दगी में मेरे शरीर का ढांचा मेरे प्यार, मेरी चाहत, मेरी यौनिक ज़िन्दगी को निर्धारित करने की लगातार कोशिश करता है। इस शरीर को देखने से या न देखने से कुछ होता है। और मुझे सीखना है कि इस शरीर को ढकना है, सजा के रखना है, सामाजिक परिभाषों से बाँध कर रखना है। एक तरह से देखा जाए तो इस शरीर और प्यार में कोई सम्बन्ध नहीं है। दोनों अलग-अलग जगहों पर बसते हैं।
इस बात को समझने से बहुत कुछ बदला ज़िन्दगी में। अचानक एक स्वाधीनता महसूस हुई। शरीर का होना तो वास्तिविकता है, लेकिन दिमाग के अंदर जो चल रहा है, वह अलग है। वहाँ मैं कुछ भी ख्वाब बुन सकती हूँ, मैं किसी से भी प्यार कर सकती हूँ, मैं किसी भी चीज़ को छु सकती हूँ, रो सकती हूँ, हँस सकती हूँ – इन सब पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है, सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं इन भावनाओं से पूरी तरह से उलझ सकती हूँ, उनको उलझा सकती हूँ।
ख्वाबों को बुनान और उसके साथ खेलना – एक अलग ही अहसास है। तुम राजा, तुम रंक। तुम लेखक, तुम निर्देशक। तुम्हारा बस चलता है। हम सब के अंदर अलग ख्वाब भरे हुए हैं। कुछ जिसको हमने अपनी यादों में दफना दिया है, कुछ जो हम चाहते हैं कि हमें याद रहें, लेकिन हम उनको साकार नहीं कर पाते हैं। उन ख्वाबों के सहारे हम अपनी यादों को एक नया जीवन दे सकते हैं। आसान है। और सबसे दिलचस्प चीज़ ये है कि यादों को भी बदला जा सकता है। वह बारिश में तुम्हारा हँसना बदलकर, हमारा बारिश में साथ भीगना हो सकता है। सिर्फ़ यही है, कि विश्वास होना चाहिए कि तुम यादों को लिख रहे हो तो ख़ुशी और गम तुम्हारे हाथ में है। और फिर सब कुछ आसान है।
होने के लिए कुछ भी हो सकता है।
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