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कैसा होगा अगर हम यौनिकता को अपनाते हुए बड़े हों?

bottom half of a person in blue denim jeans and pink and white nike sneakers standing against a wall with their legs crosssed.

हमारे समाज में बड़ा होना बड़ा ही मुश्किल है क्योंकि यहां संस्थागत प्रथाएं, सामाजिक संरचनाएं और सीमित पहचान और अभिव्यक्तियां हैं जिन्हें मानने की हमसे उम्मीद की जाती है। इनसे परे कुछ भी हानि, ख़तरा और विचलन का संकेत देता है। बचपन के दौरान हमें अपने निर्धारित जेंडर के मानदंडों का पालन करना सिखाया जाता है, हमारी इच्छाओं को ढकने वाली चुप्पी के बारे में बताया जाता है, और दूसरों से श्रेस्ठ, सर्वश्रेष्ठ  और उससे भी बेहतर बनने की चरम स्पर्धा के बारे में सिखाया जाता है।

ऐसे परिदृश्य में, जहाँ समाज हमें ऐसी प्रथाओं को अपनाने में व्यस्त रखता है जो हमें बिलकुल वैसा बना देंगी जैसा वह चाहता है,, कौन परवाह करता है कि यौनिकता क्या है? क्या आपने कभी बचपन में इसके बारे में सुना है? क्या यह पहनने की चीज़ है या खाने का सामान? क्या यह मेरी चाहतों का मतलब ढूंढने की मेरी इच्छा है? क्या यह मेरे दिमाग़ में उमड़ती-घुमड़ती कल्पनाओं से जूझना है? क्या यह मेरी ख़ुशी, मेरी पहचान और ख़ुद के बारे में जानने का मेरा सफ़र है? अगर ऐसा है, तो बेहतर है कि इसके बारे में बात न करें, क्योंकि युवावस्था में अपने शरीर, इच्छाओं और पसंद के बारे में सोचना लगभग अपराध के जैसा माना जाता है। हमें केवल इतना ही सयाना माना जाता है कि हमें लगातार मानदंडों को मानना होगा और सामाजिक संरचनाओं में बैठना होगा ताकि हम अगली पीढ़ी के लिए उन्हीं सदियों पुरानी परंपराओं का पालन करने का मार्ग बनायें।

हालाँकि, जीने और सबसे अच्छे बनने की खोज अभी भी जारी है…

कहीं, किसी उपनगर में, एक 15 साल की लड़की एक 17 साल के लड़के के साथ भागकर शादी कर लेती है, भले ही वे दोनों शादी की क़ानूनी उम्र से कम हों, ताकि वे अपनी यौनिकता और यौन इच्छाओं को ज़ाहिर करने के लिए सबसे वैध मंच का दावा कर सकें।

कहीं, एक लड़कियों के स्कूल में, दो युवा लड़कियों को गलियारे में किस करते हुए ‘पकड़ा’ जाता है और उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है।

कहीं, एक 16 साल के एक युवा  (जन्म के समय ‘पुरुष’ निर्धारित किया गया व्यक्ति) अपनी बड़ी बहन का कुर्ता पहनना चाहते हैं और देखना चाहते हैं कि वे आईने में कैसा लगेंगे।

कहीं, एक 18 साल के एक युवा (जन्म के समय ‘महिला’ निर्धारित किया गया व्यक्ति), जो अभी कॉलेज में प्रवेश कर रहे हैं, चुपके से पंजीकरण फॉर्म में ‘he/him’ लिखना चाहते हैं और अपने बालों को बहुत छोटा, मोहॉक आकार में कटवाना चाहते हैं।

कहीं न कहीं, कोई न कोई ऐसी है जो ख़ुद को छूना चाहती है, यह अनुभव करना चाहती है कि ऐसा करने से कैसा महसूस होता है, लेकिन उसे बताया गया है कि लड़कियों को ऐसा नहीं करना चाहिए, और ऐसा करना बीमार होने या बिगड़ जाने की निशानी है।

कहीं न कहीं, एक 19 साल का पुरुष पोर्नोग्राफी देखते समय इच्छाओं और आनंद के बारे में सोचता है, और जो कुछ वह देखता है, उसे अपनी कक्षा की एक महिला के साथ आज़माना चाहता है।

लेकिन हम इन अनुभवों और इच्छाओं के बारे में कभी बात नहीं करते क्योंकि इन्हें शर्मनाक माना जाता है और ये ‘महत्वपूर्ण नहीं’ हैं। हम इन युवा लोगों को या तो ख़ुद ही इसका समाधान निकालने देते हैं या उन्हें इन ‘बुरे ख़यालों’ से छुटकारा दिलाने की कोशिश करते हैं। उनमें से कुछ लोग अपने अनुभवों को समझने और अपनी इच्छाओं पर ध्यान देने व उन्हें संतुष्ट करने के तरीक़े खोजने में सफ़ल हो जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते और लम्बे समय तक इन मुद्दों से जूझते रहते हैं। 

हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी भी किशोरों और युवाओं की यौनिकता को नकार देता है, जिसका कारण एक समुदाय के रूप में युवाओं के मुद्दों, चिंताओं और ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करना और ‘परंपरा को बनाए रखने’ के संदर्भ में हमारे ऊपर लादे गए व्यापक सांस्कृतिक बोझ हैं। नियमों का एक सेट पहले से निर्धारित है और युवाओं पर दबाव बहुत ज़्यादा है, क्योंकि हमें बताया जाता है कि यही वह समय है जब हमें इन नियमों को मानना चाहिए, ताकि हम सबसे बेहतर बनने और दूसरों के बीच फिट होने की होड़ में पीछे न रह जाएं। अपनी परिभाषा, अर्थ और लांछन के आस-पास की अस्पष्टता के कारण यौनिकता एक अछूता, अनदेखा, और मनाही का क्षेत्र बना हुआ है।

इतने सालों के नारीवादी संघर्ष, युवाओं द्वारा नेतृत्व संभालना, #MeToo आंदोलन, मानवाधिकारों को लेकर चीख-पुकार और संघर्ष, भारत में धारा 377 को हटाया जाना, और एक विश्वव्यापी महामारी जिसने womxn के लिए पर्याप्त और सुलभ यौन व प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की कमी को उजागर कर दिया है और हमें सामान्य रूप से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है, क्या समय नहीं आ गया है कि हम थोड़ा गहराई से सोचे, अपनी दिशा बदलें और अपनी दुनिया को व्यवस्थित करें? अगर युवाओं को हमारे समाज की रीढ़ माना जाता है, तो हम यौनिकता के बारे में बातचीत पहले क्यों नहीं शुरू कर सकते और तब तक इंतजार क्यों करते हैं जब तक कि लोग हिंसक रिश्ते और दर्दनाक अनुभव से गुज़र नहीं जाते या यहां तक ​​कि मर भी जाते?

युवाओं की यौनिकता को अब और नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। हम कुछ हद तक उस मुक़ाम पर आ गए हैं जहां हम अब यौनिकता के बारे में बातचीत शुरू कर सकते हैं और उसे प्रोत्साहित कर सकते हैं। हमें अभी भी एक लंबा सफ़र तय करना है एक ऐसी दुनिया में रहने के लिए जहां यौनिकता के बारे में बात करना और उसकी विविधता को ज़ाहिर करना आम बात हो और किसी को भी अपनी पसंद का जीवन चुनने के लिए कभी शर्मिंदा या कलंकित न किया जाए। हम विषमलैंगिक-पितृसत्तात्मक मानदंडों की व्यवस्था को ख़त्म करने की कोशिश में धीरे-धीरे क़दम दर क़दम आगे बढ़ भी रहे हैं। इस सफ़र में एक ज़रूरी क़दम है इन मानदंडों पर सवाल उठाना, असहमति जताना, चुनौती देना और आख़िर में इन्हें बदलना।

शायद यौनिकता को अपनी इच्छाओं, आनंद, विकल्पों, भावनाओं, प्रथाओं और अभिव्यक्तियों, अपने संपूर्ण व्यक्तित्व, एक यौन प्राणी बनने की अपनी भावना, और इसके चारों ओर के जादू की पुष्टि के एक विशाल क्षेत्र के रूप में अपनाने से हम इसकी सुंदरता को स्वीकार कर सकेंगे, और हममें से बहुतों को ऐसा जीवन जीने से बचा सकेंगे जो हम नहीं चाहते, और ऐसा भी जीवन जीने की ओर बढ़ सकेंगे जो हम चाहते हैं और जिसका हम आनंद ले सकते हैं।


प्रांजलि द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।

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Cover Image: Pixabay