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एकल जीवन की सराहना

A photograph of a woman facing a water body lined with blades of grass. The sky is tinged with orange and blue.

मेरी ज़िंदगी का तीसवां साल कोविड-19 की महामारी में बीता। जो एकांत इसकी वजह से मुझे मिला, उससे मुझे न सिर्फ़ अपने एकल जीवन के बारे में सोचने का मौक़ा मिला, पर अपनी यौनिकता के बारे में भी विमर्श करने के लिए मजबूर किया। यह एक ऐसा साल था जब मैंने अपने आपको एक परिवर्तनकाल की स्थिति से गुज़रते हुए देखना बंद कर दिया था। एक ऐसा साल जब मैंने अपनी एकल ज़िंदगी के साथ शांति स्थापित की और वास्तव में इसके मूल्य की सराहना करना शुरू किया। जब परिवारों को एक साथ बंद कर दिया गया था जिसमें वे आश्वासन देने और एक-दसूरे को झेलने के बीच में डगमगा रहे थे, वहीं दूसरी ओर, हममें से कुछ अकेले रहकर घर से काम कर रहे थे और भटकाव, घबराहट, व अकेलेपन की भावनाओं से संघर्ष कर रहे थे। लॉकडाउन के शुरुआती महीनों में जब सबका काम और जीवन का संतुलन बाधित हो रहा था, तब मैंने देखा कि कैसे मेरी महिला सहकर्मियों में अपने बच्चों और पार्टनर के साथ रहकर तनाव और भी ज़्यादा बढ़ गया था। चूंकि घर के कामकाज का बोझ उन पर ज़्यादा पड़ा, इसलिए उनके काम और स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ा। अकेले रहने वाली एक अकेली महिला के रूप में, मेरे काम और जीवन की सीमाएं पूरी तरह से ख़त्म हो गईं, क्योंकि मेरे पास समन्वय करने, देखभाल करने और पर्याप्त खाने और सोने जैसी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के बारे में ध्यान रखने के लिए कोई नहीं था हालाँकि, धीरे-धीरे मैंने भी अपना बेहतर ख़्याल रखना शुरू कर दिया था। जब मेरे स्नातक के विद्यार्थी मुझे अपने दिलों की बातें बता रहे थे, कि कैसे वे महामारी के चलते घर में अपने माता-पिता के साथ बंद होने पर मजबूर थे, जिसकी वजह से वे न सिर्फ़ हताश थे, पर कैसे वे वैचारिक रूप से स्वतंत्र होने के समय अपने आपको पीढ़ी के अंतर की गिरफ़्त में पा रहे थे, मुझे एक तरह की भावनात्मक राहत महसूस हुई कि वे मुझसे यह सारी चीज़ें व्यक्त कर पा रहे थे। मुझे कुछ बाक़ी एकल दोस्त मिले, जिन्हें प्रोत्साहन और साथ की ज़रुरत थी। महामारी से जन्मे अकेलेपन और घबराहट ने उनमें से कई को साझेदारी/शादी के बारे में गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया, और मैं महीनों बीतने के साथ-साथ अपनी एकल ज़िंदगी में और भी ज़्यादा सहज होती गई जिसके चलते मैंने वास्तविक संतोष और शांति के पलों के साथ महामारी को झेला।

मैं कुछ समय से सोच रही थी कि रोमांटिक रिश्तों के प्रति मेरी अरुचि (जो इतनी धीरे-धीरे बढ़ती गई कि लगभग मुझ पर हावी हो गई) परलैंगिक रोमांटिक रिश्तों के बीच जेंडर आधारित घरेलू गतिशीलता को देखने और ख़ुद अनुभव करने से जन्मी थी। मेरी अपनी रोमांटिक साझेदारी मेरी ख़ुद की अनिच्छा की वजह से भी ढह गयीं। ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे मेरे नारीवादी विचारों से कोई समझौता नहीं करना था, जो कि ज़्यादातर घरेलु और पारिवारिक जीवन के ख़िलाफ़ देखा जाता है। हालाँकि, हाल ही में मुझे यह एहसास हुआ है कि एक ही साथी के साथ रोमांटिक साझेदारी (या मोनोगैमी) में प्रवेश करने की मेरी अनिच्छा मेरी यौनिकता से कहीं अधिक जुड़ी हुई है, जितना मैंने पहले शायद नहीं सोचा था।

मैं लोगों के साथ गहन और अंतरंग बातचीत में बहुत सारे मतलब और नज़रिये निकालती हूँ, लेकिन जब मैं किसी के साथ रोमांटिक रिश्ते में होती हूँ तो अक्सर मुझे बाक़ी लोगों के साथ ऐसी अंतरंगता साझा करने में दिक़्क़त होती है। एक ही साथी के साथ रोमांटिक रिश्तों में अक्सर न केवल यौन निष्ठा की ज़रुरत होती है, बल्कि अपने साथी के अलावा किसी और के साथ बातचीत में अपने व्यक्तित्व के यौन तत्व को पूरी तरह छोड़ देना भी ज़रूरी होता है। एक साथी से आशा की जाती है कि वह अपने रोमांटिक साथी के अलावा बाक़ी सभी लोगों के साथ अलैंगिकता से व्यवहार करे और बदले में अपने आप को अलैंगिक के रूप में देखे जाने को स्वीकार करे । उपयुक्तता इसी में मानी जाती है कि अपने साथी के अलावा बाक़ी सभी के साथ ऐसी सीमाएं खींची जाएं कि कुछ विषयों पर बातचीत करना भी मना हो। यौन अनुभवों, प्राथमिकताओं, इच्छाओं और जिज्ञासाओं पर चर्चा करना भी ऐसे में अनुचित माना जा सकता है, भले ही उस बातचीत में किसी के प्रति कोई यौन इरादा न हो। यहां तक ​​कि अपनी गहरी असुरक्षाओं, डर या दर्द को साझा करके सहारा और सांत्वना पाने की कोशिश को भी कुछ लोग ‘भावनात्मक विश्वासघात’ के रूप में समझ सकते हैं। शायद यह इस रोमांटिक उम्मीद से आती है कि हमारी ज़रूरतें पूरी तरह और ख़ास तौर से हमारे साथी द्वारा ही पूरी की जाएंगी। अतीत में, ऐसी उम्म्मीदों के कारण मुझे एकल रिश्तों में बुरी तरह की घुटन महसूस हुई है। मैं भी यह मानती हूँ कि उस समय मैं अपने साथी से इस तरह की अपेक्षा रखने की वजह से जो जलन उठ रही है, उससे जूझ रही थी।

मेरे लिए, बड़ा होना इस बात को स्वीकार करने के बारे में है कि मेरे अस्तित्व के ताने-बाने में समाया हुआ अकेलापन और उदासी, किसी एक के साथ संबंध या शादी जैसी पारंपरिक व्यवस्थाओं में दर्ज करने से दूर नहीं होती। साथ ही साथ, यह समाज के अलग-अलग कोनों से मेरी यौनिकता के बारे में आने वाले फ़ैसले के शोर को अनसुना करके सीखने जैसा भी है। अकेलेपन और यौन कुंठा के अलावा, लोग मेरे अकेलेपन से ज़िद्दीपन और अहंकार जैसे चरित्र दोषों का भी तर्क करते हैं। अंतरंगता की तलाश में जिन पुरुषों को मैंने डेट किया है, उन्होंने मेरे संदेह को गलत समझते हुए संकीर्णता और प्रतिबद्धता के प्रति अरुचि के रूप में देखा है। और जबकि मुझे ‘संकीर्णता’ पर कोई नैतिक आपत्ति नहीं है, उनका “भावनात्मक क्षति” का निदान, मेरे “प्यार को स्वीकार करने की अनिच्छा” में परिलक्षित होता है, जो कि सीमा रेखा पर आक्रामक है। चूंकि मुझे गहरी और प्रतिबद्ध मित्रता से मिलने वाले प्रेम को पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इसलिए अब मैं इन फ़ैसलों को अपेक्षाकृत आसानी से दरकिनार कर देती हूं।

अपनी यौनिकता और एकल ज़िन्दगी को ढूंढते वक़्त, अगर मैं अपने विशेषाधिकार को नहीं पेहचानूँगी तो यह मेरी लापरवाही होगी। मैं एक स्ट्रैट सिसजेंडर महिला हूं, जो उत्तर भारत में एक उच्च-जाति, मध्यम-आय वाले परिवार में पैदा हुई। मेरे माता-पिता मेरे लिए गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा का खर्च करने में सक्षम थे, जिसकी वजह से मैं दिल्ली में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकी; और दस सालों की उच्च शिक्षा ने मुझे काफ़ी प्रगतिशील शैक्षणिक वातावरण में रखा। मैं शैक्षिक दुनिया की ऐसे उपदेशकों के बीच बड़ी हुई, जिनकी ज़िंदगी मुख्यधारा के स्तरों से अलग थी। परिवार से दूर रहते हुए, मैं छात्रवृत्तियों के कारण लंबे समय से आर्थिक रूप से स्वतंत्र रही हूं, जो देश भर में विश्वविद्यालयों के कुछ ही छात्रों को उपलब्ध हैं। इसलिए मैं यह दावा नहीं कर सकती कि अकेले रहने का रास्ता, वह भी ख़ास तौर से मेरे लिए, कठिन रहा है। हां, एक अकेली महिला के रूप में मुझे किराये के घर ढूंढने में बहुत दिक़्क़तें उठानी पड़ी क्योंकि मैं ऐसे प्रतिबन्ध जैसे कि कर्फ़्यू के समय और पुरुषों से न मिलना जैसी रोक से सहमत नहीं हूँ। मैं ख़ुद को और अकेला महसूस कर रही हूं, क्योंकि मेरी ज़्यादातर सहेलियों की शादी हो रही है और फिर जोड़े बनाने की प्रक्रिया में वे लोग भी अलग-थलग पड़ जाते हैं जिनकी शादी नहीं हुई है। मैं यह मानती हूँ कि कहीं न कहीं मेरे अकेलेपन ने मुझे मेरे शादीशुदा दोस्तों से अलग कर दिया है, जो मेरे लिए दुखदायी रहा है। फिर भी मैंने जब भी चाहा तो मैंने तुलनात्मक तौर से आसान और ठोस डेटिंग लाइफ़ का आनंद लेना जारी रखा है। मैं मानती हूं कि यह मोटे तौर पर मेरे विशेषाधिकार का ही नतीजा है। और इसलिए, मैंने उन लोगों की आवाज़ों और कहानियों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है जिन्हे मुझसे कम सुविधा प्राप्त हैं, जो अपनी यौनिकता और अपनी पसंद को ज़ाहिर करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मैं उत्सुकता के साथ और बिना किसी नतीजे के सुनना सीख रही हूँ। मैं नारीवाद के बारे में अपनी समझ बढ़ाने के लिए ख़ुद को शिक्षित कर रही हूं ताकि वह और भी ज़्यादा समावेशी बन सके। इसके अलावा, मैं कोशिश कर रही हूँ कि दूसरों के संघर्षों के प्रति अपने दिल और दिमाग़ को खोल सकूं, और उसके साथ ही समर्थन देने के मौक़े तलाश सकूं। मैं दोस्ती में वक़्त और ऊर्जा की अहमियत को सीख रही हूं, क्योंकि दोस्ती से ही हम में से कई लोगों को हमारे अपने संघर्षों में सहारा मिलता है। सीखने और काम करने की इस प्रक्रिया के ज़रिये, मैं ऐसे समुदायों और समाज के निर्माण में योगदान देने की उम्मीद करती हूं, जहां ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपनी यौनिकता और रिश्तों के बारे में अपनी पसंद को और भी सहजता से व्यक्त कर सकें।


प्रांजलि शर्मा द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।

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Cover Image: Photo by Praveesh Palakeel on Unsplash

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