किरण देशमुख वैम्प प्लस की अध्यक्ष हैं। हमने एचआईवी एवं यौनिकता के विषय पर किरण के साथ ईमेल के द्वारा बातचीत की। प्रस्तुत हैं इसी साक्षात्कार के अंश –
वैम्प (वेश्या अन्याय मुक्ति परिषद्) और वैम्प प्लस क्या है?
वैम्प धंधा करने वाली औरतों का संगठन है और वैम्प प्लस धंधा करने वाली पॉजिटिव औरतों का संगठन है, जिसकी स्थापना वैम्प और संग्राम ने मिलकर की है। वैम्प प्लस पॉजिटिव औरतों के लिए एक ऐसा मंच है जहाँ पर वे सब इकट्ठा होकर अपनी समस्या पर खुलकर बातें कर सकती हैं। अगर किसी की रोपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उनकी काउंसलिंग से लेकर दवाई तक उनकी सहायता (फॉलो-अप) करते हैं। उनको दवाई की तारीख के बारे में याद दिलाना, दवाई समय पर खाते हैं की नहीं उसका ध्यान रखना, यह सब हम करते हैं। इन सब में वैम्प बहुत मदद करता है।
वैम्प प्लस क्या सिर्फ औरतों के लिए है? क्या एमएसएम और ट्रांसजेंडर भी इससे जुड़े हैं? अगर हैं तो उनके आगे एचआईवी से सुरक्षित रहने के लिए क्या चुनौतियाँ हैं?
जैसे धंधा करने वाली औरतों के बीच ‘वैम्प प्लस’ काम करता है, उसी तरह पुरुषों के साथ सेक्स करने वाले पुरूषों (एमएसएम) और ट्रांसजेंडर के लिए ‘मुस्कान’, धंधा करने वाली औरतों के बच्चों के लिए ‘मित्र’, ग्रामीण औरतों और बच्चों के लिए ‘विद्रोही महिला मंच’ काम करता है और मुसलमान औरतों के लिए ‘नजरिया’ काम करता है। और संग्राम इन सब का साथ देने के लिए हमेशा ही चट्टान की तरह खड़ा रहा है। जैसे यदि मुस्कान किसी समस्या का सामना कर रहा हो तो हम संगठित होकर समस्या सुलझाते हैं।
इस आन्दोलन का जन्म किस प्रकार हुआ? संगठन के काम के बारे में कुछ बताइए।
१९९० में मीना मैम (मीना सेषु) पत्रकार थीं और सोमवार को मीटिंग के लिए आती थीं। मीना मैम हमारी ज़िन्दगी में आईं तो हमें कंडोम और आरोग्य के बारे में जानकारी मिलने लगी। कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि धंधा करने वाली औरतों के साथ सिर्फ कंडोम के बारे में काम करने से थोडा फ़ायदा तो हो सकता है, लेकिन इनको तो अपने अधिकारों के बारे में कुछ पता नहीं। फिर मैम ने हमें मानवाधिकारों के बारे में प्रशिक्षण दिया। हमें हमारे अधिकार और हक़ समझ में आने लगे। मैम ने कहा कि जब तक आप एकत्रित नहीं होगे, आप लोगों को अत्याचार सहना पड़ेगा। और हमें संगठन का महत्त्व समझ में आने लगा। हमारा और संग्राम का ये मानना था कि अपने समुदाय के लिए अपने ही समुदाय के लोग बेहतर काम कर सकते हैं। आज हम महाराष्ट्र साशन कार्यक्रम चलाते हैं, उस कार्यक्रम में प्रोजेक्ट डायरेक्टर (पी.डी.) से लेकर साथी (पीअर) तक हमारे समुदाय के ही व्यक्ति हैं। अभी हाल ही में हमारी दो लीडर का निधन हुआ। विमला और कमला मौशी, उनका निधन हमारे लिए एक अपूर्णीय क्षति है।
हमारे बच्चों के लिए भी हमने निपाणी (कर्णाटक) में हॉस्टल शुरू किया है। हमारा मानना हैं कि गली धंधे के लिए अच्छी है पर बच्चों के पढाई के लिए नहीं। शुरुआत में हम शाम के धंधे के टाइम पर ट्यूइशन क्लास चलाते थे (अब भी चलाते हैं) लेकिन आगे की पढाई का क्या? ये सोचकर संग्राम और वैम्प ने मिलकर हॉस्टल चालू किया। हॉस्टल का नाम ‘मित्र’ हॉस्टल है। अब हमारे ४३ बच्चे वहां पर पढ़ते हैं।
गली में कुछ भी समस्या हो, हम उसका हल मोहल्ला सामुदायिक मीटिंग में निकालते हैं क्योंकि हमें हमारे समुदाय पर विश्वाश है। अगर हम पुलिस के पास गए तो पुलिस दोनों पक्ष (पार्टी) से पैसे खाएगी और हल कुछ नहीं निकालेगी। इसलिए हमारी समस्या हम खुद सुलझाएं तो बेहतर है। हमारे यहाँ किसी एक का निर्णय नहीं होता है, जो समुदाय का निर्णय वही सबका निर्णय होता है।
हमने हर जगह, जहाँ पर धंधा चलता है, वहां पर तंटा मुक्ति समिति की स्थापना की है। यदि झगडा हुआ हो या किसी की पैसे की समस्या हो तो तंटा मुक्ति समिति (विवाद निवारण मंच) हमारे लिए बहुत मददगार साबित हुई है। तंटा मुक्ति समिति द्वारा मानव तस्करी के विरोध के लिए भी काम होता है। वैम्प का मानना है कि १८ साल से कम उम्र की लड़कियों को धंधे में नहीं आना चाहिए इसलिए जब कोई भी नई लड़की गली में आती है तो पहले उनका जन्म प्रमाणपत्र देखा जाता है, और साथ में उनसे यह भी पुछा जाता है कि क्या वो अपनी इच्छा से वहां पर आई हैं। अगर ये सब उनकी इच्छा के विरुद्ध हो रहा है तो तंटा मुक्ति समिति द्वारा उन्हें उनके घर तक पहुँचाया जाता है।
हम मानते हैं कि धंधा करना एक काम है, क्योंकि धंधे के पैसे से हमारी जीविका चलती है, जैसे लोग अपनी नौकरी या व्यवसाय से अपना काम चलाते हैं, हम उसी तरह इस काम से अपनी सारी ज़रूरतें पूरी करते हैं। हम हमारे अधिकार की जिला स्तर, राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पैरवी (एडवोकेसी) भी कर रहे हैं।
आप वैम्प और वैम्प प्लस के साथ कब से जुडी हैं? आप इनके साथ कैसे जुड़ीं?
मैं किरण, पिछले सात साल से वैम्प और वैम्प प्लस के साथ जुडी हुई हूँ। मैं खुद धंधा करने वाली औरत हूँ, और जब भी मेरी ज़िन्दगी में समस्याएं आईं वैम्प ने मेरी बहुत मदद की, वैम्प की भूमिका ही अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ना है। वैम्प की सबसे बड़ी ताकत संगठन है। अगर हम संगठित होकर काम करते हैं तो हम किसी भी अन्याय या अत्याचार का सामना कर सकते हैं। मैं खुद एचआईवी पॉजिटिव हूँ और पिछले १९ साल से एचआईवी के साथ जी रही हूँ। एचआईवी के साथ जीते हुए हमें कलंक और भेदभाव का सामना बड़ी तादाद में करना पड़ता है, इस कलंक और भेदभाव का सामना करना है तो हमें संगठित होना और भी ज़रूरी है। सबसे पहले तो ये आरोग्य (मेडिकल) व्यवस्था ही हमारे साथ भेदभाव करती है और इसी वजह से औरतें अपने आरोग्य के बारे में खुलकर चर्चा नहीं करतीं, इस डर की वजह से कि कहीं मेरी बीमारी किसी को मालूम हो गई तो? दवाई की ओर ध्यान ना देना, सीडी-४ की समय पर जांच ना करवाना, इन सभी बातों से हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इसीलिए वैम्प और संग्राम ने मिलकर वैम्प प्लस की स्थापना की।
धंधे की प्रकृति (ग्राहक के साथ क्रय-विक्रय (डीलिंग) करने, सुरक्षित यौन सम्बन्ध अपनाने, यौन सेवा में बदलाव आदि) में एचआईवी की क्या भूमिका रही है और इसका आपके ग्राहकों के साथ व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ा?
पहले, जब संग्राम नहीं था, तब हम कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन जब हम कंडोम का महत्व समझने लगे तब हम ग्राहक को कंडोम का इस्तेमाल करने के लिए कहने लगे। शुरुआत में ग्राहक हमें शक की नज़र से देखते थे और साथ में ये भी कहते थे कि “कंडोम से मज़ा नहीं आता, हम क्यों कंडोम लगायें, हमें क्या बीमारी हुई है क्या?” उसके प्रश्न के जवाब में हम उसे समझाते थे कि “ये कंडोम आपके लिए भी अच्छा है, मेरे लिए भी अच्छा है। अगर हम सुरक्षित सम्बन्ध रखते हैं तो आप और मैं दोनों ही बच सकते हैं और घर में आपके बीवी बच्चे भी सुरक्षित रह सकते हैं”। इतना सब समझाने के बाद भी अगर ग्राहक नहीं सुनते तो हम उनके साथ सेक्स नहीं करते थे। शुरुआत में इन सबका परिणाम थोडा धंधे पर हुआ लेकिन बाद में ग्राहक भी समझने लगे और सब पहले जैसा ठीक हो गया। एचआईवी को ध्यान में रखते हुए यौन सेवा में इतना ख़ास बदलाव नहीं आया क्योंकि हमने ये नियम बना लिया कि सेक्स कोई भी हो कंडोम का इस्तेमाल करना है।
हम सुरक्षा और आरोग्य के बारे में बहुत सतर्क रहते हैं। जैसा मैंने पहले कहा, हमारा नियम है कि हर एक व्यक्ति जो धंधा करते हैं उन्हें कंडोम का इस्तेमाल करना है। हम ये ध्यान रखते हैं कि क्या हर व्यक्ति के पास उनकी ज़रुरत के अनुसार कंडोम है कि नहीं। हम उन्हें सिखाते हैं कि कंडोम कैसे इस्तेमाल करना है। कंडोम फट जाए तो तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाकर दवाई दिलाना, हर ६ महीने बाद काउंसलिंग और जांच (आईसीटीसी) करवाना, यौन संचारित संक्रमण की जांच करवाना, यह भी वैम्प की ओर से कराते हैं।
हाल ही में सम्पूर्ण भारत में कंडोम का आभाव रहा है। कंडोम के आभाव का क्या कारण है? और क्या इस आभाव का धंधे पर कोई प्रभाव हुआ है? अगर हुआ है तो कैसे?
कंडोम के आभाव का कारण तो सरकार है क्योंकि जब एचआईवी तेज़ी से फैल रहा था तब तो कंडोम का इस्तेमाल करो ऐसा कह कर कंडोम मुफ्त में देते थे। कंडोम के इस्तेमाल पर इतना जोर का कारण धंधा करने वाली औरतों का हित नहीं था, धंधा करने वाली औरतों को कुछ भो हो जाय उन्हें इससे कुछ भी लेना देना नहीं था, उनको तो आने वाले ग्राहक को बचाना था। अब एचआईवी संक्रमण का स्तर कम हुआ तो कंडोम देना ही बंद कर दिया।
कंडोम के आभाव का परिणाम निश्चित ही धंधे पर हुआ है। जिनके पास पैसे हैं वो कंडोम खरीद कर इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन जिनके पास पैसा नहीं है वो क्या करें? जिनकी उम्र ढल चुकी है, जिनसे धंधा नहीं होता या फिर जिनको आठ-आठ दिन ग्राहक नहीं मिलते या बहुत थोड़े पैसे मिलते हैं, वो क्या करें? और जो धंधा करने वाली चोरी-छुपे धंधा करते हैं उन्हें तो कंडोम मिलने में बहुत दिक्कत आती है। पहले तो हम उनके लिए कंडोम किसी पान की दूकान या उनके पहचान वाले ऑटो चालक के पास रख देते थे और उन्हें इस तरह कंडोम मिल जाता था लेकिन अब की बात ऐसी नहीं है। अब अगर वो घर से ग्राहक के लिए निकलती हैं, वो दवा की दूकान पर आकर कंडोम खरीद नहीं सकती क्योंकि उन्हें डर है कि वहां पर उनकी गोपनीयता भंग हो सकती है, ना वो ग्राहक को छोड़ सकती हैं और अगर कंडोम नहीं मिला तो आने वाला ग्राहक उनको एचआईवी देकर जा सकता है। एमएसएम और ट्रांसजेंडर के लिए भी यही दिक्कत आती है। अगर कोई ये सोचता कि क्या हुआ एक बार कंडोम नहीं लगाया तो? लेकिन ये एक बार ही उनके लिए बहुत जोख़िम वाला हो सकता है। इसलिए वैम्प का कहना है कि आरोग्य हमारा अधिकार है और सुरक्षित आरोग्य के लिए हमें मुफ्त कंडोम मिलना बहुत ज़रूरी है। एमएसएम, ट्रांसजेंडर, धंधा करने वाली महिला, सभी को कंडोम मुफ्त में मिलना चाहिए। तो ही हम एचआईवी से बच सकते हैं और अपना आरोग्य सुरक्षित रख सकते हैं।
भारत में एचआईवी और इससे जुड़े मुद्दों को लेकर यौन कर्म का क्या भविष्य है?
भारत में धंधे का भविष्य धंधा करने वाली औरतों की सुरक्षा पर निर्भर है। अभी पूरा एक साल हुआ कंडोम नहीं है। इस तरह भविष्य सुरक्षित कैसे होगा? सरकारी अस्पताल में एआरटी भी समय पर नहीं मिलती है, बार-बार दवाइयाँ ख़त्म हो जाती हैं। हमारा ये कहना है कि अगर दवाई कम पड़ती है तो आपको हमें पहले से सूचित करना चाहिए। कंडोम की कमी के कारण असुरक्षा बढती है, इस वजह से हमारे काम पर भी असर होता है। अगर ऐसा चलता रहा तो धंधे में एचआईवी का स्तर फिर से बढ़ जायेगा। सुरक्षित आरोग्य हमारा अधिकार है, वो हमें मिलना चाहिए।
इसके अतिरिक्त हम गैर-अपराधीकरण की भी मांग करते हैं क्योंकि गुनेह्गरी मुक्त वातावरण हो तो हम अपनी ज़िन्दगी बेहतर तरीके से जी सकते हैं। अगर वातावरण को सुरक्षित करते हैं तो हमें काम करने में दिक्कत नहीं आएगी। कानून व्यवस्था का इस्तेमाल हमारे काम की दशा को सुरक्षित रखने के लिए होना चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि धंधा करने वाली औरतों को न्याय मिले, कानूनी न्याय, और पुनर्विचार के लिए प्रार्थना (अपील) करने का भी अधिकार हो। जोर ज़बरदस्ती से गिरफ़्तार करना या धंधा करने वाले वयस्क, जो स्वेच्छा से धंधे में है, उनका पुनर्वसन करना, ऐसी हिंसा को रोकना चाहिए और जो १८ साल से ऊपर के व्यक्ति धंधे में हैं उन्हें गुनेह्गरी मुक्त करना चाहिए।
धंधा करने वाली औरतों को समुदाय आधारित सशक्तिकरण की सेवाएँ मिलनी चाहिए। पुलिस और आरोग्य सेवा से सीधी मदद मिलनी चाहिए जिससे जब धंधा करने वाली पर यौनिक हिंसा हो तब उन्हें राहत और न्याय मिल सके। कानून और सत्ता के दुरोपयोग से जब हमारे ऊपर हिंसा होती है तब हमें संरक्षण मिलना चाहिए।
धंधे को हम काम मानते हैं, यह हिंसा नहीं, यौनिक शोषण नहीं है। हम भी इंसान हैं, हमें भी अन्य इंसानों जैसे समझना चाहिए। वैम्प ये मानता है बिना संगठन के धंधा करने वाली औरतों को न्याय नहीं मिलेगा।
धंधा काम है।