राधिका चंदिरामनी एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक (क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट), लेखक और संपादक हैं। उन्होंने 1996 में नई दिल्ली में तारशी (Talking about Reproductive and Sexual Health Issues – TARSHI) की स्थापना की। यौनिकता और मानवाधिकारों पर उनके प्रकाशित कार्यों को मीडिया और विद्वानों की समीक्षा में शामिल किया गया है। 1995 में चंदिरामनी को लीडरशिप डेवलपमेंट के लिए मैकआर्थर फैलोशिप मिली। वर्ष 2003 में उन्हें सोरोस प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार फैलोशिप भी मिली थी। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (निमहंस) में नैदानिक मनोविज्ञान (क्लीनिकल सायकोलॉजी) में प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
अंजोरा सारंगी: क्या आप ‘यौनिक रूप से स्वयं की देखभाल‘ और ‘यौनिकता और स्वयं की देखभाल‘ के बीच अंतर करने में हमारी सहायता कर सकती हैं?
राधिका चंदिरामनी: यौनिकता और स्वयं की देखभाल (सेल्फ केयर) अपने आप में दो व्यापक अवधारणाएं हैं। यौनिकता, जैसा कि हम जानते हैं, सेक्स से कहीं ज़्यादा है और कई पहलुओं से संबंध रखती है जिसमें शारीरिक छवि, आत्म-छवि, भावनाएँ, यौनिक पहचान आदि शामिल हैं। स्वयं की देखभाल भी एक व्यापक शब्द है, लेकिन सरल शब्दों में कहें तो, यह दर्शाता है कि व्यक्ति स्वयं की देखभाल करने और खुशहाली प्राप्त करने के लिए क्या करते हैं।
कभी-कभी लोगों में इसे ‘स्वार्थी होना‘ या दूसरों का ध्यान न रखना समझने की ग़लतफ़हमी हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने इसे जीवन में बहुत पहले अपनी माँ से सीखा था। मेरे पिता दोपहर के खाने के लिए आफिस से कभी-कभी 2 बजे के बाद आते थे और मेरी माँ अपना खाना लगभग 1 बजे खाती थीं। मेरे दोस्तों की माँए कैसे खाने से पहले अपने पतियों के घर लौटने का धीरज के साथ इंतजार करती हैं, यह देखकर मैंने अपनी माँ से पूछा कि वो (और स्कूल की छुट्टियों वाले दिन मेरे भाई और मैं भी) पिताजी के आने से पहले खाना क्यों खा लेते हैं। उन्होंने जवाब दिया, “पूरी सुबह काम करने के बाद, मुझे भूख लग जाती है। अगर मैं उनके घर आने तक इंतजार करती हूँ तो मेरी भूख बढ़ जाती है और मैं चिड़चिड़ी हो जाती हूँ, और अगर उन्हें देर हो जाए, तो मुझे गुस्सा आएगा, जबकि, अगर मैं 1 बजे खाती हूँ, तो मैं घर आने पर उनके लिए एक अच्छी साथी बन सकती हूँ और आराम से उनके पास बैठ सकती हूँ। इस तरह हम दोनों खुश रहते हैं।” उस समय मुझे वो बात बहुत सही लगी, और अभी भी लगती है। जो लोग खुद का ख्याल रखते हैं, वे अगर चाहें तो, दूसरों की बेहतर देखभाल कर सकते हैं, बिना बोझ या परेशानी महसूस किए। यहाँ ‘अगर वे चाहें‘ बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्वयं की देखभाल का मतलब, ‘ना‘ कहने में सक्षम होना भी है, जैसे सेक्स के लिए कहते हैं। सेक्स में हम जिस सहमति की अवधारणा का इस्तेमाल करते हैं यह उसकी तरह ही है।
स्वयं की देखभाल वह है जो व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी स्वायत्तता, पूर्ण संतुष्टि, सीमा निर्धारित करने, और स्वयं के विकास की भावना को बढ़ाने के लिए करते हैं। आप कह सकते हैं कि व्यक्ति तनाव कम करने, बर्नआउट को कम करने, समय का बेहतर प्रबंधन करने और खुद को कमतर महसूस ना करने के लिए करते हैं।
यौनिकता और स्वयं की देखभाल कई स्तरों पर जुड़ी हुई है, जिसकी शुरुआत यह जानने से होती है कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं, आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं, आप अपनी इच्छाओं को कैसे बता पाते हैं और आप अपने अनुभवों का आनंद कैसे ले पाते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, तनाव से सुखद यौनिकता या लोगों के बीच मज़बूत संबंध नहीं बनते हैं।
’यौनिक रूप से स्वयं की देखभाल’ का बहुत ज़्यादाइस्तेमाल नहीं किया जाता है और यह संकीर्ण और शरीर से जुड़ी बात लगती है, जैसे कि केवल हस्तमैथुन के तरीकों या पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज की बात हो रही हो, जबकि, मेरे लिए, यौनिकता और स्वयं की देखभाल की अवधारणा अधिक संर्पूण है।
अंजोरा – आपको क्या लगता है भारत में यौनिकता और स्वयं की देखभाल के बारे में जागरूकता का स्तर क्या है?
राधिका – दोनों के लिए ही बहुत कम और दोनों को एक साथ रखें तो और भी कम! भारत में, हमारे यहाँ यौनिकता से बहुत उच्च स्तर की निगरानी या सतर्कता जुड़ी होती है क्योंकि इसे एक वर्जित विषय के रूप में माना जाता है और एक छोटी उम्र से हम यौनिकता के विषय को नज़रंदाज़ करने में कुशल बन जाते हैं, जैसे कि हमें कुछ पता ही नहीं है। और, एक ऐसे समाज के तौर पर, जो सामूहिक भलाई के लिए अधिक तैयार रहता है, स्वयं की देखभाल को महत्व नहीं दिया जाता है।
अंजोरा – क्या यह यौनिकता शिक्षा का हिस्सा होनी चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों?
राधिका – सेल्फ-केयर एक कौशल है और यह सिर्फ यौनिकता शिक्षा नहीं बल्कि सभी शिक्षाओं का हिस्सा होनी चाहिए। स्वयं की देखभाल का कौशल, युवा लोगों को स्वयं को समझने के लिए प्रोत्साहित करता है, अपने सहित प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्टता को महत्व देने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमारी शिक्षा प्रणाली इसमें बहुत अच्छा काम नहीं करती है। न ही यह यौनिकता शिक्षा प्रदान करने में अच्छा काम करती है।
स्वयं की देखभाल यौनिकता शिक्षा और सामान्य शिक्षा का हिस्सा क्यों होनी चाहिए? क्योंकि, अगर हम खुद को महत्व नहीं देते हैं और खुद का ख्याल नहीं रखते हैं, तो जीवन का क्या मतलब है? मेरे लिए, जीवन का उद्देश्य खुशी है। स्वयं की देखभाल उस खुशी को महसूस करने बारे में है और उसे अपने आसपास के लोगों के लिए, जानवरों के लिए, प्रकृति और इस ग्रह – जिस पर रहना हमारा सौभाग्य है – की देखभाल करने के लिए बढ़ाना है। इसीलिए मेरा मानना है कि हमें इसे बचपन से ही सीखने की आवश्यकता है और जैसे-जैसे हम बड़े, व्यस्त और अधिक परेशान होते जाते हैं इस कौशल को बढ़ाते रहना चाहिए!
अंजोरा – यौनिक आज़ादी और स्वयं की देखभाल पर जोर देने के बीच क्या कोई संबंध है? और यह कितना महत्वपूर्ण है?
राधिका – तथाकथित यौनिक आज़ादी आंदोलन या 1960 के दशक की यौन क्रांति का बड़ा हिस्सा गर्भनिरोधक गोली से संबंधित था। लेकिन यह बदलती जेंडर भूमिकाओं और इस बात की बढ़ती जागरूकता से भी संबंधित था कि यौनिकता राजनीतिक है, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ सत्ता काम करती है। अगर हम स्वयं की देखभाल को अपने यौन संबंधों को पोषित करने के रूप में देखते हैं, तो शायद हम यौन आज़ादी के साथ एक संबंध स्थापित कर सकते हैं। लेकिन आज के संदर्भ में यौन आज़ादी से हमारा मतलब क्या है? क्या यह आज़ादी है कि आप जो हैं वो हैं या यह आपके यौन कार्यों की संख्या से मापा जाता है? अगर यह संख्या वाली बात है, तो यह खुशी से ज़्यादा दबाव की तरह लगती है।
सच में अपनी यौनिकता का आनंद लेने में सक्षम होने के लिए हमें बिना अपराध बोध के, जब हम चाहें तब, अकेले या साथी के साथ, यौन संबंध रखने में, या अगर हम यौन संबंध नहीं चाहते, तो यौन संबंध रखने का कोई दबाव न लेने में सक्षम होना चाहिए; किसी भी जेंडर, जाति या वर्ग के साथी को चुनने की आज़ादी; गर्भनिरोधक, गर्भपात, यौन स्वास्थ्य सेवाओं, प्रसव के बाद देखभाल तक पहुँच; और, अन्य चीजों के साथ, संक्रमण और दुर्व्यवहार से आज़ादी में सक्षम होना चाहिए। इसका मतलब है कि व्यक्तिगत, सामाजिक और संरचनात्मक कारकों की एक जटिल अंतःक्रिया है जो स्वयं की देखभाल को यौनिक क्षेत्र में लाने में काम करती है। अधिकांश लोग व्यक्तिगत और सामाजिक कारकों को समझते हैं, इसलिए मैं उसमें नहीं जाऊंगी। संरचनात्मक कारकों से मेरा मतलब बड़ी प्रणालियों से है, स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक और कानूनी प्रणालियाँ केवल उनमें से कुछ नाम है।
उदाहरण के लिए, हम इस बारे में क्या बात कर रहे हैं जबकि हमारे देश में वैवाहिक बलात्कार को स्वीकार नहीं किया जाता है और धारा 377* अभी भी कानूनी किताबों में है? गे या लेसबियन ‘आज़ाद‘ कैसे महसूस कर सकते हैं जब धारा 377 कहती है कि वे जो भी बिस्तर में करते हैं वह अपराध है? और एक विवाहित महिला जिनका पति उनका बलात्कार करता वह न्याय के लिए किसकी ओर देखें? वह स्वयं की देखभाल करने के अनेकों तरीके अपना सकती हैं लेकिन उनके पति और कानूनी व्यवस्था के द्वारा उनके साथ अभी भी दुर्व्यवहार हो रहा है।
*यह लेख भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिकता को गैर-आपराधिक करार देने वाले भारत के उच्चतम न्यायालय के ६ सितम्बर, २०१८ को दिए गए फैसले से पहले लिखा गया था।
अंजोरा – अलग-अलग जेंडर के लोगों के लिए स्वयं की देखभाल की ज़िम्मेदारी अलग-अलग है क्या?
राधिका – स्वयं की देखभाल को एक ज़िम्मेदारी कहना ऐसा लगता है जैसे यह कोई बोझ है, जो पहले से ही लंबी हो रही सूची में एक और जुड़ गया है। मैं स्वयं की देखभाल को एक कौशल के रूप में देखती हूँ जिसमें हम सभी बेहतर हो सकते हैं। ऐसे समाज में जो जेंडर को इतना महत्व देता है, व्यक्ति को कौन सी श्रेणी दी गई है उसके आधार पर जेंडर अलग-अलग भूमिका निभाता है।
महिलाओं को प्राथमिक देखभाल करने वालों के रूप में देखा जाता है, और विडंबना यह है कि खुद की देखभाल करने के बजाय, हमसे अपेक्षा की जाती है कि हमें अन्य लोगों की देखभाल करने में खुद को ख़त्म कर देना चाहिए, चाहे वह प्रेमी के तौर पर हो, पत्नि, माँ, बेटी, बहु, पेशेवर नौकरी वाली महिला, कार्यकर्ता, इत्यादि के तौर पर हो। मिसाल के तौर पर, प्यार-में-पड़ी महिला से बहू बनने का रूपांतरण बहुत तेज़ी से होता है, और महिला के कंधों पर गिरने वाली सभी जुड़ी ज़िम्मेदारियों के साथ कर्तव्यपूर्वक रोटियाँ बनाने की कवायद से प्यार की चमक तेजी से पसीने की चमक में बदल जाती है।
और यह केवल औरतों के लिए ही नहीं है, जेंडर भूमिकाओं की अपेक्षा सभी जेंडर के लोगों पर थोपी जाती हैं। जेंडर-अनुरूप पुरुषों की अपेक्षाओं के बारे में सोचें – उन्हें ‘मर्द’ की भूमिका निभानी पड़ती है और इसके बारे में रोना भी नहीं है। और उन लोगों के बारे में सोचें जो उन्हें दिए गए जेंडर से मेल नहीं खाते हैं या जेंडर के खेल के नियमों से बंधना नहीं चाहते हैं; उनके लिए हर दिन उठना एक लड़ाई के मैदान में जाने के जैसा है। जब शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अस्तित्व दाँव पर होता है, तो स्वयं की देखभाल ऐश की चीज़ नहीं बल्कि एक ज़रूरी चीज बन जाती है।
अंजोरा – क्या यौन अंगों की सफाई और गोरे होने की क्रीमों जैसे उत्पादों और महिलाओं के शरीर के यौनिकीकरण के साथ शारीरिक रूप से स्वयं की देखभाल का व्यापार किया जा रहा है? यौनिक रूप से स्वयं की देखभाल और महिलाओं की यौनिकता पर इस व्यावसायीकरण का क्या प्रभाव है?
राधिका – हाँ, वो तो है, लेकिन व्यावसायीकरण अपनेआप से कोई बुरी चीज नहीं है। स्वेच्छा से स्नान या मालिश के उस तेल के साथ अपने शरीर को लाड़ प्यार करना, जिसका व्यावसायीकरण भी हुआ हो, को सकारात्मक रूप में देखा जा सकता है। लेकिन यह महसूस करवाया जाना कि यदि कोई अंतरंग धोने या जननांग गोरे करने की क्रीम का उपयोग नहीं करता है तो वह गंदे या बदबूदार हैं, यह स्वयं की देखभाल के बारे में नहीं है। इस तरह के उत्पाद लोगों को कमतर महसूस कराते हैं। शरीर की दिखावट के बारे में अधिकांश मीडिया से हमें जो संदेश मिलते हैं, वह भी कई लोगों को महसूस कराते हैं कि वे सुंदरता के आदर्शों से मेल नहीं खाते हैं और इसलिए वे ‘उतने अच्छे‘ नहीं हैं।
दूसरी तरफ़, सेक्स टॉय, डिल्डो और वाइब्रेटर जैसे उत्पाद स्वयं की देखभाल के उपकरण हो सकते हैं और यौनिकता के भी। इनका भी व्यावसायीकरण किया जाता है और यह ठीक है क्योंकि कम से कम अब भारत में लोग इन्हें खरीद तो सकते हैं!
अंजोर – कार्यकर्ताओं के रूप में अपने खुद के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना कितना महत्वपूर्ण है? और कार्यकर्ता स्वयं की देखभाल को अपके विषय का हिस्सा कैसे बना सकते हैं?
राधिका – कार्यकर्ताओं के रूप में, हम आम तौर पर अपने लिए बहुत कम समय लेते हैं, और जब हम ऐसा करते भी हैं, तो हम अपराध बोध महसूस करते हैं। जो भी बुरी चीजें हो रही हैं हम उन पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। और यही वजह है कि हमें खुद की बेहतर देखभाल करने की आवश्यकता है।
धरती पर सभी पीड़ाओं को देखते हुए, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो या गरीबी या दुर्व्यवहार हो, और इसे कम करने की दिशा में काम करना हो, हमें संतुलित रहने और अपने महत्वपूर्ण काम को जारी रखने में सक्षम होने के लिए खुशहाली पर ध्यान केंद्रित करने की भी आवश्यकता है। मैं तनाव के सभी भयानक परिणामों को सूचीबद्ध करके सबका ब्लडप्रेशर को और भी ज़्यादा नहीं बढ़ा रही हूँ क्योंकि हम सभी जानते हैं कि अगर हम थोड़ी ढील नहीं देंगे और खुद के लिए समय नहीं निकालेंगे तो क्या हो सकता है ।
चलिए इसके बजाय, हम क्या कर सकते हैं इस पर ध्यान दें। कार्यकर्ता बर्नआउट रोकथाम के बारे में जान सकते हैं और इसे अपनी नियमित गतिविधियों का हिस्सा बना सकते हैं और तनाव को दूर करने के लिए तकनीक सीख सकते हैं। तारशी संस्था इन कौशलों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करती है।
गैर सरकारी संगठन के मुखिया सरल लेकिन प्रभावी चीजें करके उदाहरण रख सकते हैं जैसे कि कर्मचारियों को दोपहर का भोजन एक साथ करने के लिए प्रोत्साहित करना और कंप्यूटर स्क्रीन पर घूरते हुए जल्दी-जल्दी खाना न खाना, या ‘शांत स्थान‘ पर जाना (यह एक सोफा, कुर्सी, एक चटाई हो सकती है), या एक नीचे बैठने की गद्दी हो सकती है, जिसे कमरे के कोने में रखा जाता है, जहाँ कर्मचारी दिन में बीस मिनट तक के लिए जा सकते हैं या बस आराम कर सकते हैं, या बस दोपहर के भोजन के बाद चलने के लिए बीस-मिनट का ब्रेक ले सकते हैं। ये छोटी और बहुत ही की जा सकने लायक चीजें हैं, और ये न केवल कार्यकर्ताओं के लिए स्वयं की देखभाल का अभ्यास करने के लिए गुंजाइश देती हैं बल्कि यह संस्था को यह दिखाने के लिए भी गुंजाइश देती हैं कि संस्था अपने कर्मचारियों को महत्व देती है और उनकी स्वयं की देखभाल को गंभीरता से लेती है।
काम पर स्वयं की देखभाल करने के अलावा, हमें अपने परिवारों और दोस्तों के साथ भी इसका ध्यान रखना चहिए, जैसे उनके साथ सार्थक समय बिताकर, अगर कोई ऐसी चीज़ है जो हम नहीं कर सकते हैं तो उनके निवेदनों के लिए ‘ना’ कह कर, कुछ क्षण अकेले और चुप रहने का समय निकाल कर, नियमित आराम करके, आदि। यह आश्चर्यजनक है कि कभी-कभी हम इन छोटी चीज़ों को भी करने में असमर्थ होते हैं क्योंकि या तो हम ‘बहुत थके हुए होते हैं‘ या ‘समय नहीं होता है‘। हम अपने लिए ‘समय निकालने‘ के हकदार हैं।
अंजोरा – आप अपने लिए स्वयं की देखभाल करने वाली कौन सी तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं?
राधिका – मैंने जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें सीखी हैं उनमें से एक है – अपने काम से काम रखना। इससे मेरा मतलब है कि मुझे एहसास हुआ कि मेरा काम उन सभी चीज़ों को ठीक करना नहीं है जो मुझे गलत लगता है, बल्कि यह है कि केवल मुझे जो करना है, उस पर ध्यान केंद्रित करना है, उसे जितनी अच्छी तरीके से हो सके उतनी अच्छी तरीके से (यह जानते हुए कि वो एकदम परफेक्ट या सही तो नहीं होगा) करना है, खुद और दूसरे लोगों के प्रति दयालु रहना है, और जब मन करे तो मुस्कुराना है! मैं केवल वही दे सकती हूँ जो मेरे पास है – और कभी-कभी एक मुस्कुराहट थोड़ा प्यार बढ़ाने में मदद करती है। इसलिए, मैं अपने काम से काम रखती हूँ एक तरह से कहें तो मैं अपने बगीचे की देखभाल में व्यस्त रहती हूँ, और आते-जाते लोगों को देखकर मुस्करा देती हूँ!
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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