मालिनी छिब के लेख सेक्सलेस इन द सिटी (जिसमें मेरी कोई गलती भी नहीं) को पढ़ना एक रुचिकर अनुभव रहा और उनके लेख का वह भाग विशेष रूप से प्रभावशाली लगा जिसमें उन्होंने लिखा है कि विकलांग लोगों को देखकर ज़्यादातर लोगों के मन में यही ख्याल आता है कि ये सेक्स-विहीन लोग हैं जिनके लिए एक भरे-पूरे यौन सम्बन्ध की कल्पना करना भी न केवल खुद को एक अटपटी स्थिति में डालने जैसे होगा बल्कि इन लोगों के लिए तो इसके बारे में सोचना भी निषेध होना चाहिए।
मेरे यहाँ यह सब लिखने का कारण यह नहीं है कि मैं उनके विचारों से सहमत नहीं हूँ, मैं इस लेख के माध्यम से बस अपने मन के कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता था। मैं सेरिब्रल पॉल्सी नामक विकलांगता के साथ रहता हूँ और न केवल मेरे हाथ-पाँव बल्कि मेरी पीठ और पेट का हिस्सा भी 75% विकलांगता से प्रभावित है। जीवन में प्यार, अंतरंगता और सेक्स की तलाश में दिल टूटने के मेरे भी कई अच्छे-बुरे अनुभव रहे हैं और जीवन में मैं अब उस पड़ाव पर हूँ जहाँ मैं पीछे मुड़कर सबके साथ अपने अनुभव और अपनी सीखी गयी बातों को साझा कर सकता हूँ।
मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिन्हें लगता है कि उनका पूरा जीवन सिर्फ़ इसलिए व्यर्थ और विफल रहा है क्योंकि उनके कभी किसी से सम्बन्ध नहीं बने और उन्होंने कभी सेक्स करने कर अनुभव नहीं किया। मैं यहाँ उनकी पहचान नहीं बताना चाहता क्योंकि यह सब लिखते समय तक मेरा उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया है। अपनी शारीरिक विकलांगता के कारण उन्हें कभी आराम से बैठकर किसी किताब, मैगज़ीन या कंप्यूटर पर किसी नग्न महिला शरीर को देखने का अवसर ही नहीं मिला है। हाल ही में मेरी उनसे मुलाकात हुई थी और तब उन्होंने कहा था, ‘मेरी उम्र 50 वर्ष से अधिक की हो गयी है, लेकिन क्या आप मानेंगे कि मैंने आज तक किसी महिला के स्तन नहीं देखे हैं।’ जब मैंने उनको अपने टेबलेट कंप्यूटर पर उसी समय बिना वस्त्र पहने एक महिला का चित्र दिखाने की पेशकश की तो उन्होंने तुरंत साफ़ मना कर दिया।
उन्हें बिना कपड़े पहने महिला की फोटो दिखाने से ज़्यादा मेरी कोशिश उन्हें यह समझाने की थी कि किसी महिला के स्तन को देख पाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है लेकिन फिर मुझे लगा कि शायद यह सब एहसास कराने के लिए मैं सही व्यक्ति नहीं हूँ क्योंकि उन व्यक्ति को पता था कि मेरे कई रोमांटिक सम्बन्ध रहे हैं और मैंने एक गैर-विकलांग महिला के साथ प्रेम विवाह किया है। यह सब बहुत तकलीफ़ देने वाला था क्योंकि वह व्यक्ति भले ही शारीरिक रूप से बहुत चुस्त न हों लेकिन उनका सामाजिकजीवन ठीकठाक रहा है और उन्हें लगभग हर रोज़ दुसरे लोंगों से मिलने-जुलने का मौका मिलता है। न जाने उन लोगों पर क्या गुज़रती होगी जो अपने घर पर ही रहते हैं और जिनका बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं हो पाता और न जाने वे किस तरह एकाकीपन और किसी भी तरह की शारीरिक और बौद्धिक अंतरंगता के अभाव से जूझते होंगे?
इस पूरे सिद्धान्त में – ‘विकलांग लोग अन्तरंग सम्बन्ध, जो आगे चलकर सेक्स में बदल सकते हों, नहीं बना पाते’ – यही समस्या दिखती है कि यह सिद्धान्त इस विचार पर आधारित है कि विकलांग लोग गैर-विकलांग लोगों से सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं। इस बारे में मालिनी लिखती हैं
‘क्या कोई ऐसा आदमी जो खुद विकलांग नहीं है, ऐसी औरत के बारे में सोचेगा? क्या वो ऐसी औरत के साथ रिश्ते में जेंडर भूमिकाओं के बदलाव को स्वीकार कर सकेगा? क्या वो अपनी सीमाओं को चुनौती देने के लिए तैयार होगा, क्या वो एक ऐसे शरीर के साथ सेक्स कर पाएगा जो ‘साधारण’ की परिभाषा से कोसों दूर है? क्या उससे यह उम्मीद रखना भी उचित होगा?’
यहाँ दिक्कत यह है कि हम एक ऐसी चीज़ पर ध्यान दे रहे हैं जो पूरे सम्बन्ध का एक भाग मात्र है, अपने आप में पूरा सम्बन्ध नहीं। ज़रूरी नहीं है कि साथियों के बीच हर सम्बन्ध में सेक्स भी हो हालांकि मैं यह भी नहीं कह रहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए, मेरा कहना केवल यह है कि ज़रूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो। आपस में प्रेम करने वाले दो लोगों के बीच, अगर उनकी इच्छा हो तो सेक्स ज़रूर होता है लेकिन सेक्स ऐसे दो लोगों के बीच भी होता है जो केवल सेक्स करने की अपनी ज़रुरत को पूरा करना चाहते हैं। अगर आपको केवल अपनी सेक्स करने की ज़रुरत ही पूरी करनी है तो आप अनेक तरीके अपना सकते हैं बशर्ते कि वे सुरक्षित हों और आपको उनसे कोई शारीरिक या भावनात्मक नुकसान न पहुंचे। किसी एक व्यक्ति के साथ प्रेम सम्बन्ध रखना और सेक्स सम्बन्ध किसी दुसरे के साथ बनाने में कोई बुराई नहीं है (अगर इसमें सभी सम्बंधित पक्षों या लोगों की आपसी रजामंदी हो)।
कुछ अपवादों के अतिरिक्त, विकलांगता के साथ रह रहे हर व्यक्ति किसी गैर-विकलांग व्यक्ति के साथ सम्बन्ध कायम करना चाहते हैं। यह उनके मन की चरम कल्पना या फैन्टसी रहती है। और इस इच्छा के पीछे कुछ बहुत ही व्यवहारिक मनोवैज्ञानिक और अपने अहम को तुष्ट करने से जुड़े कारण होते हैं। मैं खुद भी इस दौर से गुज़रा हूँ। जब आप किसी गैर-विकलांग व्यक्ति के साथ रोमांटिक सम्बन्ध रखने के इच्छुक होते हैं तब कहीं न कहीं आपके मन में यह भाव होता है कि आप दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि अपनी विकलांगता के बावजूद, कोई व्यक्ति ऐसा है जो आपको पाने की इच्छा रखता है और अगर इच्छा न भी रखता हो तो कम से कम वह रूमानी रूप से आप के साथ देखे जाने में संकोच महसूस नहीं करते। आप दुनिया को कुछ दिखाना चाहते हैं कि आपने भी कुछ हासिल किया है। ऐसा करके आप विकलांगता के साथ रह रहे लोगों के अपने समुदाय में सबकी इर्ष्या और तारीफ़ का केंद्र बन जाते हैं। यहाँ आर्थिक समृद्धि कोई मायने नहीं रखती, जीवन के अन्य क्षेत्रों में आपकी सफलता का कोई अर्थ नहीं होता बस किसी गैर-विकलांग व्यक्ति से रोमांटिक नाता – बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, पति या पत्नी – जुड़ना चाहिए और फिर देखिए कैसे आप हीरो बन जाते हैं। वहीं दूसरी ओर अगर आपके साथी भी आपकी तरह विकलांगता के साथ रह रहे हों तो दुनिया की तरफ़ से आपको मिलने वाला दयाभाव भी दोगुना हो जाता था।
एक गैर-विकलांग साथी की तलाश करने के जो कारण मैंने ऊपर बताए हैं, वे अधिकतर मनोवैज्ञानिक और अपने अहम को संतुष्ट करने वाले कारण हैं जिनकी वजह से कोई व्यक्ति किसी गैर-विकलांग व्यक्ति से ही सम्बन्ध बनाना चाहते हैं। ऐसा करने का व्यवहारिक कारण यह होता है कि परिवार में पहले ही एक विकलांग व्यक्ति होता है और लोग उसी की तकलीफों को देख कर शोकसंतप्त होते हैं और अचानक आप परिवार में ऐसे ही एक और व्यक्ति को लाना चाहते हैं। यह स्थिति तब और भी जटिल हो जाती है जब आप अपनी विकलांगता के कारण अपने परिवार की मदद पर निर्भर होते हैं। आप अपने परिजनों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे आपकी भी देखभाल करें और आपके साथी की भी जिन्हें आपने अपने लिया चुना है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसी कोई भी स्थिति आपके परिवार वालों के ऊपर थोपी नहीं जानी चाहिए। जैसे-जैसे ज़्यादा से ज़्यादा विकलांग लोग स्वाबलंबी होने लगेंगे, मुझे लगता है कि इस सोच में बदलाव आएगा और विकलांग व्यक्ति एक साथ मिलकर परिवार बना सकेंगे।
एक अन्य बात जिसे विकलांगता के साथ रह रहे व्यक्ति अक्सर अनदेखा कर देते हैं वह यह कि दिल टूटना और अस्वीकार कर दिया जाना हर सम्बन्ध में होता है भले ही आप विकलांगता के साथ रह रहे हों या नहीं। दुनिया भर में सैंकड़ों लोग, जो किसी भी तरह से विकलांग नहीं होते, हर साल केवल इसीलिए आत्महत्या करते हैं क्योंकि उन्हें तिरस्कार मिला होता है या उन्हें कोई धोखा देता है। इसलिए अस्वीकार किया जाना या दिल टूटना कोई ऐसी घटना नहीं है जो केवल विकलांग लोगों के साथ ही होती हो।
विकलांग लोग सम्बन्ध कायम करने की दिशा में बहुत ज़्यादा प्रयास नहीं करते और जब अगर हम ऐसा करते भी हैं तो हमें शुरुआत में ही असफलता का सामना करना पड़ता है। यह माना कि परिस्थितियाँ हमारे बहुत ज़्यादा अनुकूल नहीं होती और समर्थनकारी वातावरण के अभाव में कोई सम्बन्ध बना पाना उतना आसान नहीं होता लेकिन अगर आप रिश्ते बनाने के लिए दिलो-जान से जुटे हैं तो सफलता आपके प्रयासों की संख्या पर निर्भर करती है। आप जितने अधिक प्रयास करेंगे, सही व्यक्ति से टकराने की संभावना आपके लिए उतनी ही अधिक होगी और आप एक ऐसे व्यक्ति को खोज पाएँगे जो आपके साथ जीवन बिताने के लिए तैयार होंगे। इस सम्बन्ध में सेक्स भी होगा या नहीं, यह एक अलग मामला है।
तो अपनी सफलता की संभावना बढ़ाने के लिए आप क्या करें?
सबसे पहले तो सामाजिक मेल-मिलाप का दायरा बड़ा करें। मैं जानता हूँ कि ऐसा कह देना बहुत आसान है लेकिन सिर्फ़ एक कमरे में अकेले बंद रहने से और किसी साथी की इच्छा करते रहने मात्र से तो आपकी इच्छाएं पूरी नहीं हो जायेंगी। इसके अलावा कहीं आने-जाने में भी कठिनाई हो सकती है और ज़्यादातर जगहों पर पहुंचना मुश्किल हो सकता है लेकिन मैं अनेक विकलांग व्यक्तियों को जानता हूँ जो सिर्फ़ इसलिए घर से बाहर नहीं निकलते क्योंकि वे बाहर निकलना ही नहीं चाहते हैं। अगर वे कोशिश करें तो वे भी बाहर जा सकते हैं और लोगों से मिल-जुल सकते हैं लेकिन उन्हें यह कोशिश करना बहुत कठिन लगता है। उन्हें लगता है कि बस कोई आए और उन्हें मिल जाए। सम्बन्ध कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप फ्लिप्कार्ट या अमेज़न पर आर्डर कर मंगवा सकते हैं। इसके लिए आपको बाहर निकलना ही होगा, ताकि आप नज़र आएँ लेकिन ऐसा करते हुए आपको आहत होने के लिए भी तैयार रहना होगा। आपको अस्वीकार कर दिए जाने और तिरस्कार झेलने के लिए भी तैयार रहना होगा। यह सही है कि किसी भी गैर-विकलांग व्यक्ति की तुलना में आपको ज़्यादा बार नकारा जाएगा, आप आहत भी अधिक होंगे और संभव है कि आपको यह तिरस्कार बहुत दुखदायी भी लगे लेकिन कहते हैं न कि प्यार कौन सा आसानी से मिल जाने वाली चीज़ है? लोगों से मिलते जुलते रहने से आप एक न एक दिन उस सही व्यक्ति से मिल ही जायेंगे जो आपके लिए ही बना हो और जिसके लिए आप सही व्यक्ति हों। मेरा विश्वास कीजिए, ऐसा होता है।
दुसरे, आप लोगों से यह उम्मीद बिलकुल न रखें कि वे आपकी ज़रुरत को समझेंगे और इस बारे में खुले विचार भी रखेंगे। हर सम्बन्ध की सफलता उसमें किए जाने वाले लेन-देन पर निर्भर करती है। कोई भी सही समझदार व्यक्ति केवल एक सामाजिक कार्य या धार्मिक कर्त्तव्य मानकर आपसे सेक्स करने के लिए तैयार नहीं होंगे (हाँ अगर आजकल के बाबा या किसी साध्वी की तरह आपके पास कोई तांत्रिक शक्ति है तो और बात है)। इस लेन देन में आपको अपनी तरफ से कुछ तैयारी करनी होगी, भले ही इसके लिए चाहे किसी विशेष योग्यता की ज़रुरत हो, या यह पैसे या सामाजिक सुरक्षा के बल पर हो या फिर राजनीतिक अथवा सामाजिक प्रभाव के चलते। आपमें ऐसी कोई खूबी ज़रूर होनी चाहिए जिसे सामने वाला व्यक्ति तलाश कर रहा हो। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि आप दूसरों से यह उम्मीद न रखें कि वे आपसे सम्बन्ध बनाने के लिए केवल इसलिए तैयार हो जायेंगे क्योंकि उन्हें ऐसा करना चाहिए। दुनिया में ऐसा नहीं होता है। अगर लोग केवल अपना सामाजिक या धार्मिक कर्त्यव्य समझ कर किसी विकलांग व्यक्ति के साथ रोमांटिक सम्बन्ध रखने के लिए तैयार हो जाते तो अब तक हमारे सामने ऐसे जोड़ों की भरमार होती क्योंकि दुनिया में सामाजिक और धार्मिक कामों से जुड़े लोगों की कोई कमी नहीं है।
तीसरे, और आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि किसी न किसी तरह से स्वतंत्र और स्वाबलंबी जीवन जिएँ। किसी दुसरे व्यक्ति को अपनी ओर रोमांटिक तरीके से आकर्षित करना बहुत कठिन होता है अगर आप पैसे या दूसरी ज़रूरतों के लिए अपने परिवार पर आश्रित हैं। मेरी पत्नी ने मुझे बताया है कि अगर मैं अपनी देखभाल और पैसे के लिए अपने माँ-बाप पर निर्भर होता तो वह कभी मुझे पति के रूप में न चुनती। मेरी एक और गर्लफ्रेंड (मेरे विवाह से बहुत पहले) ने भी मुझसे कहा था कि वह मुझे अपना साथी तभी बना सकती हैं अगर मैं उनके साथ अमेरिका चलता जहाँ वह जा रही थीं।
मैं जानता हूँ यह कठिन है लेकिन अगर आप खुद के देखभाल करने में, कम से कम आर्थिक रूप से, सक्षम हैं तो एक जीवनसाथी पा लेने की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। कभी भी अपने करियर को नज़रंदाज़ न करें, चाहे आप अपना खुद का कुछ काम करते हों या फिर नौकरी करते हों। कोशिश करें और ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाएँ और इकठ्ठा करें। अगर आपके पास पैसा है तो आप अपनी बड़ी से बड़ी विकलांगता से पार पा सकते हैं – और यह मेरा खुद का अनुभव है। पैसे का अभाव अपने आप में एक बहुत बड़ी विकलांगता बन सकता है।
चौथा, कभी भी एक विकलांग जीवन साथी को अपनाने की सम्भावना को समाप्त न करें। मैं कुछ ऐसे दम्पतियों को जानता हूँ जो दोनों ही विकलांग हैं लेकिन साथ रहते हुए दोनों ही बहुत खुश हैं। मुझे यह तो नहीं पता कि उनका सेक्स जीवन संतोषजनक है अथवा नहीं (मैंने उनसे कभी पुछा नहीं और उन्होंने खुद से कभी बताया नहीं) लेकिन उन्हें देख कर लगता है कि वे बहुत संतुष्ट और सुखी हैं, उनके चेहरे पर वही चमक और ख़ुशी दिखायी देती है जो जीवन से प्रसन्न और सुखी लोगों के चेहरों पर होती है। अगर आपके लिए अपने साथी के साथ रहना संभव न हो तो आप पार्ट-टाइम सम्बन्ध भी बनाने की कोशिश कर सकते हैं। और तो और, आप एक से अधिक साथी भी बना सकते हैं। विकलांगता के साथ रह रहे बहुत से लोग केवल सेक्स के लिए भी आपसे सम्बन्ध बनाने के लिए तैयार हो जाएँगे (बस अनचाहे गर्भधारण के प्रति सचेत रहे)। एक और बात, सम्भोग ही सेक्स का आनंद उठाने का एकमात्र तरीका नहीं होता – इसे ज़रूर याद रखिए।
पांचवीं और अंतिम बात। आपका जीवन जैसा चल रहा है उसे वैसे ही जीने और खुश रहने की कोशिश कीजिए और किसी से सम्बन्ध बना लेने को लेकर बहुत अधिक व्यथित मत रहिए। मैं जानता हूँ कि इस तरह रह पाना बहुत कठिन होता है ख़ास कर तब जब आपके आसपास हर व्यक्ति सम्बन्ध बना रहे हों और आपके ज़ख्मों पर नमक छिड़कने के लिए इस बारे में बड़ा-चढ़ा कर बात भी करते हों। पर सच में, केवल सम्बन्ध बना लेना ही सब कुछ नहीं होता। किसी ऐसी चीज़ को पा लेना बहुत कठिन होता है जिसे पा लेने के लिए आप बहुत लालाइत रहते हैं क्योंकि ऐसे में आप दुसरे उन कामों पर ध्यान नहीं दे पाते जो आपको वह चीज़ दिलवा पाने में मददगार हो सकते हैं। अगर आप एकाकीपन से हमेशा दुखी रहते है तो आप जीवन के उन सुखदायक पहलुओं को नहीं देख सकेंगे जो आपके लिए उतने ही फलदायक हों। अगर आपको हमेशा ऐसा लगता है कि लोग आपको नज़रंदाज़ करते हैं या आपको अस्वीकार कर देते हैं या आपके बारे में आपकी विकलांगता के कारण कुछ सोचते हैं तो जाने अनजाने में आप इन नकारात्मक भावों को दूसरों तक प्रसारित कर देते हैं। नकारात्मक भाव-भंगिमा से हर व्यक्ति आपसे दूर हो सकता है वहीँ सकारात्मक व्यवहार हर व्यक्ति को आपके करीब ला सकता है।
याद रखिए कि सम्बन्ध यूँ ही नहीं बन जाते हैं। बहुत से कारण मिलकर संबंधों को सफल बनाते हैं। आपका पहनावा, सजने संवरने का अंदाज़, सब कुछ मायने रखता है। कभी भी केवल अपने पहनावे या स्वच्छता को इसलिए नज़रंदाज़ न करें क्योंकि आप विकलांग है; ठीक से तैयार हों। आपके पास कितना पैसा है, इससे फर्क पड़ता है, आपकी सामाजिक स्थिति क्या है, इससे भी फर्क पड़ता है, आप कितने मनमौजी हैं, इसका भी फर्क पड़ता है, आप कितने प्रभावशाली हैं, यह भी महत्व रखता है। आपका जीवन के प्रति नज़रिया क्या है, आपको कितनी समझ और ज्ञान है, आप सही समय पर सही जगह होते हैं या सही बात करते हैं, इन सबसे फर्क पड़ता है। और अंत में, बहुत ज़्यादा फर्क पड़ता है अगर आप खुद को किसी की चाहत के योग्य समझते हैं और मानते हैं कि कोई आप पर पूरी तरह निर्भर होकर विशवास कर सकता है।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
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