मुझे मेरी क्वीयर पहचान और मेरी एक शिक्षक के रूप में पहचान की समझ लगभग एक ही समय पर हुई। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मैंने कक्षाओं और पुस्तकालयों में क्वीयरनेस के बारे में बहुत सारी बातें की। मेरी कोशिश थी, अपनी इस नई पहचान को समझना, इसे अपने जीवन में शामिल करना, सभी के लिए इसके अर्थ का विस्तार करना और दूसरों से स्वीकृति और मान्यता प्राप्त करना। इस सब में मुझे छोटे बच्चों से, उनके चेहरे के भाव से, उनके जिज्ञासा से भरे प्रश्नों के माध्यम से और उनके ग़ैर-आलोचनात्मक रवैये से राहत और स्वीकृति मिली।
शुरू-शुरू में, इन चर्चाओं को लेकर मेरा उद्देश्य केवल शैक्षणिक था। मैं यह पता लगाना चाहती थी कि मैं अपनी कक्षा में, और बच्चों की लाइब्रेरी में जिन बच्चों के साथ बातचीत कर रही थी, क्या वे किसी को ‘अजीब’ कहने और ‘अलग’ कहने में जो अंतर है, उसे समझ पा रहे थे? मेरा प्राथमिक लक्ष्य यह था कि मैं उन्हें विभिन्न लोगों की अलग-अलग जीवन की कहानियों और विकल्पों के बारे में बताकर और उन्हें सामान्य बनाकर, विविधता और समावेशन की धारणाओं के बारे में उनकी समझ बढ़ाऊँ।
जैसे-जैसे मैंने ऐसी चीज़ों के बारे में बच्चों के साथ बात करना शुरू किया, उन्होंने ना केवल सवाल किए और लोगों की विभिन्न पसंदो और पहचानों को समझने की कोशिश की, बल्कि इसके बारे में उन्होंने मेरी अपेक्षाओं से कहीं ज़्यादा जानने की चेष्टा दिखाई। उन्होंने अपनी पसंद, अपनी प्राथमिकताओं, अपनी पहचान को लेकर कई सवाल किए और ऐसा करने पर उनके मन में जो शंकाएं उभरकर आयीं, उनके बारे में भी बताया। हमारी कक्षा में हो रही चर्चाओं – जिनमें कट्टरपंथी स्वीकृति को प्रोत्साहित किया जा रहा था – और उनके अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में दिखाई देने वाले हालातों के बीच जो दुविधा थी, वह उनके साथ मेरी बातचीत में साफ़ नज़र आ रहा था।
यहाँ पर अलग-अलग बच्चों के साथ, अलग-अलग माहौल में, क्वीयरनेस के विभिन्न रूपों पर मेरी बातचीत और इनसे उभर रहे सवालों के कुछ अंश दिए गए हैं –
मेरे पड़ोस में रहने वाले चार साल के लड़के ने जब मेरी ड्रेसिंग टेबल पर मेरी रंग-बिरंगी सजने-धजने की चीज़ें और नेल पेंट देखा तो उसने कहा –
“मुझे गुलाबी रिबन पसंद है, लेकिन लड़कों को रिबन पहनने या लंबे बाल रखने की अनुमति नहीं है। क्या आप मुझे भी नेल पेंट लगा दीजियेगा? नहीं रुकिए! मत लगाइये मेरी दीदा (दादी) को यह अच्छा नहीं लगेगा!”
एक ग्रामीण कम आय वाले वैकल्पिक स्कूल में एक किशोर लड़का –
“मैम, मैं सिर्फ़ लड़कियों से दोस्ती करना चाहता हूँ। वे मेरी बात सुनती हैं, मुझे लड़कों से बात करना पसंद नहीं है। लेकिन सभी लड़के मुझे चिढ़ाते हैं और बुरा-भला कहते हैं।”
एक शहरी स्कूल में एक 10 से 12 साल के बीच की लड़की –
“मुझे कल मम्मी ने बहुत मारा।”
“क्यों?”
“क्योंकि उन्होंने मुझे और मेरी दोस्त को साथ में नहाते हुए देख लिया। हम सिर्फ़ खेल रहे थे पानी से।”
एक सामुदायिक पुस्तकालय में एक 7 से 15 साल के बीच का मेंबर-
“मुझे सब लड़की बोलते हैं, मुझे यह बिलकुल पसंद नहीं है! पर मुझे लड़का भी नहीं बनना है।”
इन विभिन्न परिवेशों में बच्चों के साथ मेरी बातचीत के दौरान, मैंने क्वीयरनेस के संबंध में कई प्रकार के विचार और प्रश्न सुने। ये उनकी गहरी जिज्ञासा और साथ ही, “हमें कैसे पेश आना चाहिए” इस बात को लेकर उनके अंदर जो भ्रम और चिंता की गहरी भावना थी, उसे उजागर करते हैं।
मैंने कोशिश की कि उनके क्वीयरनेस को लेकर सवालों का जवाब दूँ, या फिर उनके इस सवाल का जवाब कि क्या ऐसा होना ‘ठीक’ है या नहीं। अकसर मेरे पास ऐसे शब्द नहीं होते थे जो उनकी समझ में आयें, और उन सभी सवालों के जवाब भी नहीं थे जो वे करने लग जाते थे, जैसे – “वाकई में आपको लगता है कि यह सही है? अगर मेरे माता-पिता को यह सब पसंद नहीं हो तो क्या होगा? मैं नहीं चाहता हूँ कि वे मुझे इसकी सज़ा दें।”
यह सच था – सीखने के स्थानों में बच्चों के साथ इन चर्चाओं के लिए मैं कितनी भी जगह बना लेती, कितनी भी उनके साथ बात कर लेती, मैं यह कभी नहीं सुनिश्चित कर पाती कि उन्हें मुख्यधारा की ज़िन्दगी में स्वीकार किया जाएगा। ऐसा भी हो सकता था कि बच्चे दूसरों को स्वीकार करें, लेकिन उनके पास अपनी ख़ुद कि पहचान तलाशने की जगह न मिल रही हो। हालाँकि, मुझे पता था कि कई ऐसी बातें थी जो मैं अपने अनुभव के आधार पर उन्हें समझा नहीं सकती थी, लेकिन अलग-अलग संदर्भों के बच्चों की पिक्चर बुक्स पर मैं भरोसा कर सकती थी, और मेरे उत्सुक ऑडियंस इन कहानियों के माध्यम से मेरी बातों को बेहतर समझ पाते थे। इन किताबों के काल्पनिक पात्रों के माध्यम से मैं बच्चों के साथ कई जटिल मुद्दों पर बात कर सकती थी, जैसे कि दुनिया को वे कैसे देखते हैं, और पहचान और स्वीकृति की एक ऐसी भाषा का निर्माण सकती थी, जिसके माध्यम से वे अपने आप को समझ सकें और ख़ुद के लिए खड़े भी हो सकें।
बच्चों की पिक्चर बुक्स के माध्यम से उनके साथ जुड़ना
नंगू नंगू नाच – ऋचा झा, रुचि म्हसाने के चित्रों से सज्जित (एकलव्य द्वारा हिंदी में प्रकाशित)
नंगू नंगू नाच में, मुख्य पात्र, नीला बेझिझक नाचना पसंद करती है, लेकिन उसे हमेशा चिढ़ाया जाता है, क्योंकि वह अलग है। अपनी दादी की मदद से, नीला अपनी अनूठी नृत्य शैली को अपनाना सीखती है और दूसरों को अपने शरीर और स्वतंत्रता के मूल्य को पहचानना सिखाती है।
यह मेरे ऑडियंस के लिए एक नई कहानी का विषय था – इससे पहले किसी ने भी कहानी में उनके सामने कोई ‘नग्न’ पात्र पेश नहीं किया था। इस कहानी को उन्होंने कहीं न कहीं अपने जीवन से जोड़ा और उन्होंने अपने अनुभव साझा किए – कैसे उन्हें चिढ़ाया जाता था, या कैसे वे अपने शरीर को लेकर शर्म महसूस करते थे। नीला के इस सफ़र से बच्चों ने यह सीखा कि अलग होना कोई बुरी बात नहीं है और इस दुनिया में रहने और जीने के उनके अपने अनूठे तरीक़े को अपनाना बहुत ज़रूरी है।
जूलियन इज़ ए मरमेड (जूलियन एक जलपरी है) – जेसिका लव (कैंडलविक प्रेस द्वारा प्रकाशित)
जूलियन इज़ ए मरमेड में, जूलियन तीन महिलाओं को देखता है, जो जलपरी के रूप में तैयार हुई होती हैं और वह ख़ुद के लिए जलपरी की पोशाक बनाने के लिए प्रेरित होता है। उसकी अबुएला (दादी) प्यार से उसकी रचनात्मकता को स्वीकार करती हैं और उसे एक जलपरी परेड में ले जाती हैं, जहां जूलियन को अपनेपन और गर्व की भावना महसूस होती है।
जब हम यह कहानी पढ़ रहे थे, तो बच्चे इस विचार को लेकर बहुत उत्सुक थे, कि हमारे आस पास लोग कितने अलग-अलग हैं। उन्होंने विभिन्न पारिवारिक संरचनाओं, विविध पहचान और ख़ुद को कैसे व्यक्त करना चाहते हैं, इस बात को लेकर स्वतंत्रता के बारे में बात की और कई सवाल किए। जूलियन और उसकी अबुएला (दादी) के परेड में शामिल होने के माध्यम से “प्राइड” की अवधारणा को प्रस्तुत किया गया, और इस बात को लेकर एलजीबीटीक्यू+ लोगों के गौरव और स्वीकृति के बारे में बातचीत शुरू हुई।
गुठली तो परी है – कनक शशि (एकलव्य द्वारा हिंदी में प्रकाशित)
गुठली तो परी है, गुठली की कहानी बताती है, जो “परी बनना चाहती है, लेकिन हर कोई उससे कहता है कि वह एक लड़का है।” गुठली का सफ़र जेंडर की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देता है और ट्रांस पहचान की जटिलताओं को समझने की कोशिश करता है। जब हमने यह किताब पढ़ी तो बच्चों ने जेंडर पहचान को लेकर कई सारे प्रश्न किए, जिससे विभिन्न पहचानों को समझने और स्वीकार करने के बारे में चर्चा शुरू हुई।
इस किताब के माध्यम से बच्चों के साथ जुड़ने से, ट्रांस लोगों के जीवन के बारे में उनकी समझ का विस्तार हुआ। पुस्तक ने जेंडर और पहचान की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी। जेंडर पहचान और विभिन्न पहचानों की स्वीकृति के बारे में उन्होंने बहुत सारे प्रश्न किए, जो कई बार अस्पष्ट थे लेकिन उत्सुकता से भरे थे। गुठली की कहानी ने बच्चों में एक समझ बनाई और उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि इस दुनिया में विविध पहचानें हैं और कई सारी संभावनाएं हैं।
व्हाई इस पिकी सो एंग्री? (पिकी इतनी ग़ुस्से में क्यों है?) – रितुपर्णा बोरा, कार्तिका बगोड़ी के चित्रों से सज्जित (नज़रिया फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित)
व्हाई इस पिकी सो एंग्री में, पिकी एक छोटी लड़की है जो अपनी पालतू बिल्ली कुही और अपनी माँ के साथ रहती है। पिकी किसी बात पर बहुत, बहुत, बहुत ग़ुस्से में घर आती है और उसकी माँ इसका कारण जानने की कोशिश करती है। लेकिन पिकी कोई जवाब नहीं देती है! बाद में, उसकी माँ को पता चलता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पिकी का उसकी सबसे अच्छी दोस्त के साथ झगड़ा हुआ था। सभी ने उन दोनों को चिढ़ाया, कि वे हमेशा एक साथ रहेंगे और एक-दूसरे से शादी करेंगे। पिकी को यह पसंद नहीं आया और इस बात को लेकर उसकी अपनी दोस्त से लड़ाई हो गई। उसकी माँ फिर यह सवाल करने के लिए उसकी मदद करती है कि क्या दो लड़कियों का शादी करना या एक साथ रहना बुरी बात है?
चर्चा के दौरान, बच्चों के बीच समलैंगिक विवाह के बारे में अविश्वास और जिज्ञासा थी। बच्चों ने शादी के पीछे कारणों के बारे में और शादी को लेकर अनुमति के बारे में सवाल पूछे, और यह भी पूछा कि क्या लड़के एक-दूसरे से शादी कर सकते हैं? हमारी चर्चा के दौरान उन्हें कई प्रश्नों का जवाब मिल गया, लेकिन हमने कई और प्रश्नों को छोड़ दिया, ताकि वे ख़ुद इसके बारे में धीरे-धीरे सोचने लगें।
क्वीयरनेस के लिए जगह बनाना – कैसे?
इन कहानियों ने बच्चों को और मुझे कई जटिल मुद्दों के बारे में बात करने के लिए एक सुरक्षित जगह दी। उन्होंने एक ऐसा वातावरण बनाया जहां बच्चे सूक्ष्म धारणाओं के बारे में सोच सकते थे और लिखे हुए शब्दों से कहीं आगे, एक गहरी समझ बना सकते थे। बच्चों की किताबें कई चीज़ों के बारे में सार्थक बातचीत शुरू करने के लिए शक्तिशाली साधन हैं, जिसमें क्वीयरनेस के बारे में समझ बनाना और उसका विस्तार करना भी शामिल है। नंगू नंगू नाच, जूलियन इज़ ए मरमेड, गुठली तो परी है, और व्हाई इस पिकी सो एंग्री जैसी कहानियों के माध्यम से, नए आख्यान पेश किए गए, जिससे बच्चों को ख़ुद को और दूसरों को एक अलग नज़रिए से देखने, सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने और उनके दृष्टिकोण का विस्तार करने का अवसर मिला। अलग-अलग पात्रों को अपनी पहचान, स्वीकृति और अभिव्यक्ति जैसे मुद्दों को संभालते हुए देखकर, बच्चे अपने स्वयं के बारे में सोचने लगे और मानदंडों पर सवाल उठाने लगे, और एक क्वीयर जगह इसी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है।
ऐसी किताबें और उनकी कहानियाँ हमें ‘विविधता’ और ‘समावेश’ की शाब्दिक धारणाओं से आगे बढ़ने में मदद करती हैं, और उन्हें हमारी रोज़ की ज़िन्दगी और बच्चों के अनुभवों में सबसे आगे लाती हैं। वे क्वीयरनेस को स्वीकार करने में मदद करती हैं, इसके अर्थ का विस्तार करती हैं और छोटे बच्चों के जीवन में इसके लिए जगह बनाती हैं। जैसा कि इन कहानियों से पता चलता है, क्वीयरनेस, केवल ‘स्ट्रेट (विषमलैंगिक) न होने’ या ‘समलैंगिक होने’ तक ही सीमित नहीं है। यह एक स्वतंत्र पहचान है जो छोटे बच्चों सहित किसी को भी स्वीकार करती है, जो निर्धारित बाइनरी के पथ से अलग चलते हैं। छोटे बच्चों के जीवन में क्वीयरनेस के लिए जगह बनाने का मतलब है कि उन्हें एक ऐसा सुरक्षित और स्वीकार्य स्थान देना जहाँ पर वे अपनी पहचान के बारे में सवाल कर सकते हैं, उसके बारे में सोच सकते हैं और अपनी पहचान बदल भी सकते हैं।
शर्मिला भूषण (ए एस इंटरनेशनल) द्वारा अनुवादित। शर्मिला एक स्पेनिश और हिंदी दुभाषिया (इंटरप्रिटर) और अनुवादक हैं, जिन्होंने पिछले 30 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक काम किया है। उन्होंने पेंगुइन एस.ई.ए. के लिए दो उपन्यासों का स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद किया है। ए एस इंटरनेशनल 2020 से कई भाषाओं में इंटरप्रिटेशन और अनुवाद की सेवाएँ प्रदान कर रहा है, खासकर विकास क्षेत्र के लिए।
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