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वो घरेलू औरतें – उनकी टीवी सीरियल वाली छवि और हक़ीकत

a television set

घर के काम-काज से
निपट कर
औरतें
दोपहर में
क्या बातें करती होगी
शायद
अपने पतियों की तंगी हालत
बच्चों की पढ़ाई का खर्चा
ससुर का इलाज
सास के ताने
ननद के बहाने
देवर के सताने
के बारे में ही
बातें करती होंगी
पर
जो
नहीं कर पाती होंगी
वो है
अपने शरीर का भट्टी होते जाना
अपने सपनों का राख बनते जाना
अपने अरमानों को खाक करते जाना
पर ये शरीर, सपने, अरमान उनके जहन में कहाँ

उन्हें तो “शिक्षा” दी गयी है
तुम नारी हो
तुम बलिदान हो
तुम्हें भूखी रहना है
हर दुख सहना है
और घुट के
एक दिन मर जाना है
और इस “शिक्षक” संस्कृति की चतुराई देखिए
हेडमास्टर भी नारी है
ये बिडम्बना बहुत भारी है
इसी ऊहापोह में
नन्ही बच्चियों को
एक बार फिर
भट्टी बनाने की तैयारी करती

घर के काम-काज से
निपट कर
औरतें
दोपहर में
शायद यही बातें करती होंगी

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